नवरात्रि के पहले दिन करें माँ शैलपुत्री की पूजा और जानिए मंत्र - On the first day of Navratri, worship Goddess Shailputri and know the mantra

नवरात्रि के पहले दिन करें माँ शैलपुत्री की पूजा और जानिए मंत्र

नवरात्रि, हिंदू धर्म का एक प्रमुख और अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है और प्रत्येक स्वरूप की अपनी विशेष पूजा विधि और महत्व होता है। नवरात्रि के पहले दिन, माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे माँ शैलपुत्री की पूजा का महत्व, उनके मंत्र, और उनकी पौराणिक कथा के बारे में।


माँ शैलपुत्री का परिचय

शैलपुत्री का अर्थ है "पर्वतराज हिमालय की पुत्री"। शिला का अर्थ है चट्टान या पहाड़ और पुत्री का अर्थ है बेटी। माँ शैलपुत्री को करोड़ों सूर्यों और चन्द्रमाओं की तरह माना जाता है। वह एक बैल (नंदी) पर सवार होती हैं और अपने हाथों में त्रिशूल और कमल धारण करती हैं। उनके माथे पर एक चाँद का प्रतीक होता है, जो उनके सौम्य और शक्तिशाली स्वरूप का प्रतीक है।


माँ शैलपुत्री की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ शैलपुत्री का पूर्व जन्म सती के रूप में हुआ था। सती, प्रजापति दक्ष की कन्या थीं और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। सती ने जब यह सुना, तो वे अपने पिता के यज्ञ में जाने की इच्छा व्यक्त की। भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि यज्ञ में निमंत्रण न मिलने का कारण दक्ष जी का उनसे रुष्ट होना है और वहां जाना उचित नहीं होगा। परंतु सती का मन नहीं माना और वे यज्ञ में चली गईं।

यज्ञ में पहुंचने पर सती ने देखा कि किसी ने भी उनका आदर नहीं किया। केवल उनकी माता ने उन्हें स्नेह से गले लगाया, जबकि बाकी सभी ने उनका तिरस्कार किया। इस अपमान और तिरस्कार से आहत होकर सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया। भगवान शिव ने इस घटना पर क्रोधित होकर अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। इसके बाद सती ने अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और वह शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुईं।


माँ शैलपुत्री का पूजन क्यों करें?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी माँ शैलपुत्री चंद्रमा पर शासन करती हैं और अपने भक्तों को हर तरह का सौभाग्य प्रदान करती हैं। आदिशक्ति का यह रूप कुंडली में चंद्रमा के पुरुष प्रभाव को दूर करता है। शैलपुत्री के अन्य नाम हेमवती और पार्वती हैं। यह माँ दुर्गा का सबसे महत्वपूर्ण रूप है, इसलिए नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा की जाती है।


माता की उपासना के लिए मंत्र

माँ शैलपुत्री की कृपा प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप किया जाता है:

वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

ध्यान मंत्र:

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥


माँ शैलपुत्री की पूजा विधि

  1. स्नान और वस्त्र धारण: सबसे पहले, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को साफ करें और माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  3. आरोपण: माँ को पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें।
  4. मंत्र जाप: ऊपर दिए गए वंदना मंत्र और ध्यान मंत्र का जाप करें।
  5. प्रार्थना: माँ से सुख, समृद्धि और कुंडली के दोष निवारण की प्रार्थना करें।
  6. आरती और प्रसाद: पूजा के अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

माँ शैलपुत्री की पूजा से मिलने वाले लाभ

हिंदू मान्यता के अनुसार, माँ शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है। जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा भाव से माँ शैलपुत्री का पूजन करता है, उसे सुख और सिद्धि की प्राप्ति होती है। माँ शैलपुत्री की पूजा से कुंडली में चंद्र दोष का निवारण होता है, जिससे मानसिक शांति, भावनात्मक स्थिरता, और आत्मबल में वृद्धि होती है। इसके अलावा, उनकी कृपा से जीवन में शांति, सुख, समृद्धि, और हर प्रकार का सौभाग्य प्राप्त होता है।


निष्कर्ष

नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा करना न केवल धार्मिक परंपरा का पालन है, बल्कि यह अपने जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति लाने का एक माध्यम भी है। माँ शैलपुत्री की कृपा से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में संतुलन और शांति आती है। इस नवरात्रि, माँ शैलपुत्री की पूजा करके अपने जीवन को सुख, शांति, और समृद्धि से भरपूर बनाएं।

जय माँ शैलपुत्री!

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