माँ चंद्रघंटा की आराधना - Worship of Maa Chandraghanta

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माँ चंद्रघंटा की आराधना

अभय प्रदान करता है माता का स्वरूप
मां दुर्गा का पहला शैलपुत्री और दूसरा ब्रह्मचारिणी स्वरूप भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए है, जब माता भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती है और चंद्रघंटा बन जाती हैं। देवी पार्वती के जीवन में तीसरी सबसे बड़ी घटना के रूप में उनको प्रिय वाहन वाघ प्राप्त होता है। इसलिए माता बाघ पर सवार होकर भक्तों को अभय प्रदान करती हैं। माता को लाल रंग बहुत प्रिय है इसलिए माता की पूजा में लाल रंग के वस्त्र पहनें।

नवरात्रि की तीसरी सुबह आई,
माँ चंद्रघंटा की पूजा की बेला छाई।
संग लाएं हम भोग-प्रसाद,
हर दिल से निकालें बस श्रद्धा का आद।

दूध की मिठाई, खीर में केसर की छाँव,
पंचामृत का नीर, है देवी का प्रिय दाव।
शहद की मिठास, चीनी और मिश्री का संग,
सभी भोग अर्पित करें, दिल से बसा लें अंग।

माँ चंद्रघंटा का रंग लाल है प्यारा,
सफेद कमल, पीले गुलाब से सजाएं सारा।
केले का फल, एक विशेष भेंट,
सुनहरे वस्त्रों में हो पूजा का ये दिन सवंत।

सिंह पर विराजे, माँ चंद्रघंटा की शक्ति,
धन्य हो मन, जब मिले उनकी भक्ति।
अर्धचंद्र की मूरत, स्वर्ण-समान चमक,
प्रणाम करें हम, ममता की अनमोल रेखा संग।

दूध का दान करें, पुण्य का अहसास,
ब्राह्मण को भोजन, दक्षिणा का विस्तार।
हर आंगन में बसी हो माँ की कृपा,
नवरात्रि की इस बेला में मन जाए सवेरा रचा।

माँ चंद्रघंटा के चरणों में बसी हो आस,
सभी के जीवन में हो सुख और शांति का प्रकाश।
ऐसी नवरात्रि, देवी माँ का आशीर्वाद मिले,
सभी की पूजा, मन से श्रद्धा से बहे।


कूष्माण्डा

• अर्थ: कूष्माण्डा का अर्थ होता है "पूरा जगत उनके पैर में है"। वह ब्रह्मांड की उत्पत्ति का प्रतीक हैं। नवरात्रि के चौथे दिन उनकी पूजा की जाती है। वह सृजन शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।

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