प्यारु गढ़देश
प्रस्तावना
"प्यारु गढ़देश" एक सुंदर कविता है जो उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की सुंदरता, संस्कृति और विरासत को उजागर करती है। यह कविता न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का बखान करती है, बल्कि यहाँ के लोगों की वीरता और धार्मिकता को भी दर्शाती है।

कविता: प्यारु गढ़देश
बावन गढ़ु कू,
प्यारु गढ़देश,
जुग-जुग राजि रखि,
खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश.....
वीर भड़ु की भूमि,
प्यारु गढ़देश,
देवभूमि तपोभूमि,
जख ब्रह्मा विष्णु महेश.
जुग-जुग राजि रखि,
खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश.....
बावन गढ़ु कू,
प्यारु गढ़देश,
जख राज करिग्यन,
गढ़वाल नरेश,
जुग-जुग राजि रखि,
खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...
बावन गढ़ु कू,
प्यारु गढ़देश,
जौनसारी, गढ़वाली बोलि,
रौ रिवाज, परिवेश,
जुग-जुग राजि रखि,
खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...
बावन गढ़ु कू,
प्यारु गढ़देश,
बांज, बुरांश, देवदार,
डाडंयौं मा ढेस,
जुग-जुग राजि रखि,
खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...
बावन गढ़ु कू,
प्यारु गढ़देश,
जख नाचदा देवता,
भूत अर् खबेस,
जुग-जुग राजि रखि,
खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...
बावन गढ़ु कू,
प्यारु गढ़देश,
देवतों का धाम,
हरिद्वार ढेस,
जुग-जुग राजि रखि,
खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश..
बावन गढ़ु कू,
प्यारु गढ़देश,
गंगा यमुना कू मैत,
वीर भड़ु कू देश,
जुग-जुग राजि रखि,
खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश..
कविता का विश्लेषण
यह कविता गढ़वाल क्षेत्र की विविधता और संस्कृति को संजोती है। "खोळि का गणेश" का उल्लेख इस बात को दर्शाता है कि यहाँ की धार्मिक आस्था कितनी गहरी है। कविता में प्राकृतिक सौंदर्य, जैसे बांज, बुरांश, और देवदार के पेड़, इस क्षेत्र की अद्भुत प्राकृतिक संपदा को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष
"प्यारु गढ़देश" हमें हमारे पहाड़ों और उनकी संस्कृति की कदर करने की प्रेरणा देती है। यह कविता हमें याद दिलाती है कि हमारे अपने देश की सांस्कृतिक धरोहर को संजोकर रखना कितना महत्वपूर्ण है।
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