श्री महागौरी महामंत्र जप विधि (Shri Mahagauri Mahamantra Chanting Ritual)
माँ महागौरी, माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से आठवीं शक्ति हैं, जो अपने भक्तों को शांति, समृद्धि और पवित्रता प्रदान करती हैं। महागौरी की उपासना नवरात्रि के आठवें दिन विशेष रूप से की जाती है। यहाँ श्री महागौरी महामंत्र का जप विधि और पूजा क्रम प्रस्तुत किया जा रहा है।
श्री महागौरी महामंत्र का परिचय
- ऋषिः: कालभैरव
- छन्दः: अनुष्टुप्
- देवता: श्री महागौरी
- बीज: ऐं
- शक्ति: सौः
- कीलक: ॐ
- दिग्बन्धन: गूं
विनियोग: श्री महागौरी की कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से इस महामंत्र का जप किया जाता है।
कर न्यास (हाथों में मंत्र का निवास)
- गां अँगूठे से - अंगुष्ठाभ्यां नमः
- गीं तर्जनी उंगली से - तर्जनीभ्यां नमः
- गूं मध्यमिका उंगली से - मध्यमाभ्यां नमः
- गै अनामिका उंगली से - अनामिकाभ्यां नमः
- गाँ कनिष्ठिका उंगली से - कनिष्ठिकाभ्यां नमः
- गः हथेली और हाथ के पिछले हिस्से से - करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः
अंग न्यास (शरीर के अंगों में मंत्र का निवास)
- गां हृदय से - हृदयाय नमः
- गीं मस्तक से - शिरसे स्वाहा
- गूं शिखा से - शिखायै वषट्
- गैं कवच से - कवचाय हुं
- गाँ नेत्रत्रय से - नेत्रत्रयाय वौषट्
- गः अस्त्र से - अस्त्राय फट्
दिग्बन्ध: ॐ भूर्भुवसुवरोम्।
ध्यान मंत्र
"उद्यदर्कसमानाभां सितांशुमुकुटांशिवां।
चतुर्भुजां त्रिनयनां महागौरीं भजाम्यहम्॥"
अर्थ: माँ महागौरी का ध्यान किया जाता है जो उदित सूर्य के समान चमकती हैं, उनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है। वे चार भुजाओं वाली और त्रिनेत्री हैं। हम माँ महागौरी की आराधना करते हैं।
पञ्च पूजा विधि
- लं पृथ्वी तत्व से: गंध अर्पित करता हूँ
- हं आकाश तत्व से: पुष्प अर्पित करता हूँ
- यं वायु तत्व से: धूप अर्पित करता हूँ
- रं अग्नि तत्व से: दीप अर्पित करता हूँ
- वं जल तत्व से: अमृत (नैवेद्य) अर्पित करता हूँ
- सं सर्व तत्व से: ताम्बूल (पान) अर्पित करता हूँ
श्री महागौरी महामंत्र
मूल मंत्र:
"ऐं सौः ग्रीं गूं महागौर्यै नमः"
यह महामंत्र माँ महागौरी की कृपा प्राप्त करने के लिए जपा जाता है। नियमित रूप से इस मंत्र का जप करने से भक्तों को विशेष लाभ प्राप्त होता है और उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
अंग न्यास (शरीर के अंगों में मंत्र का निवास)
अंग न्यास विधि में शरीर के विभिन्न अंगों को मंत्र द्वारा पवित्र और सुरक्षित किया जाता है। यह क्रम इस प्रकार है:
- गां हृदय से - हृदयाय नमः
- गीं मस्तक से - शिरसे स्वाहा
- गूं शिखा से - शिखायै वषट्
- गैं कवच से - कवचाय हुं
- गाँ नेत्रत्रय से - नेत्रत्रयाय वौषट्
- गः अस्त्र से - अस्त्राय फट्
दिग्बन्ध: ॐ भूर्भुवसुवरों इति दिग्विमोगः।
ध्यान (माँ महागौरी का ध्यान)
ध्यान का अर्थ है माँ महागौरी का मनन और उनकी छवि का आंतरिक अनुभव करना। ध्यान के माध्यम से भक्त माँ के स्वरूप को अपनी चेतना में अनुभव करता है।
ध्यान मंत्र:
"उद्यदर्कसमानाभां सितांशुमुकुटांशिवां।
चतुर्भुजां त्रिनयनां महागौरीं भजाम्यहम्॥"
अर्थ: माँ महागौरी का ध्यान किया जाता है जो उदित सूर्य के समान चमकती हैं, उनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है। वे चार भुजाओं वाली और त्रिनेत्री हैं। हम माँ महागौरी की आराधना करते हैं।
पञ्चपूजा (माँ महागौरी की पांच तत्वों से पूजा)
पञ्चपूजा में पाँच तत्वों का उपयोग करके माँ महागौरी की पूजा की जाती है। यह पूजा क्रम निम्नलिखित है:
- लं पृथ्वी तत्व से: गंध अर्पित करता हूँ
- हं आकाश तत्व से: पुष्प अर्पित करता हूँ
- यं वायु तत्व से: धूप अर्पित करता हूँ
- रं अग्नि तत्व से: दीप अर्पित करता हूँ
- वं जल तत्व से: अमृत (नैवेद्य) अर्पित करता हूँ
- सं सर्व तत्व से: ताम्बूल (पान) अर्पित करता हूँ
इस पूजा से भक्त माँ महागौरी के पांच तत्वों को अपने जीवन में संतुलित करता है और उनके दिव्य आशीर्वाद की प्राप्ति करता है।
निष्कर्ष
माँ महागौरी की पूजा और महामंत्र जप से व्यक्ति को आंतरिक शांति, शक्ति और समृद्धि प्राप्त होती है। नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की विशेष रूप से पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है। श्री महागौरी का आशीर्वाद उन भक्तों पर हमेशा बना रहता है जो सच्चे मन से उनकी आराधना करते हैं।
9. सिद्धिदात्री
- श्री सिद्धिदात्री महामन्त्र जप विधि
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