एक राजनीतिक और सामाजिक टिप्पणी
कविता:
कामे बात सुन्ना मे पट्ट भै
मंडल बनून मे झट्ट भै
नया जिल्ला कि मांग छि
कैले जरूर पिये भांग छि
फैसलो त यो अट पट्ट भै
मंडल बनून मे झट्ट भै।।
रोजगारे जब दरकार छि
सिये तब यो सरकार छि
बजट सब करि चट्ट भै
मंडल बनून मे झट्ट भै।।
के भाषा बोली फिकर ना
कैथे करयो के जिगर ना
यो आपनि करिये हट्ट भै
मंडल बनून मे झट्ट भै।।
आब यो चुनावो काम छ
तब आरे जनता फ़ाम छ
रटेकी आपनि रोज रट्ट भै
मंडल बनून मे झट्ट भै।।
~ राजू पाण्डेय
अर्थ और विश्लेषण:
"मंडल बनून मे झट्ट भै" एक राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी है। इस कविता के माध्यम से कवि ने राजनीतिक प्रक्रियाओं और सरकारी निर्णयों की आलोचना की है।
1. राजनीतिक प्रक्रिया की आलोचना:
- कवि ने मंडल बनाने की प्रक्रिया और उसके निर्णयों को लेकर व्यंग्य किया है, यह बताते हुए कि यह प्रक्रिया असामान्य और अनावश्यक रूप से जटिल हो गई है।
2. रोजगार और बजट:
- कविता में रोजगारी की कमी और बजट के बारे में चर्चा की गई है, जो दर्शाता है कि सरकार के पास प्राथमिक मुद्दों पर ध्यान देने की कमी है।
3. भाषा और संस्कृति की अनदेखी:
- कवि ने यह भी इंगित किया है कि भाषा और संस्कृति की चिंता नहीं की जा रही है, और यह राजनीतिक नेताओं के द्वारा अनदेखी की जा रही है।
4. चुनावी राजनीति:
- चुनावों के समय जनता को भ्रमित करने की बात की गई है, जिसमें चुनावी वादों और दावों का व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है।
Keywords:
- मंडल बनून
- राजनीतिक टिप्पणी
- रोजगार और बजट
- चुनावी राजनीति
"मंडल बनून मे झट्ट भै" एक सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणी है, जो सरकारी नीतियों और निर्णयों पर व्यंग्य करता है। यह कविता दर्शाती है कि कैसे राजनीतिक प्रक्रियाओं और सरकारी व्यवस्थाओं को लेकर आम जनता के मन में असंतोष और निराशा होती है।
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