ये फामे खोरी आग लागो हो - वादों की हकीकत पर व्यंग्य - Yeh Fame Khori Aag Lago Ho - Satire on the reality of promises

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ये फामे खोरी आग लागो हो - वादों और सच्चाई का सामना


कविता:

खूब चुपड़ी चापडी बात करनयौन
आलौ फिरि कई वैदा कर न्यान
पिछल बार लै इने नेता जी आछया
हामरा आँगन बैठी चाहा पी गोछ्या
वादा लै चुमास करि गोछ्या
आब, पुराना वैदा उन लै भूली, हम लै
ये फामे खोरी आग लागो हो।
पर्यावरण दिवसा दिन जोर शोरे लै
चार छः दगडी मिली
जों तों खूब बोट लगा आया
फेसबुक फ़ोटो लै पाटी दि हhumela
खूब कमेंट लाइक आया
आज मॉर्निंग वॉके वक्त देख्यान
पानी बिजारी सूखी लाकड़ा है ग्यान
ये फामे खोरी आग लागो हो।
कईं दिन है ग्यान चश्मा टूटी
बुढया काल बिन चश्मो देखिनो ना
आफी जाबेर लै उ क्यो त
बुढया काल नंतिना यकीन ना
चेलो त रोजे कुछ भल ली उनु बाबु
दिन भरी कामो में भूलि जां हो
ये फामे खोरी आग लागो हो।

© राजू पाण्डेय


अर्थ और विश्लेषण:

"ये फामे खोरी आग लागो हो" कविता समाज और राजनीति की विडंबनाओं पर एक गहरा व्यंग्य करती है। इस कविता में लेखक ने उन झूठे वादों और खोखली बातों को उजागर किया है, जो नेता और समाज में प्रतिष्ठित लोग अक्सर करते हैं, लेकिन असलियत में उनकी यादें धुंधली पड़ जाती हैं और उनके वादे अधूरे रह जाते हैं।

1. नेताओं के झूठे वादे:

  • कविता की शुरुआत में, लेखक ने नेताओं की चापलूसी और वादों की ओर ध्यान आकर्षित किया है। नेताओं का आँगन में बैठकर चाय पीना और वादे करना, लेकिन बाद में उन्हें भूल जाना, समाज में व्याप्त राजनीतिक धोखे की ओर इशारा करता है।

2. पर्यावरण और दिखावे की राजनीति:

  • पर्यावरण दिवस के नाम पर कुछ पौधे लगाकर फोटो खींचने और सोशल मीडिया पर दिखावा करने की आलोचना की गई है। यह दिखाता है कि असलियत में पर्यावरण की कोई चिंता नहीं है, सिर्फ दिखावे की राजनीति होती है।

3. बुजुर्गों की अनदेखी:

  • कविता में बुजुर्गों की अनदेखी और उनकी जरूरतों की उपेक्षा को भी दर्शाया गया है। चश्मा टूटने के बावजूद बुजुर्गों की मदद न करना और उनकी परेशानियों को अनदेखा करना, समाज की संवेदनहीनता को दर्शाता है।

Keywords:

  • नेताओं के झूठे वादे
  • पर्यावरण की अनदेखी
  • बुजुर्गों की उपेक्षा
  • समाज की संवेदनहीनता

"ये फामे खोरी आग लागो हो" कविता के माध्यम से राजू पाण्डेय ने समाज और राजनीति में व्याप्त विडंबनाओं को उजागर किया है। यह कविता हमें उन सच्चाइयों से रूबरू कराती है, जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं, और हमें अपने समाज और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार होने की सीख देती है।

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