श्री शैलपुत्री महामन्त्र जप विधि - Shri Shailputri Mahamantra Japa Vidhi-1

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श्री शैलपुत्री महामन्त्र जप विधि

शैलपुत्री देवी नवरात्रि के प्रथम दिन पूजी जाने वाली देवी हैं। इनकी पूजा करने से साधक को मानसिक और शारीरिक शुद्धता प्राप्त होती है। यहां हम आपको शैलपुत्री महामंत्र जप की विधि बता रहे हैं, जिसका पालन करके आप देवी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

श्री शैलपुत्री महामंत्र जप क्रम:

  • मंत्र का ऋषि: महाकालभैरव
  • छंद: त्रिष्टुप्
  • देवता: श्री शैलपुत्री
  • बीज मंत्र: ह्रीं
  • शक्ति मंत्र: सौः
  • कीलक मंत्र: ॐ

मंत्र का प्रयोग श्री शैलपुत्री के प्रसाद की सिद्धि के लिए किया जाता है।


कर न्यास:

  1. ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
  2. ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
  3. हूं मध्यमाभ्यां नमः।
  4. हैं अनामिकाभ्यां नमः।
  5. ह्रौं कनिष्ठिभ्यां नमः।
  6. ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

अंग न्यास:

  1. ह्रां हृदयाय नमः।
  2. ह्रीं शिरसे स्वाहा।
  3. हूं शिखायै वषट्।
  4. हैं कवचाय हूं।
  5. ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
  6. ह्रः अस्त्राय फट्।

"ॐ भूर्भुवः सुवरः" इति दिग्बन्धः

श्री शैलपुत्री देवी का ध्यान:

उद्यद्दिनेशायुतसन्निभाननाम्, शशाङ्कलेखामुकुटांचतुर्भुजाम्। 
रक्तांबरां अग्निरवीन्दुलोचनां, शैलपुत्रीं वरदां स्मराम्यहम्॥

(ध्यान मंत्र द्वारा साधक देवी की दिव्य छवि का स्मरण करते हुए साधना करता है। देवी शैलपुत्री की मनमोहक आकृति का ध्यान करने से उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।)

पञ्चपूजा:

  1. लं पृथ्वी आत्मिकायै गन्धं कल्पयामि।
  2. हं आकाशात्मिकायै पुष्पाणि कल्पयामि।
  3. यं वाय्वात्मिकायै धूपं कल्पयामि।
  4. रं अग्न्यात्मिकायै दीपं कल्पयामि।
  5. वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं कल्पयामि।
  6. सं सर्वात्मिकायै ताम्बूलादि समस्तोपचारान् कल्पयामि।

मूल मंत्र:

"ॐ ह्रीं श्रीं ऐं सौः सौः ऐं श्रीं ह्रीं ॐ शैलपुत्र्यै नमः।"

अंग न्यास:

  1. ह्रां हृदयाय नमः।
  2. ह्रीं शिरसे स्वाहा।
  3. हूं शिखायै वषट्।
  4. हैं कवचाय हूं।
  5. ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
  6. ह्रः अस्त्राय फट्।

"ॐ भूर्भुवः सुवरः" इति दिग्विमौगः

निष्कर्ष:

शैलपुत्री महामंत्र का जप करने से साधक के जीवन में शांति, समृद्धि और शक्ति का संचार होता है। इनकी पूजा का सही विधि-विधान का पालन करने पर जीवन में शुभता और सफलता की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में प्रथम दिन शैलपुत्री की पूजा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि ये देवी मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को मजबूत करने वाली हैं।

ब्रह्मचारिणी

अर्थ: ब्रह्मचारिणी का अर्थ है "ब्रह्मचारीणी" अर्थात तपस्विनी। वह संयम और आत्म-संयम की प्रतीक हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा की जाती है। उनकी साधना हमें संयम और धैर्य की शिक्षा देती है।

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