[ कुमाउनी मुहावरे ] [ kumaoni idioms ] [ kumauni muhavare arth sahit] [ पहाड़ी मुहावरे ]
कुमाऊनी मुहावरे अर्थ सहित (kumauni muhavare arth sahit)
बोल चाल की भाषा में मुहावरों का भी विषिष्ट स्थान होता है। इनका प्रयोग प्रत्येक भाषाओं में होता है कुमाऊनी भाषा में भी मुहावरों का प्रयोग होता है। मुहावरे किसी भी बातपोष की कहन को चुटीला और रोचक बनाते हैं। लोकभाषाओं में मुहावरे भाषा की वैष्ष्ट्यि की रीढ़ हैं। साथ ही ये मुहावरे लेखिन परम्परा में भी लेखन को कसावट व प्रामाणिक बनाते हैं। मुहावरे किसी भी समाज के सामाजिक सांस्कृतिक और राजनैतिक लोकाचारों को जानने समझने का औजार है। इनके माध्यम से इस बात का पता का अन्दाजा लगाया जा सकता है कि कोई समाज कितना रूढ़ी और अत्याधुनिक या चेतन समाज है सा उसमें स्त्री, जाति पुरुष, धर्म को लेकर किस तरह की अवधारणाएं हैं ये आपको उस समाज व स्थानीय भाषा के मुहावरे दे सकते हैं। यहां प्रस्तुत है कुछ ऐसे ही मुहावरे।
Kumaoni Kahawate evam Muhavare कुमाउनी कहावतें एवं मुहावरे
कुमाऊनी मुहावरे अर्थ सहित
- रामु कौतिक गौ कैतिके नि लाग । (जिस काम के लिए गए ,उस काम का न होना।)
- अभागि कौतिक गो, कौतिकै नि है ( जिसकी किस्मत साथ ना दे वह कही भी सुख प्राप्त नहीं कर पाता)
- अघैईं बामणै कि भैंसेन खीर ( जब किसी का पेट भरा हो तो उसे स्वादिष्ट व्यंजन में भी दोष नजर आते हैं)
- अकल और उमर कैं कभैं भेट नि हुनि ( हर व्यक्ति की बुद्धि का विकास उसकी आयु तथा अनुभव के अनुसार ही होता है तथा हर काम अपने नियत समय पर ही संपन्न होता है )
- अघिन कुकेलि पछिन मिठी... ( ऐसी बात जो कड़वी लगे, पर वास्तव में फायदेमंद हो )
- अपजसी भाग पर म्यहोवक फूल ( जिसकी किस्मत साथ ना दे वह हर हाल में परेशान रहता है)
- अपणा जोगि जोगता, पल्ले गौं का संत ( अपने क्षेत्र/घर के लोगों की क़द्र ना करना)
- अमुसि दिन गौ बल्द लै ठाड़ उठूँ ( जब आपत्ति आती है तो हर व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता के साथ अपना बचाव करता है )
- मान सिंह कु मौनेल चटकाई ,पान सिंह उसाई। बात किसी को सुनाई और बुरा किसी और को लगा।
- सासुल बुवारी तै कोय, बुवारिल कुकुरहते कोय, कुकुरल पुछड़ हिले दी। अर्थात आलसीपन एक ने दूसरे को काम बताया ,दूसरे ने तीसरे को ,अगले ने हामी भर कर काम नही किया।
- हगण तके बाट चाण । जब जरूरत पड़े तब सामान खोजना।
- नाणी निनाणी देखिनी उत्तरायणी कौतिक । नहाने और ना नहाने वाले का पता उत्तरायणी के मेले में पता लग जाता है। अर्थात झूठ बोलने वाले का सामाजिक कार्यों में पता चल जाता है।
- पुरबक बादलेक ना द्यो ना पाणि । पूर्व के बादल से बारिस नही होती है।
- अनाव चोट कनाव पड़न ( घबराहट या अनाड़ीपन में उल्टा सीधा काम करना, बुद्धि व विवेक से काम नहीं करना)
- अन्यारै कि मार खबर नै सार ( किसी कार्य का सही प्रचार व प्रसार नहीं होगा तो कोई भी कैसे जानेगा )
- असोज में करेले कार्तिक में दही, मरे नहीं पड़े सही ( समय व आवश्यकता के अनुसार ही किसी वस्तु को प्रयोग में लाना चाहिए)
