अल्मोड़ा जनपद: एक संक्षिप्त परिचय

अन्य नाम-रामशिला क्षेत्र, आलमनगर
- अभिलेखीय दृष्टि से त्रिमलचन्द के 1628 ई0 के ताग्रपत्र एव बाजबहादुर चन्द के ताम्रपत्र (1669) में अल्मोड़ा शब्द का उल्लेख है।
- सर्वमान्य मत है कि स्थानीय घास चल्मोड़ा के कारण अल्मोड़ा नाम की उत्पत्ति हुई।
- चन्द राजाओं ने औरंगजेब को खुश करने हेतु आलमनगर नाम रखा।
- 1891 तक इसे कुमाऊं जिला नाम से जाना जाता था।
- मध्यकाल में इसे राजपुर या राजापुर कहा जाता था।
- 1864 में नगरपालिका बनी।
- राजा भीष्मचन्द (1555-1560) ने खगमरा कोट राजधानी बनाई किन्तु रामगढ़ के गढ़पति गजुवाठिंगा ने कोट पर धावा कर भीष्म चन्द की हत्या कर दी।
- पिता की मृत्यु के पश्चात् पुत्र बालो कल्याण (1560-1568) में आलमनगर की स्थापना कर नगर को राजधानी बनाई।
- 1790 में गोरखों के अधीन हो गया।
- 1815 में हुए संगोली, चम्पारण, बिहार के समझौते से अल्मोड़ा (कुमाऊ) अंग्रेजों के कब्जे में आ गया।
अल्मोड़ा को भौगोलिक आधार पर दो भागों में बांटा जाता है-
- तेलीफाट- पूर्वी अल्मोड़ा का सीधी धूप वाला क्षेत्र।
- सेलीफाट- कम धूप वाला पश्चिमी अल्मोड़ा का भाग।
अन्य नाम:
- रामशिला क्षेत्र
- आलमनगर
इतिहास एवं उत्पत्ति:
अभिलेखीय साक्ष्य:
- त्रिमलचन्द का ताम्रपत्र (1628 ई.)
- बाजबहादुर चन्द का ताम्रपत्र (1669 ई.)
नाम की उत्पत्ति:
- "चल्मोड़ा" नामक घास से
आलमनगर:
- चन्द राजाओं ने औरंगजेब को खुश करने हेतु रखा नाम
पुराना नाम:
- कुमाऊं जिला (1891 तक)
- राजपुर या राजापुर (मध्यकाल में)
नगरपालिका की स्थापना:
- वर्ष 1864
अल्मोड़ा के ऐतिहासिक संदर्भ:
राजा भीष्मचन्द (1555-1560):
- खगमरा कोट राजधानी बनाई
- रामगढ़ के गढ़पति गजुवाठिंगा ने उनकी हत्या की
पुत्र बालो कल्याण (1560-1568):
- आलमनगर की स्थापना कर इसे राजधानी बनाया
गोरखा शासन:
- वर्ष 1790 में गोरखा नियंत्रण में
अंग्रेजी शासन:
- 1815 में संगोली समझौते के बाद अंग्रेजों का कब्जा
भूगोल:
तेलीफाट:
- पूर्वी अल्मोड़ा (सीधी धूप वाला क्षेत्र)
सेलीफाट:
- पश्चिमी अल्मोड़ा (कम धूप वाला क्षेत्र)
मुख्य जानकारी:
- मुख्यालय: अल्मोड़ा
- स्थापना वर्ष: 1891
सीमाएं:
- पूर्व: पिथौरागढ़ एवं चम्पावत
- पूर्वोत्तर: बागेश्वर
- उत्तर: चमोली
- पश्चिम: पौड़ी
- दक्षिण: नैनीताल
क्षेत्र एवं जनसंख्या:
- क्षेत्रफल: 3144 वर्ग किमी
- जनसंख्या: 6,22,506
- पुरुष: 2,91,081
- महिला: 3,31,425
- ग्रामीण जनसंख्या: 5,47,930
- शहरी जनसंख्या: 74,580
अन्य महत्वपूर्ण आँकड़े:
- जनघनत्व: 198 व्यक्ति/वर्ग किमी
- साक्षरता दर: 80.47%
- पुरुष साक्षरता: 92.86%
- महिला साक्षरता: 69.93%
- लिंगानुपात: 1139 महिलाएँ प्रति 1000 पुरुष
- शिशु लिंगानुपात: 922
प्रशासनिक विभाजन:
तहसीलें (11):
- अल्मोड़ा
- रानीखेत
- भिकियासैण
- सल्ट
- धौलछीना
- चौखुटिया
- सोमेश्वर
- द्वाराहाट
- भनौली
- जैंती
- स्याल्दे
उपतहसीलें (5):
- लमगड़ा
- जालली
- बग्याली-पोखर
- ध्याड़ी
- मछोड़
विकासखंड (11):
- ताड़ीखेत
- चौखुटिया
- ताकुला
- सल्ट
- भिकियासैण
- लमगड़ा
- हवालबाग
- भैसियाछाना (धौलछिना)
- द्वाराहाट
- स्याल्दे
- धौलादेवी
विधानसभा सीटें (6):
- द्वाराहाट
- सल्ट
- रानीखेत
- अल्मोड़ा
- जागेश्वर
- सोमेश्वर
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अल्मोड़ा जिले की प्रमुख नदियाँ
