जनपद नैनीताल: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण (District Nainital: Historical and Cultural Perspectives)
जनपद नैनीताल: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण
नैनीताल उत्तराखंड
का एक महत्वपूर्ण जनपद है, जो प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक
मान्यताओं के साथ ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। नैनीताल का नाम एक विशेष
धार्मिक और ऐतिहासिक कथा से जुड़ा हुआ है। मान्यता के अनुसार, दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती का
विवाह भगवान शिव से हुआ था। दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में शिव को निमंत्रण नहीं
मिलने पर सती अपने पति के अपमान से दुखी होकर हवन कुंड में कूद गईं। उनके बलिदान
से महादेव अत्यंत क्रोधित हो उठे और सती के शरीर को लेकर ब्रह्माण्ड का भ्रमण करने
लगे। जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। इन्हीं में से एक शक्तिपीठ
नैनीताल के नैनीझील क्षेत्र में माना जाता है, जहां माता सती की बाईं आँख गिरी थी। इसलिए, इस झील को 'नैनीताल' कहा जाने लगा।
नैनीताल जनपद का परिचय
- मुख्यालय: नैनीताल
- स्थापना वर्ष: 1891
- क्षेत्रफल: 4251 वर्ग किमी
- जनसंख्या: 9,54,605
- ग्रामीण जनसंख्या: 5,82,871
- शहरी जनसंख्या: 3,71,734
- पुरुष: 4,93,666
- महिला: 4,60,939
- जनघनत्व: 225 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी
- साक्षरता दर: 76.36%
- पुरुष साक्षरता: 89.76%
- महिला साक्षरता: 69.28%
भौगोलिक सीमाएं और पड़ोसी जिले
- पूर्व में: चंपावत
- पश्चिम में: उत्तर प्रदेश
- उत्तर में: अल्मोड़ा
- दक्षिण में: उधम सिंह नगर
प्रशासनिक विभाजन
नैनीताल में कई
तहसीलें और विकासखंड शामिल हैं:
- तहसीलें: नैनीताल, हल्द्वानी, रामनगर, कालाढूंगी, लालकुआँ, पारी, खनस्यू कोटाबाग, धारी, बेतालघाट
- विकासखंड: हल्द्वानी, रामनगर, भीमताल, रामगढ़, ओखलकांडा
नैनीताल की प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन
नैनीताल को 'झीलों का शहर' कहा जाता है। यहां की नैनी झील, जो पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी
जाती है, पर्यटकों का मुख्य आकर्षण है। इसके अलावा, नैनीताल में हिमालय की ऊंची चोटियां, हरे-भरे जंगल, और विभिन्न वन्यजीव क्षेत्र हैं, जो इसे प्रकृति प्रेमियों के लिए आदर्श
स्थान बनाते हैं। नैनीताल न केवल पर्यटकों को आकर्षित करता है बल्कि यह क्षेत्र
शिक्षा, सांस्कृतिक धरोहर, और धार्मिक आस्थाओं का केंद्र भी है।
नैनीताल का यह
पौराणिक और प्राकृतिक महत्व इस जनपद को उत्तराखंड का एक अनमोल रत्न बनाता है।
काठगोदाम
- कुमाऊँ का प्रवेशद्वार।
- लकड़ी के गोदाम के कारण यह नाम मिला।
- पुराने नाम: चौहान पाटा (प्रचलित), बाड़ाखोटी या बाड़ाखेड़ी (चंदकालीन)।
- गुलाब घाटी उपनाम से भी जाना जाता है।
- यहां गोला और भीमताल से निकलने वाली
पुष्पभद्रा नदी का संगम होता है।
- 1773 में रूहेलों और शिवदत्त जोशी के बीच
निर्णायक युद्ध हुआ था।
- कुमाऊँ का अंतिम रेलवे स्टेशन, जहाँ 24 अप्रैल, 1884 को पहली बार रेल पहुँची।
शीतला माता मंदिर
- स्थानीय नाम: सिताल मां,
जिन्हें चेचक जैसी
बीमारियों की देवी माना जाता है।
- स्कन्द पुराण में माता शीतला को वाहन
गर्दभ बताया गया है।
कालीचौड़ मंदिर
- मां काली को समर्पित।
- मान्यता है कि शंकराचार्य ने उत्तराखंड
में सर्वप्रथम यहां आगमन किया था।
भीमताल
- त्रिभुजाकार झील।
- पौराणिक कथा के अनुसार भीम ने यहाँ तपस्या
की थी।
- राजा बाज बहादुर चन्द ने भीमेश्वर महादेव
मंदिर की स्थापना की।
- चन्दकालीन छखाता परगने का मुख्यालय।
- पुष्पभद्रा का उद्गम स्थल।
- यहाँ बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड
साइंसेज स्थित है।
