उत्तराखण्ड में ब्रिटिश शासन ब्रिटिश गढ़वाल(British rule in Uttarakhand British Garhwal)

उत्तराखण्ड में ब्रिटिश शासन ब्रिटिश गढ़वाल(British Garhwal)

उत्तराखण्ड में ब्रिटिश शासन

  • 1815 ई0 में उतराखण्ड में ब्रिटिश शासन प्रारम्भ हुआ गढ़वाल दो। भागों में विभक्त हुआ, अलकनन्दा नदी के पूर्व के भूभाग पर अंग्रेजों का अधिकार होने से ब्रिटिश गढ़वाल व अलकनंदा के पश्चिमी भाग को टिहरी गढ़वाल कहा गया
  • अग्रेंजों ने सर्वप्रथम काशीपुर में भांग की फैक्ट्री लगायी 
  • मई 1815 ई0 में एडवर्ड गार्डनर ब्रिटिश कुमाऊँ के प्रथम कमीश्नर नियुक्त हुए
  • गार्डनर का कार्यकाल कुल 9 महीने तक रहा, और उसकासहायक ट्रैल था
  • टिहरी रियासत में ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कुमाऊँ कमीश्नर को अधिकार दिया गया
  • 1825 से 1842 ई0 तक देहरादून का कमीश्नर टिहरी रियासत में ब्रिटिश एजेंट के रूप में कार्य किया
  • टिहरी रियासत को 1937 में पंजाब हिल स्टेट एजेंसी के साथ संयुक्त किया गया
  • 1864 ई0 में कुमाऊँ कमीश्नर का पद स्वयं में उच्च न्यायालय बन गया था
  • 1926 में कुमाऊँ क्षेत्र को इलाहबाद हाईकोर्ट के न्यायाधिकार के अन्तर्गत रखा गया
  • 1839 ई0 में गढ़वाल जिले का गठन किया गया तराई जिले का गठन 1842 ई0 में किया गया
  • कुमाऊँ में कुल 23 ब्रिटिश कमिश्नर व एक भारतीय कमिश्नर रहा कुमाऊँ में स्वतंत्रता के बाद 1947 से 1948 ई0 तक के एल. मेहता ने कुमाऊँ कमिश्नर का पद संभाला 
  • ब्रिटिश कुमाऊँ का 23वां कमिश्नर डब्ल्यू फिनले जो 1943 से 1947 तक इस पद पर बना रहा
  • भारत स्वतंत्रता के समय कुमाऊँ कमीश्नर डब्ल्यू फिनले था 
  • ब्रिटिश कुमाऊँ का 22वां कमिश्नर जे सी एक्टन था, जो 1941 से 1943 तक रहा इससे पहले कमिश्नर मि० स्टाईफ थे
  • असहयोग आन्दोलन के समय कुमाऊँ कमिश्नर पीं विढम था, जिसका कार्यकाल 1914 से 1921 तक रहा
  • स्वदेशी आंदोलन के समय कुमाऊँ कमिश्नर कैम्पवेल था, जिसका कार्यकाल 1906 से 1914 ई0 तक था 1884 को रैम्जे के बाद कुमाऊँ कमीश्नर फिशर था 
  • 1885 ई0 में कांग्रेस की स्थापना के समय कुमाऊँ कमिश्नर जी० रोस थे
  • लुशिगंटन ने 1845 में खैरना-नैनीताल मार्ग पर कार्य आरम्भ किया 1848 में बागेश्वर के गोमती नदी में पुल का निर्माण लुशिगंटन द्वारा किया गया
  • 1847 ई0 में नैनीताल में एक सर्जन नियुक्त किया गया
  • 1848 में अल्मोड़ा में डिसपेंसरी कमेटी गठित की गयी और अल्मोंडा में एक औषधालय की स्थापना की गयी
  • लुशिगंटन के सम्बन्ध में कवि गुमानी पंत ने कुछ छंद लिखे है

जॉन हैलिट बैटन

  • लुशिंगटन के बाद बैटन 1848 से 1856 तक कुमाऊँ कमिश्नर रहा • बेटन ने बीस साला बन्दोबस्त किया इसकी विशेषता खसरा सर्वेक्षण था
  • कमिश्नर स्ट्रैची द्वारा गढ़वाल में लोहे का प्रथम संस्पेशन पुल का निर्माण श्रीनगर में कराया, इसकी लागत 17078-1853 में पूर्ण हुआ

