कमुली की ईजा - एक पहाड़ी जीवन का अद्वितीय संघर्ष - Kamuli's Ija - the unique struggle of a mountain life
कमुली की ईजा - संघर्ष और समर्पण की मार्मिक गाथा
कविता:
कमुली की ईजा
मैते याद उनो टेमे कों छ
आब उ कमुली ईजा छ
और कमुली इजेको संसार
गौरू भैंसा, झाड़ पात
चूलो चौकी रै गो
यादे न्हान कब बठै, मुड लै ना कटौरयो
मुड़ा बिच्च में है उखड़ी ग्यान कति बाल
और कति जट्टा बनन खन बटि रयान।
कभै बिन बताये बगि जानौंन आंसू
जब कैका फौजी बाबा
हाथ मे बकसो, कान में बिस्तरबंद उठे
देखिनान दयू महीने छुट्टी ऊना
आफी आफी आपना बाबू की
पुरानी फ़ोटो आँखा में तैरी जाछिन
जसि के उन पड़नौन मैते का स्युना
हल्का दिछि
गौरू कि अड़ाना आवाज।
पिछली छुट्टी कमुली बाज्यू लै रोछ्या
क्याबब कोल्ड क्रीम झ कुंनोछया
कुंनोछया गाल्ला नै फाट, रोज लगाए
आज कमुली ने पतोड़ दी पुररी चद्दर
कमुली ईजा कि फिक्र चद्दर धवैना छि
क्रीम त शैद उकि थें छिई नै
कैसे कमुली गाल्ला में जरूर लगे दिछि
उसे लै करि कि लिनी ऊ क्रीम
दिन में दस बैर पसना लै धोईनया मुखे को।
चार दिने छुट्टी आया कमुली बाज्यू
बैठन चानौंन थोड़ी देर आपनी घरवाली बठै
रात्ते चार बाजई उठी उ
कईं बैर कैगे, बस आल्ले उनन्हू, बस आल्ले उनन्हू
रात दस बाजि पूजि कमरा में हसनी
दिनभरि भजभाज और
रातो को चूलो भाडों करि
पूजना बोली
सिबो कमुली बाज्यू ! खूब पटे जान होला नैं?
दिन भरि आफिसो काम
और आपनो खानों पिनो बनुँन में
कमुली बाज्यू आँखा छलछला गया
बोल्या, उईका खुरदुरा हाथ पकड़ी
जी रये पगली!
तेरा जति काम थोड़ी हुनान हमारा
और हामु छुट्टी और वीकेंड लै मिल्छ
तवैके त उलै ना मिलनो।
अर्थ और विश्लेषण:
"कमुली की ईजा" कविता पहाड़ी जीवन की कठिनाइयों, संघर्षों, और समर्पण की गाथा है। इसमें एक पहाड़ी महिला, जिसे "कमुली की ईजा" के नाम से जाना जाता है, के दैनिक जीवन का सजीव चित्रण किया गया है।
दैनिक संघर्ष:
कविता में कमुली की ईजा की कठिन दिनचर्या को दर्शाया गया है, जो गौशाला, खेत, और घर के कामों में व्यस्त रहती है। उसके जीवन में चूल्हा, चौकी, और खेत ही उसका संसार है। उसकी चिंताओं और संघर्षों में उसका जीवन गुजरता है, लेकिन वह कभी अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटती।ममता और चिंता:
कविता में ईजा की ममता और चिंता को उजागर किया गया है, जो अपनी बेटी कमुली के प्रति अपनी भावनाओं को लेकर बेहद चिंतित रहती है। कमुली के चेहरे पर लगाने के लिए क्रीम खरीदने का दृश्य ईजा की अपनी बेटी के प्रति स्नेह और देखभाल को दिखाता है।पति का स्नेह:
कविता में ईजा के पति का स्नेह भी दिखाया गया है, जो कुछ दिनों की छुट्टी में घर आता है। वे अपने संघर्षों और परेशानियों को साझा करते हैं, लेकिन इस बीच उनका आपसी प्रेम और समझदारी उन्हें और मजबूत बनाता है।समर्पण और दृढ़ता:
कविता का अंत इस बात को रेखांकित करता है कि पहाड़ी महिलाओं के जीवन में कितनी कठिनाइयाँ होती हैं, लेकिन वे कभी हार नहीं मानतीं। उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ होता है, लेकिन उनकी दृढ़ता और समर्पण उन्हें जीवित रखता है।
Keywords:
- पहाड़ी जीवन
- महिला संघर्ष
- मातृत्व की ममता
- दैनिक जीवन की कठिनाईयाँ
- पहाड़ी संस्कृति
"कमुली की ईजा" कविता के माध्यम से राजू पाण्डेय ने पहाड़ी जीवन के संघर्षों, ममता, और समर्पण को एक मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है। यह कविता पहाड़ी महिलाओं के जीवन के प्रति एक सम्मान है, जो कठिनाइयों के बावजूद अपने परिवार और जिम्मेदारियों को निभाती हैं।
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