भगवती प्रसाद पांथरी — गढ़वाली भाषा व साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि | जीवनी (Bhagwati Prasad Panthri – A famous poet of Garhwali language and literature. biography)

भगवती प्रसाद पांथरी — गढ़वाली भाषा व साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि | जीवनी

भगवती प्रसाद पांथरी गढ़वाली भाषा और साहित्य के प्रख्यात कवि और नाटककार थे। गढ़वाली साहित्य में उनका योगदान इतना महत्वपूर्ण है कि उनके नाम पर 'पांथरी युग' की पहचान बनी। उनके नाटकों और कविताओं ने गढ़वाल क्षेत्र में सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक उत्थान में अहम भूमिका निभाई।


प्रारंभिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम

भगवती प्रसाद पांथरी ने अपने लेखन से गढ़वाल के जनमानस को प्रेरित किया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1941-42 में प्रवासी गढ़वालियों के बीच साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा मिला। उस समय भगवती प्रसाद पांथरी ने गढ़वाली नाटकों के माध्यम से नवीन चेतना का संचार किया।

उनके नाटक 'अधः पतन' और 'भूतों की खोज' का कई बार मंचन हुआ। इन नाटकों में हास्य, व्यंग्य और समाज का जीवंत चित्रण था। उनके नाटक समसामयिक विषयों को उठाते हुए सामाजिक आंदोलन की दिशा तय करने में सहायक बने।


नाट्य क्षेत्र में योगदान

भगवती प्रसाद पांथरी को गढ़वाली नाट्य साहित्य का अग्रदूत माना जाता है। उनके प्रमुख नाटक निम्नलिखित हैं:

  • 'पांच फूल'
  • 'बॉशुली'
  • 'स्वराज्य और जनानी'

इन रचनाओं में गढ़वाली जनजीवन, उनके संघर्ष, और सांस्कृतिक मूल्यों का मार्मिक चित्रण हुआ है। उनके पात्र आदर्शवादी थे और वे समाज को नैतिक आदर्श स्थापित करने की प्रेरणा देते थे।


कारागार का जीवन और संघर्ष

सन् 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन पूरे देश में फैल चुका था, तब उत्तराखंड की टिहरी रियासत भी इससे अछूती नहीं रही। 29 अगस्त 1942 को भगवती प्रसाद पांथरी को श्रीदेव सुमन के साथ गिरफ्तार कर देहरादून जेल भेजा गया। वहां उन्होंने अनेक कष्ट सहन किए।

यह समय उनके साहित्यिक और सामाजिक विचारों को और अधिक प्रखर बनाने का कारण बना। उनके साहित्य में स्वतंत्रता आंदोलन और गढ़वाल की संस्कृति का अनूठा संगम दिखता है।


गढ़वाली साहित्य में 'पांथरी युग'

भगवती प्रसाद पांथरी का साहित्यिक योगदान इतना व्यापक था कि गढ़वाली साहित्य में उनके नाम पर एक युग को 'पांथरी युग' का नाम दिया गया। उन्होंने गढ़वाल के जनजीवन को साहित्य के माध्यम से सजीव कर दिया।

उनके नाटकों का स्वतंत्रता आंदोलन से प्रत्यक्ष संबंध न होते हुए भी, वे समाज में आदर्श स्थापित करने की प्रेरणा देते थे। उनके साहित्य ने गढ़वाली संस्कृति को जीवित रखने और उसे समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


समाज के प्रति योगदान

भगवती प्रसाद पांथरी ने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को जागरूक किया और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने का संदेश दिया। उनके नाटक और कविताएं आज भी गढ़वाली साहित्य और संस्कृति के अनमोल धरोहर के रूप में विद्यमान हैं।


निष्कर्ष

भगवती प्रसाद पांथरी गढ़वाली साहित्य के ऐसे स्तंभ हैं, जिन्होंने अपने कृतित्व और व्यक्तित्व से गढ़वाल और समूचे साहित्य जगत को गौरवान्वित किया। उनकी रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी। वे सिर्फ एक कवि और नाटककार नहीं, बल्कि समाज के आदर्श निर्माता और स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा भी थे।


आपकी राय में भगवती प्रसाद पांथरी के किस नाटक ने आपको सबसे ज्यादा प्रेरित किया? हमें बताएं!

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