- कोरटाटा का नाग मंदिर प्रसिद्ध है।
- विक्टोरिया बांध (भीमताल बांध): 500 फीट लम्बा, 48.5 फीट ऊँचा, फ्रांसिस हेनरी एशुट द्वारा डिज़ाइन किया
गया।
ज्योलिकोट
- नैनी झील का गेटवे।
- भारत का सबसे पुराना 18 होल्स का गोल्फ कोर्स।
- नेपोलियन बोनापार्ट की बेटी के आवास के
रूप में प्रसिद्ध बंगला भी यहाँ है।
रानीबाग
- पुराना नाम चित्रशिला।
- मार्कण्डेय ऋषि की तपस्थली।
- जियारानी की समाधि गोला नदी के तट पर
स्थित है।
- जियारानी का मेला प्रतिवर्ष आयोजित होता
है।
भवाली
- पर्वतीय फल बाजार के रूप में प्रसिद्ध।
- टी.वी. सेनोटोरियम की स्थापना 1912
में हुई।
- यहां जाबर महादेव मंदिर भी प्रसिद्ध है।
- भवाली क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है।
क्षिप्रा नदी
- श्यामखेत (प्राकृतिक
जलस्त्रोत) से निकलती है।
- खैरना में कोसी में समा जाती है।
- श्यामखेत में बाबा नानतिन का आश्रम इसके
निकट है।
कैंचीधाम
- नीम करौली बाबा द्वारा स्थापित हनुमान
मंदिर।
- सोमवारी महाराज ने यहाँ तप किया था।
- वार्षिक भंडारा 15 जून को आयोजित होता है।
रामनगर
- 1846-84
के बीच रामजी साहब (कुमाऊं कमिश्नर
रैम्जे) द्वारा स्थापित।
- गर्जिया देवी मंदिर, सीतावनी और कार्बेट म्यूजियम यहाँ के
मुख्य आकर्षण हैं।
रामगढ़
- फ्रूट बॉल ऑफ कुमाऊँ के नाम से प्रसिद्ध।
- साहित्यकार महादेवी वर्मा का जन्मस्थान।
- गार्गी ऋषि और नारायण स्वामी के आश्रम
यहाँ आस्था के केंद्र हैं।
घोडाखाल
- प्रसिद्ध गोलू देवता मंदिर।
- सैनिक स्कूल की स्थापना।
- यहां गौर-भैरव मंदिर
और नानतिन बाबा की समाधि दर्शनीय हैं।
मुक्तेश्वर
- मूक शहर या साइलेंट सिटी के नाम से जाना
जाता है।
- इसका नाम 'मुक्ति के ईश्वर' पर आधारित है।
गोला नदी
- हल्द्वानी की जीवन रेखा।
- उद्गम स्थान: भीड़ापानी,
मोरनौला और सातताल।
- किच्छा के बाद उत्तर प्रदेश में रामगंगा
में सम्मिलित होती है।
कण्डी मार्ग
- रूहेलों द्वारा बरेली, रामपुर और नजीबाबाद को जोड़ने के लिए
बनाया गया।
- रामनगर से कोटद्वार तक गढ़वाल और कुमाऊँ
को जोड़ने वाला मार्ग।
कार्बेट फॉल
- स्थान: नया गाँव, कालाढूंगी।
- यह जलप्रपात अपने प्राकृतिक सौंदर्य के
लिए प्रसिद्ध है और यहाँ पर्यटक प्रकृति का आनंद लेने आते हैं।
जिम कार्बेट संग्रहालय
- स्थान: कालाढूंगी के पास छोटी हल्द्वानी।
- स्थापना: 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह
द्वारा उद्घाटन किया गया।
- संग्रहालय में जिम कार्बेट के जीवन और
कार्यों से संबंधित वस्तुएं हैं।
देवस्थल
- संस्थान: आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध
संस्थान (ARIES)।
- यहाँ एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन (3.6
मीटर व्यास का
टेलीस्कोप)
स्थापित है,
जिससे खगोलीय शोध
किया जाता है।
नैनीताल: झीलों का जिला और प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक
प्रमुख पर्यटन स्थल
- नैनीताल झील - नैनीताल शहर का मुख्य आकर्षण, चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी हुई।
- भीमताल - झीलों के सुंदर दृश्यों के साथ पहाड़ियों
का अद्भुत संगम।
- नौकुचियाताल - नौ कोनों वाली झील, यहां बोटिंग का विशेष आकर्षण है।
- सातताल - सात अलग-अलग झीलों
का समूह।
- रामगढ़ - प्राकृतिक सुंदरता और सेब के बागानों के
लिए प्रसिद्ध।
- मुक्तेश्वर - यहां के हरे-भरे जंगल,
हिमालय के दृश्य और
धार्मिक स्थल प्रसिद्ध हैं।
- रामनगर - कॉर्बेट नेशनल पार्क के लिए प्रसिद्ध।
नैनीताल: एक संपूर्ण परिचय
1. भूगोल
नैनीताल जिला
उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं मंडल में स्थित है। इसके उत्तर में अल्मोड़ा, दक्षिण में ऊधम सिंह नगर, पूर्व में चंपावत, और पश्चिम में पौड़ी गढ़वाल जिले की
सीमाएँ हैं। यह जिला 78º51′ 11.34″ और
79º58’ 23.06″ पूर्वी
देशांतर तथा 28º58’ 31.84″ और
