नैनीताल जिले के मुख्य तथ्य | Key facts of Nainital district
जिलाधिकारी | श्री धीराज सिंह गर्बियाल |
स्थापना | 1891 |
ऊँचाई | 2084 मीटर |
मुख्यालय | नैनीताल |
क्षेत्रफल | 4,251 वर्ग कि.मी. |
कुल जनसंख्या | 9,54,605 |
साक्षरता दर | 83.88% |
जनसंख्या घनत्व | 225 प्रति वर्ग किलोमीटर |
लिंगानुपात | 925 |
भाषा | हिन्दी, कुमाऊँनी |
विधानसभा क्षेत्र | 6 लालकुआँ, हलद्वानी, नैनीताल (अनु. जाति), रामनगर, भीमताल, कालाढुंगी |
तहसील | 9 नैनीताल, हलद्वानी, रामनगर, धारी, कुश्या कटौली, कालाढुंगी, बेतालघाट, लालकुआँ, ओकलाकाण्डा |
ब्लाक | 8 हलद्वानी, भीमताल, रामनगर, कोटाबाग, धारी, बेतालघाट, रामगढ, ओखलकाण्डा |
चिकित्सालय | बी.डी.पाण्डे पुरूष चिकित्सालय मल्लीताल, नैनीताल फोन : 235012 बी.डी.पाण्डे महिला चिकित्सालय मल्लीताल, नैनीताल फोन : 235986 सुशीला तिवाडी चिकित्सालय रामपुर रोड, हल्द्वानी फोन : 255255 सोबन सिंह जीना बेस चिकित्सालय हल्द्वानी फोन : 251088 |
डाक | डाक घर लालकुऑ – 262402 डाक घर गरमपानी- 263135 डाक घर ओखलकाण्डा – 263157 डाक घर प्रधान डाक घर, मल्लीताल, नैनीताल -263001 फोन : 236199 डाक घर भीमताल – 263136 डाक घर भवाली – 263132 डाक घर कालाढूंगी – 263140 डाक घर बेतालघाट – 263134 डाक घर रामनगर – 244715 डाक घर मुख्य डाकघर, हल्द्वानी फोन : 250144 डाक घर तल्लीताल, नैनीताल फोन : 235704 |
नगर निगम | हल्द्वानी वैबसाईट – http://nagarnigamhaldwani.in फोन : 220035 |
नगर पंचायत | नगर पंचायत लालकुऑ नगर पंचायत भीमताल नगर पंचायत कालाढूंगी |
नगर पालिका | नगर पालिका नगर पालिका परिषद, नैनीताल फोन : 235153 नगर पालिका रामनगर नगर पालिका भवाली |
विश्वविद्यालय | उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय ट्रांस्पोर्ट नगर के पीछे, हल्द्वानी उत्तराखण्ड राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय भवाली, नैनीताल कुमायूं विश्वविद्यालय स्लीपी होलो मल्लीताल, नैनीताल फोन : 236856 |
महाविद्यालय | एम.बी.राजकीय महाविद्यालय नैनीताल रोड, हल्द्वानी फोन : 222017 देब सिंह बिष्ट संघटक महाविद्यालय डी.एस.बी. परिसर, नैनीताल फोन : 235562 राजकीय महाविद्यालय दोषापानी चौखुटा राजकीय महाविद्यालय पतलोट राजकीय महाविद्यालय बेतालघाट राजकीय महाविद्यालय मालधनचौड राजकीय महाविद्यालय हल्दूचौड राजकीय महाविद्यालय कोटाबाग राजकीय महाविद्यालय रामनगर फोन : 251326 राजकीय महिला महाविद्यालय नवाबी रोड हल्द्वानी फोन : 272996 राजकीय मेडिकल कालेज रामपुर रोड, हल्द्वानी फोन : 255255 |
हेल्पलाइन नंबर | महिला सहायता – 1090 आपदा प्रबंधन – 1077 |
कुल पुलिस स्टेशन | 15 मल्लीताल तल्लीताल मुक्तेश्वर भवाली भीमताल बेतालघाट रामनगर कलढूंगी हल्द्वानी मुखानी काठगोदाम बनभूलपुरा लालकुऑ चोरगलिया जी आर पी |
राष्ट्रीय उद्यान | जिम कार्बेट नेशनल पार्क |
पिन कोड़ | 263001 |
टेलीफोन कोड़ | 05942 |
वाहन पंजीकरण | UK-04 |
Website | http://nainital.nic.in/ |
नैनीताल जिले की ऐतिहासिक व पौराणिक झलक | Historical and mythological glimpse of Nainital district
पौराणिक तथ्य | Mythological facts
कहते हैं किसी भी जगह के वर्तमान को समझने से पहले उस जगह के इतिहास को जान लेना आवश्यक होता है। इसलिए नैनीताल की इस वर्चुअल यात्रा में जाने से पहले हम नैनीताल के पौराणिक व आधुनिक इतिहास के बारे में कुछ जानेगें ताकि नैनीताल जिले (Nainital district) के वर्तमान परिदृश्य को समझने में हमें कठिनाई न हो।
हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार नैनीताल जिले का मुख्य आकर्षण नैनीताल झील के पास स्थापित नैना देवी (माता पार्वती) का मंदिर है। झील के बनने के पीछे ऐसी मान्यता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री “उमा” का विवाह भगवान शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे। एक बार दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ करवाया जिसमे कि उन्होंने सभी देवताओ को निमंत्रण दिया परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमंत्रण नहीं दिया। मगर देवी उमा हठ कर यज्ञ में पहुँच जाती है। जब देवी उमा, हरिद्वार स्थित कनखल में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना अपमान होते हुए देखती है तो देवी उमा अत्यंत दुखी हो जाती है और यज्ञ के हवनकुंड में कूद पड़ती है।
जब भगवान शिव को पता चलता है कि देवी उमा सती (मृत्यु प्राप्त) हो गई है तो उनके क्रोध की सीमा नहीं रहती है। भगवान शिव अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर देते है। देवी उमा यानी सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शिव का वैराग्य उमड़ पड़ता है और भगवान शिव सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रखकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर देते हैं।
लोकमान्यता है कि इस स्थान पर पार्वती के नयन गिरे तो नयन के आकार की झील बन गई। अतः जिस स्थान पर सती के नयन गिरे, वहीं पर नैना देवी के रूप में माँ नैना देवी अर्थात नंदा देवी का भव्य मंदिर स्थापित है। एक अन्य मान्यता के अनुसार अत्रि, पुलस्त्य व पुलह ऋषि ने मानसरोवर जाते समय इस सरोवर का निर्माण किया। मानसखण्ड में भी त्रिऋषि सरोवर का उल्लेख मिलता है। धार्मिक मान्यता के इस क्षेत्र में 60 से अधिक झील व तालों का उल्लेख भी लोकमानस में वर्णित किया जाता रहा है।
स्कंद पुराण के मानसखण्ड में भी इसका उल्लेख मिलता है। इस स्थान को त्रि-ऋषि सरोवर कहा गया है। कहा जाता है कि इस स्थान पर तीन ऋषि- अत्री, पुलस्थ्य और पुलाहा ने तपस्या की थी। कहा ये भी जाता है कि जब उन्हें कहीं पानी नहीं मिला तो उन्होंने यहाँ पर एक बड़ा गड्डा बनाया। इसके बाद उसमें मानसरोवर का जल भर दिया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस झील में आज भी नहाने से मानसरोवर जैसा पुण्य मिलता है।
ऐतिहासिक तथ्य | Historical facts
पी. बैरन द्वारा नैनीताल की खोज | Discovery of Nainital by P. Baron
ऐसा माना जाता है कि नैनीताल की खोज पीटर बैरन ने की थी। लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है। दरअसल बैरन से पहले साल 1823 में ट्रेल यहाँ आये थे। वर्ष 1815 में कुमाऊँ-गढ़वाल पर कब्जे व आधिपत्य के पश्चात 8 मई 1815 को कुमाऊँ मण्डल के आयुक्त के रूप में ई. गार्डिन को नियुक्त किया गया। कुमाऊँ के दूसरे आयुक्त के रूप में जी.जे. ट्रेल को वर्ष 1817 में कुमाऊँ के दूसरे राजस्व निपटान के संचालन की जिम्मेदारी दी गई। ट्रेल नैनीताल की यात्रा करने वाले पहले यूरोपीय थे। ट्रेल नैनीताल की इस अनछुई सुंदरता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस जगह की धार्मिक पवित्रता को देखते हुए अपनी यात्रा को ज्यादा प्रचारित नहीं किया ताकि हिमालय में स्थित इस खूबसूरत जन्नत को किसी प्रकार का ग्रहण न लगे।
पीटर बैरन सन् 1839 ई. के आसपास उत्तरप्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में चीनी का एक व्यापारी था। पाहड़ों में घूमने के शौकीन पीटर बैरन ने केदारनाथ व बद्रीनाथ की यात्रा भी की हुई थी। अपनी घुमन्तु जिज्ञासावश वह उत्तरप्रदेश से सटे पहाड़ी ढालों पर मखमखी बुग्यालों और ऊँचाई पर स्थित पर्वतों को निहारना चाहता था। एक रोज पीटर टेलर व उसका एक कैप्टन मित्र खैरना नामक स्थान पर रूके हुए थे।
बैरन को प्राकृतिक सौन्दर्य को देखने का शौक तो था ही इसलिए उन्होंने सहसा एक स्थानीय व्यक्ति से आसपास के पर्वतों की जानकारी जुटानी चाही। स्थानीय व्यक्ति ने पीटर बैरन को बताया कि जो सामने पर्वत है उसे स्थानीय लोग ‘शेर का डाण्डा’ नाम से जानते हैं और यह बेहद खूबसूरत भी है। साथ ही उस वक्ति के द्वारा बैरन को वर्तमान नैनीताल झील के बारे में बताते हुए कहा कि इसी पर्वत के पीछे एक बेहद खूबसूरत ताल भी है। जहाँ विरले ही लोग जाते हैं।
ये सब सुनकर बैरन की खुशी का ठिकाना न रहा। मानो उसे वो सब मिल गया हो जिसकी तलाश उसे काफी समय से थी। फिर क्या था बैरन ने उस व्यक्ति से कहा कि वो उसे वहाँ तक पहुँचा दे। लेकिन उस वक्ति ने साफ मना कर दिया। क्योंकि ‘शेर का डाण्डा’ और नैनीताल झील तक पहुँचने वाले रास्ता घनघोर जंगल से होकर जाता था जहाँ जंगली जानवरों का खतरा था।
जिद्दी और पक्के इरादे का पर्वतारोही बैरन ने हार नहीं मानी। उसने गाँव के अन्य लोगों से संपर्क किया और वहाँ पहुँचने के रास्ते के बारे में पूछा। अंत में कुछ लोग बैरन को वहाँ ले चलने के लिए राजी हो ही गए। आखिर 2406 मी.की ऊँचाई वाले ‘शेर का डाण्डा’ पर्वत को पार कर बैरन उस झील तक पहुँच ही गया जिसे आज सब नैनीताल या नैनी झील के नाम से जानते हैं।
झील के पास पहुँचकर बैरन मानो खो सा गया। उसे नैनीताल झील की खूबसूरती पर यकीन ही नहीं हुआ। काफी देर इस झील व इसके आसपास के विहंगम दृश्यों को निहारने के बाद उसने तय किया कि वह अब शाहजहाँपुर की गर्मी को छोड़कर नैनीताल की इन वादियों में ही रहेगा।
अंग्रेज अफसर बैरन पहले से ही हिमालय में अपनी यात्रा वृतांत ‘पिलग्रिम’ के माध्यम से दुनिया तक पहुँचाता आ रहा था लेकिन इस बार उसके पास दुनिया को बताने के लिए बहुत कुछ था और वो भी ऐसा जो पहले कभी किसी ने ना देखा हो!