- अस्सी गिचाँ दगड़ि कैलै नि सकि ( झूठी अफवाह को रोकना किसी एक व्यक्ति के बस में नहीं रह जाता)
- अति बिराऊँ में मूस नि मरन (किसी कार्य के लिए आवश्यकता से अधिक लोग होने पर काम सफल नहीं होगा )
- म्यर जस माम कैक लै नै, सांक माम एक लै नै ( लम्बी चौड़ी जान-पहचान, कुटुम्ब और परिजन होते हुये भी गुणी परिजनों का अभाव)
- मडु खौ, तणतण रौ ( मडुवा खाओ और हृष्ट-पुष्ट रहो )
- मडुवा राजा, जब सेको तब ताजा ( मडुवा एक रेडिमेड उपयोगी अनाज है )
- मन करूं गाणि-माणि, करम करुं निखाणि ( मन तो हमेशा ज्यादा सोचता है पर मिलता कर्म के अनुसार ही है )
- मन कौं दूद-भात खूल, भाग कौं दगड़ै रूल ( भाग्य हमारे मन के अनुसार नहीं होने देता)
- मरण बखत बाकर, गुसैं'क मुख चाँछ ( संकट के समय व्यक्ति अपने परिवार और निकट सम्बन्धियों से अपेक्षा करता है)
- मरि च्यला'क दिन गिणन ( बीती बातों पर पछताना या याद करना )
- मरि स्यापाक आँख खचोरण ( अक्षम व्यक्ति पर वीरता दिखाना )
- माण बरकै दिण, धाग सरकै दिण ( कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न कर लेना )
- मादिर कौंछ यौ धमाधम कैक मलि ( असाधारण सहनशीलता होना)
- मारणि दिल्ली, हगण है चुल्ली ( अत्यधिक गप्पी व्यक्ति )
- मारि तलवार, नाम गुलदार ( आतंकपूर्ण कार्य से नाम होना )
- माल की चड़ि, येतणि भई, उतणि भई, उताणि भई ( गलत मार्ग से प्रगति करने वाले का उदय और अंत शीघ्र होता है)
- माल जानूँ, माल जानूँ, सबूँल कै, उकाव-हुलार कै लै नि देख ( किसी लक्ष्य की ठोस योजना ना बनाना )
- मांगण गै छै छकि, मिलि पड़ नौ छकि ( विपत्ति से बचने के फ़ेर और मुसीबत में पड़ना )
- मांस में कीड़ पड़नि हाड़न में नैं ( किसी की हैसियत से ही उसे सम्मान मिलता है )
- मुखड़ी देखि टुकड़ी दिण ( किसी की हैसियत के अनुसार व्यवहार करना )
- मुखौक बुलाण छोड़िये झन, पेटौक गांठ खोलिये झन ( बुद्धिमान व्यक्ति अपने मन के द्वेश को छुपाकर अपना काम करता है )
- मुलुक आपण तो कै हूणि कांपण ( अपने इलाके में किसी से क्या डर )
- मुष्टि में धन, दृष्टी में ज्वे ( धन को मुट्ठी के अंदर और पत्नी को निगरानी में रखना चाहिए )
- मुलूक में गौं नै, दफ्तर में नौं नै ( बिना धन-सम्पति वाला होना )
- मूसै कि घानि लगै दूल फैट, कावा कि घानि लगै देश फिर ( किसी बाहरी व्यक्ति की मदद करने पर वह ज्यादा कृतज्ञ होता है )
- मूंसा बटि हौव जुतौंण ( किसी अक्षम व्यक्ति से किसी महत्वपूर्ण कार्य को करवाना )
- मैं जौं वाँ, कर्म लीजौ काँ ( हमारी प्रबल इच्छा के बावजूद भाग्य अधिक बलवान होता है )
- मोलौ'क लिंण, सूखै'ल सींण ( नकद खरीदने वाला सुख की नींद सोता है )
- मृदङ्गौ'क मुख लीपणेल भली आवाज ऐंछ ( किसी को रिश्वत देने से कार्य सिद्धि हो सकती है )
- ये जतकाव बचूँ तो खसम थैं बाब कौं ( किसी महिला के लिए प्रसवकाल बहुत ही कष्टदायक होता है )
- ये तरफ रौ रभाड़, वे तरफ भले का फाड़ ( दोनों तरफ से संकट के कारण दुविधा की स्थित )
- ये तरफ भ्येव, ऊ तरफ बाग ( दोनों तरफ से संकट की स्थिति)
- य द्वोर बल्द छू सोर क ना ( यह वह नहीं जो तुम समझ रहे हो )
- यौ द्याप्त पैली आपण भल करि लियो, फिर म्यर करल ( जो अपना भला नहीं कर पा रहा वो दुसरे का क्या भला करेग )
