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ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र और स्तोत्र
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा और आराधना में विभिन्न मंत्रों और स्तोत्रों का उपयोग किया जाता है। ये मंत्र और स्तोत्र मां ब्रह्मचारिणी की कृपा प्राप्त करने और तपस्या की शक्ति को बढ़ाने में सहायक होते हैं। यहां मां ब्रह्मचारिणी के प्रमुख मंत्र, स्रोत पाठ और कवच प्रस्तुत किए गए हैं:
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र:
या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
अर्थ: हे देवी, जो सर्वभूतियों में ब्रह्मचारिणी रूप में निवास करती हैं, मैं आपको बार-बार नमस्कार करती हूँ। आपके दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमण्डल है। आप मुझ पर कृपा करें, ब्रह्मचारिणी देवी, जो श्रेष्ठ हैं।
ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी.
सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते..
अर्थ: जिनके शील का उद्देश्य ब्रह्मचार्य है, वे ब्रह्मचारिणी हैं। सच्ची, आनंदमयी और सुशीला, जिनकी रूप विभिन्न ब्रह्मा हैं, उन्हें नमन है।
ओम देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
अर्थ: ओम, देवी ब्रह्मचारिणी को नमः।
मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ:
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
अर्थ: आप तपस्या के रूप में तापत्रय को निवारण करने वाली हैं। ब्रह्म के रूप में अवस्थित, ब्रह्मचारिणी को मैं नमन करता हूँ। आप भगवान शिव की प्रिय, भुक्ति और मुक्ति देने वाली हैं। आप शांति और ज्ञान देने वाली हैं, ब्रह्मचारिणी को मैं नमन करता हूँ।
मां ब्रह्मचारिणी का कवच
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
अर्थ: त्रिपुरा में हृदय को सुरक्षा प्रदान करें, ललाट पर शंकरभामिनी (शिव की पत्नी) की रक्षा करें। आंखों, अर्धारी (भौंह) और गालों की सुरक्षा करें। पंचदशी (पंचदशी मंत्र) को कंठ में सुरक्षा दें और मध्यदेश (पेट) की रक्षा करें। षोडशी (षोडशी मंत्र) से नाभि और पांवों की रक्षा करें। सभी अंगों और शरीर के हर हिस्से की रक्षा करें, ब्रह्मचारिणी।
ये मंत्र, स्रोत पाठ और कवच मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के महत्वपूर्ण अंश हैं, जो भक्तों को तपस्या की शक्ति और देवी की कृपा प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
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3. चंद्रघंटा
• अर्थ: चंद्रघंटा का अर्थ है "चाँद की तरह चमकने वाली"। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का चंद्र होता है। वह शक्ति और साहस की प्रतीक हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन उनकी पूजा होती है।
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