चामुण्डा देवी मंत्र । Chamunda Devi Mantra

चामुण्डा देवी मंत्र । Chamunda Devi Mantra 

चामुण्डा देवी मंत्र
  1. चामुण्डा देवी मंत्र -; ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे॥ 
  2. लक्ष्मी प्रधान चामुंडा मंत्र -: ह्रीं क्लीं ऐं चामुंडायै विच्चे.
  3. माया प्रधान चामुंडा मंत्र -:  ह्रीं ऐं क्लीं चामुंडायै विच्चे
  4. आकषर्ण चामुंडा मंत्र -: क्लीं ऐं ह्रीं चामुंडायै विच्चे।
दुर्गा सप्तशती में मूल मंत्र नौ अक्षर के ही हैं लेकिन उसमें ऊं लगाकर दशाक्षरी होता है।
  साधक अपनी रूचि और सुविधानुसार इनमें से किसी भी मंत्र का जप कर सकते हैं

चामुण्डा देवी मंत्र का विवरण : 

इस मंत्र का एक बड़ा ही महत्व है क्योंकि इस मंत्र के माध्यम से व्यक्ति तीनों त्रिदेवियों माँ दुर्गा, माँ लक्ष्मी, और माँ सरस्वती, का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। इस मंत्र में ऐं शब्दांश, माँ सरस्वती का बीज मंत्र है, ठीक उसी तरह ह्रीं, महा लक्ष्मी का बीज मंत्र है और उन्हें संबोधित करता है। वहीँ क्लीं माँ काली का बीज मंत्र है। इस तरह से इस मंत्र का जाप हमें तीनों ही देवियों का आशीर्वाद दिलाता है। 
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ऐसा कहा जाता है की नवरात्री के दौरान जो भी इस मंत्र का जाप करता है उसे महामाया क आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस मंत्र का जाप नवरात्र के दौरान रात के 9 बजे से सुबह 4 बजे के बीच करें। इसके जाप के लिए किसी लाल रंग के वस्त्र का धारण करें और आसान भी लाल रंग का ही रखें। ध्यान रहे की आपका चेहरा पूर्व या उत्तर की और होना चाहिए और सच्चे और स्वच्छ विचार के साथ इसका जाप करें। 
विनियोग–
अस्य श्री नवार्ण मंत्रस्य ब्रह्माविष्णुरूद्रा ऋषय: गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छंदासि श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरसत्यो देवता: नंदा शाकंभरी भीमा: शक्त्य: रक्तदंतिकादुर्गा भ्रामर्यो बीजानि, अग्नि वायु सूर्यस्यस्तत्वानि, ऋग्यजु: सामानि स्वरूपाणि, ऐं बीजं, ह्रीं शक्ति: क्लीं कीलकं श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपा त्रिगुणात्मिका श्री महादुर्गा देव्या प्रीत्यर्थे दुर्गासप्तशती पाठांगत्वेन जपे विनियोग:।
ऋष्यादिन्यास–
ब्रह्मा विष्णु रूद्रा ऋषिभ्यो नम: शिरसि।
 गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छंदोभ्यो नम: मुखे। 
श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरसत्यो देवताभ्यो नम: हृदि।
 ऐं बीज सहिताय रक्तदंतिका, दुर्गायै, भ्रामरी देवताभ्यो नम:
 लिंगे (मनसा)। ह्रीं शक्ति सहितायै नंदा शाकंभरी भीमा देवताभ्यो नम:
 नाभौ। क्लीं कीलक सहितायै अग्नि वायु सूर्यं तत्वेभ्यो नम: गुह्ये 

(लिंग मूल के ऊपर एवं छोटी आंत के बीच का भाग)।
 ऋग्यजु साम स्वरूपिणी श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नम:
 पादौ। श्री महादुर्गा प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: सर्वांगे।

ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे

मंत्र पढ़कर शुद्धि करें।
नवार्ण करांगन्यास—
इस क्रिया से मूल मंत्र की ऊर्जा को हाथों में स्थापित कर उन्हें ओजमय बनाया जाता है। उदाहरण के लिए तर्जनी उंगली इंगित करने के काम आती है।

अत: पहले तर्जनी से (ऊं अंगुष्ठाभ्यां नम:) के द्वारा बुद्धि के केंद्र अंगूठे में ऊर्जा स्थापित की जाती है। बुद्धि का केंद्र होने के कारण अंगूठे की शक्ति का सहस्राधार से संबंध बनता है। इसी कारण अंगूठे से ऊर्जा को अन्य उंगलियों में स्थापित किया जाता है। हाथों के शुद्ध और ऊर्जावान होने के बाद पांचों उंगलियों से आकर्षिणी शक्ति के माध्यम से 
शरीर के अन्य अंगों में ऊर्जा स्थापित करने के लिए हृदयादिन्यास करते हैं।

षडंगन्यास– ऊं ऐं अंगुष्ठाभ्या नम:। (हृदयाय नम:)। ऊं ह्रीं तर्जनीभ्यां नम:।
(शिरसे स्वाहा)।
ऊं क्ली मध्यमाभ्यां नम:। (शिखायै वषट्)। 
ऊं चामुंडायै अनानिकाभ्यां नम:। कवचाय हुं)।
 ऊं विच्चे कनिष्ठाभ्यां नम:। (नेत्रत्रयाय वौषट्)। 
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे करतलकर पृष्ठाभ्यां नम:। (अस्त्राय फट्)।
 ध्यान खडगं चक्रगदेषुचाप परिघांछूलं भुशुंडीं शिर:, 
शखं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वांगभूषावृताम्। 
नीलाश्मद्युतिमास्य पाददशकां सेवे महाकालिकां, 
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हंतुं मधुंकैटभम्।। 
अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनु: कुंडिकां, 
दंडं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घंटां सुराभाजनम्। 
शूलं पाश सुदर्शने च दधतीं हस्तै: प्रसन्नाननां, 
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्।। 
घंटाशूल हलानि शंखमुसले चक्रं धनु: सायकं, 
हस्ताब्जैर्दधतीं घनांत विलसच्छीतांशुतुल्य प्रभाम्। 
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुंभादिदैत्यार्दिनीम्।।

माला चामुंडा यंत्र पूजन– मंत्र सिद्ध माला यंत्र यंत्र पर गंध व अक्षत चढ़ाने के बाद निम्न मंत्र बोलकर नमस्कार करें।

ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नम:।
ऊं माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी।
 चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्त: तस्मान्मे सिद्धिदाभव।
 ऊं अविघ्नं कुरुमाले त्वं गृहणामि दक्षिणे करे। 
जपकाले च सिद्धयर्थे प्रसीद मम् सिद्धये।

ऊं अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमंत्रार्थ साधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय में स्वाहा।
(इसके बाद ऐं ह्रीं क्ली चामुंडायै विच्चे मंत्र का 108 बार जप करें। अंत में कहें—
ऊं गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत् कृतं जपम्। सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत् प्रसादान्महेश्वरि।

विधि व फल– नौ लाख जप कर खीर से दशांश हवन व तर्पण कर ब्राह्मण भोजन कराएं।
इस पुरश्चरण से सभी रोग, उपद्रव, शत्रु के प्रतिकूल कार्य नष्ट होकर साधक का हर तरह से कल्याण होता है। उसे ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। पुरश्चरण के पश्चात नाभि तक जल में स्थित होकर दस हजार जप करने से कवित्व की प्राप्ति होती है। बेल के पेड़ के नीचे एक माह तक किसी भी तय संख्या से प्रतिदिन जप कर बेलपत्र, मधुत्रय, दूध व कमल से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

नाम: चामुंडा देवी मंदिर (चामुंडा नंदिकेश्वर धाम)

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