- भ्यार हूं ठौर नै, भीतेर भैटण हूं और नै ( अत्यंत दयनीय स्थिति में भी दिखावा करना )
- भ्यैर गौं को भसाड़, जेठ ना असाड़ ( मूर्ख व्यक्ति की बेइज्जती करने से भी उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता )
- भल कर, भल ह्वल, सौद कर, नाफ ह्वल ( अच्छे कार्य और अच्छी नीयत से व्यापार करने से लाभ होता है )
- भल करि, ख्यड़ नी जान ( किसी के प्रति की गयी भलाई कभी भी नष्ट नहीं होती )
- भल काम ऐब'न कै लै ढक दिनि ( किसी मनुष्य के अच्छे काम से उसकी बुराईयाँ छुप जाती हैं )
- भल होलो कै भगा बुलै, भगा लै भद्रा में ताव लगै ( कुशल व्यक्ति की जिम्मेदारी देने पर भी कार्यसिद्धि ना होना)
- भलि बात, सुनै कि रात ( अच्छे प्रवचन जीवन के लिए बहुत लाभकारी होते हैं )
- भागि'क माल जावो, अभागि'क ज्यान जावो ( भाग्यवान को धन-सम्पति की हानि होती है और दुर्भाग्यवान की जीवन की हानि होती है )
- भाट का बढ़्या, भीतेर हूँ लिंण गाड़या ( एक निकृष्ट व्यक्ति अपना जीवन यापन निकृष्टतम तरीके से भी कर लेता है )
- भात खै बेर जात पूछण ( दुर्घटना के बाद सतर्कता दिखाना )
- भीख में भीख दीणो, तीनों लोक जीत लीणो ( दान में प्राप्त वास्तु को भी दान कर देना बहुत पुण्य का काम है )
- भीत ढोली, भीतेर हूँ ( दुर्घटना होने पर भी अधिक हानि ना होन )
- भीं में आँख नि हुण या भीं में नि चाँण ( अत्यधिक प्रफुल्लित होना या इतराना )
- भीम है महाभारत, स्वर्ग है लात ( किसी व्यक्ति की सामर्थ्य के देखकर ही उससे बैर लेना चाहिए )
- भूक चांछ वल्ली गदनि, अघाण चांछ पल्ली गदनि ( आवश्यकता और अवसर के अनुसार निर्णय लिया जाता है )
- भूख मीठी कि भोजन मीठा ( भोजन का स्वाद व्यक्ति की भूख के साथ बढ़ जाता है)
- भूत पूजाई ( अधकचरा काम करना या अधपका भोजन )
- भूतों कैं ल्याख, द्याप्तों कैं धांक ( गलत व्यक्ति या परंपरा को बढ़ावा देना )
- भूल-चूक को भारद्वाज गोत्र ( दुसरे की भूल-चूक को अनदेखा कर देना चाहिए )
- भूल बिसर, जाणो ईश्वर ( अनजाने में की गयी गलती भगवान् ही जानता है )
- भेकुवौ'क कुल्याड़ (बड़ा ही मूर्ख व्यक्ति या मुर्खतापूर्ण कार्य करना )
- भेकुवे की जांठि ( एक अविश्वसनीय या संदिग्ध व्यक्ति )
- भैयों'क बाँट और हाथा'क रेखाड़ ( भाईयों का हिस्सा और हाथ की रेखाएं बदले नहीं जा सकते )
- भैंस मारि तोड़ो, कुड़ ढालि बोड़ो ( कम लाभ के लिए अधिक की हानि करना )
- भैंसा'क सींग भैंस कैं भारि नि लागन ( अपने परिवार और निकट सम्बन्धियों की सहायता में किसी को कष्ट महसूस नहीं होता )
- भौं तेरा भट्ट बुकाण, भौं तेरा हौव बाण ( एक समय पर एक ही काम किया जा सकता है )
- भौंण ना भास्, जिया को उपवास ( किसी भी प्रकार से सक्षम ना होना )
- लगने बखत हगण । (शादी के समय टॉयलेट लगना। मतलब महत्वपूर्ण कार्य के बीच मे विघ्न।)
- भैसक सींग भैस कु भारी नि हूं। अर्थात माता पिता को अपनी संतान बोझ नही लगती है।
- स्यावक भागल सींग टूट । सियार की किश्मत से सींग टूट गया। अर्थात किस्मत से कामचोर को अच्छा मौका मिल गया ।
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