29º36’ 45.19″ उत्तर
अक्षांश के बीच फैला हुआ है। नैनीताल का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 4251 वर्ग किलोमीटर है और इसे पर्वतीय क्षेत्र
और भाबर (मैदानी) क्षेत्र में विभाजित किया गया है।
उत्तर की ओर हिमालय
पर्वतमालाएँ तथा दक्षिण में मैदानी भाग स्थित हैं, जो नैनीताल के वातावरण को अत्यंत सुखद
बनाते हैं। जिले का सबसे ऊँचा शिखर बुद्धस्थली (2623 मीटर) है, जो नैनीताल शहर के पास विनायक क्षेत्र
में स्थित है। नैनीताल में कई झीलें भी हैं, जिनमें नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, खुर्पाताल, हरीशताल और लोखमताल प्रमुख हैं।
भाबर क्षेत्र की
विशेषता यह है कि यहाँ की जमीन में पानी गहराई में मिलता है, जिससे क्षेत्र को ‘भाबर’ नाम दिया गया है। यहाँ उगने वाली लंबी
घासें भाबर क्षेत्र का प्रमुख तत्व हैं।
2. नदियाँ
नैनीताल की प्रमुख
नदियों में कोसी नदी, गौला,
भाखड़ा, दाबका और बौर शामिल हैं। कोसी नदी का
उद्गम कौसानी के पास कोशीमूल में होता है और यह नैनीताल के पश्चिमी तट पर बहती है।
इन नदियों का उपयोग पीने के पानी और सिंचाई के लिए होता है।
3. साहसिक खेल (Adventure Sports)
नैनीताल पाल नौकायन क्लब
देशभर के नाविकों के
लिए 'नैनीताल पाल नौकायन
क्लब' अपनी नौकायन विरासत
को संजोए हुए है। यहाँ हर वर्ष सेलिंग रिंगाटा का आयोजन किया जाता है जिसमें नैनी
झील में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। गर्मियों के मौसम
में तैराकी, कयाकिंग
और कैनोइंग जैसी प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती हैं।
पैराग्लाइडिंग
नैनीताल जिले में
पैराग्लाइडिंग के लिए विशेष केंद्र हैं, जिनमें भीमताल-जंगलियागाँव मार्ग पर स्थित पांडे गाँव प्रमुख
है। पर्यटक अनुभवी पैराग्लाइडिंग प्रशिक्षकों की मदद से इस साहसी खेल का लुत्फ उठा
सकते हैं।
गरम हवा के गुब्बारे (हॉट एयर बैलूनिंग)
सूखाताल क्षेत्र में
हॉट एयर बैलूनिंग का आयोजन किया जाता है, जो साहसिक खेलों में एक और प्रमुख आकर्षण है।
गोल्फ टूर्नामेंट और अन्य
खेल
राजभवन के गोल्फ
कोर्स में हर वर्ष गोल्फ टूर्नामेंट आयोजित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त फ्लैट्स
क्षेत्र में समय-समय पर हॉकी, फुटबॉल,
क्रिकेट, और मुक्केबाजी के टूर्नामेंट होते हैं।
नैनीताल पर्वतारोहण क्लब भी यहाँ के साहसी खेल प्रेमियों के लिए एक विशेष आकर्षण
है, जो पर्वतारोहण और रॉक
क्लाइम्बिंग का प्रशिक्षण प्रदान करता है। बारापत्थर और कैल्सबैक पहाड़ियों पर
पर्वतारोहण की ट्रेनिंग दी जाती है।
अल्मोड़ा जनपद
- अल्मोड़ा: चौबटिया - बागों का स्वर्ग
- अल्मोड़ा जिला: MCQs
- प्रमुख समाचार पत्र और पत्रिकाएं (PDF)
- अल्मोड़ा जिला: 100-100 प्रश्न और उत्तर
- प्रमुख मंदिरों का संपूर्ण विवरण
- अल्मोड़ा जिले की प्रमुख नदियाँ (PDF)
- अल्मोड़ा जिला: आधारित प्रश्न और उत्तर
- खुमड़ का शहीद मेला: ऐतिहासिक महत्व
- अल्मोड़ा जिला (PDF)
- अल्मोड़ा जिला: संक्षिप्त परिचय (PDF)
नैनीताल: झीलों की नगरी में पर्यटन का अनूठा अनुभव
नैनीताल, अपनी
अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता, झीलों और
मनोहारी पर्वतों के कारण उत्तराखंड का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह जगह अपने
आकर्षक स्थलों, ऐतिहासिक
धरोहरों और धार्मिक स्थलों के कारण पर्यटकों को हर मौसम में अपनी ओर खींचती है।
आइए जानते हैं नैनीताल के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में।
1. नैनी
झील
कैसे पहुंचें:
- वायु
मार्ग: पंतनगर एयरपोर्ट से 70 कि.मी.
- ट्रेन
द्वारा: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से 34 कि.मी.
- सड़क
मार्ग: हल्द्वानी बस स्टेशन
से 40 कि.मी.
2. माल
रोड
कैसे पहुंचें:
- वायु मार्ग: पंतनगर एयरपोर्ट से 70 कि.मी.
