देवी सरस्वती: ज्ञान और चेतना की अधिष्ठात्री देवी - Goddess Saraswati: Presiding Goddess of Knowledge and Consciousness
देवी सरस्वती: ज्ञान और चेतना की अधिष्ठात्री देवी
देवी सरस्वती को सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की शक्ति और पत्नी के रूप में पूजा जाता है। वे ज्ञान, बुद्धि, प्रतिभा, स्मरण-शक्ति, चेतना, विवेक, सात्विकता, औचित्य बोध, वाणी, संगीत, स्वर, विद्या, लेखन, काव्य, तर्कशक्ति, अनुसंधान क्षमता, और संवेदना जैसे गुणों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। वास्तव में, वे संसार की चेतना शक्ति की स्वामिनी हैं। इन्हीं को 'स्कन्दमाता' भी कहा जाता है, जो अपने चरणों में महामूर्ख और समाज से तिरस्कृत मनुष्यों को भी स्थान देती हैं।
स्कन्दमाता की कृपा
स्कन्दमाता की कृपा से महामूर्ख भी महाज्ञानी बन सकता है। इसका सबसे प्रमुख उदाहरण महाकवि कालिदास हैं, जिनकी अज्ञानता को देवी की कृपा ने दिव्य ज्ञान में परिवर्तित कर दिया। कालिदास ने 'कुमारसंभव', 'मेघदूत' और 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' जैसे महान ग्रंथों की रचना की, जिनका साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व आज भी अमर है।
कालिदास की कथा
कालिदास एक बार पेड़ की उसी डाली को काट रहे थे, जिस पर वे बैठे थे। उनके इस कार्य को देखकर कुछ पंडितों ने सोचा कि इससे बड़ा मूर्ख कोई नहीं हो सकता। वे पंडित, विद्योत्तमा नामक एक विदुषी से शास्त्रार्थ में हार गए थे और अपने अपमान से तिरस्कृत महसूस कर रहे थे। विद्योत्तमा ने प्रण किया था कि जो भी उसे शास्त्रार्थ में पराजित करेगा, वह उसी से विवाह करेगी।
पराजित पंडितों ने सोचा कि इस महामूर्ख कालिदास से विद्योत्तमा का विवाह करवा दिया जाए ताकि वह जीवनभर दुःखी रहे। वे कालिदास को अच्छे वस्त्र पहनाकर विद्योत्तमा के समक्ष ले गए और उन्हें मौन धारण करने को कहा। जब विद्योत्तमा ने सांकेतिक भाषा में प्रश्न पूछे, तो कालिदास ने उनकी गलत व्याख्या की, लेकिन पंडितों ने इसे शास्त्रार्थ में ज्ञान का प्रतीक बना दिया। अंततः विद्योत्तमा को उनसे विवाह करना पड़ा।
कुछ समय बाद, विद्योत्तमा को एहसास हुआ कि कालिदास महामूर्ख हैं। इस अपमान से पीड़ित होकर कालिदास ने देवी सरस्वती की आराधना की और उनकी कृपादृष्टि से महान कवि बने। कालिदास का यह जीवन परिवर्तित कर देने वाला अनुभव हमें यह सिखाता है कि देवी सरस्वती की कृपा से एक साधारण व्यक्ति भी महान विद्वान बन सकता है।
सरस्वती: विद्या और विज्ञान की देवी
बौद्धिक क्षेत्र में कार्यरत लोग देवी सरस्वती की स्तुति और आराधना करते हैं। साहित्य, कला, संगीत, और विज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय लोग इन्हें अपनी प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। देवी सरस्वती को उपेक्षित कर कोई व्यक्ति बौद्धिक क्षेत्र में उन्नति नहीं कर सकता।
परमात्मा की अनेक शक्तियों में से सरस्वती एक विशेष शक्ति हैं, जो 'शब्द ब्रह्म' में समाहित ज्ञान की प्रतीक हैं। सरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली की तरह ही शक्ति की रूप हैं। शास्त्रों में इन्हें 'श्री' और 'श्री पंचमी' के नाम से भी जाना जाता है। महाकवि निराला ने सरस्वती के रूप को देखा और उनके दर्शन का वर्णन किया:
सरस्वती की पूजा और महिमा
भारतीय संस्कृति में देवी सरस्वती विद्या, विज्ञान, और कला की प्रतीक हैं। वे प्रकृति के सत्व गुण की भी प्रतीक हैं, जो हमें संतुलन, शांति, और सृजन की ओर प्रेरित करती हैं। उनकी उपासना से व्यक्ति को उच्च ज्ञान, विवेक, और कलात्मक प्रतिभा प्राप्त होती है।
महाकवि कालिदास की कथा हमें यह सिखाती है कि देवी सरस्वती की कृपा से सबसे मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञान की ऊँचाइयों को छू सकता है। इसलिए, बौद्धिक और सृजनशील कार्यों में लगे लोगों को सदैव देवी सरस्वती की आराधना करनी चाहिए।
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