माँ चंद्रघंटा की कथा: शक्ति और विजय की महाकथा - Legend of Maa Chandraghanta: The Epic of Power and Victory

माँ चंद्रघंटा की कथा: शक्ति और विजय की महाकथा

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, जिन्हें शक्ति, सौंदर्य, और विजय का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा के साथ जुड़ी हुई कथा भी अत्यंत प्रेरणादायक है, जो उनके अद्वितीय गुणों और महाक्रांति को उजागर करती है। आइए जानें माँ चंद्रघंटा की अद्भुत कथा के बारे में।

भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह

कहानी की शुरुआत तब होती है जब भगवान शिव ने देवी पार्वती से स्पष्ट रूप से कह दिया कि वे किसी से विवाह नहीं करना चाहते हैं। यह सुनकर देवी पार्वती नाराज हो गईं और उनका दिल टूट गया। देवी पार्वती के इस रूप को देखकर भगवान शिव भावनात्मक रूप से प्रभावित हुए और उन्होंने निर्णय लिया कि वे देवी पार्वती से विवाह करेंगे। इस विशेष अवसर पर, भगवान शिव बारात के साथ देवी पार्वती के घर पहुंचे। बारात में विभिन्न जीवित प्रजातियाँ, देवता, भूत, और अघोरी शामिल थे।

जब देवी पार्वती की माँ ने दरवाजे पर इस बारात को देखा, तो वे डर के मारे बेहोश हो गईं। देवी पार्वती ने अपने परिवार को शांत करने की कोशिश की और भगवान शिव को दूल्हे के रूप में स्वीकार करने के लिए उन्हें मनाया। भगवान शिव ने उनकी विनती को स्वीकार कर लिया और खुद को अनेक गहनों से सुसज्जित किया।

महिषासुर का आक्रमण और देवी चंद्रघंटा की उत्पत्ति

इस बीच, महिषासुर नामक एक असुर ने स्वर्गलोक पर आक्रमण किया और भगवान इंद्र को हराकर स्वर्गलोक पर शासन करना शुरू कर दिया। देवताओं ने महिषासुर की क्रूरता और अत्याचार से परेशान होकर त्रिदेव के पास जाकर मदद मांगी। त्रिदेव ने महिषासुर के अत्याचारों के बारे में सुना और क्रोधित हो गए। उनके क्रोध से एक तीव्र ऊर्जा उत्पन्न हुई, जिसने दसों दिशाओं में फैलकर एक देवी का रूप धारण किया।

भगवान शिव ने देवी को अपना त्रिशूल प्रदान किया, भगवान विष्णु ने उन्हें चक्र दिया, और अन्य देवताओं ने देवी को अपने-अपने हथियार दिए। भगवान इंद्र ने देवी को चंद्रमा और घंटी भेंट की, जबकि भगवान सूर्य ने अपनी ऊर्जा और तलवार दी। अंततः, देवी को सवारी के लिए एक शेर भी प्रदान किया गया।

महिषासुर से युद्ध और विजय

सभी शक्तियों और हथियारों से लैस होकर, देवी चंद्रघंटा महिषासुर से युद्ध के लिए रवाना हुईं। देवी का चेहरा उनकी अपार ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता था, जिसे देखकर महिषासुर डर गया। उसने अपने असुरों को देवी पर हमला करने का आदेश दिया, लेकिन देवी चंद्रघंटा ने सभी असुरों को हराकर महिषासुर का वध किया। इस विजय के साथ, देवी ने स्वर्गलोक को महिषासुर के कब्जे से मुक्त किया और सभी देवताओं को उनके स्थान पर लौटा दिया।

निष्कर्ष

माँ चंद्रघंटा की यह कथा हमें शक्ति, साहस, और निडरता की महत्वपूर्ण सीख देती है। उनकी पूजा और आराधना से न केवल आंतरिक शक्ति मिलती है, बल्कि जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों को भी पार किया जा सकता है। माँ चंद्रघंटा की कृपा से भक्तों को विजय और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

आप इस कथा को अपने पाठकों के साथ साझा कर सकते हैं और उन्हें माँ चंद्रघंटा की शक्ति और आशीर्वाद के बारे में अवगत करा सकते हैं।

कूष्माण्डा

• अर्थ: कूष्माण्डा का अर्थ होता है "पूरा जगत उनके पैर में है"। वह ब्रह्मांड की उत्पत्ति का प्रतीक हैं। नवरात्रि के चौथे दिन उनकी पूजा की जाती है। वह सृजन शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।

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