सर हेनरी रैम्जे

  • रैम्जे कुमाऊँ में 44 वर्षो तक विभिन्न पदो पर कार्यरत थे, कमिश्नर के रूप में 28 वर्षों तक कार्य किया
  • हेनरी रैम्जे 1856 से 1884 तक कमिश्नर के पद पर रहे, जो कुमाऊँ के 6वें कमिश्नर थे
  • कुमाऊँ में उन्हे रामजी साहब कहा जाता था
  • रैम्जे मूल रूप से स्कॉटलैंड के निवासी थे और गवर्नर जनरल डलहौजी के चचेरे भाई थे
  • रैम्जे का विवाह पूर्व कमिश्नर लुशिगंटन की बेटी से हुआ था
  • रैम्जे को कुमाऊँ का बेताज बादशाह भी कहा जाता है
  • रैम्जे पहाड़ी बोली बोलने में सक्षम थे, और किसानों व मजदूरों घर मंडुवे की रोटी खा लेते थे
  • रैम्जे ने कुमाऊँ में अंग्रेजों को बसाने का विरोध किया था
  • उत्तराखण्ड में आपदा प्रबन्धन का प्रथम प्रयास रैम्जे ने किया था
  • हेनरी रैम्जे ने नैनीताल शहर को स्कूली शिक्षा के केन्द्र के रूप मे विकसित किया
  • हेनरी रैम्जे चार-चार महीने के अंतराल में बिनसर, अल्मोंडा व भाबर में निवास करते थे
  • पादरी विलियम बटलर ने नैनीताल में 1858 में भारत के प्रथम मैथोडिस्ट चर्च की स्थापना की 
  • रैम्जे ने तराई भाबर के विकास हेतु तराई इम्प्रूवमेन्ट फण्ड 1883 में स्थापित की
  • 1867 में नैनीताल में प्रथम बार भूस्खलन हुआ, इसके कारणों का पता लगाने के लिए हिलसाइट सेफ्टी कमेटी गठित की गयी।
  • नैनीताल में 1880 मे संकटपूर्ण भूस्खलन हुआ, जिसमे 151 लोग मारे गए
  • विकेट बन्दोबस्त 1863-73 ई0 पहली बार वैज्ञानिक तरीके से भूमि बंदोबस्त किया और यह अंग्रेजों द्वारा 9 वां भूमि बन्दोबस्त था
  • रैम्जे ने उत्तराखण्ड में कन्जरवेटर के पद पर कार्य करते हुये 
  • ठेकेदारी प्रथा को समाप्त किया
  • अधिसूचित जिला अधिनियम 1874 को पारित किया गया, 1931 में कुमाऊँ में वन पंचायतों के लिए बनाए गए नियम इस अधिनियम के तहत थे
  • 1884 में सेवानिवृत होने के बाद भी रैम्जे 1892 तक अल्मोड़ा में रहते थे

ब्रिटिश गढ़वाल(British Garhwal)

  • ब्रिटिश बढ़वाल जो कि कुमाऊँ का एक भाग था उसका वास्तविक प्रशासन सन् 1815 से प्रारम्भ हुआ।
  • 1839 में गढ़वाल एक स्वतंत्र जिला बन गया। जिसका उत्तरदायित्व एक वरीयतम सहायक कमिश्नर को दिया गया था। जो कि कुमाऊँ कमिश्नर के अतंर्गत होता था।
  • प्रशासन की सुविधा के लिए इस जिले को 11 परगनों तथा 86 पट्टियों में बांटा गया।
  • पूरे जिले में पौड़ी ही एकमात्र तहसील थी।
  • इस जिले में सहायक कमिश्नर ही लगभग लगान वसूल करने वाला वरिष्ठतम अधिकारी था।
  • उसके बाद डिप्टी कलैक्टर फिर तहसीलदार तथा उसकी सहायता के लिए कानूनगो व पटवारी होते थे।
  • तहसीलदार के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए कानूनगो की नियुक्ति की गई।
  • गढ़वाल में चार कानूनगो और नियुक्त किए गए थे।
  • इस कड़ी में अन्तिम पदाधिकारी पटवारी होता था। जिसकी नियुक्ति सन् 1819 में कमिश्नर ट्रेल द्वारा की गई थी।
  • थोकदारों ने अपने पदों का दुरूपयोग किया और कमिश्नर रैम्जे ने थोकदार प्रथा को खत्म करने के लिए लिखा था।
  • सन् 1823 में ट्रेल ने पंचसाला बंदोबस्त का निर्धारण किया था। जिसको अस्सी साला बंदोबस्त भी कहते हैं। जिसके अनुसार लगान की धनराशि 64900 रूपए नियत की गई।
  • बीस साला बंदोबस्त बैटन द्वारा 1840 में किया गया। यह 8 वॉ बंदोबस्त था।
  • 1863-73 के बीच विकेट बंदोबस्त किया गया जो 9 वॉ बंदोबस्त था। इस बंदोबस्त में वैज्ञानिक तरीके को अपनाया गया और भूमि को 5 भागों में बांटा गया था।
  • सन् 1887 में ई के पौ ने भूमि बंदोबस्त किया था।
  • ब्रिटिश गढ़वाल के लगान अधिकारियों ने जमीन को कुछ इस प्रकार विभाजित किया था।
(A). तलाव शेरा -सदैव सिंचाई वाली जमीन
(B). पंचर शिमार जो भूमि पूर्ण रूप से सिंचित न हो व सदैव काम में न लायी जाती हो।
(C). उपरांव -सूखी भूमि प्रथम श्रेणी की अव्वल, द्वितीय श्रेणी की - दोयम
(D). इजरान -निम्न श्रेणी की भूमि
(E). कंटीली -खील