- ट्रेन
द्वारा: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से 34 कि.मी.
- सड़क
मार्ग: हल्द्वानी बस स्टेशन
से 40 कि.मी.
3. फ्लैट्स
कैसे पहुंचें:
- वायु
मार्ग: पंतनगर एयरपोर्ट से 71 कि.मी.
- ट्रेन
द्वारा: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से 35 कि.मी.
- सड़क
मार्ग: हल्द्वानी बस स्टेशन
से 41 कि.मी.
4. उच्च
स्थलीय प्राणी उद्यान
कैसे पहुंचें:
- वायु
मार्ग: पंतनगर एयरपोर्ट से 71 कि.मी.
- ट्रेन
द्वारा: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से 35 कि.मी.
- सड़क
मार्ग: हल्द्वानी बस स्टेशन
से 41 कि.मी.
5. रज्जु
मार्ग (रोपवे)
- वायु
मार्ग: पंतनगर एयरपोर्ट से 72 कि.मी.
- ट्रेन
द्वारा: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से 36 कि.मी.
- सड़क
मार्ग: हल्द्वानी बस स्टेशन
से 42 कि.मी.
6. घुड़सवारी
कैसे पहुंचें:
- सड़क द्वारा
बारापत्थर से घुड़सवारी के लिए जा सकते हैं।
7. नैनीताल
राजभवन
कैसे पहुंचें:
- वायु
मार्ग: पंतनगर एयरपोर्ट से 74 कि.मी.
- ट्रेन
द्वारा: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से 38 कि.मी.
8. हनुमान
गढ़ी
कैसे पहुंचें:
- वायु
मार्ग: पंतनगर एयरपोर्ट से 68 कि.मी.
- ट्रेन
द्वारा: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से 32 कि.मी.
- सड़क
मार्ग: हल्द्वानी बस स्टेशन
से 38 कि.मी.
9. आर्यभट्ट
प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज)
नैनीताल के प्रमुख दर्शनीय स्थल: प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक स्थल
नैनीताल और इसके आसपास के पर्यटन स्थल, उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व
को बखूबी दर्शाते हैं। यहाँ नैनीताल के कुछ प्रसिद्ध स्थलों का संक्षिप्त विवरण
प्रस्तुत है, जो इसे
पर्यटकों के लिए बेहद आकर्षक बनाते हैं।
10. स्नो
व्यू
श्रेणी: प्राकृतिक
/ मनोहर सौंदर्य
स्नो व्यू, नैनीताल
के निकट स्थित एक प्रमुख चोटी है,
जहाँ पर्यटक सड़क या रोपवे द्वारा आसानी से पहुँच सकते हैं। यह स्थान
नैनीताल से केवल 2.5 किलोमीटर
की दूरी पर है। यहाँ से हिमालय की हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं का भव्य दृश्य
देखने को मिलता है। साथ ही, इस
पहाड़ी पर एक मंदिर और बच्चों के लिए एक छोटा पार्क भी उपलब्ध है।
11. नैना
पीक (चाइना पीक)
श्रेणी: प्राकृतिक
/ मनोहर सौंदर्य
नैना पीक नैनीताल की सबसे ऊँची चोटी है, जो समुद्र तल से 2611 मीटर की
ऊँचाई पर स्थित है। यह नैनीताल से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ से हिमालय का विहंगम दृश्य और नैनीताल
का सुंदर 'बर्ड आई
व्यू' भी देखा
जा सकता है। पर्यटक यहाँ घुड़सवारी या पैदल ट्रेकिंग करते हुए पहुँच सकते हैं।
12. डोरोथी
सीट (टिफिन टॉप)
श्रेणी: प्राकृतिक
/ मनोहर सौंदर्य
टिफिन टॉप, नैनीताल
से 4 किलोमीटर
की दूरी पर अयारपाटा क्षेत्र में स्थित एक रमणीय स्थल है। यह स्थान पर्यटकों को
हिमालय पर्वतमाला और ग्रामीण परिवेश का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। इस स्थान
का नाम एक ब्रिटिश महिला पेंटर डोरोथी सीट के नाम पर रखा गया था।
कैसे पहुँचें:
- वायु
मार्ग: पंतनगर एयरपोर्ट से 74 किमी दूर।
- रेल
मार्ग: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से 38 किमी दूर।
- सड़क
मार्ग: हल्द्वानी से 44 किमी की दूरी पर।
13. किलबरी
श्रेणी: प्राकृतिक
/ मनोहर सौंदर्य
किलबरी, नैनीताल
से 12 किलोमीटर
की दूरी पर स्थित है और यह समुद्र तल से 2194 मीटर की ऊँचाई पर है। यह स्थान अपने घने जंगलों और
शांति के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं का अद्भुत दृश्य
देखा जा सकता है।
14. भवाली
श्रेणी: प्राकृतिक
/ मनोहर सौंदर्य
भवाली, नैनीताल
से 11 किलोमीटर
की दूरी पर समुद्र तल से 1706 मीटर की
ऊँचाई पर स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह स्थान नैनीताल के निकटवर्ती
क्षेत्रों को जोड़ने वाले जंक्शन का कार्य करता है और यहाँ एक प्रसिद्ध टी.वी.
