शैलपुत्री माता की कथा:
शंकर जी ने सती से कहा, "प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।"
सती ने शिव जी के इस उपदेश को नहीं माना और यज्ञ में जाने के लिए अडिग रहीं। अंततः शिव जी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।
जब सती अपने पिता के घर पहुँचीं, तो उन्होंने देखा कि वहाँ कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया, पर बहनों के व्यवहार में व्यंग्य और उपहास था। सती ने देखा कि यज्ञ स्थल पर चारों ओर भगवान शिव के प्रति अपमानजनक वातावरण था। दक्ष ने भी भगवान शिव के बारे में अपमानजनक बातें कही। यह सब देखकर सती का हृदय क्रोध और अपमान से भर उठा।
सती अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर पाईं। उन्होंने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को वहीं त्याग दिया। जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।
उपनिषदों में वर्णित एक कथा के अनुसार, माँ शैलपुत्री ने हैमवती रूप में देवताओं के गर्व का भंजन किया था। इस प्रकार माँ शैलपुत्री न केवल शक्ति और साहस का प्रतीक हैं, बल्कि वे भक्ति और समर्पण की भी मूर्ति हैं।
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि:
- नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
- इस दिन उपासक को स्वच्छ वस्त्र धारण कर माँ की प्रतिमा या चित्र के सामने घी का दीपक जलाना चाहिए।
- माँ को सफ़ेद रंग के फूल और अक्षत (चावल) अर्पित करें।
- माँ शैलपुत्री का प्रिय रंग सफेद माना जाता है, इसलिए इस दिन सफ़ेद वस्त्र पहनना शुभ होता है।
- इसके बाद शैलपुत्री माता का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें:"ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः"
शैलपुत्री माता का महत्व:
माँ शैलपुत्री, नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाने वाली देवी हैं। वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री और भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं। उनका वाहन वृषभ (बैल) है और वे त्रिशूल और कमल का पुष्प धारण करती हैं। माँ शैलपुत्री की पूजा से भक्तों के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का संचार होता है। वे अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और जीवन के कठिन समय में उनका मार्गदर्शन करती हैं।
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