  • प्रथम एकसाला बंदोबस्त ट्रेल द्वारा 1816 में किया गया था।
  • प्रथम तीनसाला बंदोबस्त 1817 में किया गया था।

ब्रिटिश गढ़वाल में वन प्रबंधन(Forest Management in British Garhwal)

  • वन प्रबंधन का पहला कदम सम्भवतः 1823 मे ट्रेल द्वारा उठाया गया होगा जब गांव वासियों को चारागाह लकड़ी काटने आदि के अधिकार प्राप्त हुए थे।
  • सन् 1869 में कुमाऊँ वन प्रबंधन का उत्तरदायित्व मेजर पियरसन को दिया गया। इसी वर्ष गढ़वाल के वन विभाग की भी स्थापना हुई थी।
  • गढ़वाल के वन मुख्य चार भागों में बांटे गए चण्डी के वन, उदयपुर के वन, कोटली दून के जंगल तथा पाटलीदून के जंगल।
  • जंगलों में किसो भी प्रकार के अधिकार की स्वीकृति डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट देता था।
  • जेल प्रबंधन
  • सन् 1816 में एक जेल अल्मोड़ा में स्थापित की गई थी।
  • कुछ साल बाद पौड़ी में 1850 में जेल स्थापित की गई थी।
  • शिक्षा
  • सन् 1840 से लगातार शिक्षा के उन्नयन के विभिन्न प्रसास किए गए।
  • इस वर्ष श्रीनगर में एलिमेंटरी वर्नाक्यूलर स्कूल की स्थापना की गई।
  • 1854 में शिक्षा के लिए पृथक विभाग का गठन किया गया था।
  • 1901 में श्रीनगर में कोढीखाना खोला गया। जिसका खर्च टिहरी राज्य ने उठाया था।

स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखंड की भूमिका(Role of Uttarakhand in freedom struggle)