सैनेटोरियम भी स्थित है।
15. भीमताल
श्रेणी: प्राकृतिक
/ मनोहर सौंदर्य
भीमताल नैनीताल से 22
किलोमीटर दूर स्थित एक आकर्षक झील है, जो नौकायान और मछलीघर के लिए प्रसिद्ध है। झील के
बीचोंबीच स्थित टापू पर एक मछलीघर बनाया गया है। भीमताल के किनारे भगवान भीमेश्वर
महादेव का प्राचीन मंदिर भी स्थित है।
16. सातताल
श्रेणी: प्राकृतिक
/ मनोहर सौंदर्य
सातताल, नैनीताल
से 23 किलोमीटर
की दूरी पर स्थित एक अनोखा और अविस्मरणीय स्थान है। यह सात झीलों का एक समूह है, जो घने बांज के वृक्षों से
घिरा हुआ है। इन झीलों को राम,
लक्ष्मण, और सीता
झील के नाम से भी जाना जाता है।
17. मुक्तेश्वर
श्रेणी: प्राकृतिक
/ मनोहर सौंदर्य
मुक्तेश्वर, नैनीताल
से 51 किलोमीटर
की दूरी पर समुद्र तल से 2286 मीटर की
ऊँचाई पर स्थित एक अत्यंत खूबसूरत स्थान है। यह स्थान देवदार के घने जंगलों और
फलों के बगीचों से घिरा हुआ है। मुक्तेश्वर में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर भी
स्थित है, जहाँ से
चारों ओर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
18. कैंची
धाम
श्रेणी: धार्मिक
स्थल
कैंची धाम, नैनीताल
से 17 किलोमीटर
की दूरी पर स्थित है। यह बाबा नीब करौली महाराज का आश्रम है, जहाँ प्रतिवर्ष 15 जून को विशाल मेले का आयोजन
होता है। यहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और बाबा के आशीर्वाद का अनुभव करते
हैं।
19 . नौकुचियाताल
श्रेणी: प्राकृतिक
/ मनोहर सौंदर्य
नौकुचियाताल झील,
नैनीताल से 26 किलोमीटर
की दूरी पर स्थित एक शांत झील है। इस झील में नौ कोने हैं, जो इसे विशेष बनाते हैं। यह
स्थल प्रकृति प्रेमियों और शांतिपूर्ण माहौल में समय बिताने के इच्छुक पर्यटकों के
लिए आदर्श है।
कैसे पहुंचें:
- वायु
मार्ग द्वारा: पंतनगर एयरपोर्ट से 70 कि.मी. की दूरी पर।
- ट्रेन
द्वारा: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से लगभग 34 कि.मी. दूर।
- सड़क के
द्वारा: हल्द्वानी से भवाली
दो मार्गों से पहुंचा जा सकता है:
- हल्द्वानी -
भीमताल - भवाली
- हल्द्वानी - ज्योलीकोट - भवालीहल्द्वानी से भवाली की दूरी लगभग 40 कि.मी. है। भवाली से नैनीताल और भीमताल की दूरी लगभग 11 कि.मी. है।
कैसे पहुंचें:
- वायु
मार्ग द्वारा: पंतनगर एयरपोर्ट से 73 कि.मी. की दूरी पर।
- ट्रेन
द्वारा: काठगोदाम रेलवे
स्टेशन से लगभग 37 कि.मी. दूर।
- सड़क के
द्वारा: हल्द्वानी बस स्टेशन
से 43 कि.मी. और भवाली बस स्टेशन
से 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित
है। नैनीताल से इसकी दूरी लगभग 14 कि.मी. है।
कार्बेट टाइगर
रिजर्व: भारतीय वन्यजीवों का गहवारा
परिचय: भारत का पहला राष्ट्रीय
पार्क, कार्बेट टाइगर रिजर्व,
1936 में स्थापित हुआ था।
इसका पूर्व नाम 'हैली
नेशनल पार्क' था,
जिसे 1957 में महान प्रकृतिवादी और प्रख्यात
संरक्षणवादी स्वर्गीय जिम कॉर्बेट के सम्मान में 'कॉर्बेट नेशनल पार्क' का नाम दिया गया। यह पार्क हिमालय की
तलहटी में स्थित है और नैनीताल से कालाढूंगी एवं रामनगर होते हुए इसकी दूरी 118
किलोमीटर है।
भूगोल
और क्षेत्रफल: कार्बेट नेशनल पार्क 521 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ
है। यह दो जिलों में बंटा हुआ है, जिसमें
312.86 वर्ग किलोमीटर पौड़ी
गढ़वाल जिले में और 208.14 वर्ग
किलोमीटर नैनीताल जिले में आता है। पार्क का मुख्य प्रशासन कालागढ़ और रामनगर वन
प्रभागों के अंतर्गत आता है।
प्रमुख
शहरों से दूरी:
- दिल्ली:
240 किमी (दिल्ली-मुरादाबाद-काशीपुर-रामनगर)
- लखनऊ:
160 किमी (लखनऊ से बरेली,
बरेली-किच्छा-हल्द्वानी-रामनगर)
- नैनीताल:
62 किमी (कालाढूंगी एवं
