ब्रह्मचारिणी माता की कथा: देवी की घोर तपस्या और भगवान शिव से विवाह - Story of Brahmacharini Mata: Severe penance of the goddess and marriage to Lord Shiva

ब्रह्मचारिणी माता की कथा: देवी की घोर तपस्या और भगवान शिव से विवाह

ब्रह्मचारिणी माता का स्वरूप नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा का प्रमुख हिस्सा है। देवी ब्रह्मचारिणी, जिनका नाम तप और संयम का प्रतीक है, ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। यह कथा उनके कठिन तप और अटूट धैर्य की महिमा का वर्णन करती है।

ब्रह्मचारिणी माता का जन्म और तपस्या

ब्रह्मचारिणी माता का जन्म हिमालय के घर हुआ था। वे पर्वतराज हिमालय और माता मैना की पुत्री थीं। बचपन से ही वे शांत, गंभीर और साधनारत थीं। जब उन्होंने नारद मुनि से सुना कि भगवान शिव ही उनके पति होंगे, तो उन्होंने उन्हें प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करने का निश्चय किया। नारद जी की सलाह पर देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए अपनी साधना प्रारंभ की।

घोर तपस्या का आरंभ

ब्रह्मचारिणी देवी ने कठोर तपस्या शुरू की। उनकी तपस्या इतनी कठोर थी कि इसे देखकर समस्त देवता, ऋषि-मुनि, और साधु भी अचंभित हो गए। पहले हजार वर्षों तक उन्होंने केवल फल-फूल खाकर तपस्या की। फिर सौ वर्षों तक केवल जमीन पर उगी हुई साग-सब्जियां खाकर अपना जीवन बिताया। उनकी तपस्या यहीं नहीं रुकी, बल्कि कुछ समय के बाद उन्होंने उपवास भी शुरू कर दिया और वर्षा तथा धूप में खुले आकाश के नीचे घोर कष्ट सहे।

पत्तों का भी त्याग

ब्रह्मचारिणी माता की तपस्या तीन हजार वर्षों तक चली। इस दौरान उन्होंने सूखे पत्तों को भोजन के रूप में ग्रहण किया। उनकी साधना इतनी कठिन थी कि उन्होंने बाद में पत्तों का भी त्याग कर दिया, जिससे उनका नाम "अपर्णा" पड़ा, जिसका अर्थ होता है वह जो पत्ते भी नहीं खाती। उनकी इस घोर तपस्या के कारण उनका शरीर बिल्कुल क्षीण हो गया था, लेकिन उनका धैर्य और साधना की शक्ति अद्वितीय रही।

देवताओं द्वारा प्रशंसा

ब्रह्मचारिणी देवी की तपस्या को देखकर समस्त देवता, ऋषि, मुनि और सिद्धगण आश्चर्यचकित हो गए। सभी ने देवी की तपस्या की प्रशंसा की और कहा, "हे देवी, आज तक किसी ने ऐसी कठिन तपस्या नहीं की है। आपकी घोर तपस्या के कारण आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और भगवान शिव स्वयं आपको पति रूप में प्राप्त होंगे। अब आप अपनी तपस्या को समाप्त कर घर लौट जाएं। आपके पिता आपको बुलाने आ रहे हैं।"

भगवान शिव से विवाह

देवी ब्रह्मचारिणी की कठोर तपस्या के कारण भगवान शिव ने उनके समर्पण और तपस्या को स्वीकार किया और उन्हें पत्नी रूप में अपनाने का संकल्प लिया। इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी माता ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया और उनका विवाह संपन्न हुआ। उनकी तपस्या और धैर्य ने समस्त जगत को यह सिखाया कि कठिन परिश्रम और अटूट धैर्य से मनुष्य अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।

ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि और महत्त्व

नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस दिन साधक अपने मन को संयमित करके देवी की आराधना करते हैं। ब्रह्मचारिणी माता की पूजा करने से साधक को आत्मनियंत्रण, धैर्य, और संयम की प्राप्ति होती है। उनकी पूजा विधि में देवी को सफेद वस्त्र, फूल, और अक्षत अर्पित किए जाते हैं।

ध्यान मंत्र:

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रर्घकृतशेखराम्। जपमालाकमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

ब्रह्मचारिणी माता का आशीर्वाद पाने से भक्तों को जीवन में कष्टों से पार पाने और कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। उनकी तपस्या और साधना से प्रेरणा लेकर साधक अपने जीवन में संयम और धैर्य का पालन करते हैं।


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3. चंद्रघंटा

• अर्थ: चंद्रघंटा का अर्थ है "चाँद की तरह चमकने वाली"। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का चंद्र होता है। वह शक्ति और साहस की प्रतीक हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन उनकी पूजा होती है।

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