  • भारत की स्वतंत्रता के लिए 1857 मे पहला संग्राम हुआ इसका प्रभाव उत्तराखंड पर भी पड़ा।
  • खान बहादुर खां (बरेली के नवाब) की सेना ने नैनीताल पर अधिकार करने के लिए कई बार हल्द्वानी पर आक्रमण किया ।
  • हल्द्वानी मे 17 सितंबर 1857 को राज्य के लगभग 1000 क्रांतिकारियों ने हल्द्वानी पर अधिकार कर लिया था
  • जिस पर अंग्रेज पुनः बड़ी मुश्किल से कब्जा कर पाये थे।
  • उत्तराखंड पर गोरखों के अत्याचारों और अंग्रेजों की नीति के कारण प्रथम स्वतंत्रता संग्राम यहां असफल ही रहा था।
  • केवल काली कुमाऊं (चंपावत जिले के बिसुंग गांव) के वीर नेता कालू मेहरा ने वहां अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष हेतु एक गुप्त सैनिक संगठन क्रांतिवीर की स्थापना की। लेकिन राजभक्तों द्वारा इसकी सूचना अंग्रेजों को दिए जाने के कारण उन्होंने वहां छापा मारकर कालू महरा के गुप्त सैनिक संगठन को समाप्त कर दिया था।
  • नोट- कालू मेहरा का जन्म 1831 में हुआ था।
  • कालू मेहरा व उनके साथियों ने लोहाघाट स्थित अंग्रेजों की बैरकों में 1857 में धावा बोलकर उन्हें भगा दिया और बैरकों में आग लगा दी थी।
  • कालू मेहरा को उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का गौरव प्राप्त है।
  • उत्तराखंड में 1857 की क्रांति के बाद कालू मेहरा के दो घनिष्ठ मित्र आनन्द सिंह फर्त्याल एवं बिशना सिंह करायत को अंग्रेजों ने लोहाघाट के चांदमारी में गोली से उड़वा दिया।
  • अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने पत्र लिखकर कालू मेहरा से क्रांति में भाग लेने का निवेदन किया और कहा कि यदि पहाड़ी क्षेत्र को अंग्रेजी शासन से मुक्त करा लिया जाता है तो पहाड़ी इलाके का शासन कालू मेहरा को सौंप दिया जायेगा।
  • कालू मेहरा को गिरफतार कर 52 जेलों में घुमाया गया।
  • इसके बाद 1937 तक काली कुमाउं के किसी भी व्यक्ति को सेना में भर्ती नहीं किया गया।
  • नोट- लोहाघाट में अंग्रेजों की चौकियां चांदमारी में थी।
  • नाना साहब 1857 की क्रांति के दौरान उत्तरकाशी में रहे थे।
  • सन् 1857 के विद्रोह के पश्चात शासन द्वारा कुमाऊं कमिश्नरी की जनता से उनके हथियार प्रशासन के पास जमा करने का आदेश दिया गया था। इसके उत्तर में हैनरी रैम्जे ने कैनिंग को पत्र लिखकर कहा था कि मेरा जनता शांत व राजभक्त रही है। क्या आपने राजभक्त हिंदू गोरखा व पर्वतीय जनता को उनकी राजभक्ति की यही पुरस्कार दिया कि उनके शस्त्रों को शस्त्रागार में जमा करने का आदेश दे दिया जिन्हें वे उस समय कार में लाये थे जब हम खतरे में थे।
  • रैम्जे के इस वार्तालाप के बाद सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया।
  • 1857 के विद्रोह के समय गढवाल जनपद में बैकेट डिप्टी कमिश्नर था।
  • 1857 के समय गढवाल में पदमसिंह व शिवरामसिंह द्वारा ब्रिटिश सरकार की सहायता की गयी। बदले में अंग्रेजों ने उन्हें बिजनौर जिले के कुछ गांवों में अलग अलग जमींदारी प्रदान की।
  • गढ़वाल में सर्वप्रथम बैकेट ने 1864 में शिक्षा कर लगा कर आधारिक विधालय की स्थापना की थी।
  • सन् 1870 में अल्मोड़ा में बुद्धिबल्लभ पंत के नेतृत्व में डिबेटिंग क्लब की स्थापना की गयी। प्रांत के लाट साहब ने क्लब के उद्देश्यों से प्रसन्न होकर उसके कार्यकर्ताओं को क्लब के कार्यों का विवरण प्रकाशित करने के लिए एक प्रेस खोलने की सलाह दी।
  • नोट: गढवाल डिबेटिंग क्लब की स्थापना 1887 में की गयी थी।
  • अतः सन् 1871 में प्रेस की स्थापना कर अल्मोड़ा अखबार का प्रकाशन प्रारंभ हुआ।
  • यह संयुक्त प्रांत का कुमाऊनी भाषा का पहला अखबार माना जाता है। प्रारंभ में यह बुद्धिबल्लभ पंत के संपादकत्व में निकला फिर मुंशी सदानंद सनवाल 1913 तक इसके संपादक रहे थे।
  • अल्मोड़ा अखबार का प्रकाशन करने के लिये म्यूर ने बुद्धिबल्लभ पंत को प्रोत्साहित किया।
  • इस समाचार पत्र का सरकारी रजिस्ट्रेशन नंबर 10 था यानि देश का 10 वां पंजीकृत समाचार पत्र था।
  • अलमोड़ा अखबार भारत का द्वितीय, उत्तर प्रदेश का प्रथम साप्ताहिक हिंदी समाचार पत्र था और उत्तराखंड का प्रथम कुमाउंनी अखबार है।
  • सन् 1871 से 1888 तक अल्मोड़ा अखबार लिथो प्रेस अल्मोड़ा से छपता था। उसके बाद टेडल प्रेस से छपने लगा था।
  • 1913 में इसके संपादन का कार्य बद्रीदत्त पांडे ने संभाला। बद्रीदत्त पांडे द्वारा उपनिवेशवाद के खिलाफ लिखने पर अंग्रेजों ने इस पर 1000 रू जुर्माना लगाया जुर्माना न दे पाने के कारण अखबार को बंद करने का हुक्म सुना दिया गया और 1918 में अखबार बंद हो गया था।
  • अल्मोड़ा अखबार ने 1918 के होली अंक के संपादकीय में नौकरशाही पर व्यंग्य करते हुये 'जी हुजूर होली'
  • डिप्टी कमिश्नर लोमस पर 'लोमस की भालूशाही' शीर्षक से लेख प्रकाशित किया गया था।
  • अल्मोड़ा अखबार को उत्तराखंड में पत्रकारिता की पहली ईंट महात्मा गांधी ने कहा था।
  • कहते है कि 1918 में अंग्रेज अधिकारी लोमस द्वारा शिकार के दौरान मुर्गी की जगह एक कुली की मौत गयी। अल्मोड़ा अखबार ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया इस समाचार को प्रकाशित करने पर अल्मोड़ा अखबार को अंग्रेज सरकार द्वारा बंद करा दिया गया था।
  • गढवाल से प्रकाशित समाचार पत्र गढवाली ने समाचार छापते हुए सुर्खी लगाई थी- एक गोली के तीन शिकार मुर्गी, कुली और अल्मोड़ा अखबार ।
  • अल्मोड़ा अखबार के बंद हो जाने के कारण इसके संपादक बद्रीदत्त पांडे ने 1918 से ही शक्ति नामक नया समाचार पत्र का प्रकाशन किया।
  • शक्ति समाचार पत्र का प्रकाशन देशभक्त प्रेस अल्मोड़ा से किया गया।
  • नोट- शक्ति पत्र का पितामह बुद्धिबल्लभ पंत को कहा जाता है।
