कात्यायनी देवी की कथा – चमत्कारी उत्पत्ति और महिषासुर वध -The story of Goddess Katyayani - miraculous birth and the slaying of Mahishasura.

कात्यायनी देवी की कथा – चमत्कारी उत्पत्ति और महिषासुर वध

नवदुर्गा के नौ स्वरूपों में से देवी कात्यायनी का छठा रूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा विधि-विधान से की जाती है, जो समर्पण और भक्तिभाव का प्रतीक है। देवी कात्यायनी के स्वरूप और उनके चमत्कारी अवतार से जुड़ी दो प्रमुख कथाएँ हिंदू धर्म में प्रचलित हैं – एक ऋषि कात्यायन से जुड़ी है, और दूसरी दुराचारी महिषासुर के वध से। आइए, जानते हैं देवी कात्यायनी की महिमा और कथा विस्तार से।

देवी कात्यायनी का दिव्य स्वरूप

देवी कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत उज्ज्वल और ज्योतिर्मय है। चार भुजाओं से सुशोभित माँ कात्यायनी के दाईं ओर की ऊपरी भुजा अभय मुद्रा में है और नीचे वाली वर मुद्रा में। बाईं ओर की भुजाओं में तलवार और कमल पुष्प है। देवी का वाहन सिंह है, जो उनकी शक्ति और साहस का प्रतीक है। उनकी महिमा का उल्लेख 'देवी भागवत महात्म्य' और 'मार्कंडेय पुराण' में मिलता है।

ऋषि कात्यायन की तपस्या और देवी का अवतरण

पुराणों के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने देवी भगवती को पुत्री रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें वरदान दिया और आश्विन मास की कृष्ण चतुर्दशी को उनके घर जन्म लिया। इसी कारण उन्हें कात्यायनी के नाम से जाना गया। ऋषि कात्यायन ने देवी का बड़े प्रेम से पालन-पोषण किया।

महिषासुर वध और देवी की महिमा

दुराचारी महिषासुर का अत्याचार जब बढ़ गया, तब सभी देवताओं ने मिलकर एक अद्वितीय शक्ति का आवाहन किया। इस शक्ति का स्वरूप देवी कात्यायनी थी, जिन्होंने महिषासुर का वध किया। महिषासुर को वरदान प्राप्त था कि कोई पुरुष उसे मार नहीं सकता था, इसलिए उसे पराजित करना असंभव सा प्रतीत होता था। लेकिन देवी कात्यायनी ने महादेव, विष्णु और ब्रह्मा के सम्मिलित तेज से जन्म लेकर महिषासुर का वध किया। इस कारण उन्हें 'महिषासुर मर्दिनी' भी कहा जाता है।

ब्रज की गोपियों की देवी कात्यायनी आराधना

ब्रज की गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवी कात्यायनी की उपासना की थी। इसी कारण देवी कात्यायनी को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। स्कन्द पुराण में उल्लेख मिलता है कि देवी का प्राकट्य परमेश्वर के सांसारिक क्रोध से हुआ था।

देवी कात्यायनी की पूजा विधि और महत्त्व

नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की विशेष पूजा का महत्व है। लाल और सफेद वस्त्र पहनकर देवी की आराधना शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि माँ कात्यायनी के चरणों में समर्पित भक्तों को उनके दर्शन प्राप्त होते हैं। देवी की उपासना से अद्वितीय शक्ति और साहस का संचार होता है। भक्तों को शहद का भोग अर्पित करना चाहिए, क्योंकि देवी को शहद अत्यंत प्रिय है।

कात्यायनी मंत्र

देवी कात्यायनी की आराधना का मंत्र इस प्रकार है:

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः
अर्थ: ओमकार स्वरूप वाली देवी कात्यायनी को प्रणाम। आपकी कृपा हम पर बनी रहे।

सीख

कात्यायनी देवी की कथा हमें यह सिखाती है कि यदि हमारी भक्ति और संकल्प सच्चे हैं, तो परम प्रकृति की कृपा सदैव हम पर बनी रहती है। जिस प्रकार ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनके घर जन्म लिया, उसी प्रकार हमें भी निष्ठा और संकल्प के साथ अपने पथ पर अग्रसर रहना चाहिए।

निष्कर्ष

देवी कात्यायनी का पूजन हमें साहस, शक्ति और दृढ़ता प्रदान करता है। महिषासुर मर्दिनी देवी कात्यायनी की आराधना से जीवन में आने वाली कठिनाइयों को समाप्त करने की शक्ति मिलती है। नवरात्रि के छठे दिन माँ की पूजा कर उनके आशीर्वाद से शक्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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