श्री शैलपुत्री महामंत्र, ध्यान, और आवरण पूजा विधि - Shri Shailputri Mahamantra, Meditation, and Cover Puja Vidhi
श्री शैलपुत्री महामंत्र, ध्यान, और आवरण पूजा विधि
श्री शैलपुत्री देवी की पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है। इन्हें हिमालय की पुत्री माना जाता है और ये देवी दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप हैं। उनकी पूजा करने से साधक के जीवन में स्थिरता, मानसिक शांति और उन्नति प्राप्त होती है। यहाँ हम श्री शैलपुत्री महामंत्र, ध्यान, पञ्चपूजा और आवरण पूजा की विधि को विस्तार से जानेंगे।
श्री शैलपुत्री ध्यान मंत्र:
देवी शैलपुत्री का ध्यान साधक को ध्यान की गहराई में ले जाता है और देवी के दिव्य स्वरूप का स्मरण कराता है।
ध्यान मंत्र:
उद्यद्दिनेशायुतसन्निभाननाम् शशाङ्कलेखामुकुटांचतुर्भुजाम्।
रक्तांबरां अग्निरवीन्दुलोचनां शैलपुत्रीं वरदां स्मराम्यहम्॥
अर्थ:
जो देवी उदित सूर्य के समान तेजस्वी हैं, जिनके मुकुट में चन्द्रमा सुशोभित है, जिनके चार हाथ हैं, जिनके वस्त्र रक्तवर्ण के हैं और जिनकी नेत्र अग्नि तथा सूर्य के समान तेजस्वी हैं, उन देवी शैलपुत्री का मैं ध्यान करता हूँ।
श्री शैलपुत्री पञ्चपूजा:
पञ्चपूजा में पाँच तत्वों के माध्यम से देवी की पूजा की जाती है। यह पूजा प्रकृति के पाँच प्रमुख तत्वों - पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि, और जल का प्रतिनिधित्व करती है।
पञ्चपूजा मंत्र:
- लं पृथिव्यात्मिकायै गन्धं कल्पयामि।
- हं आकाशात्मिकायै पुष्पाणि कल्पयामि।
- यं वाय्वात्मिकायै धूपं कल्पयामि।
- रं अग्न्यात्मिकायै दीपं कल्पयामि।
- वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं कल्पयामि।
- सं सर्वात्मिकायै ताम्बूलादि समस्तोपचारान् कल्पयामि।
अर्थ:
देवी की पूजा पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि और जल तत्वों के माध्यम से की जाती है, जिसमें गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
श्री शैलपुत्री पीठ पूजा:
पीठ पूजा में देवी के आसन और उनके अवतरण स्थल का पूजन किया जाता है। यह पूजा साधक को देवी के परम तत्व के करीब ले जाती है।
पीठ पूजा क्रम:
- ॐ मण्डूकादि परतत्वाय नमः।
- प्रीं पृथिव्यै नमः।
- सौः सुधार्णवाय नमः।
- क्रीं सौः सरोवराय नमः।
- रां रत्नद्वीपाय नमः।
- क्लीं कल्पवनाय नमः।
- पद्मवनाय नमः।
- कल्पवल्ली मूलवेद्यै नमः।
- यं योगपीठाय नमः।
अर्थ:
पीठ पूजा में देवी के अवतरण स्थल का पूजन किया जाता है, जैसे पृथ्वी, सुधार्णव (अमृत महासागर), सरोवर, रत्नद्वीप, और कल्पवृक्ष का। देवी के योगपीठ का पूजन विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह साधना का केन्द्र होता है।
श्री शैलपुत्री आवरण पूजा:
आवरण पूजा में देवी की आवरण रूपी शक्तियों का पूजन किया जाता है। यह पूजा साधक की आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शुद्धि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।
आवरण पूजा क्रम:
- ॐ मण्डूकादि परतत्वाय नमः।
- श्री शैलपुत्री आवरण में देवी के मंडूक (मेंढक), सरोवर, और योगपीठ का विशेष पूजन होता है, जिससे साधक की साधना गहन हो जाती है।
श्री शैलपुत्री आवाहन:
आवाहन मंत्र:
उद्यद्दिनेशायुतसन्निभाननाम् शशाङ्कलेखामुकुटांचतुर्भुजाम्।
रक्तांबरां अग्निरवीन्दुलोचनां शैलपुत्रीं वरदां स्मराम्यहम्॥
अर्थ:
जो देवी उदित सूर्य के समान प्रकाशमयी हैं, जिनके मुकुट में चन्द्रमा का अद्वितीय शोभायमान अंश है, जिनके वस्त्र रक्तवर्ण के हैं, उन देवी शैलपुत्री का आवाहन कर मैं उन्हें अपने हृदय में स्थापित करता हूँ।
श्री शैलपुत्री महामंत्र:
यह महामंत्र देवी शैलपुत्री की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए जपा जाता है।
महामंत्र:
"ॐ ह्रीं श्रीं ऐं सौः सौः ऐं श्रीं ह्रीं ॐ शैलपुत्र्यै नमः।"
इस मंत्र के जाप से साधक को अद्वितीय शक्ति, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
निष्कर्ष:
श्री शैलपुत्री की पूजा विधि साधक के लिए मानसिक और शारीरिक शुद्धता का मार्ग प्रशस्त करती है। ध्यान, पञ्चपूजा, पीठ पूजा, और आवरण पूजा के माध्यम से साधक देवी के दिव्य स्वरूप से जुड़ता है और उसे देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
नवरात्रि के प्रथम दिन शैलपुत्री की पूजा करना अत्यंत शुभकारी होता है और इस पूजा से साधक के जीवन में स्थिरता और समृद्धि का संचार होता है।
ब्रह्मचारिणी
अर्थ: ब्रह्मचारिणी का अर्थ है "ब्रह्मचारीणी" अर्थात तपस्विनी। वह संयम और आत्म-संयम की प्रतीक हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा की जाती है। उनकी साधना हमें संयम और धैर्य की शिक्षा देती है।
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