  • सन् 1883 में सर्वप्रथम अल्मोड़ा में इलबर्ट बिल के समर्थन में बुद्धिबल्लभ पंत के नेतृत्व में एक सभा हुयी।
  • वर्ष 1886 में कलकत्ता में हुए कांग्रेस के दूसरे सम्मेलन में कुमाऊ क्षेत्र से ज्वालादत्त जोशी ने भाग लिया।
  • देहरादून में राजनीतिक चेतना जाग्रत करने का प्रमुख श्रेय आर्य समाज को है। सन् 1876 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने हरिद्वार के कुम्भ मेले के अवसर पर पाखंड खंडनी पताका फहरायी। इससे पहले भी स्वामी दयानंद सरस्वती 1854-55 में उत्तराखंड के भ्रमण के दौरान हरिद्वार, टिहरी, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, गुप्तकाशी, केदारनाथ, तुंगनाथ, ऊखीमठ, जोशीमठ, बद्रीनाथ, वसुधारा होते हुये मानसरोवर तक गये थे।
  • सन् 1876 में हरिद्वार में महाकुंभ के अवसर पर स्वामी दयानंद ने अपने मत का प्रचार किया था।
  • सत्य धर्म प्रचारिणी सभा की स्थापना 1875 में नैनीताल में की गयी थी।
  • 1879 में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना देहरादून में की गयी। इसके उपरांत आर्य समाज की शाखाएं जसपुर (1910) तथा रामगढ (1926) में स्थापित की गयी थी ।
  • 1910 में दुगड्डा में पहला आर्य समाजी स्कूल स्थापित किया गया था।
  • गढवाल युनियन व गढवाल हितकारिणी सभा सन् 1901 में तारादत्त गैरोला एवं उनके सहयोगियों द्वारा स्थापित की गयी थी।
  • 1903 में अल्मोड़ा में गोबिन्द बल्लभ पंत व हरगोबिन्द पंत के प्रयासों से हैप्पी क्लब की स्थापना हुयी। इसका प्रमुख उद्येश्य नवयुवकों में राजनीतिक चेतना का संचार करना था।
  • सरोला सभा गढवाल की प्रथम जातीय सभा थी जिसकी स्थापना सन् 1904 में तारादत्त गैरोला और उनके सहयोगियों द्वारा की गयी थी। इस जातीय सभा का मुख्यालय टिहरी में था । इस प्रकार 1864 में स्थापित चोपड़ा मिशन स्कूल पौढी में पड़ने वाले अधिकांश छात्र ब्राहाण थे।
  • नोट:- तारादत्त गैरोला गढवाल के प्रथम विधि स्नातक थे।
  • 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अल्मोड़ा के नवयुवकों ने जनता को संगठित कर सभायें आयोजित की।
  • गढवाल युनियन की ओर से सन् 1905 में देहरादून से गढवाली नामक पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ। यह पत्र प्रारंभ में पाक्षिक था और 1913 से साप्ताहिक बना दिया गया।
  • गढवाली ने अपने पहले अंक में स्थानीय जागरण 'उठो गढवालियों अब त समय यो सैण को नी छू, तजा इमोह निद्रा का आवाहन किया गया था।
  • उत्तराखंड में पत्रकारिता का पितामह विश्वम्भर दत्त चंदोला को कहा जाता है।
  • वर्ष 1906 में हरिराम त्रिपाठी ने वन्देमातरम, जिसका उच्चारण भी तब देश द्रोह माना जाता था का कुमाऊंनी में अनुवाद किया गया था।
  • सन् 1906 में चिरंजीलाल शाह द्वारा अल्मोड़ा में हुक्का क्लब की स्थापना की गयी ।
  • गढ़वाल भातृमडल की स्थापना मथुरा प्रसाद नैथाड़ी द्वारा सन् 1907 में लखनऊ में की गयी थी। इस संगठन का लक्ष्य गढ़वाल के विभिन्न जातियों के मध्य बंधुत्व व सहयोग की भावना उत्पन्न करना था।
  • भातृ मंडल का प्रथम अधिवेशन 1908 में कुलानंद बड़थ्वाल के सभापतित्व में कोटद्वार में सम्पन्न हुआ।
  • भातृ मंडल व गढवाल युनियन का विलय कर 1914 में दुगडडा में नारायण सिंह की अध्यक्षता में गढ़वाल सभा की स्थापना की गयी थी।
  • गढवाल में सनातन धर्म से प्रभावित सुधारवादी कार्यकर्ता धनीराम शर्मा ने गौरक्षिणी संगठन की स्थापना 1907 के आस पास कोटद्वार में की थी। संगठन के माध्यम से कसाइयों के हाथों गोवध के विरोध में जनमत तैयार करने का प्रयत्न किया गया था।
  • प्रसिद्ध क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने फारेस्ट रिसर्च इस्टीट्यूट देहरादून में एक कर्मचारी के रूप में नौकरी कर वहां गुप्त रूप से क्रांतिकारी संगठनों की स्थापना की वहां टैगोर विला में क्रांतिकारियों की सभा होती थी।
  • 1912 में फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनी व हार्डिंग के बच जाने के बाद रास बिहारी बोस ने देहरादून आकर शोक सभा प्रकट की।
  • वर्ष 1912 में अल्मोड़ा कांग्रेस की स्थापना हुयी थी।
  • 1913 में स्वामी सत्यदेव परिव्राजक अमेरिका भ्रमण के बाद अल्मोड़ा पहुंचे। वहां उन्होंने शुद्ध साहित्य समिति की स्थापना कर जन साधारण में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न की। इन्हीं के द्वारा 1925 ई में अल्मोड़ा में एक अनाथालय स्थापित किया गया।
  • सन् 1914 में अल्मोड़ा में होमरूल लीग की स्थापना मोहनजोशी, हेमचंद्र, चिरंजीलाल, बद्रीदत्त पांडे ने की।
  • बद्रीदत्त पांडे तिलक से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने एनी बेसेंट पर व्यंग्य करते हुए लिखा कि "हमने छली बुढिया ऐनी बसन्ती की होमरूल लीग नहीं खोली है वरन लोकमान्य तिलक वाली लीग की स्थापना की है।"
  • बद्रीदत्त पांडे तिलक से 1905 में बनारस कांग्रेस में मिले।
  • सन् 1912 में दुगडडा स्थित स्टोवेल प्रेस की स्थापना की गयी। इसी वर्ष गढवाल सभा ने गढवाली मासिक पत्र को साप्ताहिक बना कर संपादन की बागडोर गिरिजादत्त नैथाड़ी को सौपीं।
  • गढवाली के प्रख्यात नाटककार भवानीदत्त थपलियाल ने कविता और नाटक प्रहलाद के माध्यम से कन्या विक्रय, सरकारी विभागों में बढती घूसखोरी का चित्रण कर जनता को जाग्रत किया।
  • इसी बीच विचारानंद सरस्वती ने इलाहाबाद से आकर देहरादून को अपना क्षेत्र निर्धारित किया।
  • देहरादून में होगरूल लीग की एक शाखा 1918 में विचारानंद सरस्वती ने स्थापित की।
  • सन् 1922 में स्वामी विचारानंद सरस्वती ने देहरादून से अभय नामक साप्ताहिक राष्ट्रीय पत्रिका का प्रकाशन किया गया था।