रामनगर)
- देहरादून:
250 किमी (रामनगर)
सुविधाएँ
और प्रवेश द्वार: कार्बेट पार्क का मुख्य प्रवेश द्वार
धनगढ़ी है, जो रामनगर से 19
किलोमीटर दूर स्थित है। यहां मृत पशुओं
का संग्रहालय भी है। पार्क का एक प्रमुख पर्यटन स्थल ढिकाला है, जो धनगढ़ी से वन मार्ग द्वारा 35
किलोमीटर की दूरी पर है।
वन्यजीव
और जैव विविधता: कार्बेट पार्क में कई जंगली जानवर पाए
जाते हैं, जिनमें जंगली हाथी,
बाघ, तेंदुआ, समबर, चीतल, और जंगली सुअर शामिल हैं। यहां पक्षियों
की 580 से अधिक प्रजातियाँ
भी पाई जाती हैं। साथ ही, यह
पार्क विभिन्न प्रकार के सरीसृपों का भी घर है।
भ्रमण
का अनुकूल समय:
- ढिकाला जोन:
15 नवंबर से 15 जून तक
- बिजरानी
क्षेत्र:
15 अक्टूबर से 30
जून तक
- सोनानदी जोन:
15 अक्टूबर से 30
जून तक
- झिरना जोन: सम्पूर्ण
वर्ष
नियम
और निर्देश: कार्बेट टाइगर रिजर्व में निम्नलिखित
नियम लागू हैं:
- आगंतुकों को
बिना अनुमति के आग्नेयास्त्र ले जाने की अनुमति नहीं है।
- पालतू
जानवरों का प्रवेश निषिद्ध है।
- ट्रेकिंग और
चलने की अनुमति नहीं है।
- रात के समय
ड्राइविंग निषिद्ध है।
- सभी प्रकार
के भ्रमणों पर आधिकारिक पंजीकृत गाइड होना अनिवार्य है।
आसपास के स्थान: कार्बेट टाइगर रिजर्व के आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं, जैसे जिम कॉर्बेट संग्रहालय, कालाढूंगी विरासत ट्रेल, कॉर्बेट फॉल्स, गर्जिया देवी मंदिर और कालागढ़ बांध।
जनपद नैनीताल की समृद्ध संस्कृति और विरासत
जनपद
नैनीताल की संस्कृति और परंपराएँ उसकी समृद्ध विरासत की गवाही देती हैं। यहाँ के
लोग विभिन्न समुदायों से मिलकर एकजुटता के साथ रहते हैं, जिसमें अधिकांश हिंदू
धर्मावलंबी हैं। जिले में कुमाऊंनी परंपराओं का गहरा प्रभाव है, और यहाँ की सांस्कृतिक
विविधता सभी समुदायों के आपसी सौहार्द्र से भरी है।
सामाजिक
व्यवस्था
नैनीताल
में विवाह की पारंपरिक व्यवस्था में ज्यादातर विवाह माता-पिता द्वारा कुंडली
मिलाकर तय किए जाते हैं। शादी के अवसर पर यहाँ के प्रमुख रीति-रिवाज जैसे गणेश
पूजा, सुवाल
पथाई, धुलिअर्ग, कन्यादान, फेरे और विदाई निभाए जाते
हैं। कुमाऊनी बारात की खास पहचान छोलिया नृत्य से होती है, जो ढोल, दमुआ, रणसिंग, भेरी, हुड़का जैसे पारंपरिक वाद्य
यंत्रों की ताल पर होता है। नृत्य करते हुए ये नर्तक तलवार और ढाल का प्रदर्शन
करते हैं। हालाँकि आधुनिक समय में लोग बैंड-बाजे के साथ भी नृत्य करते देखे जाते
हैं।
कुमाऊंनी
व्यंजन
नैनीताल
का पारंपरिक खानपान बेहद पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। यहाँ के व्यंजनों में
मडुवा, झिंगोरा, गहत, भट्ट, मसूर, सोयाबीन जैसे पहाड़ी अनाज
और दालों का प्रमुखता से प्रयोग होता है। विशेष अवसरों पर खीर, सिंघल, पूरी, पालक का कापा, खटाई जैसे पकवान बनाए जाते
हैं। ठेठ कुमाऊनी व्यंजनों में भट्ट दाल से बना चुड़कानी, गहत के डुबके, मट्ठा की झोली, और पिनालू की सब्जी भी खास
पसंद किए जाते हैं। शहरी क्षेत्रों में स्थानीय भोजन के साथ-साथ दक्षिण भारतीय और
चीनी व्यंजन भी उपलब्ध हैं।
मेले
और त्यौहार
नैनीताल
जिले में विभिन्न संक्रांतियाँ जैसे मकर संक्रांति, फूलसंक्रांति, हरेला और घुघुतिया बड़े धूमधाम से मनाई जाती हैं। मकर संक्रांति पर
चित्राशीला में उत्तरायणी मेला और काकडीघाट में सोमनाथ मेला आयोजित होते हैं।
प्रसिद्ध कैंची धाम का मेला 15
जून को लगता है, जबकि
कार्तिक पूर्णिमा पर गार्जिया मंदिर में भव्य मेला लगता है। यहाँ के लोग नंदा देवी
मेले में भी पूरे उत्साह से शामिल होते हैं। इन मेलों में न केवल धार्मिक बल्कि
सांस्कृतिक परंपराओं की झलक भी मिलती है।