बैरन द्वारा नैनीताल को खरीदने का प्रयास व थोकदार को धमकाना | Baron tries to buy Nainital and threatens the wholesaler
पहली बार वर्ष 1841 की 24 नवम्बर को कलकत्ता के ‘इंगलिश मैन’ नामक अखबार में नैनीताल की खोज की खबर छपी थी। इसके बाद विभिन्न अखबारों सहित आगरा अखबार में भी इसके बारे खबर दी गई। इसके बाद नैनीताल को जानने व समझने का प्रयास जारी रहा एवं कुछ समय बाद एक किताब 1844 में नैनीताल के खूबसूरती व इसकी भौगोलिक परिस्थितियों के ऊपर छपकर आ गई। नैनीताल एवं इसके आसपास की हिमाच्छादित पर्वत चोटियों एवं खूबसूरत तालों की वजह से अंग्रेज अफसर बैरन अत्यधिक प्रभावित हुए थे। अतः उन्होंने नैनीताल झील के आसपास का संपूर्ण क्षेत्र खरीदने का मन बनाया।
नैनीताल व इसके आसपास की जमीन थोकदार नूर सिंह के पास थी। वही इस जमीन का मालिक था। अतः मालिक का पता चलने के बाद बैरन स्वंय नूर सिंह के पास गया और इस ताल व जमीन को उसे बेचने के लिए प्रस्ताव रखा। काफी ऊँची कीमत सुनकर पहले तो थोकदार तैयार हो गया पर कुछ समय बाद पता नहीं क्यों उसने इस जमीन को बेचने से इंकार कर दिया। यह बात बैरन को पसंद नहीं आई। वह तो हर कीमत पर बस इसे हासिल करना चाहता था।
थोकदार नूरसिंह के मना करने के बाद बैरन ने जमीन अपने नाम करवाने के लिए एक योजना बनाई। उसने थोकदार को बहला-फुसलाकर अपने साथ अपनी किश्ती पर बैठाकर नैनी झील में ले गया। जब किश्ती झील के बीचों बीच पहुँच गई तो बैरन ने थोकदार को धमकाना शुरू किया। बैरन ने थोकदार से कहा कि मैं इस जमीन को किसी भी कीमत में खरीद कर ही रहूँगा और तुम्हें इसे मुझे बेचना ही होगा। अतः तुम चाहे जितनी कीमत माँग लो पर तुम्हें ये जमीन मुझे बेचनी ही होगी और अगर तुमने मुझे इसे बेचने से मना किया तो मैं तुम्हें इस ताल में डुबा दूँगा।
बैरन ने स्वंय इस जगह की खोज का विवरण देते हुए लिखा है कि डूबने के डर से थोकदार ने स्टाम्प पर दस्तखत कर दिये उर यहा सारा क्षेत्र उसके नाम कर दिया। इसके बाद बैरन ने वो किया जो वो करना चाहता था। उसने नैनीताल शहर बसाना शुरू किया। सबसे पहले बैरन ने इस क्षेत्र में पिलग्रिम नामक कॉटेज बनवाए। बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इस सारे क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया। सन् 1842 ई. के बाद से ही नैनीताल एक ऐसा नगर बना कि सम्पूर्ण देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी सुन्दरता की धाक जम गयी।
नैनीताल में पर्यटकों पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक सन् 1847 तक यह एक लोकप्रिय पहाड़ी रिज़ॉर्ट बन गया था। 3 अक्टूबर 1850 को, नैनीताल नगर निगम का औपचारिक रूप से गठन हुआ। यह उत्तर पश्चिमी प्रान्त का दूसरा नगर बोर्ड था। इस शहर के निर्माण को गति प्रदान करने के लिए प्रशासन ने अल्मोडा के धनी साह समुदाय को जमीन सौंप दी थी, इस शर्त पर कि वे जमीन पर घरों का निर्माण करेंगे। सन् 1862 में नैनीताल उत्तरी पश्चिमी प्रान्त का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय बन गया।
गर्मियों की राजधानी बनाने के बाद शहर में शानदार बंगलों के विकास और विपणन क्षेत्रों, विश्रामगृहों, मनोरंजन केंद्रों, क्लब आदि जैसी सुविधाओं के निर्माण के साथ सचिवालय और अन्य प्रशासनिक इकाइयों का निर्माण हुआ। यह अंग्रेजों के लिए शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी बन गया, जो अपने बच्चों को बेहतर हवा में और मैदानी इलाकों की असुविधाओं से दूर शिक्षित करना चाहते थे।
आजादी के पश्चात उत्तर प्रदेश के गवर्नर का ग्रीष्मकालीन निवास नैनीताल मेंं ही हुआ करता था। छः मास के लिए उत्तर प्रदेश के सभी सचिवालय नैनीताल जाते थे। अभी भी उत्तराखण्ड का राजभवन एवं उच्च न्यायालय नैनीताल में स्थित है।
वर्ष 1867 और 1880 के भीषण भूंकप ने नैनीताल को हिला कर रख दिया। जिसके कारण यहाँ भारी जानमाल के साथ इसके आसपास की भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन आया। इस भूकंप के कारण आए भूस्खलन की वजह से नैनीताल का एक बड़ा हिस्सा झील में समा गया। वर्तमान खेल मैदान इसी भूकंप की देन है।
इसके बाद अंग्रेजों ने इस शहर को सुरक्षित रखने के लिये 64 छोटे- बड़े नालों का निर्माण करवाया। इतिहासकार अजय रावत बताते हैं कि इस शहर को बचाने के लिये इन नालों का महत्वपूर्ण योगदान है जिनको नैनीताल की धमनियाँ कहा जाता है।
1882 में काठगोदाम तक रेल लाइन तथा 1891 में जिला मुख्यालय बन जाने के बाद इस झील नगरी का तेजी से विकास हुआ।
सन् 1900 में नैनीताल में मल्लीताल में राजभवन या सचिवालय भवन की स्थापना की गई थी, जिसका 1962 से उ. प्र. की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में उपयोग किया जाता था। राज्य निर्माण के बाद 9 नवम्बर 2000 से इसी भवन में उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय को शिफ्ट किया गया है।
नैनीताल जिले का प्राकृतिक सौंदर्य | Natural beauty of Nainital district
आखिर वो पल ही गया जिसका आप सबको बेसब्री से इंतजार था। जी हाँ, अब हम बात करेगें नैनीताल के अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में। हम सभी कभी न कभी नैनीताल जरूर गए होंगे और जो नहीं गए हैं वो इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद नैनीताल की प्राकृतिक विस्मयकारी तथा सम्मोहित करने वाली सुन्दररता को देखने जरूर जाऐंगे।
नैनीताल दो तरह के भू-भागों में बटाँ हुआ है जिसके एक ओर पहाड तथा दूसरी ओर तराई भावर आते हैं। बात अगर नैनीताल शहर की करें तो यह जनपद नैनीताल का मुख्यालय है। साथ ही यह उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं मण्डल का मण्डल मुख्यालय भी है। उत्तराखण्ड का उच्च न्यायालय भी नैनीताल में ही अवस्थित है। इस लिहाज से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य में सराबोर कर देने वाला उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र का मुख्य पर्यटन स्थल नैनीताल, जिसे झीलों का शहर भी कहा जाता है, एक ऐसी जगह है जो कि ऊँचें पहाड़ों पर स्थित है और हर तरफ से झीलों से घिरा है। मंत्रमुग्ध कर देने वाले बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच स्थित नैनीताल वो जगह है जो शायद ही कहीं और स्थित हो।
आज नैनीताल देश का बेहद लोकप्रिय हिलस्टेशन है। झिलमिलाती झील के किनारे सैलानियों की चहल-कदमी उनके चेहरों पर आनन्द और चंचलता के मिश्रित भाव सहज ही झलकते हैं। झील के एक छोर से दूसरे छोर तक फैली मालरोड पर अत्याधुनिक परिवेश में नैनीताल उल्लास और उमंग से सैलानियों को गुदगुदाता है। झील में जलतरंगों की तरह ही पर्यटकों के मन की उमंग देखते ही बनती है। झील का सबसे बड़ा आकर्षण है बोटिंग। यहाँ मालरोड पर रिक्शे की सवारी भी दिलचस्प है। झील के दूसरी ओर ठंडी सड़क है जो अपेक्षाकृत शान्त है।
गर्मियों में स्थानीय लोग और पर्यटक ठंडी सड़क में सुबह-शाम की सैर कर लुत्फ उठाते हैं। नैनापीक, नैनीताल की सबसे ऊँची पहाड़ी है। शहर से लगभग 5 किमी० दूर 2610 मीटर की ऊँचाई पर इस स्थान पर पहुँचाने वाला मार्ग हाइकिंग के लिए लोकप्रिय है। यहाँ पहाड़ी से नैनीताल झील का नजारा तथा दूसरी ओर सुन्दर घाटियों व घने जंगलों के दृश्य नयनाभिराम लगते हैं। नैनीताल के ‘स्नोव्यूह‘ स्थल से लगभग 250 किमी० की विस्तृत हिमशृंखला नजर आती है। घोड़ों और रोपवे के माध्यम से भी यहाँ पहुँचकर सैलानी आनन्दित होते हैं।
