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क्यूंकालेश्वर मंदिर (Kankaleshwar Temple) Pauri Garhwal
क्यूंकालेश्वर मंदिर (Kankaleshwar Temple) Pauri Garhwal
आठवीं शताब्दी इस शिव मंदिर की स्थापना शंकराचार्य द्वारा पौड़ी की यात्रा के दौरान हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के रूप में की गयी थी । मंदिर पौड़ी और आसपास के इलाकों में बहुत प्रसिद्ध है, लोगों का मंदिर के मुख्य देवताओं- भगवान शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय में बहुत अधिक आस्था और विश्वास है। मुख्य मंदिर के एकदम पीछे अन्य देवताओं भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता के मदिर हैं। यहां से हिमालय पर्वतमाला के साथ-साथ अलकनंदा घाटी और पौड़ी शहर का एक मंत्रमुग्ध दृश्य दिखता है।
इस मंदिर में यमराज ने की थी भगवान शिव की तपस्या, तस्वीरें देखिए
देवभूमि उत्तराखंड में अनेक देवी देवताओं के नाम पर मंदिर मौजूद हैं। प्रदेश में शक्तिपीठ एवं शिवालय अधिक विद्यमान हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक किंकालेश्वर मंदिर अपने आप में अद्वितीय है।
इस सिद्धपीठ को 'क्यूंकालेश्वर मन्दिर' नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर गढ़वाल मुख्यालय पौड़ी में लगभग 2200 मीटर की ऊंचाई पर सघन देवदार, बांज, बुरांस, सुराई आदि वृक्षों के बीच मौजूद है।
बस स्टेशन पौड़ी से कार, टैक्सी द्वारा लगभग 2.5 किमी. का सफ़र तय करके इस रमणीक स्थान तक पहुंचा जा सकता है।
स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में लिखा है कि यह स्थान कीनाश पर्वत पर स्थित है। यहां यमराज ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। जिसके बाद शिवजी ने यमराज को वर देकर कहा कि कलियुग में वह गुप्तरुप में प्रकट होंगे। मैं कलियुग में उपासकों को भक्ति और मुक्ति प्रदान करूंगा।
स्कन्दपुराण के केदारखण्ड में लिखा है कि यह स्थान कीनाश पर्वत पर स्थित है। यहां यमराज ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। जिसके बाद शिवजी ने यमराज को वर देकर कहा कि कलियुग में वह गुप्तरुप में प्रकट होंगे। मैं कलियुग में उपासकों को भक्ति और मुक्ति प्रदान करूंगा।
वर्तमान में कंकालेश्वर का अपभ्रंश ही क्यूंकालेश्वर या किंकालेश्वर है। मन्दिर का सौन्दर्य यहां आने वाले पर्यटकों के लिये किसी आश्चर्य से कम नहीं है। मन्दिर तक जाने के दो मार्ग है।
पहला कण्डोलिया-रांसी-किंकालेश्वर मार्ग जो कि हल्के वाहनों हेतु उपयुक्त है। दूसरा पैदल मार्ग है जो कि एजेंसी से प्रारम्भ होकर मंदिर तक पहुंचता है। यहां जन्माष्टमी व शिवरात्रि में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। श्रावण मास के सोमवार के व्रतों में भक्त यहां शिवलिंग में दूध व जल चढ़ाने आते हैं।
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