लोक बाराखड़ी
प्रस्तावना
लोक बाराखड़ी एक अनूठी परंपरा है, जो हमारे क्षेत्रीय साहित्य और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। इसमें वर्णों के माध्यम से शिक्षाप्रद संदेश दिए जाते हैं। यह विशेष रूप से बच्चों के लिए एक मनोरंजक और शिक्षाप्रद तरीके से नैतिक मूल्यों को समझाने का माध्यम है।
लोक बाराखड़ी के वर्ण
क - कंचनी डाळी कु वासुनि कन।
ख - खाते पीते राम भजन।
ग - गंगा जी मा स्नान कन।
घ - घरों-घरों की बात नि सुण।
ङ् - गंगा जी गन्दी नि कन।
च - चंचल नारी कू संग नि कन।
छ - छलिया मुख की बात नि सुण।
ज - जंगलू मा वासु नि रैण।
झ - झूठि मुटी बात नि करण।
ञ - येनी बात कैमू नि बोलण।
ट - टम्का पैस गांठि मा रखण।
ठ - ठगा आदिम दगड़ी सौदा नि कन।
ड - डगड्यनी ढुंगी मा खुटो नि रखण।
ढ - ढवाली बात कभी नि कन।
ण - णखदि नरमी कु वास नि कन।
त - ताता रोस मा झगड़ा नि कन।
थ - थता थुमा सब दगड़ी कन।
द - दया धर्म सदा रखण।
ध - धरती माता की सेवा करण।
न - नकली बात कभी नि बोन।
प - पढ़ण-लेखण पर ध्यान देण।
फ - फंचा आदिम की बात सुण।
ब - बांगी लकड़ी कांधी मा नि रखण।
भ - भरियाँ भवन की चोरी नि कन।
म - मंगण आदिमू की बात नि सुण।
य - यनि-यनि बात मन मा रखण।
र - राम नाम सदा भजण।
ल - लंगी लंगी डाळी कू टुक नि काटण।
व - वखला मा नारियों दगड़ी बात नि कन।
ह - हल लगोण मा सरम नि कन।
स - साधु, संन्तो की सेवा करण।
ा - सनातन धर्म की सेवा करण।
भा - सासू ससुर की सेवा कन।
क्ष - अक्षरों पर ध्यान देण।
त्र - त्रणी तार भगवान करद।
ज्ञा - ज्ञानी यानी एकी तरह बणण।
निष्कर्ष
लोक बाराखड़ी न केवल बच्चों के लिए बल्कि सभी उम्र के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण नैतिक शिक्षा का माध्यम है। यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और आगामी पीढ़ियों को सिखाने का एक अद्वितीय तरीका है।
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