शान्त प्रकृति के साथ समय बिताने वाले सैलानियो की पंसदीदा जगह किलबरी नैनीताल से 12 किमी० दूर सघन वृक्षों के मध्य है। हिमशृंखलाओं की दृश्यावली तथा तितलियों व पक्षियों का विचरण मनमोहक है। जंगलों के आस-पास गुजरते पहाड़ी रास्तों पर चलना प्रकृति प्रेमियों की पसन्द है। नैनीताल से 4 किलोमीटर की दूरी पर 2118 मीटर की ऊँचाई पर लैंड्स एंड स्थान से सीढ़ीनुमा पहाड़ी खेत और हरियाली लुभावनी नजर आती है। नैनीताल से लगभग 5 किमी० की दूरी पर नैनीताल-रामनगर मार्ग पर एक खूबसूरत ताल के किनारे खुरपाताल गाँव भी पर्यटकों को आकर्षित करता है। कुछ पर्यटक दिन भर नैनीताल में चहलकदमी करने के बाद रात्रि विश्राम के लिए इस स्थान पर आने लगे हैं।
नैनीताल में पर्यटकों के लिए “लेक टुअर” नाम से पैकेज टुअर संचालित किये जाते हैं। भीमताल, नौकुचियाताल और सातताल की मोहक पहाड़ियों के मध्य सुन्दरता बिखेरती झीलों का अद्भुत आनन्द भी इस यात्रा में मिलता है। नैनीताल यों तो आधुनिक हिलस्टेशनों की तरह ही सैलानियों को खरीदारी के लिए आकर्षित करता है लेकिन नैनीताल की रंगीन डिजाइनर व खुशबूदार मोमबत्तियाँ खूब प्रसिद्ध हैं।
स्थानीय गर्म एवं ऊनी कपड़े जैसे स्वेटर, शॉल, जैकेट, जुराबें, दस्ताने, टोपी सैलानियों द्वारा खूब खरीदे जाते हैं। इस क्षेत्र में उपलब्ध फल-फूलों के खाद्य व पेय पदार्थ जूस, चटनी जैसे उत्पाद भी लोकप्रिय हैं। मालरोड स्थित आकर्षक दुकानों और स्थानीय भोटिया बाजार में पर्यटक शॉपिंग का लुत्फ लेते देखे जा सकते हैं। हिमाद्रि, कुमाऊँ वूलन्स, हिमजोली, दि पहाड़ी स्टोर, कुमाऊँ मंडल विकास निगम के विक्रय केन्द्र के अतिरिक्त यहाँ विभिन्न दुकानों और अनेक संस्थाओं व संगठनों द्वारा संचालित प्रतिष्ठानों में स्थानीय उत्पाद उपलब्ध हैं। काठगोदाम-नैनीताल मार्ग एवं नैनीताल से रामनगर मार्ग पर स्थान-स्थान पर लकड़ियों की बनी आकर्षक आकृतियाँ (ड्रिफ्ट वुड) की छोटी-छोटी दुकानें भी सैलानियों को खरीदारी के लिए खूब लुभाती हैं।
वर्तमान में नैनीताल नगर भारत के प्रमुख नगरों से जुड़ा हुआ है। उत्तर-पूर्व रेलवे स्टेशन काठगोदाम से नैनीताल 35 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। आगरा, लखनऊ और बरेली को काठगोदाम से सीधे रेल जाती है। हवाई-जहाज का केन्द्र पन्तनगर है। नैनीताल से पन्तनगर की दूरी 60 कि. मी. है। दिल्ली से यहाँ के लिए हवाई यात्रा होती रहती है।
नैनीताल में पर्यटकों, सैलानियों, पदारोहियों और पर्वतारोहियों के अलावा हजारों पर्यटक यहाँ धार्मिक यात्रा पर भी आते हैं। ‘नैनादेवी’ के दर्शन करने और उस देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने की अभिलाषा से यहाँ भारी संख्या में लोग आते हैं।
नैनीताल में आयोजित साहसिक खेल | Adventure Sports Held in Nainital
देवभूमि उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ मण्डल का मुख्यालय नैनीताल, प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ साहसिक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध है। नैनीताल पैराग्लाइडिंग के लिए देशभर में जाना जाता है। यहाँ पर आने वाले पर्यटक अनुभवी पैरासेलरों की मदद से इस साहसी खेल का अनुभव प्राप्त कर सकते है। जिले के विभिन्न स्थानों पर कई पैराग्लिडिंग केंद्र उपलब्ध हैं। उनमें से ज्यादातर भीमताल-जंगलियागॉंव मार्ग पर पाण्डे गॉंव में स्थित हैं। साहसी खेलों में हॉटबुलूनिंग एक अन्य आकर्षण है। नैनीताल से सटे हुए सूखाताल में हॉटबैलूनिंग शिविर आयोजित किए जाते हैं।
हर साल राज भवन के गोल्फ कोर्स में गोल्फ़ टूर्नामेंट आयोजित किया जाता है। इसके अलावा समय-समय पर हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट, मुक्केबाजी टूर्नामेंट फ्लैट्स, नैनीताल में आयोजित किये जाते हैं। नैनीताल में नैनीताल पर्वतारोहण क्लब, पर्वतारोहण और चट्टान पर चढ़ने के प्रशिक्षण देने के क्षेत्र में अग्रणी संस्था है।
गर्मियों के दौरान नैनी झील में भिन्न प्रकार की तैराकी प्रतियोगितायें आयोजित की जाती हैं । इसके अलावा नैनी झील में क्याकिंग एवं कैनोइंग प्रतियोगितायें भी आयोजित की जाती हैं।
नैनीताल जिले के मुख्य धार्मिक स्थल | Main religious places of Nainital district
कैंची धाम | Kainchi Dham
कैंची धाम नैनीताल–अल्मोडा मार्ग पर नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर एवं भवाली से 9 किलोमीटर पर अवस्थित है। भगवान श्री हनुमान के परम भक्ति नीब करौरी बाबा द्वारा सन 1962 में प्रारंभ हुआ कैंची धाम आश्रम, श्री हनुमान जी को समर्पित अत्यंत पवीत्र तीर्थ है। इस आधुनिक तीर्थ स्थल पर बाबा नीब करौली महाराज का आश्रम है। प्रत्येक वर्ष की 15 जून को यहाँ पर बहुत बडे मेले का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश के श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस स्थान का नाम कैंची मोटर मार्ग के दो तीव्र मोडों के कारण रखा गया है। कहते हैं। गोस्वामी तुलसी दास जी के बाद कलयुग मे श्री महावीर हनुमान ने नीब करौरी बाबा को ही प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे। कैंची धाम कोसी नदी के किनारे बना हुआ है।
हनुमान गढ़ी | Hanuman Garhi
नैनीताल जिले में स्थित हनुमान जी महाराज को समर्पित हनुमान गढ़ी का यह सुन्दर मंदिर बाबा नीम करौली के आदेशानुसार निर्मित हुआ था। यह यहाँ का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आस्था का केंद्र है। हनुमान गढ़ी के इस मंदिर से साँझ में सूर्यास्त का अत्यन्त मनोहर दृश्य प्रस्तुत दिखाई देता है। जिसे देख यहाँ आने वाले भक्त भाव शून्य हो जाते हैं। नैनीताल शहर से मात्र 3.5 किलोमीटर की दूरी पर इस हनुमान जी के इस पवित्र धाम का निर्माण वर्ष 1950 में हुआ। हनुमान जी के साथ-साथ यहाँ भगवान राम और शिव के मंदिर भी हैं। हनुमानगढ़ी के पास ही एक बड़ी वेद्यशाला है। इस वेद्यशाला में नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता है। राष्ट्र की यह अत्यन्त उपयोगी संस्था है। इस पहाड़ी की दूसरी तरफ शीतला देवी मंदिर और लीला शाह बापू के आश्रम हैं।
नैना देवी मंदिर | Naina Devi Temple
कहा जाता है कि इस जगह देवी सती के नेत्र गिरे थे इसलिए इस मंदिर का नाम नैना देवी रखा गया। हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थलों में इसे भी शामिल किया गया है। यहाँ मौजूद पीपल का पेड़ शताब्दियों से लगा हुआ है जो लोगों में आकर्षण का केंद्र है। आप यहाँ आकर भक्ति में लीन हो सकते हैं। पहले मंदिर तक पहुँचने के लिए पैदल यात्रा करनी पड़ती थी पर अब यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उड़नखटोलों की व्यवस्था की गई है ताकि श्रद्धालुओं को मुश्किल का सामना न करना पड़े।
गर्जिया देवी मंदिर | Girija Devi Temple
नैनीताल जिले में कोसी नदी के बीचो-बीच एक छोटे से टापू के आकार की पहाड़ी में स्थित गर्जिया देवी मंदिर अत्यंत खूबसूरत एंव रहस्यमयी मंदिर है। यह मंदिर रानीखेत मार्ग पर रामनगर से 10 किमी की दूरी पर स्थित है। गर्जिया देवी मंदिर के पास ही महर्षि बाल्मिकी आश्रम के-भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं। गर्जिया के पास स्थित ढिकुली में कत्यूरियों की राजधानी थी। ढिकुली से बौद्धकालीन मूर्तियाँ भी यहाँ पाई गई हैं। एक बड़ी चट्टान शिखर पर गर्जिया देवी मंदिर माँ दुर्गा देवी को समर्पित है। मंदिर में पहुँचने के लिए बड़ी संख्या में संकीर्ण सीढ़ियों पर चढ़ना होता है।
