पहाड़ी कविता असोज में सासुक जबाब ब्वारि हैं...

पहाड़ी कविता "असोज में सासुक जबाब ब्वारि हैं......"

असोज में सासुक जबाब ब्वारि हैं......

पहाड़ी कविता "असोज में सासुक जबाब ब्वारि हैं......"

के  ऐं  छै  ब्वारि  असोज आब

तलस्यार मलस्यार बागक् द्वाब

द्वी  चार  बलाड़  जेलै  है रोछी

लुचि  बे  खै   गयीं  बानर  सब


गोरु    बाछ   सब   बहै  हाला

ज्यौड़  है  भिमूं कहैं  भिजाला

गाज्यो  घाम  में  पड़पड़ी गोछ

सौंव  है उदेखि  रयीं  यौं डाला

पहाड़ी कविता "असोज में सासुक जबाब ब्वारि हैं......"


परिया  हरिया  दिलि  हैं भाज्

लुट लगौण कां उन कैं   छाज्

हौव्   हालै  हैं  चेतू  नि  आनौं

गौं    भरौक्   उ  एक्कै   राज्


मनी  आडरुंल  फरसेल  है  रै

देबदा  क्  फानफितण  लै   रै

उदुलि  बुढ़ियाक्  को नि भयौ

सरकारि  पिलसन  हैं आसी रै


दसैंकि  रामलिल्  अब  खरिगे

बग्वाव  बिजुलि  दगै  मेसि  गे

स्याल्दे बिखोतिक् जरा मुची रै

फुलदेई   ग्वेलदैरांणि    बुसीगे


दिराणीं हौंसल् परांढ़ झुरी  गो

बुतधांणिक् आब टोटिल है गो

त्यार  भुतकईल   गौं गज्यै  दीं

दिलि जैबे  थिर थाम जै  है गो

शब्द अर्थ

बलाड़ = धान ,मडुवा ,गेहूं की बाल

लुचि =खींच कर, तोड़ कर

बहै हाल = जंगल में/ लावारिस छोड़ना

ज्यौड़ =गाय-भैंस बांधने की रस्सी

गाज्यो = एक प्रकार की घास

पड़पड़ी =सूखा हुआ

सौंव = गायों का पेड़ से तोड़ा हरा चारा

उदेखी =उदास

डाल=डलिया

लुट लगौंण=घास को पेड़ पर या जमीन पर सुरक्षित क्रमवार लगाना

फनफिताड़ =ऊपर नीचे की भागदौड़

टोटिल = उलटना,खत्म होना

थिर-थाम =रुक गया

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