अल्मोड़ा जिले में कई प्रमुख नदियाँ हैं, जो न केवल यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य में वृद्धि करती हैं, बल्कि कृषि, सांस्कृतिक उत्सवों और धार्मिक महत्त्व के लिए भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। नीचे जिले की प्रमुख नदियों का विस्तृत वर्णन दिया गया है:
1. रामगंगा नदी
- प्राचीन नाम: इस नदी का प्राचीन नाम "रथस्था" था।
- उत्पत्ति स्थल: यह नदी दधातोली से निकलती है और प्रारंभ में इसे रिथिया कहा जाता है।
- नामकरण: लोभा क्षेत्र में बहने पर इसे "लोहावती" नाम दिया गया, जबकि पल्ला गिवाड़ और चौखुटिया से बहने पर इसे "पश्चिमी रामगंगा" के नाम से जाना जाता है।
- सहायक नदियाँ: विनौ इसकी प्रमुख सहायक नदियों में से एक है, इसके साथ ही खनसर गाड़ (खारी गाड़), गगास और नैल भी इसके सहायक हैं।
- अन्य विशेषताएँ: भिकियासैण में गगास नदी बाएं से और नौरार गाड़ दाएं तट से इसमें मिलती हैं।
- सांस्कृतिक महत्त्व: इस नदी में "मौण मेले" के दौरान "डहौ उठाना" जैसे कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
2. कोसी (कौशल्या/कोसिला) नदी
- उत्पत्ति स्थल: यह बूढ़ा पिननाथ शिखर, बारामण्डल परगना के भदकोट से निकलती है।
- नामकरण: इसे "कोसिला नदी" के नाम से भी जाना जाता है।
- उपजाऊ घाटी: इस नदी के किनारे पर स्थित सोमेश्वर घाटी को एक उपजाऊ क्षेत्र माना जाता है, जिसे उत्तराखण्ड में "धान का कटोरा" (कौसानी से हवालबाग तक) कहा जाता है।
- सहायक नदी: सुयाल नदी चौसिला में कोसी से मिलती है।
3. गोमती नदी
- भौगोलिक विशेषता: गोमती नदी कत्यूर घाटी का निर्माण करती है।
- उत्पत्ति: यह बधाण परगना की पिंडरपार पट्टी में अयारी मादेव के गोमुख से आती है।
4. गगास नदी
- उत्पत्ति स्थल: यह दूनागिरी से निकलती है।
- सहायक नदियाँ: चंदास, रिस्कोई, और बलवागाड़ इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- नामकरण: इस नदी का नामकरण गर्ग ऋषि के नाम पर "गगास" हुआ है।
- मिलन बिंदु: यह नदी भिकियासैण के निकट पं0 रामगंगा नदी में समाहित हो जाती है।
5. सुआल नदी
- उत्पत्ति स्थल: यह बाड़ेछीना क्षेत्र से निकलती है।
- मिलन बिंदु: कोसी नदी में समाहित हो जाती है।
जिले के प्रमुख मंदिर
अल्मोड़ा जिले के प्रमुख मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं बल्कि इनके निर्माण और स्थापत्य में क्षेत्रीय संस्कृति और इतिहास की झलक मिलती है। यहाँ के मंदिरों में विशिष्ट वास्तुकला और धार्मिक मान्यताओं के संगम को देखा जा सकता है। प्रस्तुत हैं अल्मोड़ा जिले के कुछ प्रमुख मंदिरों का विवरण:
चितई के गोलू देवता - न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध गोलू देवता का यह मंदिर पूरे कुमाऊं में अत्यधिक मान्यता रखता है। इसे कत्यूरी राजा झालराई के पुत्र का मंदिर माना जाता है।
कटारमल का सूर्य मंदिर - कोणार्क के बाद यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर है, जो अद्वितीय स्थापत्य कला का उदाहरण है और सूर्य देवता को समर्पित है।
झांकर सेम मंदिर - यह नागवंशीय शासकों का प्रतीक माना जाता है और इसे देवदार वनों का रक्षक माना जाता है।
सोमेश्वर महादेव मंदिर - यह मंदिर प्राचीन दूध कुण्ड की मान्यता के लिए प्रसिद्ध है और शिवजी के पावन स्थल के रूप में माना जाता है।