नैनीताल जिले के मुख्य पर्यटक स्थल | Main tourist places of Nainital district
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क | Jim Corbett National Park
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क नैनीताल जिले का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र है। यह उत्तराखण्ड का एकमात्र ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है जहाँ संपूर्ण भारत के साथ-साथ पूरे विश्व से लोग वन्यजीवन का दीदार करने आते हैं। जैव विविधता से भरपूर इस राष्ट्रीय उद्यान के बारे में आप हमारे उत्तराखण्ड के राष्ट्रीय उद्यान वाली कैटेगरी में विस्तार से पढ़ सकते हैं। नीचे जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क पर विस्तारपूर्वक लिखे ब्लॉग का लिंक दिया जा रहा है आप उसपर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
इको केव गार्डन | Eco Cave Gardens
नैनीताल जिले में स्थित यहा पर्यटक स्थल काफी मजेदार व रोमांचित करने वाला है। कुमाऊँ मण्डल विकास निगम द्वारा संचालित इको केव गार्डन का मकसद यहाँ निर्मित कृत्रिम गुफाओं के माध्यम से पर्यटकों एंव बच्चों को हिमालयी वन्यजीवन की एक झलक प्रदान करना है। यहाँ निर्मित गुफाएँ विभिन्न जानवरों की गुफाएँ असल प्राकृतिक आवास की तरह नजर आती है। यहाँ टाइगर गुफा, पैंथर गुफा, चमगादड़ गुफा, गिलहरी गुफा, फॉक्स गुफा और एपिस गुफा नाम से यहाँ गुफाओं को नाम दिया गया है। झूलते बगीचों एवं संगीतमय फव्वारों के लिए प्रसिद्ध यह गुफा 6 छोटी गुफाओं का मिश्रण है। जिन्हें जानवरों के आकार में बनाया गया है। इन गुफाओं में जाने में आपको थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है पर पेट्रोल से जलते लैंप आपको आकर्षित करेंगे।
मॉल रोड़ | Mall Road
बात नैनीताल की हो रही हो और मॉल रोड का जिक्र ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। जी हाँ उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के नैनीताल जिले में नैना झील से सटी हुई मॉल रोड सभी पर्यटकों की सबसे पसंदीदा जगह है। ब्रिटिश राज में अंग्रेजों ने नैनीताल, शिमला, मसूरी आदि हिलस्टेशनों में इन माॅल रोड का निर्माण करवाया।
माॅल रोड नैनीताल का वो हिस्सा है जहाँ शाम होते ही पर्यटकों की चहल कदमी देखते ही बनती है। दिन-भर हलकी भीड़ व खाली सी नजर आने वाली माॅल रोड शाम होते-होते पर्यटकों से लबालब भर जाती है। सुंदर लाइटों की जगमगाहट, विभिन्न प्रकार की दुकानें, होटल, रेस्टोरेंट आदि सब सब जगमगा उठते हैं। यह सब पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
माॅल रोड जो कि नैनी झील के सहारे पर हुई है बनी, मल्लीताल व तल्लीताल को जोड़ती है। यहाँ आपको हर वक्त चहल-पहल का माहौल देखने को मिलेगा। उत्तराखण्डी संस्कृति व पारंपरिक स्वादिष्ट खाने का मिश्रण आपको यहाँ देखने को मिलेगा। खरीदारी के लिए भी यह उपयुक्त स्थान है जहाँ आपको सुंदर गर्म कपड़े आसानी से मिल जाऐंगे।
झील के एक तरफ बनी हुई माल रोड को अब पं गोविंद बल्लभ मार्ग के नाम से जाना जाता है। गर्मियों के महीनों विशेषकर मई एवं जून के महीनों में पर्यटक इस सडक पर टहलना पसंद करते हैं और यह नैनीताल का मुख्य आकर्षण का केंद्र भी है। शाम के समय पर्यटकों के टहलने हेतु इस सडक पर ट्रेफिक को भी बंद किया जाता है।
माल रोड अपनी व्यवसायिक गतिविधियों के लिए भी जानी जाती है। शहर के अधिकांश होटल इसी सडक पर बने हैं। यह सडक मल्लीताल को तल्लीताल से जोडने का मुख्य मार्ग है। झील के दूसरी ओर बनी हुई सडक ठंडी सडक के नाम से जानी जाती है तथा यह यह तुलनात्मक रूप से कम व्यस्त है। यह सडक मुख्य रूप से टहलने के काम आती है तथा यहाँ पर किसी भी तरह की गाडी नहीं चलती है। इस सडक पर प्रसिद्ध पाषाण देवी एवं अन्य मंदिर है।
टीफिन टॉप | Tiffin Top
टिफिन टॉप, नैनीताल के सबसे सुंदर पर्यटक स्थलों मे सुमार है। यहाँ से आप पूरे नैनीताल का भव्य दर्शन कर सकते हैं। मन को तरोताजा और शाँति से भरने के लिए यहाँ चारों तरफ चीड़, ओक व देवदार घने पेड़ भारी संख्या में उपलब्ध है। यह स्थान प्रकृति प्रेमियों की पसंदीदा जगह है जो उन्हें यहाँ मंत्रमुग्ध कर देती है। नैनीताल आने वाले अगर यहाँ न आएँ तो समझो उनकी यात्रा अधूरी ही रह गई। पर्वतारोहण का भी यहाँ से लुत्फ उठाया जा सकता है।
यह पर्यटक स्थल नैनीताल शहर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी एवं समुद्र तल से 2292 मीटर की ऊँचाई पर अयारपाटा क्षेत्र में है। पर्यटक यहाँ पर मनमोहक ट्रेकिंग रूट से अचानक इस खूबसूरत जगह पर पहुंंचते हैं। इसमें उन्हेंं बडेंं आनंद की अनुभूति होती है साथ ही प्रकृति को करीब से निहार सकते हैं। पर्यटक यहाँ से ग्रामीण परिदृश्यों के साथ शक्तिशाली हिमालय पर्वतमाला के प्रभावशाली दृश्यों का आनंद भी ले सकते हैं।
टिफ़िन टॉप को एक अन्य नाम डोरोथी सीट के नाम से भी जाना जाता है। टिफिन टॉप का नाम का यह नाम एक अंग्रेज पैंटर महिला के नाम पर डोरोथी सीट रखा गया था। जिसका नाम केलेट डोरोथी था। टिफिन टॉप के साथ साथ लैण्ड्स एण्ड क भ्रमण भी किया जा सकता है क्योंकि यह दोनों पर्यटक स्थल पास पास हैं।
गोविंद बल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान | Govind Ballabh Pant High Terrestrial Zoological Park | Nainital Zoo
सन् 1995 में स्थापित और 4.693 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला गोविन्द बल्लभ पन्त उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान उत्तराखण्ड के जनपद नैनीताल में स्थित एक पर्यटक स्थल है। यहाँ मुख्यतः साईबेरियन टाइगर, लैपर्ड, जंगली कैट, सिवेट कैट, भेड़िया, तिब्बती भेड़िया, काला भालू, सांभर, घुरल, आदि जन्तु और सिल्वर फीजेण्ट, कलीज फीजेण्ट, चकोर फीजेण्ट, तोते, बतख आदि पक्षियाँ पायी जाती हैं। बन्दर प्रमुख वनस्पतियों में ‘ओक’ प्रजाति के बाँज एवं तिलौंज आदि वृक्षों के साथ ही इसकी सहचरी प्रजातियाँ बुराँस, अयांर, मेहल आदि भी विद्यमान हैं।
ज्योलिकोट | Geoliquot
मधुमक्खी पालन केन्द्र व फलों के लिए प्रसिद्ध ज्योलिकोट नैनीताल जिले का महत्वपूर्ण व रमणीक स्थल है। यहाँ विभिन्न प्रकार के पक्षियों का निवास भी है। देश-विदेश के अनेक प्रकृति-प्रेमी यहाँ रहकर मधुमक्खियों और पक्षियों पर शोध कार्य करते हैं। सैलानी, पदारोही और पहाड़ों की ओर जाने वाले लोग यहाँ अवश्य रुकते हैं। यह स्थान समुद्र की सतह से 1211 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ का मौसम गुलाबी मौसम कहलाता है। जो पर्यटक नैनीताल की ठण्डी हवा में नहीं रह पाते, वे ज्योलिकोट में रहकर पर्वतीय जलवायु का आनन्द लेते हैं। आप यहाँ आकर रंग-बिरंगी तितलियों की तस्वीरें अपने कैमरे में कैद कर सकते है। इन तितलियों की तरह आपका मन भी बेफिक्र होकर झूम उठेगा और आपके मन में खुशी की तरंगें चलने लगेगी।
काठगोदाम | Kathgodam
काठगोदाम कुमाऊँ का प्रवेश द्वार है। यह कुमाऊँ क्षेत्र का प्रमुख व्यापारिक मंडी भी है। काठगोदाम पूर्वोत्तर रेलवे कुमाऊँ क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है। वर्ष 1884 में स्थापित यह रेलवे-स्टेशन नैनीताल, भीमताल, कौसानी, रानीखेत और अन्य पर्यटन स्थलों के लिए देश-विदेश से आने वाले सैलानियों के लिए यह एकमात्र रेलवे-स्टेशन है।
