नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा और महत्व - Significance and Significance of Maa Shailputri on the First Day of Navratri

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नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा और महत्व

नवरात्रि, हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है। इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, और वर्ष में दो बार इसे पूरे श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। नवरात्रि के पहले दिन, माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप 'शैलपुत्री' की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं माँ शैलपुत्री के बारे में और उन मंत्रों के बारे में, जिनके जाप से माँ की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

माँ शैलपुत्री का स्वरूप और महत्व

माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। 'शैल' का अर्थ है पर्वत और 'पुत्री' का अर्थ है बेटी, इस प्रकार उन्हें पर्वतराज की बेटी कहा जाता है। अपने इस स्वरूप में, माँ शैलपुत्री अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल धारण करती हैं, और एक बैल (नंदी) पर सवार रहती हैं। उनके मस्तक पर अर्धचन्द्र का चिह्न है, जो उनके सौम्य और शक्तिशाली स्वरूप का प्रतीक है। माँ शैलपुत्री को करोड़ों सूर्यों और चन्द्रमाओं की तरह तेजस्वी माना जाता है।

माँ शैलपुत्री की पूजा से मिलने वाले लाभ

माँ शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जागृत होता है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। भक्तों को माँ शैलपुत्री की कृपा से आध्यात्मिक प्रगति, मानसिक शांति और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है। यह दिन विशेष रूप से साधना और योग के लिए अनुकूल माना जाता है, क्योंकि माँ शैलपुत्री की उपासना से मन की शुद्धि और आत्मविश्वास बढ़ता है।

माँ शैलपुत्री की पौराणिक कथा

माँ शैलपुत्री का पूर्वजन्म में नाम 'सती' था। वे प्रजापति दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को निमंत्रित किया, परंतु भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब सती ने यह सुना, तो वे अपने पिता के यज्ञ में जाने की इच्छा प्रकट की। भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि दक्ष उनसे नाराज हैं, और वहां जाना उचित नहीं होगा। लेकिन सती का मन नहीं माना, और वे यज्ञ में चली गईं।

यज्ञ में पहुँचने पर सती ने देखा कि किसी ने भी उनका आदर नहीं किया। माता के सिवाय सभी लोग उनसे मुँह फेर कर बात कर रहे थे, और बहनों ने व्यंग्य और तिरस्कार के भाव से उनसे व्यवहार किया। सती को यह देखकर बहुत क्लेश हुआ और जब उन्होंने भगवान शिव के अपमान को देखा, तो वे क्रोध से भर गईं। दुख और अपमान से आहत होकर, सती ने योगाग्नि में अपने शरीर को भस्म कर दिया।

इस घटना के बाद, भगवान शिव ने अपने गणों को भेजकर यज्ञ का विध्वंस करवा दिया। अगले जन्म में, सती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और 'शैलपुत्री' कहलाईं। माँ शैलपुत्री के इस स्वरूप की पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है।

माँ शैलपुत्री का मंत्र

माँ शैलपुत्री की कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तगण निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हैं:

मंत्र:

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

इस मंत्र का जाप करने से माँ शैलपुत्री प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

नवरात्रि के प्रथम दिन की पूजा विधि

  1. सबसे पहले, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल की सफाई करें।
  2. माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और दीप जलाकर पूजा का आरंभ करें।
  3. माँ को पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें।
  4. मंत्र का जाप करें और माँ से सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करें।
  5. पूजा के बाद आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

नवरात्रि के इस पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों को मानसिक शांति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से जीवन के सभी संकटों का समाधान होता है और भक्तों के मन में श्रद्धा और विश्वास की भावना और गहरी हो जाती है।


इस नवरात्रि, माँ शैलपुत्री की आराधना करें और उनकी कृपा से अपने जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भरपूर बनाएं।

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  1. अर्थ: ब्रह्मचारिणी का अर्थ है "ब्रह्मचारीणी" अर्थात तपस्विनी। वह संयम और आत्म-संयम की प्रतीक हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा की जाती है। उनकी साधना हमें संयम और धैर्य की शिक्षा देती है।

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