कुमाऊं परिषद(Kumaon Council)

सन् 1916 में नैनीताल में कुमाऊं परिषद की स्थापना की गयी थी। कुमाऊं परिषद् की प्रथम बैठक 1916 राय बहादुर नारायण दत्त छिंदवाल के सभापतित्व में मझेड़ा अल्मोड़ा में हुयी थी। इस अधिवेशन में युवा व वृद्ध सभी प्रकार का नेतृत्व उपस्थित था। इसमें वृद्ध उदारपंथ से प्रभावित था व युवा नेतृत्व तिलक की विचारधारा से प्रभावित था।

कुमाऊं परिषद के अधिवेशन

पहला अधिवेशन(First Session)(1917)
  • कुमाऊं परिषद् का पहला अधिवेशन 1917 में अल्मोड़ा में हुआ इसकी अध्यक्षता जयदत्त जोशी ने की प्रथम अधिवेशन में परिषद् के प्रचार प्रसार की योजना बनायी गयी थी। इसके लिये लक्ष्मीदत्त शास्त्री को नियुक्त किया गया था।
दूसरा अधिवेशन(Second Session)(1918)
  • कुमाऊं परिषद का द्वितीय अधिवेशन 1918 में हल्द्वानी में हुआ अधिवेशन के सभापति तारादत्त गैरोला थे।
तीसरा अधिवेशन (Third Session)(1919)
  • कुमाऊं परिषद का तीसरा अधिवेशन 1919 में कोटद्वार में सम्पन्न हुआ। इसके अध्यक्ष रायबहादुर बद्रीदत्त जोशी व स्वागताध्यक्ष तारादत्त गैरोला थे। कोटद्वार अधिवेशन गुरू परंपरा के साथ साथ हिंदू मुस्लिम एकता के लिए भी याद किया जाता है। बद्रीदत्त जोशी हिन्दू मुस्लिम एकता के कुमाऊं में प्रणेता के रूप में जाने जाते हैं।
चौथा अधिवेशन(Forth Session)(1920)
  • कुमाऊं परिषद का चौथा अधिवेशन 1920 में काशीपुर में हरगोबिंद पंत की अध्यक्षता में हुआ था।
पांचवा अधिवेशन(Fifth Session)(1923)
  • कुमाऊं परिषद का पांचवा अधिवेशन 1923 में टनकपुर में हुआ जिसके अध्यक्ष बद्रीदत्त पांडे थे।
छठा अधिवेशन(Sixth Session)(1926)
  • इसी प्रकार कुमाऊं परिषद का एक अन्य अधिवेशन मुकुंदीलाल की अध्यक्षता में 1926 ई में गनियाद्योली अल्मोड़ा में सम्पन्न हुआ था।
नोटः कुमाऊं परिषद् तारादत्त गैरोला व हरगोविन्द पंत के द्वारा बनाई गई थी।
  • 15 अक्टूबर 1918 को बद्रीदत्त पांडे ने अल्मोड़ा में देशभक्त प्रेस की स्थापना कर शक्ति नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया।
  • वर्ष 1918 में बैरिस्टर मुकुंदीलाल और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के प्रयासों से गढवाल कांग्रेस की स्थापना हुयी थी।

गढवाल परिषद(Garhwal Council)

  • 1919 में पश्चिमी उत्तराखंड में भी गढवाल परिषद् की स्थापना की गयी। 1919 में श्रीनगर में इसका विशाल सम्मेलन हुआ।