गौला नदी के दायीं ओर स्थित काठगोदाम कुमाऊँ हिमालय क्षेत्र के पाद प्रदेश में स्थित है। पूर्वोतर रेलवे का यह अन्तिम रेलवे टर्मिनल यहाँ है। यहाँ से बरेली, लखनऊ, दिल्ली‚ हावड़ा ‚जैसलमेर‚ जम्मू ‚कानपुर देहरादून तथा आगरा आदि शहरों के लिए छोटी एवं बड़ी लाइन की रेल चलती है। काठगोदाम से नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ आदि पर्वतीय नगरों के लिए कुमाऊँ मण्डल विकास निगम (KMVN) एवं उत्तराखंड परिवहन निगम की बसें जाती है।
नैनीताल राजभवन | Nainital Raj Bhavan
अंग्रेजों द्वारा नैनीताल में राजभवन की स्थापना उत्तर पश्चिमी प्रांत के राज्यपाल के निवास के रूप में की गयी थी। वर्तमान में राजभवन, उत्तराखण्ड के राज्यपाल का आधिकारिक आवास है। नैनीताल आने वाले राज्य के मेहमान भी अपने रहने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। राजभवन परिसर मेंं सुंदर बगीचे, गोल्फ कोर्स, स्विमिंग पूल आदि शामिल हैं। इसके अलावा झंडीधार, मोदी हाईट्स, मुंशी हाईट्स एवं अन्य स्थान भी इस परिसर में देखने योग्य हैं। गवर्नर हाउस का निर्माण इग्लैंड के बकिंघम पैलेस की तर्ज में किया गया था, जिसमें 113 कमरे हैं। वर्तमान में इसे आम जनता के दर्शन हेतु भी खोला गया है।
घोडाखाल | Ghodaakhal
नैनीताल जिले में सुन्दर प्राकृतिक सौन्दर्य दृश्यों के बीच स्थित घोड़ाखाल, नैनीताल मुख्य शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ न्यायकारी ग्वैल या गोलू देवता का मन्दिर स्थित है। गोलू देवता का मंदिर संपूर्ण कुमाऊँ क्षेत्र में एक बहुत बड़ा आस्था का केन्द्र है। जनश्रुति के अनुसार न्याय न मिलने पर निर्दोष व्यक्ति ग्वैल देवता के दरबार में प्रार्थना पत्र जमा करता था तथा उसको ग्वैल देवता न्याय दिलाते थे। स्थानीय लोग इस न्याय के देवता को डाना ग्वैल, गैराणक ग्वैल, बणी ग्वैल के नाम से भी पूजते हैं। गोलज्यू मंदिर के अलावा घोडाखाल सुप्रसिद्ध सैनिक स्कूल के लिए भी जाना जाता है।
Complete details of Nainital district | Best places to visit in Nainital
रानीबाग | Ranibagh
पुष्पभद्रा और गगरांचल नामक दो छोटी नदियों के संगम के समीप स्थित रानीबाग जहाँ से यह दोनो नदियाँ एक साथ बहकर गौला नदी के नाम से जानी जाती है, एक अत्यन्त रमणीय स्थल है। मार्कण्डेय ॠषि की इस तपस्थली में गौला नदी के दाहिने तट पर चित्रेश्वर महादेव का मन्दिर है। यहाँ पर मकर संक्रान्ति के दिन बहुत बड़ा मेला का आयोजन होता है।
काठगोदाम से तीन किलोमीटर नैनीताल की ओर बढ़ने पर स्थित रानीबाग का नाम पूर्व काल में चित्रशिला था। कहते हैं कत्यूरी राजा पृथवीपाल की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। वह बहुत सुन्दर थी। रुहेला सरदार उसपर आसक्त था। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही रुहेलों की सेना ने घेरा डाल दिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी। उसने अपने ईष्ट का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई। रुहेलों ने उन्हें बहुत ढूँढ़ा परन्तु वे कहीं नहीं मिली। कहते हैं, उन्होंने अपने आपको अपने घाघरे में छिपा लिया था। वे उस घाघरे के आकार में ही शिला बन गई थीं।
गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है, जिसका आकार कुमाऊँनी घाघरे के समान हैं। उस शिला पर रंग-बिरंगे पत्थर ऐसे लगते हैं मानो किसी ने रंगीन घाघरा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी के स्मृति चिन्ह माना जाता है। रानी जिया को यह स्थान बहुत प्यारा था। यहीं उसने अपना बाग लगाया था और यहीं उसने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी वह सदा के लिए चली गई परन्तु उसने अपने गात पर रुहेलों का हाथ नहीं लगने दिया था। तब से उस रानी की याद में यह स्थान रानीबाग के नाम से विख्यात है।
मुक्तेश्वर | Mukteshwar
सरोवरनगरी नैनीताल व उसके आस-पास स्थित तरोताजा कर देने वाली झीलों के सौन्दर्य में सराबोर होने के बाद सैलानी जब नैनीताल से लगभग 51 किमी. की दूरी पर मुक्तेश्वर की वादियों में पहुँचते हैं तो, उन्हें इस सम्पूर्ण क्षेत्र में प्रकृति का सौन्दर्य बिखरा नजर आता है।
ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने यहाँ सौन्दर्य संजोया नहीं है, बल्कि यहाँ सौन्दर्य बिखेरा है। मुक्तेश्वर की पहाड़ियों में हर ओर फल-फूल, पशु-पक्षियों और शीतल मादक बयार का साम्राज्य है। प्राकृतिक सौन्दर्य से सराबोर यह बेहद खूबसूरत स्थान नैनीताल समुद्र की सतह से 2,171 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
लोगों का मानना है कि मुक्तेश्वर का नाम कदाचित यहाँ ईश्वर के भी मुक्त रूप से विचरण करने के कारण पड़ा। समुद्रतल से लगभग 2300 मीटर की ऊँचाई पर सघन देवदार वृक्षों की और हिमशृंखलाओं के अनुपम वैभव से मन की चंचलता सैलानियों को घुमक्कड़ी का नशा दे जाती है। घुमक्कड़ी का यह आनन्द मुक्तेश्वर से आगे एक और सैरगाह शीतलाखेत तक पहुँचाता है। कुमाऊँ अंचल में मुक्तेश्वर की घाटी अपने सौन्दर्य के लिए विख्यात है। देश-विदेश के पर्यटक यहाँ गर्मियों में अधिक संख्या में आते हैं। ठण्ड के मौसम में यहाँ बर्फीली हवाएँ चलती हैं।
स्थान – स्थान पर रुकने व ठहरने का मन करता है जो सदैव जगंलों, घाटियों और हिमचोटियों के नजारों पर टिकता है। छोटे-छोटे गाँवों से लगे फल – फूलों के बागानों की महक लुभावनी है। मुक्तेश्वर एक छोटा सा कस्बा है। 1898 में लिंगार्ड नाम के वैज्ञानिक ने यहाँ की ताजगी भरे वातावरण में एक संस्थान की स्थापना की जो जोकि अब भारतीय पशु अनुसंधान केंद्र (आई.वी.आर.आई.) के रूप में जाना जाता है। शीत जलवायु के कारण पशुओं के टीके बनाने और उनको हिमांक पर सुरक्षित रखने का यह अत्यंत उपयुक्त स्थान है। परिवहन-सुविधा की दृष्टि से इसका मुख्यालय सन् 1913 में इज्जतनगर (बरेली) में स्थापित किया गया है। इस क्षेत्र में कार्यरत वैज्ञानिक, छात्र व शोधकर्ता इस संस्थान से लाभ प्राप्त करते हैं।
मुक्तेश्वर कस्बे की ऊँचाई वाली पहाड़ी पर मुक्तेश्वर मन्दिर आस्था का केन्द्र है। रामगढ़ से मुक्तेश्वर और मुक्तेश्वर से शीतला तक आकर्षक रिजोर्ट्स, होटल, विश्रामगृह और बंगले पर्यटकों को सुखद आवासीय व्यवस्था से प्रभावित करते हैं। स्थानीय उत्पादों में ताजगी भरे फल -फूलों से निर्मित खाद्य व पेय पदार्थ लोकप्रिय हैं। यहाँ शहद , स्थानीय वनों से प्राप्त औषधियों से निर्मित विभिन्न उत्पादों सहित भेड़ बकरियों की ऊन से बनाये जाने वाले वस्त्र उपलब्ध हैं। स्थानीय स्तर पर विभिन्न संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा ये उत्पाद विक्रय के लिए स्थान – स्थान पर मिल जाते हैं। शीतला में एक समूह ‘किलमोड़ा’ नाम से स्थानीय उत्पादों को आकर्षक पैकिंग द्वारा उपलब्ध करवा रहा है।
कहा जाता है कि मुक्तेश्वर का प्राचीन नाम ‘मोतेसर’ था। मृत्यु उपरांत मुक्ति प्राप्त करने तथा रामगढ़ की ओर के तीव्र ढालों के कारण संभवतः इस स्थान का नाम मोतेसर (मुक्तेश्वर) पड़ा। यहाँ शंकुधारी वृक्षों के घने वन तथा फलों की पट्टियाँ हैं। यहाँ से हिमालय की हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाओं तथा अल्मोड़ा नगर की झिलमिलाती चाँदनी रातों के मनोरम दृश्य पर्यटकों के प्रमुख आकर्षण हैं।
रामगढ़ | Ramgarh
अपने अत्यंत रसीले सेबों व अन्य फलों के लिए रामगढ़ जितना विश्व विख्यात है उतना ही अपनी नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। हिमालय का विराट सौन्दर्य का दीदार करना हो तो रामगढ़ से उत्तम स्थान दूसरा नहीं हो सकता। यहाँ से हिमालय की हिमाच्छादित पर्वत चोटियँ एकदम साफ दिखाई देती है। जिन्हें देख प्रकृति प्रेमी मंत्रमुग्ध हो जाया करते हैं। नैनीताल जिले का यह पर्यटक स्थल समुद्रतल से 1784 मीटर की ऊँचाई पर नैनीताल से 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ से मुक्तेश्वर मात्र 24 किमी. की दूरी पर स्थित है।
