रोचक तथ्य: पंडित हर्षदेव ओली - काली कुमाऊं के मुसोलिनी
पंडित हर्षदेव ओली का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्हें "काली कुमाऊं का शेर" और "कुमाऊं का टाइगर" के रूप में जाना जाता था। अंग्रेज शासक उनके साहस और योगदान के कारण उन्हें "काली कुमाऊं के मुसोलिनी" के नाम से भी पुकारते थे। आइए जानते हैं इस वीर सेनानी के जीवन के कुछ रोचक तथ्य।
जन्म और प्रारंभिक जीवन: पंडित हर्षदेव ओली का जन्म 1890 में उत्तराखंड के ग्राम गोशनी, खेतीखान, चंपावत में हुआ था।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका: वे कुमाऊं मण्डल के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे और स्वतंत्रता संग्राम में कुमाऊं की जनता का नेतृत्व करते थे।
पत्रकारिता से जुड़ाव: अपने शुरुआती करियर में हर्षदेव ओली ने पत्रकारिता का मार्ग चुना। वे "प्रबुद्ध भारत" पत्रिका से जुड़े थे, जिसका प्रकाशन स्वामी विवेकानंद ने मायावती आश्रम से शुरू किया था।
प्रेस प्रबंधन: 1914 में वे ITD प्रेस के प्रबंधक बने, जहाँ उन्होंने अपने प्रबंधन कौशल का परिचय दिया।
कांग्रेस से जुड़ाव: 1916 में लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में उनकी मुलाकात पंडित मोतीलाल नेहरू से हुई, जिससे उनके स्वतंत्रता संग्राम में जुड़ाव को और बल मिला।
इंडिपेंडेंट समाचार पत्र के संपादक: 1919 में मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद से "इंडिपेंडेंट" समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया, जिसमें हर्षदेव ओली उप संपादक बने और 1920 में संपादक के पद पर नियुक्त हुए।
राजा रिपुदमन सिंह के सलाहकार: 1923 में नाभा एस्टेट के राजा रिपुदमन सिंह ने हर्षदेव ओली को अपना सलाहकार नियुक्त किया।
फॉरेस्ट ग्रीवेंस कमेटी के उपाध्यक्ष: 1924 में वे फॉरेस्ट ग्रीवेंस कमेटी के उपाध्यक्ष बनाए गए, जहाँ उन्होंने वन और पर्यावरण के मुद्दों पर कार्य किया।
गिरफ्तारी: 12 अगस्त, 1930 को देवीधुरा मेले में अपने भाषण के चलते हर्षदेव ओली को गिरफ्तार किया गया, जिससे उनका स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और अधिक प्रमुख हुआ।
लाल बहादुर शास्त्री से संपर्क: 1934 में श्री लाल बहादुर शास्त्री ने उनके गाँव गोशनी में आकर उनके साथ 8 दिन बिताए, जो उनके प्रभाव और सम्मान को दर्शाता है।
अन्य समाचार पत्रों में योगदान: हर्षदेव ओली ने "लीडर," "हिंदुस्तान टाइम्स," और "आज" जैसे प्रमुख समाचार पत्रों में कार्य किया, जिससे उन्होंने अपने विचारों का प्रसार किया।
स्मारक पार्क: उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए खेतीखान में पंडित ओली की स्मृति में "सेनानी पार्क" का निर्माण किया गया है।
निष्कर्ष
पंडित हर्षदेव ओली एक महान स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, और समाजसेवी थे। उनके साहसिक कार्य और देशभक्ति का योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। काली कुमाऊं के इस शेर का जीवन हमें स्वतंत्रता संग्राम के कठिन संघर्षों और बलिदानों की याद दिलाता है।
FAQs: पंडित हर्षदेव ओली
पंडित हर्षदेव ओली कौन थे?
पंडित हर्षदेव ओली उत्तराखंड के चंपावत जिले के ग्राम गोशनी में जन्मे एक स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और समाजसेवी थे। वे "काली कुमाऊं के मुसोलिनी" और "काली कुमाऊं का शेर" के नाम से भी प्रसिद्ध थे।पंडित हर्षदेव ओली का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उनका जन्म 1890 में उत्तराखंड के ग्राम गोशनी, खेतीखान, चंपावत में हुआ था।पंडित हर्षदेव ओली को "काली कुमाऊं के मुसोलिनी" क्यों कहा जाता था?
उनके साहसी और प्रभावशाली नेतृत्व के कारण ब्रिटिश शासक उन्हें "काली कुमाऊं के मुसोलिनी" कहकर पुकारते थे, जो उनके निडर और दृढ़ व्यक्तित्व को दर्शाता है।उन्होंने पत्रकारिता में क्या योगदान दिया?
हर्षदेव ओली ने अपने करियर की शुरुआत पत्रकारिता से की। वे "प्रबुद्ध भारत" पत्रिका से जुड़े और 1919 में "इंडिपेंडेंट" समाचार पत्र के उप संपादक बने। बाद में, 1920 में वे इस समाचार पत्र के संपादक बने।उनका स्वतंत्रता संग्राम में क्या योगदान था?
वे कुमाऊं मण्डल के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। देवीधुरा मेले में उनके भाषण के कारण उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। उन्होंने अपनी लेखनी और वक्तृत्व कौशल से स्वतंत्रता संग्राम में जनता का मार्गदर्शन किया।पंडित हर्षदेव ओली का राजनीति से कब और कैसे जुड़ाव हुआ?
1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में वे पंडित मोतीलाल नेहरू के संपर्क में आए, जिसके बाद वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए।क्या पंडित हर्षदेव ओली का अन्य समाचार पत्रों में भी योगदान रहा?
हां, उन्होंने "लीडर," "हिंदुस्तान टाइम्स," और "आज" जैसे प्रमुख समाचार पत्रों में भी कार्य किया था।हर्षदेव ओली का नाभा के राजा के साथ क्या संबंध था?
1923 में नाभा एस्टेट के राजा रिपुदमन सिंह ने उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त किया था।हर्षदेव ओली के सम्मान में कौन-सा स्मारक बनाया गया है?
उनके योगदान को याद रखने के लिए खेतीखान में "सेनानी पार्क" का निर्माण किया गया है।क्या पंडित हर्षदेव ओली का स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कोई विशेष उपनाम था?
हां, वे कुमाऊं की जनता में "टाइगर" और "काली कुमाऊं का शेर" के नाम से प्रसिद्ध थे।
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