गढवाल परिषद् का प्रथम(1920)

  • ढवाल परिषद् का प्रथम अधिवेशन कोटद्वार में 1920 में सम्पन्न हुआ।
  • सन् 1919 में कुमाऊं परिषद के सहयोग से नायक सुधार समिति की स्थापना हुयी। इसकी पहली बैठक नैनीताल में 1919 में हुयी थी।
  • जोध सिंह नेगी व प्रताप सिंह नेगी के प्रयत्नों से 1919 में क्षत्रिय सभा की स्थापना की गयी थी।
  • सन् 1920 में मोती लाल नेहरू अल्मोड़ा आये उनके सभापतित्व में बृहद सभा हुयी और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी थी।
  • 1921 में गढ़वाल कांग्रेस कमेटी के कार्यकर्ताओं की दुगड्डा में आयोजित बैठक की अध्यक्षता पुरूषोत्तम दास टंडन ने की।
  • 15 जनवरी 1922 को क्षत्रियवीर पाक्षिक समाचार पत्र का प्रकाशन सम्पादक प्रताप सिंह नेगी के सम्पादकत्व में प्रारंभ किया गया।
कुली बेगार प्रथा (Coolie Begar System)
  • कुली बेगार(Coolie Begaar)
  • पहाड़ के लोगों को ब्रिटिश अधिकारियों की यात्रा में सामान ढोने के लिए पारिश्रमिक के रूप में एक पैसा तक नहीं मिलता था। निःशुल्क उन्हें यह काम करना पड़ता था।
कुली उतार(Coolie Utaar)
  • ब्रिटिश अधिकारी व उनके कारिन्दे जब भी किसी यात्रा पर जाते थे तो उस स्थान पर रहने वालों को उन सबका
  • समान ढोकर ले जाना पड़ता था।
कुली बर्दायश(Coolie Bardayash)
  • ब्रिटिश अधिकारी जहां भी जाएं वहां के स्थानीय लोगों के लिए जरूरी था कि वे उन लोगों के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था करें।
कुली बेगार का अंत(End of Coolie Begaar)
  • सन् 1921 से पूर्व भी कुली प्रथा समाप्त करने के कई प्रयास किये गये थे। जिसकी परिणति बागेश्वर में बेगार की अंत्येष्टि के रूप में हुयी थी।
  • कमिश्नर ट्रेल ने जो कि उत्तराखंड के लोगों का हिमायती था उसने सन् 1822 में इस प्रथा को हटाने व खच्चार सेना विकसित करने का प्रयास किया किंतु यह प्रथा समाप्त न की जा सकी।
  • सन् 1840 में सर्वप्रथम लोहाघाट के आस पास के ग्रामीणों ने अपने उत्पादों को लोहाघाट छावनी में बेचना बंग कर दिया क्योंकि उनसे जबर्दस्ती बर्दायश ली जाती थी।
  • सन् 1844 में अंग्रेज यात्री पिलग्रिम को सोमेश्वर से अल्मोड़ा के बीच पर्याप्त कुली नहीं मिले थे।
  • सन् 1857 में कुली उपलब्ध कराना अत्यधिक कठिन हो गया और कमिश्नर रैम्जे को जेल के कैदियों को इस काम में लगाना पड़ा था।
  • सन् 1903 में खत्याड़ी (अल्मोड़ा) के 16 ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से बेगार में जाने से इंकार कर दिया और इस पर मुकदमा चलाया गया था।
  • सन् 1907 में अल्मोड़ा में बेगार विरोधी सभा आयोजित की गयी थी।
  • कुली एजेंसी का विचार सबसे पहले गिरिजादत्त नैथाड़ी ने दिया था।
  • पौढ़ी के तहसीलदार जोध सिंह नेगी ने सन् 1908 में ग्रामीणों के कष्टों को देखते हुये कुली एजेंसी की स्थापना की गई थी।
  • सन् 1916 के समय कुमाऊं कमिश्नर विंढम था जो व्यक्तिगत रूप से इस प्रथा का घोर विरोधी था।
  • कुमाऊं परिषद् के काशीपुर अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि उत्तरायण के मेले में जब पहाड़ के कोने कोने से जनता एकत्रित होगी तो उनके मध्य बेगार विरोधी प्रचार अधिक सफल होगा। नागपुर कांग्रेस से लौटने के बाद 10 जनवरी 1921 को चिरंजीलाल साह, बद्रीदत्त पांडे, हरगोविंद पंत सहित कुमाऊ परिषद के लगभग 50 कार्यकर्ता बागेश्वर पहुंचे। 12 जनवरी को 2 बजे बागेश्वर में जुलूस निकला जुलूस में लोग कुली उतार विरोधी नारे लगा रहे थे।
  • अंत में एक विशाल सभा हुयी जिसमें 10 हजार से अधिक लोग उपस्थित थे। 13 जनवरी के दिन कुछ कुछ मालगुजारों ने अपने गांव के कुली रजिस्टरों को सरयू में डुबो दिया था।