साहित्यकारों का पसंदीदा स्थल | Writers’ favorite place
साहित्यकारों को यह स्थान सदैव पसंद रहा। रामगढ़ ने देश के बड़े साहित्यकारों को अपनी ओर आकर्षित किया। वो चाहे आधुनिक हिन्दी साहित्य की मीरा स्व. महादेवी वर्मा रही हों, चाहे महान लेखक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर या फिर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, इन सभी को नैनीताल के इस रामगढ़ ने हमेशा अपनी ओर खींचा। महादेवी वर्मा को तो रामगढ़ इतना भाया कि वे सदैव ग्रीष्म ॠतु में यहीं आकर रहती थीं। इनके अलावा कई अन्य साहित्य-प्रेमी व प्रकृति प्रेमी यहाँ अक्सर विचरण करते रहते हैं। अतः इस स्थान का महत्त्व यहाँ प्रवास करने वाली देश की इन महान विभूतियों के कारण सदा ही बना रहा।
रामगढ़ की पर्वत चोटी पर जो बंगला है, उसी में एक बार विश्वकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर आकर ठहरे थे। उन्होंने यहाँ से जो हिमालय का दृश्य देखा तो मुग्ध हो गए और कई दिनों तक हिमालय के दर्शन इसी स्थान पर बैठकर करते रहे। उनकी याद में बंगला आज भी ‘टैगोर टॉप’ के नाम से जाना जाता है। कहते हैं आचार्य नरेन्द्रदेव ने भी अपने ‘बौद्ध दर्शन’ नामक विख्यात ग्रन्थ को अन्तिम रूप यहीं आकर दिया था।
रविन्द्रनाथ टैगोर ने इस क्षेत्र मे अपने प्रवास के दौरान गीतांजलि के कुछ रामगढ़ के अंशों सहित ‘सांध्यगीत’ की रचना की। महादेवी वर्मा ने तो समीप उमागढ़ में अपने प्रवास के लिए एक बंगला खरीदा। यह बंगला आज महादेवी साहित्य संग्रहालय के रूप में स्थापित है।
भवाली-मुक्तेश्वर मोटर-मार्ग पर कुछ दूर चलने पर बायीं ओर जाने वाला रास्ता रामगढ़ की ओर मुड़ जाता है। यहाँ से आगे चलने पर कुछ ही दूरी पर गागर नामक चोटी में गर्गेश्वर महादेव का एक पुराना मन्दिर है। शिवरात्रि के दिन यहाँ पर शिवभक्तों का एक विशाल मेला लगता है। यह गागर नक पर्वत समुद्रतल से लगभग 2300 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। पर्यटक जब यहाँ पहुँचते हैं तो उन्हें हिमालय के दिव्य दर्शन होते हैं।
फलों का शहर, रामगढ़ | Fruit City, Ramgarh
रामगढ़ मुख्य रूप से भारत व संपूर्ण विश्व में अपने यहाँ उत्पादित होने वाले स्वादिष्ट रसीले फलों के कारण प्रसिद्ध है। रामगढ़ को फलों का शहर कहना गलत नहीं होगा। जहाँ एक ओर यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती व सुन्दर आबोहवा पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करती हैं वहीं दूसरी ओर यहाँ पैदा होने वावे रसीले सेब उन्हें यहाँ का दिवाना बना कर रख देते हैं।
कुमाऊँ क्षेत्र में सबसे अधिक फलों का उत्पादन भवाली-रामगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में ही होता है। इस क्षेत्र में अनेक प्रकार के फल पाये जाते हैं। बर्फ पड़ने के बाद सबसे पहले ग्रीन स्वीट सेब और सबसे बाद में पकने वाला हरा पिछौला सेब होता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में डिलिशियस, गोल्डन किंग, फैनी और जोनाथन जाति के श्रेष्ठ वर्ग के सेब भी होते हैं। आडू यहाँ का सर्वोत्तम फल है। तोतापरी, हिल्सअर्ली और गौला का आडू यहाँ बहुत पैदा किया जाता है। इसी तरह खुमानियों की भी मोकपार्क व गौला बेहतर ढ़ंग से पैदा की जाती है। पुलम तो यहाँ का विशेष फल हो गया है। रामगढ़ में सेबों के विस्तृत उद्यानों के अतिरिक्त पुलम, खुबानी आदि फलों का भी अच्छा उत्पादन होता है। ग्रीन गोज जाति के पुलम यहाँ बहुत पैदा किया जाते हैं।
भवाली | Bhawali
नैनीताल जिले की मनोहर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर भवाली समुद्रतल से 1706 मीटर की ऊँचाई पर नैनीताल से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता एवं पहाडी फल मण्डी के रूप में जाना जाने वाला भवाली नैनीताल को नजदीकी पर्यटक स्थलों से जोडने हेतु एक जंक्शन का कार्य करता है।
हल्द्वानी-अल्मोड़ा मुख्य मार्ग पर स्थित भवाली कुमाऊँ के प्रमुख स्वास्थ्यवर्द्धक स्थानों में से है। शान्त वातावरण और खुली जगह होने के कारण भवाली कुमाऊँ की एक शानदार नगरी है। यहाँ पर फलों की एक मण्डी भी स्थापित है। यह एक ऐसा केन्द्र-बिन्दु है जहाँ से काठगोदाम, हल्द्वानी और नैनीताल, अल्मोड़ा-रानीखेत भीमताल-सातताल और रामगढ़-मुक्तेश्वर आदि स्थानों को अलग-अलग मोटर मार्ग जाते हैं।
भवाली में सन् 1885 में गढ़ कप्तानी बंगले के निर्माण किया गया था। 1912 में यहाँ प्रसिद्ध टी.बी. सेनिटोरियम की स्थापना हुई। यहाँ से तीन किलोमीटर दूर घोड़ाखाल में गोल्लु देवता का मंदिर है, जिसकी कुमाऊँ में बड़ी मान्यता है। यहीं पर सैनिक स्कूल भी है। भवाली के निकट ही 1219 मीटर की ऊँचाई पर हल्द्वानी-नैनीताल मार्ग पर ज्योलीकोट का सुंदर पर्यटन केंद्र है। यहाँ मशरूम, स्ट्राबेरी तथा लीची जैसे फलों के बाग हैं। पर्यटक, भवाली से भीमताल, रामगढ़, मुक्तेश्वर, अल्मोड़ा तथा रानीखेत की यात्रा सुविधापूर्वक कर सकते हैं।
भवाली की जलवायु अत्यन्त खुशहाल है। ऊँचे-ऊँचे पहाड़ हैं, सीढ़ीनुमा खेत है, सर्पीले आकार की सड़कें और चारों ओर हरियाली ही हरियाली यहाँ आने वालरे पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
फ्लैट्स | Flats
नैनीताल झील के उत्तरी भाग पर एक बडा सा मैदानी क्षेत्र फ्लैट्स के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि कभी यहाँ पर पर झील थी, जोकि भूस्खलन के चलते मैदान में तबदील हो गयी। यहाँ पर शाम के समय बहुत भीड रहती है। यहाँ पर पं गोविंद बल्लभ की मूर्ति, सुंदर फव्वारा, बैण्ड स्टैण्ड इत्यादि बने हुए हैं। फ्लैट्स के एक भाग में भोटिया मार्किट है, जहाँ पर विभिन्न प्रकार की फैंसी सामान उपलब्ध है। फ्लैट्स में गुरुद्वारा और नैना देवी मंदिर हैं। कैपिटल सिनेमा और रिंक थियेटर जो रोलर स्केटिंग के लिए उपयोग किया जाता है, वो फ्लैट्स में भी स्थित हैं। फ्लैट्स का एक भाग कार पार्किंग के लिए उपयोग किया जाता है। न्यू क्लब, बोट हाउस क्लब, मेसोनिक हॉल मनोरंजन के लिए फ्लैट्स की परिधि में ही आते हैं। फ्लैट्स नैनीताल की समस्त खेल एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है। नैनीताल में आयोजित होने वाले समस्त खेल इसी मैदान पर होते हैं, साथ ही विभिन्न अवसरों पर यहाँ आयोजित होने वाले समस्त सांस्कृतिक कार्यक्रम भी इसी मैदान पर होते हैं।
Best places to visit in Nainital
नैनीताल जिले में स्थित झीलें | Lakes located in Nainital district
नौकुचियाताल | Naukuchiatal
विदेशी पक्षियों की सैरगाह और कमल के फूलों से आच्छदित नौकुचियाताल झील नौ कोनो वाली कुमाऊँ की एक प्रसिद्ध झील है। समुद्रतल से 1220 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस नौकुचियाताल झील की लम्बाई 983 मीटर, चौडाई 693 मीटर तथा गहराई 40.3 मीटर है।
नौकुचियाताल झील की नैनीताल से दूरी लगभग 26 किलोमीटर तथा भीमताल से 4 किलोमीटर है। यह झील एक आकर्षक घाटी में स्थित है, यहाँ का मुख्य आकर्षण मछली पकडना एवं विभिन्न प्रकार के पक्षियों को निहारना है। यहाँ पर आने वाले लोगों हेतु नौकायन के पर्याप्त अवसर उपब्ध रहते हैं। इस झील के एक भाग में ‘कमल ताल’ भी स्थित है, जहाँ पर कमल के फूल पर्याप्त मात्रा में देखने को मिल जाते हैं।