जीवनशैली
यहाँ की
पारंपरिक जीवनशैली में हर शुभ अवसर पर हल्दी और पिठ्या (अक्षत) का तिलक माथे पर
लगाया जाता है। यहाँ के लोग सामाजिक शिष्टाचार का पालन करते हुए मंगलवार और शनिवार
को शोक व्यक्त करने जाते हैं। विवाहित महिलाएँ सुहाग का प्रतीक सिंदूर लगाती हैं
और विशेष अवसरों पर नथ पहनती हैं। यहाँ की पारंपरिक पोशाक में पिछौड़ा विशेष महत्व
रखता है, जिसे शुभ
अवसरों पर पहना जाता है।
पहाड़ी
मकान और स्थापत्य कला
नैनीताल
में पहाड़ों के मकान आमतौर पर पत्थर या ईंटों के बने होते हैं। गाँवों में मकान की
पहली मंजिल में परिवार के लोग रहते हैं, जबकि भूतल पर जानवरों के रहने की व्यवस्था होती है, जिसे गोठ कहा जाता है।
पहाड़ी मंदिरों की स्थापत्य कला में मूर्तिकला का विशेष योगदान है, जो समय के साथ बदलती रही
है। यहाँ के मंदिर गाँवों में सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र हैं।
सांस्कृतिक
परंपराएँ
नैनीताल
की पारंपरिक सांस्कृतिक परंपराओं में पिछौड़ा एक महत्वपूर्ण परिधान है, जिसे रंगवाली भी कहा जाता
है। अनुष्ठान और त्यौहारों पर महिलाएँ इसे पहनती हैं। विशेष अवसरों पर ऐंपण
(अल्पना) की परंपरा भी यहाँ की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जिसमें चावल के घोल से घर
के आँगन में विभिन्न प्रतीकों का चित्रण किया जाता है। हरेले के पर्व पर मिट्टी की
मूर्तियाँ (डिकारे) बनाकर उनकी पूजा की जाती है।
नैनीताल: हस्तशिल्प और
सजावटी कैंडिल्स का अद्भुत संसार
नैनीताल,
उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन,
न केवल अपनी खूबसूरत पहाड़ियों और
प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, बल्कि यहाँ के हस्तशिल्प और सजावटी कैंडिल्स भी पर्यटकों का
ध्यान आकर्षित करते हैं। यहाँ के हस्तनिर्मित कैंडिल, पर्वतीय फलों के जैम, जूस और डिब्बाबंद फल अद्वितीय हैं,
जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और कलात्मक
धरोहर को दर्शाते हैं।
हस्तनिर्मित
कैंडिल्स
नैनीताल
की कैंडिल्स अपने अनोखे डिज़ाइन और सुगंध के लिए प्रसिद्ध हैं। ये कैंडिल्स
विभिन्न आकारों और रंगों में उपलब्ध होती हैं, जो किसी भी घर की सजावट में चार चाँद
लगा देती हैं। स्थानीय कारीगर इन कैंडिल्स को प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करके
तैयार करते हैं, जिससे
इनकी गुणवत्ता और स्थायित्व बढ़ता है। यहाँ के कैंडिल्स केवल सजावटी नहीं होते,
बल्कि इनमें विभिन्न सुगंधें भी होती
हैं, जो माहौल को रोमांटिक
और सुखद बनाती हैं।
बुराश का जूस
नैनीताल
का बुराश का जूस यहाँ के सबसे प्रसिद्ध उत्पादों में से एक है। यह जूस बुराश के
सुंदर फूलों से बनाया जाता है, जो
पहाड़ी क्षेत्र में उगते हैं। इस जूस का स्वाद और सुगंध अद्वितीय होती है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती
है। बुराश का जूस न केवल ताज़गी प्रदान करता है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद
होता है। नैनीताल में विभिन्न दुकानों पर यह जूस उपलब्ध है, जहाँ से आप इसे खरीद सकते हैं और अपने
घर ले जा सकते हैं।
ऊनी वस्त्र और
तांबे का सामान
इस
हिल स्टेशन पर आपको विभिन्न प्रकार के ऊनी वस्त्र और तांबे से बने सामान भी
मिलेंगे। ऊनी वस्त्र यहाँ के ठंडे मौसम के लिए आदर्श होते हैं और ये न केवल गर्म
रखते हैं, बल्कि फैशन का भी
हिस्सा बनते हैं। तांबे का सामान, जैसे
बर्तन, आभूषण और सजावटी
वस्तुएँ, पारंपरिक हस्तकला का
एक अद्भुत उदाहरण हैं। ये सामान न केवल देखने में खूबसूरत होते हैं, बल्कि इनमें स्थानीय संस्कृति की झलक भी
मिलती है।
पर्वतीय सजावटी
वस्तुएँ
माल