द्वाराहाट मंदिर समूह - मध्यकाल में 'दोरा' के नाम से प्रसिद्ध, इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन मंदिर हैं जो कुमाऊं की समृद्ध संस्कृति और स्थापत्य को दर्शाते हैं।
रत्नेश्वर मंदिर - गोरखा काल में निर्मित यह मंदिर गोरखा स्थापत्य कला का एक अनूठा उदाहरण है।
कसार देवी मंदिर - काषय (कश्यप) पर्वत पर स्थित यह गुफा मंदिर देवी कात्यायनी को समर्पित है। यह स्थान पर्यटकों और साधकों के बीच एक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी प्रसिद्ध है।
उद्योत चन्द्रेश्वर मंदिर - 1690-91 में राजा उद्योत चंद द्वारा स्थापित इस मंदिर में क्षेत्रीय वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना देखा जा सकता है।
शारदा मठ - स्त्री सन्यासिनियों हेतु स्थापित यह मठ एक प्राचीन धार्मिक स्थल है।
रामकृष्ण कुटीर - विवेकानन्द कॉर्नर पर स्थित इस आश्रम की स्थापना 22 मई, 1916 को स्वामीजी के गुरूभाई तुरियानन्द द्वारा की गई थी।
डोल आश्रम - इस आश्रम की स्थापना महंत बाबा कल्याणदासजी महाराज ने की थी, जो साधना और साधकों के लिए एक उपयुक्त स्थान है।
रानीखेत के प्रमुख मंदिर - रानीखेत में स्थित प्रमुख मंदिरों में हैड़ाखान मंदिर, झूला देवी मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, कालिका मंदिर और शिव मंदिर शामिल हैं।
भिकियासैंण के मंदिर - इस क्षेत्र में निलेश्वर महादेव और रूद्रेश्वर महादेव मंदिर अत्यधिक पूजनीय हैं।
स्याल्दे में मंदिर - यहाँ पर वृद् केदार मंदिर, देघाटका देवी माता मंदिर, और पत्थर खोला का शिव मंदिर स्थित हैं।
सल्ट में प्रमुख मंदिर - सल्ट क्षेत्र में मनीला देवी, भौना देवी और राजा हरूहीत का मंदिर स्थित है।
सोमेश्वर के प्रमुख मंदिर - सोमनाथ मंदिर और बयाल बद्रीनाथ मंदिर यहाँ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं।
मनियान मंदिर समूह - इस मंदिर समूह में सती पद चिह्न, विभाण्डेश्वर, कचहरी देवाल, बद्रीनाथ मंदिर समूह और वनदेव मंदिर शामिल हैं।
भनोली के प्रमुख मंदिर - जागेश्वर मंदिर, डाण्डेश्वर मंदिर, नौ देवाल समूह, त्रिनेत्रेश्वर मंदिर, कुबेर मंदिर, नारायण काली मंदिर, हरज्यू मंदिर, और सिद्ध बाबा मंदिर यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
जैती के प्रमुख मंदिर - इस क्षेत्र में पानेश्वर मंदिर और मुडेश्वर महादेव मंदिर प्रमुख हैं।
चौखुटिया के प्रमुख मंदिर - अगनेरी मैयया मंदिर, चित्रेश्वर महादेव, महाकालेश्वर मंदिर, और सरस्वती मूर्ति यहाँ के प्रमुख आकर्षण हैं।
मासी के मंदिर - मासी में भूमिया मंदिर, सोमनाथेश्वर महादेव मंदिर, चूडाकर्ण महादेव मंदिर, और राम पादुका मंदिर स्थापित हैं।
ऊंटेश्वर मंदिर समूह - अल्मोड़ा के कनारा गाँव में ग्यारह मंदिरों का यह समूह धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
अल्मोड़ा मुख्यालय के प्रमुख मंदिर - उद्योतचन्द्रेश्वर मंदिर, त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर, चितई मंदिर, कसार देवी मंदिर, कटारमल सूर्य मंदिर, तुला रामेश्वर, लक्ष्मेश्वर, कपिलेश्वर और बिनसर महादेव मंदिर।
उद्योतचन्द्रेश्वर मंदिर - यह मंदिर 1690-91 में राजा उद्योत चंद द्वारा बनवाया गया था और यह क्षेत्रीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। शिव को समर्पित इस मंदिर में स्थानीय श्रद्धालुओं के बीच गहरी आस्था है।