नौकुचियाताल के बारे में स्थानीय लोगों द्वारा ऐसा सुना जाता है कि यदि कोई मनुष्य इस झील के टेढ़े-मेढ़े नौ कोनों को एक साथ देख लेगा तो उसकी तुरंत मृत्यु हो जाऐगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि सात से अधिक कोने एक बार में नहीं देखे जा सकते।
मछली के शिकार करने वाले और नौका विहार शौकिनों की यहाँ भीड़ लगी रहती है। इस ताल में मछलियों का शिकार बड़े अच्छे ढ़ंग से होता है। 20-25 पाउंड तक की मछलियाँ इस ताल में आसानी से मिल जाती है।
नैनी झील | Naini Lake
पर्यटन की दृष्टि से उत्तराखण्ड की नैनीताल झील, भारत में झीलों की सैर करने वाले पर्यटकों के लिए उत्साह और उमंग से पूर्ण सुखद सैरगाह है। समुद्रतल से लगभग 1940 मी० की ऊँचाई पर नयन (आँख) के आकार की नैनीताल नगर के बीचों बीच स्थित नैनी झील, जिसकी लम्बाई लगभग 1,432 मी, चौड़ाई 457 मी तथा गहराई 30.3 मी है, तीन ओर से 7 पहाड़ियों या सप्तभृंग (आयर पात, देवपात, हाड़ीगदी, चायना पीक, स्नोव्यू, आलमसरिया कांटा और शेर का डांडा) से घिरा हुआ है। ताल के दोनों ओर सड़क बनी है। ताल का ऊपरी भाग मल्लीताल और निचला भाग तल्लीताल कहलाता है। झील के किनारे और आसपास की पहाड़ियों पर लगभग 12 वर्ग किमी० में फैले दिलकश नजारों को संजोये नैनीताल पर्यटकों की पहली पसंद बन चुकी है।
तीनों ओर से घने वृक्षों की ओट में ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की तलहटी में नैनीताल की इस ताल में सम्पूर्ण पर्वतमाला और वृक्षों की छाया स्पष्ट दिखाई देती है। आकाश मण्डल पर छाये हुए बादलों का प्रतिबिम्ब इस तालाब में इतना सुन्दर दिखाई देता है कि इस प्रकार के प्रतिबिम्ब को देखने के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर से प्रकृति प्रेमी नैनीताल आते हैं। जल में विहार करते हुए बत्तखों का झुण्ड, थिरकती हुई तालों पर इठलाती हुई नौकाओं तथा रंगीन बोटों का दृश्य और चाँद-तारों से भरी रात का सौन्दर्य नैनीताल के ताल की शोभा में चार-चाँद लगा देता है। इस ताल के पानी की भी अपनी विशेषता है। गर्मियों में इसका पानी हरा, बरसात में मटमैला और सर्दियों में हल्का नीला हो जाता है।
मल्लीताल में फ्लैट के खुले मैदान पर शाम होते ही एक अलग ही नजारा देखना को मिलता है। देश-विदेश से छुट्टियाँ मनाने व घूमने आए पर्यटक यहाँ जमा होना शुरू हो जाते हैं। अंधेरा होते ही संपूर्ण नैनीताल नगरी सुन्दर लाइट्स की जगमगाहट से सज जाती है। ये नजारा बहुत दिलकश दिखाई देता है। रंगबिरंगी लाइट्स की चमक जब नैनी झील में पड़ती है तो ऐसा प्रतीत होता है मानो सारा नैनीताल शहर झील में उतर आया हो। सैरगाह के लिए प्रसिद्ध माल रोड़ पर निकले पर्यटकों की भीड़ देखते ही बनती है।
भीमताल | Bhimtal
भीमताल, नैनीताल की कुछ प्रसिद्ध एंव मुख्य झीलों में से एक है। सडक किनारे से ही नजर आ जाने वाली यह झील अपने में बेहद खूबसूरत और रमणीय झील है। भीमताल समुद्रतल से 1370 मीटर ऊँचाई पर नैनीताल से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भवाली से यह स्थान 11 किलोमीटर दूर पडता है। भीमताल झील का नजारा नैनीताल जिले के भ्रमण मेंं आए आगंतुको के लिए एक शानदार नजारा प्रस्तुत करता है।
भीमताल झील नैनीताल झील से कुछ बड़ी है। इस झील में पर्यटकों द्वारा नौकायान सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली जल क्रीड़ा है। पर्यटकों को इस झील में आकर्षण का एक और केंद्र देखने को मिलता है और वह है झील के बीचों-बीच स्थित एक टापू। इस टापू पर सत्रवहीं शताब्दी का बना भगवान भीमेश्वर महादेव का मंदिर है। इसी के परिसर से लगा हुआ 40 फीट ऊँचा बांध भी है जोकि भीमताल झील के स्वरूप को बानाता है तथा सिंचाई कार्य में मदद करता है।
इसी के पास बस स्टेशन एवं टैक्सी स्टेशन हैं। यहाँ से एक सडक नौकुचियाताल एवं जंगलियागॉंव को जाती है तथा दूसरी काठगोदाम को जाती है। भीमताल की लम्बाई 448 मीटर, चौड़ाई 175 मीटर गहराई 15 से 50 मीटर तक है। इस लिहाज से यह ताल नैनीताल से भी यह बड़ा ताल है। नैनीताल की तरह इसके भी दो कोने हैं जिन्हें तल्लीताल और मल्लीताल कहते हैं। यह भी दोनों कोनों सड़कों से जुड़ा हुआ है।
कुछ विद्वानों इस ताल का सम्बन्ध पाण्डु-पुत्र भीम से जोड़ते हैं। कहते हैं कि पाण्डु-पुत्र भीम ने भूमि को खोदकर यहाँ पर विशाल ताल की उत्पति की थी। भीमताल झील के बीच स्थित टापू पर भीमेश्वर महादेव का मंदिर और इस झील का नाम भीमताल इस बात की पुष्टि भी कर देते हैं कि इस झील का संबंध महाबली भीम से रहा होगा। नैनीताल जिले के लिए भीमताल झील का अत्यधिक महत्व भी है। इस झील से निकाली गई छोटी-छोटी नहरें खेतों में सिंचाई के काम आती है। एक जलधारा गौला नदी को जल देती है।
सातताल | Sattal
सातताल, नैनीताल में स्थित झीलों में पर्यटकों की पसंदीदा एक अत्यंत खूबसूरत सैरगाह है। समुद्रतल से 1370 मीटर की ऊँचाई पर स्थित सातताल एक रमणीक और अविस्मरणीय स्थान है। यह झील नैनीताल से मात्र 23 किमी की दूरी पर स्थित है।
सातताल में तीन ताल श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के नाम से प्रसिद्ध हैं। जैसे ही सैलानी सातताल पहुँचते हैं तो सबसे पहले नल दम्यंती ताल का दीदार होता है। घने बांज वृक्षों की ओट में खिलखालती यह झील सात झीलों का एक समूह है जिसमें कुछ झीलें अब विलुप्त हो गई हैं। ग्लोबल वार्मिंग का असर इस झील में देखने को मिला है। कई बार पर्यटक इस झील की तुलना इग्लैंड के वैस्ट्मोरलैण्ड से भी करते हैं।
सातताल पहुँचने के लिए भीमताल से केवल 4 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। वहीं दूसरी ओर नैनीताल से इसकी दूरी बढ़कर लगभग 23 किलोमीटर हो जाती है। इस ताल जाने के लिए एक रस्ता माहरा गाँव से होकर भी जाने लगा है। इस गांव से सातताल मात्र 7 किलोमीटर दूर है।
सातताल की लम्बाई 19 मीटर, चौड़ाई 315 मीटर और गहराई 150 मीटर तक होने का अनुमान है। सात तालों के इस झील से जुड़े होने के नाते ही यह सातताल झील कहलाती है।
पर्यटन विभाग ने सातताल के विकास के ऊपर अत्यधिक ध्यान दिया है। नौका-विहार पसंद पर्यटकों के लिए यहाँ विशेष सुविधाओं का इंतजाम सरकार द्वारा किया गया है। साथ ही पर्यटन विभाग ने इस क्षेत्र को विशेष सैलानी क्षेत्र घोषित किया गया है। लगभग 10 कमरों वाला एक आवास गृह आपको सातताल पर उपलब्ध हो जाएगा। सातताल के सातों कोनो पर बैठने के लिए सुंदर व्यवस्था की गई है। इस सातताल के पास में ही नौकुचिया देवी का मंदिर भी स्थित है।
Best places to visit in Nainital
नल -दमयन्ति ताल | Nal Damyanti Tal
सात तालों की गिनती में ‘नल दमयन्ति’ ताल भी आ जाता है। माहरा गाँव से सात ताल जाने वाले मोटर-मार्ग पर यह ताल स्थित है, जहाँ से महरागाँव-सातताल मोटर-मार्ग शुरु होता है, वहाँ से तीन किलोमीटर बायीं तरफ यह ताल है। इस ताल का आकार पंचकोणी है। इसमें कभी-कभी कटी हुई मछलियों के अंग दिखाई देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अपने जीवन के कठोरतम दिनों में नल दमयन्ती इस ताल के समीप निवास करते थे। जिन मछलियों को उन्होंने काटकर कढ़ाई में डाला था, वे भी उड़ गयी थीं। कहते हैं, उस ताल में वही कटी हुई मछलियाँ दिखाई देती हैं। इस ताल में मछलियों का शिकार करना मना है।
खुर्पाताल | Khurpatal
अब हम झीलों की नगरी नैनीताल जिले में स्थित एक ऐसी खूबसूरत झील के बारे में जानेगें जो अपने गहरे पानी के रंग के कारण और उसमें उपस्थित छोटी-छोटी मछलियों के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है।
