गढ़वाली शायरी पहाड़ की शायरी (Garhwali Shayari Pahar Shayari)
तू बुरांश अर फ्योंली जसि सुवा।
मैं किनगोड़ा जसि तेरु मायादार।।
तू नारंगी की दाणी जसि सुवा।
मि नायर कु कोजाल पाणी जसि सुवा।।
🤣🤣 (#गढ़वाली)
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🤣🤣 (#गढ़वाली) |
मुझे याद है, गांव से ये कह कर निकला था,
कि क्या रक्खा है मां तेरे इस पहाड़ में,
(#पहाड़ी_की_बात)
****कुछ नहीं भूला पाया,
बुरांस, फ्योंली का खिलना।
बर्फ की सफेद चादर लपेटे,
तेरा चांदी सा चमकना।
कहीं दूर किसी ग्वाले का गाय बकरियों को आवाज देना,
और हर चार कदम पर गधेरे और धारों का मिलना।
(#पहाड़ी_का_पहाड़)
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पहाड़ की तलहटी पर,
पत्थरों से बना मेरा छोटा सा घर,
घर के चुल्हे का वो स्वाद,
झूंगर, मंडवा, गहत, बड़ी, भात।
सब कुछ था वरदान सा पाया,
शहर की भूलभुलैया में कितना कुछ गंवाया।
#पहाड़ी_के_लिये_वरदान
#जिस_मैं_स्वर्ग_का_अनुभव
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प्यारी सी तेरी मुखड़ी तू छणी छांटी
जन डाळी देवदारै की काया तेरी
पिंगली पिछोड़ी ओढ़ी, जन सूबेर कु घाम
चम पीली सूरजमुखी सी मुखड़ी तेरी
मुखड़ी मां तेरी द्वि तोळे की सजीली नथुली ।।
(# गढ़वाली)
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कानु मां मुखुली अर झुमकी झुम्दी तेरी
खुटियों की पैजी छम सी बज्दी तेरी
लंबी सी धौंपेली सप सपी सी तेरी
बसी छै जुकड़ी मां कच्ची बटी तू मेरी
मुखड़ी मां तेरी द्वि तोळे की सजीली नधुली ।।
(# गढ़वाली)
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पिंगलु सी सूट तेरु आँखा रतेगी मेरा
चम चमकी जन घाम हिवांली कांठियों मां
आँखा अर मन भी चमकैगी मेरा
तुवे देखी की धकध्यांदी अब जुकड़ी मेरी
मुखड़ी मां तेरी द्वि तोकै की सजीली नथुली।।
(# गढ़वाली)
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