त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर - देवी त्रिपुरा सुंदरी को समर्पित यह मंदिर भक्तों के बीच विशेष रूप से पूजनीय है और धार्मिक महत्त्व के साथ सुंदर स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है।
शै भैरव मंदिर - शै भैरव भगवान को समर्पित यह मंदिर स्थानीय धार्मिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण केंद्र है।
चितई गोलू देवता मंदिर - यह मंदिर न्याय के देवता गोलू देवता को समर्पित है और श्रद्धालु यहाँ आकर अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने की प्रार्थना करते हैं।
कसार देवी मंदिर - कश्यप पर्वत पर स्थित इस गुफा मंदिर को देवी कात्यायनी का निवास स्थान माना जाता है। यह मंदिर शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है और ध्यान-साधना के लिए भी लोकप्रिय है।
कटारमल सूर्य मंदिर - यह मंदिर अल्मोड़ा के पास स्थित है और कोणार्क के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर माना जाता है।
गैराड़ मंदिर - यह मंदिर स्थानीय देवता को समर्पित है और इसका वास्तु क्षेत्रीय परंपरा का अनूठा उदाहरण है।
तुला रामेश्वर मंदिर - इस मंदिर का महत्त्व शिव की आराधना में है और यह विशेष रूप से सावन के महीने में पूजा-अर्चना के लिए प्रसिद्ध है।
लक्ष्मेश्वर मंदिर - भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व है, और यह स्थानीय श्रद्धालुओं का पूजास्थल है।
कपिलेश्वर मंदिर - इस मंदिर का नाम कपिल मुनि के नाम पर रखा गया है और यह प्रकृति के सौंदर्य के बीच स्थित एक रमणीय स्थल है।
बिनसर महादेव मंदिर - यह मंदिर शांत वातावरण और प्राकृतिक सुंदरता के बीच स्थित है, जो भक्तों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है।
रामशिला मंदिर समूह - इस समूह में कई मंदिर शामिल हैं जो राम के विभिन्न रूपों को समर्पित हैं और धार्मिक पर्यटन के दृष्टिकोण से यह एक प्रमुख स्थल है।
खगमरा कोट मंदिर - यह प्राचीन मंदिर अपनी अनोखी वास्तुकला और स्थानीय मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है और क्षेत्र के धार्मिक इतिहास में इसका विशेष स्थान है।
अन्य प्रमुख मंदिर और आकर्षण
राम शिला मंदिर, नन्दा देवी मंदिर, पाताल देवी मंदिर और जागेश्वर मंदिर समूह धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों में गिने जाते हैं।
गोल्फ मैदान - गगास नदी के किनारे स्थित उपट नामक यह मैदान प्राचीन समय में "गर्गमुनि के आश्रम" के नाम से प्रसिद्ध था।
भालू डैम - 1903 में निर्मित इस कृत्रिम डैम को स्वर्णलता ताल के नाम से भी जाना जाता है।
चौबटिया-फलोद्यान का स्वर्ग
रानीखेत:
रानीखेत का प्राचीन नाम झूला देव था। यह स्थल कृत्यूरी राजा सुधारदेव की रानी पद्मिनी का रमणीय स्थल था, जिसके नाम पर इसका रानीखेत पड़ा। यह क्षेत्र न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, बल्कि यहाँ कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी स्थित हैं।
ताड़ीखेत
गांधीजी का आगमन:
1920 में महात्मा गांधी यहां आए थे। यहाँ गांधी कुटिया स्थित है, जो उनके ऐतिहासिक प्रवास का साक्षी है।उद्योग:
ताड़ीखेत में एक ड्रग फैक्ट्री है, जो क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।धार्मिक स्थल:
यहाँ गोलू देवता का मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, शीतलाखेत मंदिर, मनीला, नागदेव ताल, चिलियानौला एवं रानी झील जैसे दर्शनीय स्थल भी हैं, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