खुर्पाताल झील कालाढूँगी मार्ग पर नैनीताल से 6 किलोमीटर की दूरी पर समुद्रतल से लगभग 1635 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। तीनों ओर से सुन्दर पहाड़ियों से ढकी यह झील पर्यटन की दृष्टि से एक उत्तम स्थान है।
पर्वतों को गिरती परछाई इस ताल को देखने लायक बना देती है साथ ही सीढ़ीनुमा खेतों का सौन्दर्य सैलानियों के मन को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।
Complete details of Nainital district
नैनीताल की प्रसिद्ध 6 चोटी | Famous 6 peaks of Nainital
नैनीताल की खूबसूरती बात हो रही हो और यहाँ की 6 महत्वपूर्ण चोटियों का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। दरअसल नैनीताल की खूबसूरती में ये 6 चोटियाँ चार चाँद लगाने का काम करती है। ये चोटियों नैनीताल के वातावरण में एक अलग ही छटा बिखेरती है। तो आइए जानते हैं नैनीताल की इन प्रसिद्ध 6 चोटियों के बारे में।
1. नैना पीक अथवा चाईना पीक | Naina Peak or China Peak
नैना पीक, 2615 मीटर की ऊँचाई पर स्थित नैनीताल की सबसे ऊँची चोटी है। नैनीताल भ्रमण करने आने वाले पर्यटकों के बीच यह नैना पीक सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र है। यहाँ समस्त हिमालय पर्वत के ऊँचे ऊँचे शिखरों के भव्य दर्शन होते हैं। फोटोग्राफी करने वाले लोगों के लिए यह नैनीताल का सबसे अच्छा स्थान है। नैना पीक की इस ऊँचाई से नैनीताल शहर की सुंदरता का ‘बर्ड आई व्यू’ देखाई देता है। पर्यटक दूरबीन की मदद से आस पास के इलाके का भव्य दृश्यों का भी आनंद उठाते हैं। ट्रेकिंग पसंद पर्यटक यहाँ आकर ट्रेकिंग करते हैं और प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठाते हैं। नैनापीक, नैनीताल शहर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
2. किलबरी | Kilbury
जब कभी नैनीताल की भीड़-भाड़ से पर्यटक तंग आ जाते हैं तो नैनीताल से 12 किलोमीटर दूर स्थित किलबरी पहाड़ी का शांत, उमंग व उत्साह से भर देने वाला यह वातावरण उन्हें सबसे पसंद आता है। यह स्थान समुद्र की सतह से 2194 किमी की ऊँचाई पर स्थित है। बर्ड वाचिंग के लिए यह सबसे उपयुक्त स्थान है। यहाँ पक्षी प्रेमी पक्षियों की 580 से भी अधिक पक्षी प्रजातियों को देख सकते हैं। यहाँ ब्राउन वुड-आउल (उल्लू), कॉलर ग्रोसबीक, और सफेद गले वाले लाफिंग थ्रश और फोर्कटेल आदि को देख सकते हैं। परिवार व दोस्तों के साथ छुट्टियाँ मनाने व सुकून के कुछ पल बिताने के लिए उत्तम स्थान है। यहाँ पर वन विभाग का एक विश्रामगृह भी है। जिसमें बहुत से प्रकृति प्रेमी रात्रि-निवास करते हैं। इसका आरक्षण डी. एफ. ओ. नैनीताल के द्वारा होता है।
3. लड़ियाकाँटा | Ladiya-Kanta
नैनीताल जिले की सबसे ऊँची चोटी लड़ियाकाँटा से नैनीताल की झील व आसपास के क्षेत्र का दीदार कर सकते हैं। समुद्रतल से इस चोटी की ऊँचाई लगभग 2481 मीटर है। यह नैनीताल शहर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
4. देवपाटा और केमल्सबौग | Deopatta and Camel’s Back
देवपाटा और कैमल्सबैक यह दोनों चोटियाँ साथ-साथ हैं। देवपाटा की ऊँचाई 2435 मीटर है। इस चोटी से भी नैनीताल और उसके समीप वाले इलाके के दृश्य अत्यन्त सुन्दर लगते हैं।
5. अयाँरपाटा व डेरोथीसीट | Ayarpata Dorothy’s Seat
वास्तव में जिसे आज डेरोथीसीट के नाम से पर्यटक जानते हैं उसका असली नाम अयाँरपाटा पहाड़ी है। परन्तु एक अंग्रेज कलेक्टर ने अपनी पत्नी डेरोथी, जो हवाई जहाज की यात्रा करती हुई मर गई थी, की याद में इस चोटी पर कब्र बनाई, उसकी कब्र – ‘डारोथीसीट’ के नाम पर इस पर्वत चोटी का नाम डेरोथीसीट पड़ गया। नैनीताल से इस चोटी की दूरी मात्र चार किलोमीटर है जो कि समद्रतल से 2210 की ऊँचाई पर स्थित है।
6. स्नोव्यू | शेर का डाण्डा | आल्मा पीक और हनी-बनी | Snow view | Sher-Ka-Danda | Alma peak and Hanibani
नैनीताल से हिमालय की गगनचुंबी पर्वतीय आँचल को निहारने व बादलों के साथ लुका-छुपी खेलने का शानदार अनुभव आप स्नोव्यू और हनी-बनी की इस चोटी से ले सकते हैं। समुद्रतल से 2270 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस चोटी पर आप सडक मार्ग व रज्जुमार्ग दोनो से ही पहुँच सकते हैं। स्नो व्यू की दूरी नैनीताल शहर से मात्र 2.5 किलोमीटर है। यहाँ से आप नैनीताल की आसपास की घाटियों का दीदार कर सकते हैं। इस पहाडी पर एक मंदिर भी बनाया गया है। साथ ही बच्चों के लिए एक छोटा सा पार्क भी उपलब्ध है। यह स्थान ‘शेर का डाण्डा’ (Sher-Ka-Danda) पहाड़ पर स्थित है। इसी तरह स्नोव्यू से लगी हुई दूसरी चोटी हनी-बनी है, जिसकी ऊँचाई 2179 मीटर है, यहाँ से भी हिमालय के सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं।
नैनीताल में तापमान | Temperature in Nainital
अब हम आपके साथ उस विषय की जानकारी साझा करेगें जिसकी पर्यटकों को सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है और वो है नैनीताल के तापमान और नैनीताल की यात्रा करने के सबसे अच्छा समय के बारे में। यूँ तो नैनीताल आप कभी भी आ सकते हैं। यहाँ का मौसम आपको कभी निराश नहीं करेगा। आप किसी भी मौसम में यहाँ आऐंगे तो खुद को सुकून में ही पाऐंगे। लेकिन कभी-कभार हम किसी विशेष महीने में नैनीताल की यात्रा का मन बनाते हैं, ऐसी स्थिती में किस महीने में नैनीताल का मौसम कैसा रहता है आइए जानते हैं।
उत्तराखण्ड की कुमाऊँ की मनमोहक पहाड़ियों में बसे नैनीताल का मौसम सालभर सुखद रहता है। नैनीताल की जलवायु को नैनी झील सबसे ज्यादा प्रभावित करती है जिसके कारण लगभग हर दिन हल्की बारिश होती है। और सर्दियों के महीनों में प्रचुर मात्रा में हिमपात होता है।
अगर हम एक साधारण स्थिती की बात करें तो मार्च, अप्रैल, मई और सितंबर के महीनों को नैनीताल जाने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। लेकिन अगर आपको ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं पसंद तो आपको इस समय यहाँ आने से बचना चाहिए। भीड़ से दूर रहने वाले लोगों के लिए नैनीताल आने के लिए सितंबर और अक्टूबर सबसे अच्छा समय होगा। जिन पर्यटकों को नैनीताल के हरे-भरे नजारों का आनंद लेना है तो वो जुलाई, अगस्त या सितंबर में नैनीताल आने का प्लान करें और जिन्हें नैनीताल की बर्फबारी का लुत्फ उठाना है वो जनवरी-फरवरी में नैनीताल आएँ।
अगर आप बारिश और इससे होने वाली अनियमितताएं आपको परेशान करती हैं तो मानसून के मौसम में आपको यहाँ आने से बचना चाहिए।
नैनीताल में मार्च से मई के महीने गर्मियों के माने जाते हैं, हालांकि यहाँ की गर्मी मैदानी इलाकों की तुलना में काफी अलग होती है। वास्तव में, मार्च का महीना कभी-कभी सर्दियों के मौसम की तरह महसूस हो सकता है। गर्मियों में नैनीताल का मौसम सबसे सुखद होता है। इस वक्त यहाँ का औसत तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। यह मौसम नैनीताल में पर्यटन का सीजन माना जाता है।
मानसून का मौसम जून के अंत में शुरू होता है और सितंबर की शुरुआत तक रहता है। इस क्षेत्र में हर साल काफी बारिश होती है और इसके परिणामस्वरूप, शहर के आसपास की पहाड़ियाँ हरे-भरे रंग से चमक उठती है।
नैनीताल में सर्दी अक्टूबर में शुरू होती है और फरवरी के अंत तक रहती है। इस समय, तापमान 0 °C तक गिर जाता है और कभी-कभी इससे भी नीचे। जनवरी और फरवरी के महीनों में यहाँ कभी भी हिमपात हो जाता है।
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