भैरव दत्त धूलिया | जीवनी | कर्मभूमि | पत्रकार | स्वतंत्रता सेनानी (Bhairav Dutt Dhulia | Biography | Karmabhoomi | Journalist | freedom fighter)
भैरव दत्त धूलिया | जीवनी | कर्मभूमि | पत्रकार | स्वतंत्रता सेनानी
भैरव दत्त धूलिया का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। गढ़वाल क्षेत्र में जन्मे और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े इस व्यक्तित्व ने समाज में जागरूकता और स्वतंत्रता के लिए अपार योगदान दिया। उनकी जीवन यात्रा, पत्रकारिता और संघर्षशील व्यक्तित्व आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं।
भैरव दत्त धूलिया का प्रारंभिक जीवन
भैरव दत्त धूलिया का जन्म गढ़वाल जिले के मदनपुर गाँव में हुआ। उनके पिता श्री हरिदत्त धूलिया और माता श्रीमती सावित्री देवी ने उन्हें संस्कारवान और शिक्षित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रारंभिक शिक्षा मदनपुर और दोगड्डा में प्राप्त करने के बाद उन्होंने बनारस में शिक्षा ली।
शिक्षा और व्यक्तिगत जीवन
बनारस में पढ़ाई के दौरान उन्होंने संस्कृत साहित्य और ज्योतिष का अध्ययन किया। 14 वर्ष की आयु में उनका विवाह श्रीमती छवाणी देवी से हुआ। शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने आयुर्वेदिक शास्त्री की डिग्री भी प्राप्त की। उनके व्यक्तित्व में शिक्षा, स्वाध्याय, और स्वतंत्रता संग्राम का अद्भुत समन्वय था।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
भैरव दत्त धूलिया ने 1921 में बेगार आंदोलन के समय राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लिया। वे छात्र आंदोलनकारी के रूप में गढ़वाल लौटे और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गए।
- 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन: इस दौरान उन्होंने "अंग्रेजों को हिंदुस्तान से निकाल दो" नामक पुस्तिका लिखी, जो गढ़वाल में क्रांति की मशाल बनी।
- कारावास: उन्हें 10 नवंबर 1942 को विद्रोह के आरोप में 7 वर्षों की सजा सुनाई गई। यह गढ़वाल क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों को दी गई सबसे लंबी सजा थी।
- 1946 में रिहाई: जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने फिर से आंदोलन और समाज सेवा में योगदान दिया।
पत्रकारिता और 'कर्मभूमि'
1937 में गढ़वाल लौटने के बाद भैरव दत्त धूलिया ने साप्ताहिक समाचार पत्र 'कर्मभूमि' के संपादन का कार्यभार संभाला।
- 'कर्मभूमि' का आरंभ: 19 फरवरी 1939 को बसंत पंचमी के दिन 'हिमालय पब्लिशिंग एंड ट्रेडिंग कंपनी' के तहत 'कर्मभूमि' का प्रकाशन शुरू हुआ।
- भूमिका: धूलिया जी ने 'कर्मभूमि' के माध्यम से गढ़वाल में जागरूकता फैलाई।
- 1942-45: ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के कारण 'कर्मभूमि' को बंद कर दिया गया।
राजनीतिक योगदान
- 1962 और 1967 का चुनाव: 1967 में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता जगमोहन सिंह नेगी को हराकर विधानसभा में प्रवेश किया।
- त्यागपत्र: 18 दिसंबर 1967 को जनविरोधी नीतियों के विरोध में उन्होंने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
जीवन के अंतिम दिन और योगदान
भैरव दत्त धूलिया ने जीवनभर सामाजिक सुधार, शिक्षा, और पत्रकारिता में योगदान दिया।
- तपस्वी जीवन: 1940 में पत्नी के निधन के बाद उन्होंने ब्रह्मचारी जीवन बिताया।
- मृत्यु: 87 वर्ष की आयु में वे ब्रह्मलीन हो गए।
- 'कर्मभूमि' का विशेष अंक: 1956 में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम पर 'कर्मभूमि' का विशेष अंक निकाला।
भैरव दत्त धूलिया का महत्व
भैरव दत्त धूलिया गढ़वाल के स्वतंत्रता संग्राम के नायक और पत्रकारिता के पुरोधा थे।
- डोला-पालकी आंदोलन
- अस्पृश्यता उन्मूलन
- शराबबंदी अभियान
उन्होंने हर क्षेत्र में सिद्धांतप्रिय और निर्भीकता से काम किया। उनकी संघर्षशीलता और गांधीवादी विचारधारा आज भी प्रेरणा स्रोत हैं।
निष्कर्ष: भैरव दत्त धूलिया का जीवन देशभक्ति, तप, और सेवा का अनुपम उदाहरण है। उनकी स्मृति को सम्मानित करना हमारी जिम्मेदारी है।
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