भिकियासैंण
भिकियासैंण गगास एवं रामगंगा नदी के तट पर स्थित है। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल है।
द्वाराहाट
द्वाराहाट को "मंदिरों का नगर" और "कुमाऊं का खजुराहो" भी कहा जाता है। यहाँ के मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण हैं।
विभाण्डेश्वर
यह द्वाराहाट के निकट स्थित है और इसे "उत्तर का काशी" कहा जाता है। यहाँ स्याल्दे-बिखौती का मेला आयोजित होता है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनता है।
दूनागिरी
- द्रोणांचल पर्वत:
यह पर्वत पुराणों में उल्लिखित है और कुमाऊँ का प्रसिद्ध सिद्धपीठ वैष्णवी शक्ति पीठ है, जिसका निर्माण 1183 में हुआ था।
मृत्युंजय मंदिर समूह
यह मंदिर समूह नागर शिखर शैली में निर्मित है और धार्मिक आस्था का केंद्र है।
लखनपुर का किला
इतिहास:
कत्यूरी वंश की पुनर्रथापना के अवसर पर बैराटपट्टनम किले में यहां के लक्ष्मणपाल देव को "परम महारक महाधिराज" की उपाधि से विभूषित किया गया। उनके नाम पर ही किले का नाम लखनपुर पड़ा, जो 13वीं शताब्दी का है।मंदिर समूह:
मनियान मंदिर समूह में सात मंदिरों का समूह है, जिनमें जैन तीर्थकरों की मूर्तियां हैं। कुटुम्बरी मंदिर समूह भी 1960 तक अस्तित्व में था और आज भी ऐतिहासिक महत्व रखता है।
खुमाड़ का शहीद मेला: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण
परिचय
खुमाड़ का शहीद मेला कुमाऊं क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मेला है, जो प्रतिवर्ष आयोजित होता है। इस मेले का संबंध 5 सितम्बर, 1942 को हुई एक दुखद घटना से है, जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उठे आवाज को दबाने के लिए गोलीबारी का आदेश दिया गया था।
शहीदों की शहादत
इस घटना में खीमदेव, गंगाराम, और गंगा सिंह चूडामणी जैसे बहादुर लोग शहीद हुए थे। यह घटना कुमाऊं के इतिहास में एक काले दिन के रूप में जानी जाती है, और इसे "कुमाऊं का जलियावाला" भी कहा जाता है। यह मेला उन शहीदों की याद में आयोजित किया जाता है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी।
चौखुटिया: कुमाऊं का कश्मीर
चौखुटिया, जिसे गेवाड़ घाटी के नाम से भी जाना जाता है, कुमाऊं क्षेत्र में स्थित एक सुंदर तहसील है। इसे नवरंगी गेवाड़ या रंगीलो गेवाड़ भी कहा जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली इसे "कुमाऊं का कश्मीर" का उपाधि देती है। चौखुटिया का क्षेत्र विविधताओं से भरा हुआ है, जहाँ पर्यटक हर साल आते हैं।
जिले के प्रमुख मेले
अल्मोड़ा का नन्दादेवी मेला
- यह मेला धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का है और हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
जागेश्वर का श्रावणी मेला
- यह मेला पूरे श्रावण मास में आयोजित होता है और यहाँ भक्तों की भारी भीड़ जुटती है।
सोमनाथ मेला
- यह मेला रामगंगा तट पर मई माह में आयोजित होता है, जिसमें बैलों का क्रय-विक्रय होता है। यह कुमाऊं का एकमात्र ऐसा मेला है।
तुल कौतिक
- पहली रात्रि को सल्टिया मेला लगता है, जो देखने योग्य होता है।
नैथड़ा का मेला
- यह मेला गेवाड़ घाटी, चौखुटिया में नैथाना मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की पहली गते को लगता है।
देघाट का मेला