रोड पर आप पर्वतीय जंगलों में पाई जाने वाली चीड, रिंगाल, और अन्य जंगली वनस्पतियों से बनी सजावटी
वस्तुएँ भी खरीद सकते हैं। ये वस्तुएँ स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाई जाती हैं और
हर वस्तु में उनकी मेहनत और रचनात्मकता का परिचय मिलता है। ये सजावटी वस्तुएँ घर
की सजावट के लिए बेहतरीन होती हैं और इन्हें विभिन्न अवसरों पर उपहार के रूप में
भी दिया जा सकता है।
निष्कर्ष
नैनीताल
का हस्तशिल्प और सजावटी कैंडिल्स का बाजार न केवल इसकी सांस्कृतिक धरोहर को
दर्शाता है, बल्कि
यह पर्यटकों के लिए एक अनूठा अनुभव भी प्रदान करता है। जब भी आप नैनीताल जाएँ,
इन हस्तनिर्मित वस्तुओं को खरीदना न
भूलें, क्योंकि ये न केवल
आपको यादें देंगी, बल्कि
आपके घर की सजावट को भी एक नया रूप देंगी।
नैनीताल जिले के प्रमुख
संस्थान
- उत्तराखण्ड
विद्यालयी शिक्षा परिषद - 11 दिसम्बर, 2008 को रामनगर, नैनीताल में स्थापित।
- सेंट्रल
हिमालयन इन्वायरनमेंट एसोसिएशन - नैनीताल में स्थित।
- इन्दिरा
गांधी इंटरप्रिटेशन सेंटर - रामनगर, नैनीताल।
- राष्ट्रीय
पादप एवं जैविकीय अनुसंधान ब्यूरो - निग्लाट, भवाली।
- राष्ट्रीय
शीतजल मत्स्य अनुसंधान संस्थान - भीमताल में स्थित।
- भारतीय
पशुचिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान - मुक्तेश्वर, नैनीताल।
- वैक्सीन
रिसर्च इंस्टीट्यूट - पटवाडांगर, नैनीताल।
- आर्यभट्ट
प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (ARIES) - 1955 में स्थापित, नैनीताल।
- रडार
अनुसंधान संस्थान - भीमताल में।
- श्री आर एस
टोलिया उत्तराखण्ड प्रशासनिक प्रशिक्षण अकादमी - 1988 में नैनीताल में स्थापित।
- राजकीय
वेधशाला - मोनेरापीक,
नैनीताल।
- वन एवं
पंचायत प्रशिक्षण अकादमी - हल्द्वानी।
- सुशीला
तिवारी फोरेस्ट कॉलेज - हल्द्वानी में स्थित।
- कुमाऊँ
इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी - काठगोदाम।
- उत्तराखण्ड
सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज - नैनीताल।
- कुमाऊँ
मण्डल विकास निगम - नैनीताल।
- हिल्ट्रॉन
- नैनीताल।
- मलेरिया शोध
एवं उन्मूलन केंद्र - भवाली में।
- टीवी
सेनिटोरियम - भवाली।
- प्रशिक्षण
एवं सेवायोजन निदेशालय - हल्द्वानी।
- उत्तराखण्ड
विधिक अकादमी (UJALA)
- 2004 में भवाली में।
- हिमालयन
चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज - नैनीताल।
- स्टेट कैंसर
इंस्टीट्यूट - हल्द्वानी (प्रस्तावित)।
- नैनीताल
पर्वतारोहण क्लब - नैनीताल।
- लोक
संस्कृति संग्रहालय - खुटानी, भीमताल।
- उत्तराखण्ड
मुक्त विश्वविद्यालय - 31 अक्टूबर, 2005 को स्थापित।
- हिमालय संग्रहालय - कुमाऊँ विश्वविद्यालय परिसर, नैनीताल।
प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ
- समय-विनोद
(1868) - उत्तराखण्ड का पहला
हिंदी एवं उर्दू पत्र।
- हाजी-ए-आजम (1936) - राज्य में पहला उर्दू धार्मिक पत्रिका।
- जागृत जनता
(1938) - पीताम्बर दत्त पाण्डे
द्वारा।
- उत्तरायण
(1969) - नित्यानंद भट्ट
द्वारा।
- लोकालय
(1971) - विजय कुमार तिवारी
द्वारा।
- पर्वतीय
(1954) - विष्णु दत्त उनियाल
द्वारा राज्य का पहला दैनिक हिंदी समाचार पत्र।
- नैनीताल
समाचार (1978) - राजीव लोचन
साह द्वारा।
- पिघलता
हिमालय (1978) - दुर्गा सिंह
रावत द्वारा।
- कूर्माचल
केसरी (1980) - हल्द्वानी
में महेशानन्द पाण्डे द्वारा।
- उत्तराखण्ड
मशाल (1999) - रामनगर से
प्रकाशित।
- अन्य लोकप्रिय
पत्रिकाएँ:
कोहसार,
हिल रिव्यू, नैनी जन दर्पण, युव जन, मशाल, नागरिक, उत्तरा, पहाड़, पर्वत प्रेरणा, आदि।
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