25 + कुमाऊनी मुहावरे अर्थ सहित (kumauni muhavare arth sahit)

कुमाऊनी  मुहावरे अर्थ सहित (kumauni muhavare arth sahit)

बोल चाल की भाषा में मुहावरों का भी विषिष्ट स्थान होता है। इनका प्रयोग प्रत्येक भाषाओं में होता है कुमाऊनी भाषा में भी मुहावरों का प्रयोग होता है। मुहावरे किसी भी बातपोष की कहन को चुटीला और रोचक बनाते हैं। लोकभाषाओं में मुहावरे भाषा की वैष्ष्ट्यि की रीढ़ हैं। साथ ही ये मुहावरे लेखिन परम्परा में भी लेखन को कसावट व प्रामाणिक बनाते हैं। मुहावरे किसी भी समाज के सामाजिक सांस्कृतिक और राजनैतिक लोकाचारों को जानने समझने का औजार है। इनके माध्यम से इस बात का पता का अन्दाजा लगाया जा सकता है कि कोई समाज कितना रूढ़ी और अत्याधुनिक या चेतन समाज है सा उसमें स्त्री, जाति पुरुष, धर्म को लेकर किस तरह की अवधारणाएं हैं ये आपको उस समाज व स्थानीय भाषा के मुहावरे दे सकते हैं। यहां प्रस्तुत है कुछ ऐसे ही मुहावरे।

Kumaoni Kahawate evam Muhavare कुमाउनी कहावतें एवं मुहावरे

    कुमाऊनी  मुहावरे अर्थ सहित
    1. रामु कौतिक  गौ कैतिके नि लाग । (जिस काम के लिए गए ,उस काम का न होना।)
    2. अभागि कौतिक गो,  कौतिकै नि है  ( जिसकी किस्मत साथ ना दे वह कही भी सुख प्राप्त नहीं कर पाता)
    3. अघैईं बामणै कि भैंसेन खीर  ( जब किसी का पेट भरा हो तो उसे स्वादिष्ट व्यंजन में भी दोष नजर आते हैं)
    4. अकल और उमर कैं कभैं भेट नि हुनि  ( हर व्यक्ति की बुद्धि का विकास उसकी आयु तथा अनुभव के अनुसार ही होता है तथा हर काम अपने नियत समय पर ही संपन्न होता है )
    5. अघिन कुकेलि पछिन मिठी... ( ऐसी बात जो कड़वी लगे, पर वास्तव में फायदेमंद हो )
    6. अपजसी भाग पर म्यहोवक फूल ( जिसकी किस्मत साथ ना दे वह हर हाल में परेशान रहता है)
    7. अपणा जोगि  जोगता, पल्ले गौं का संत ( अपने क्षेत्र/घर के लोगों की क़द्र ना करना)
    8. अमुसि दिन गौ बल्द लै ठाड़ उठूँ ( जब आपत्ति आती है तो हर व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता के साथ अपना बचाव करता है )
    9. मान सिंह कु मौनेल चटकाई ,पान सिंह उसाई।  बात किसी को सुनाई और बुरा किसी और को लगा।
    10. सासुल बुवारी तै कोय, बुवारिल कुकुरहते कोय, कुकुरल पुछड़ हिले दी।  अर्थात आलसीपन एक ने दूसरे को काम बताया ,दूसरे ने तीसरे को ,अगले ने हामी भर कर काम नही किया।
    11. हगण तके बाट चाण । जब जरूरत पड़े तब सामान खोजना।
    12. नाणी निनाणी देखिनी उत्तरायणी कौतिक । नहाने और ना नहाने वाले का पता उत्तरायणी के मेले में पता लग जाता है। अर्थात झूठ बोलने वाले का सामाजिक कार्यों में पता चल जाता है।
    13. पुरबक बादलेक ना द्यो ना पाणि । पूर्व के बादल से बारिस नही होती है।
    14. अनाव चोट कनाव पड़न (  घबराहट या अनाड़ीपन में उल्टा सीधा काम करना, बुद्धि व विवेक से काम नहीं करना)
    15. अन्यारै कि मार खबर नै सार (  किसी कार्य का सही प्रचार व प्रसार नहीं होगा तो कोई भी कैसे जानेगा )
    16. असोज में करेले कार्तिक में दही, मरे नहीं पड़े सही ( समय व आवश्यकता के अनुसार ही किसी वस्तु को प्रयोग में लाना चाहिए)
    17. अस्सी गिचाँ दगड़ि कैलै नि सकि (  झूठी अफवाह को रोकना किसी एक व्यक्ति के बस में नहीं रह जाता)
    18. अति बिराऊँ में मूस नि मरन (किसी कार्य के लिए आवश्यकता से अधिक लोग होने पर काम सफल नहीं होगा )
    19. म्यर जस माम कैक लै नै, सांक माम एक लै नै  ( लम्बी चौड़ी जान-पहचान, कुटुम्ब और परिजन होते हुये भी गुणी परिजनों का अभाव)
    20. मडु खौ, तणतण रौ  ( मडुवा खाओ और हृष्ट-पुष्ट रहो )
    21. मडुवा राजा, जब सेको तब ताजा (  मडुवा एक रेडिमेड उपयोगी अनाज है )
    22. मन करूं गाणि-माणि, करम करुं निखाणि ( मन तो हमेशा ज्यादा सोचता है पर मिलता कर्म के अनुसार ही है )
    23. मन कौं दूद-भात खूल, भाग कौं दगड़ै रूल ( भाग्य हमारे मन के अनुसार नहीं होने देता)
    24. मरण बखत बाकर, गुसैं'क मुख चाँछ ( संकट के समय व्यक्ति अपने परिवार और निकट सम्बन्धियों से अपेक्षा करता है)
    25. मरि च्यला'क दिन गिणन ( बीती बातों पर पछताना या याद करना )
    26. मरि स्यापाक आँख खचोरण ( अक्षम व्यक्ति पर वीरता दिखाना )
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