- स्याल्दे स्थित देघाट में प्रतिवर्ष चैत्राष्टमी को मेला लगता है, जो विनोदा नदी के तट पर आयोजित होता है।
अग्नेरी का मेला
- यह मेला चौखुटिया बाजार के पास मां अग्नेरी के मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्राष्टमी को लगता है।
दूनागिरी का मेला
- दूनागिरी पर्वत के निकट स्थित यह मेला भी भव्यता से मनाया जाता है।
सैण की शिवरात
- यह मेला धार्मिक महत्व रखता है और भक्तों के लिए विशेष होता है।
मानिला का मेला
- यह मेला क्षेत्रीय सांस्कृतिक उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं
अल्मोड़ा क्षेत्र में विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का योगदान हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। ये पत्र-पत्रिकाएं न केवल समाचारों को प्रसारित करती हैं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक मुद्दों पर भी विचार प्रस्तुत करती हैं। आइए जानते हैं अल्मोड़ा के प्रमुख समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के बारे में:
1. अल्मोड़ा अखबार (1871-1918)
- संस्थापक: बुद्धि बल्लभ पंत
- विशेषता: अल्मोड़ा अखबार ने अल्मोड़ा क्षेत्र के सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उजागर किया। इसके सम्पादक बुद्धि बल्लभ पंत थे, जिन्होंने इस अखबार के माध्यम से क्षेत्र की समस्याओं को उठाया।
2. शक्ति (1918)
- संस्थापक: बद्रीदत्त पाण्डे
- विशेषता: अल्मोड़ा अखबार के बंद होने के बाद 18 अक्टूबर, 1918 को बद्रीदत्त पाण्डे द्वारा स्थापित शक्ति ने क्षेत्रीय समाचारों को प्रकाशित किया।
3. कुमाऊँ कुमुद (1922)
- संस्थापक: बसन्त कुमार जोशी
- विशेषता: यह पत्रिका क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को उजागर करने का कार्य करती है।
4. स्वाधीन प्रजा (1930)
- संस्थापक: पुष्प मोहन जोशी
- विशेषता: यह पत्रिका स्वतंत्रता संग्राम के समय में राजनीतिक जागरूकता फैलाने का कार्य करती थी।
5. समता (1934)
- संस्थापक: मुंशी हरि प्रसाद टम्टा
- विशेषता: यह पत्रिका सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दों पर विचार करती है।
6. हिलॉस (1978)
- संस्थापक: हयात सिंह रावत
- विशेषता: यह पत्रिका पहाड़ी जीवन और संस्कृति को प्रस्तुत करने के लिए जानी जाती है।
7. अल्मोड़ा समाचार (1980)
- संस्थापक: जय दत्त पंत
- विशेषता: यह समाचार पत्र क्षेत्र की प्रमुख घटनाओं और मुद्दों को प्राथमिकता देता है।
8. पुरवासी (1980)
- संस्थापक: लक्ष्मी भण्डार, हुक्का क्लब
- विशेषता: यह वार्षिक पत्रिका सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित है।
9. ब्याण तार (1990)
- संस्थापक: अनिल भोज एवं दीपक कार्की
- विशेषता: यह पत्रिका विभिन्न समाचारों और लेखों के माध्यम से पाठकों को सूचित करती है।
10. अल्मोड़ा टाइम्स (1987)
- विशेषता: यह समाचार पत्र क्षेत्रीय समाचारों को तेजी से प्रसारित करने के लिए प्रसिद्ध है।
11. द्रोणाचल टाइम्स
- संस्थापक: एडवोकेट उदय किरौला
- विशेषता: यह एक अल्पजीवी पत्र था, लेकिन इसके प्रकाशन ने क्षेत्रीय पत्रकारिता में योगदान दिया।
12. प्रजाबन्धु (1947)
- संस्थापक: जय दत्त वैला
- विशेषता: यह पत्रिका स्वतंत्रता के बाद के दौर में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर विचार करती है।
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