  • 14 जनवरी 1921 को बद्रीदत्त पांडे ने भाषण देते हुये समीप में स्थित बागनाथ मंदिर की ओर इशारा करते हुए जनता को शपथ लेने का आवाहन किया। सभी लोगो ने एक सुर में कहा हम कुली नहीं बनेंगे और रजिस्टर पुनः सरयू नदी में बहा दिये थे।
  • स्वामी सत्यदेव ने उत्तराखंड में बेगार विरोधी आंदोलन को असहयोग की पहली ईंट के रूप में संबोधित किया गया था।
  • महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को रक्तहीन कांति की संज्ञा देते हुये राष्ट्रीय आंदोलन का अगुवा कहा गया।
  • बागेश्वर में एकत्रित इस भीड़ को डिप्टी कमिश्नर डायबिल गोलियों से भून देना चाहता था लेकिन तब बद्रीदत्त पांडे ने कहा-कमिश्नर साहब कितनी गोलियां चलाओगे तुम? चलाओ, पर यह समझ लो कि जनता की यह चट्टान उनसे नहीं टूटेंगी तुम्हारी गोलियां खत्म हो जाएंगी और तुम असहाय खड़े रह जाओगे।
  • गढवाल के नौगांव क्षेत्र में इस अवधि में डिप्टी कमिश्नर पी मेशन सरकारी भ्रमण पर पहुंचे थे। किंतु इससे पूर्व की केशर सिंह रावत के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को बेगार न देने के लिये जनता को सचेत कर दिया था। ग्रामीण जनता ने जन भावना के अनुरूप पी मेशन और उनके अधीनस्थ कर्मचारियों को बेगार न देकर आंदोलन को प्रारंभ किया। डिप्टी कमिश्नर का सामान वहीं पड़ा रहा था।
  • केशर सिंह को चौंदकोट की जनता ने 'गढ केसरी' नाम की पदवी से विभूषित किया था।
  • 30 जनवरी 1921 को गढवाल के चमेटाखाल में सभा हुयी जिसकी अध्यक्षता मुकुंदीलाल ने की थी।
  • गढवाल में अनुसुया प्रसाद बहुगुणा कुली बेगार के विरोध में गांव गांव मे सभा कर जनता को जाग्रत कर रहे थे।
  • मार्च 1921 में मोहन सिंह मेहता को गिरफतार कर लिया गया यह ब्रिटिश कालीन कुमाऊं कमिश्नरी की स्वतंत्रता सेनानियों की पहली गिरफतारी थी।
  • सन् 1926 में कुमाऊ परिषद का कांग्रेस में विलय कर दिया गया था।
  • सन् 1916 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से देहरादून आये वहां उन्होंने राष्ट्रीय भावना से ओत प्रोत भाषण दिये जिससे वहां की जनता काफी प्रभावित हुयी। असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पास होते ही वहां के 1 दर्जन वकीलों ने वकालत छोड़ दी तथा विधार्थियों ने स्कुलों व कालेजों का बहिष्कार किया था।
  • सन् 1921 में गांधी जी भी बागेश्वर आये और यहां स्वराज आश्रम की आधारशिला रखी।
  • महात्मा गांधी ने बागेश्वर को उत्तराखंड की स्वर्णभूमि कहा।
  • चन्दन सिंह ठाकुर ने विधार्थियों के लिए एक राष्ट्रीय स्कूल की स्थापना की जो कई वर्षों तक चलता रहा।
  • वर्ष 1920 में जवाहर लाल नेहरू मसूरी के सेवाय होटल में ठहरे थे। उसी होटल मे अफगानिस्तान का एक शिष्ट मंडल भी ठहरा हुआ था। ब्रिटिश सरकार ने इन दोनों के साथ ठहरने पर प्रतिबंध लगा दिया और नेहरू जी को 24 घंटे के अंदर वहां से चले जाने का नोटिश जारी किया था।
  • सरकार द्वारा नेहरू पर इस तरह का प्रतिबंध लगाये जाने का देहरादून के नेताओं ने विरोध किया उन्होंने सन्  1920 में एक राजनीतिक सम्मलेन सम्पन्न कराया और पंडित जवाहर लाल नेहरू को उसका अध्यक्ष बनाया।
  • देहरादन में असहयोग आंदोलन तीव्र गति से चलने लगा। उस समय चकराता मे चार गोरा पल्टन तैनात थी। जिसके लिए देहरादून से बैलगाड़ियों द्वारा सामान पहुंचाया जाता था। सन् 1921 में मुकुंदराम बड़थ्वाल के नेतृत्व में बैलगाड़ियों द्वारा गोरों का सामान न ढोने का आंदोलन चला। फलस्वरूप गोरे सैनिकों की चकराता छावनी में सामान पहुंचाना कठिन हो गया था।
  • 15 फरवरी 1928 को प्रांतीय विधायिका में मुकुंदीलाल ने साइमन कमीशन के बहिष्कार का प्रस्ताव रखा। इसका अनुमोदन बद्रीदत्त पांडे ने किया था।
  • सन् 1929 में गांधी जी व नेहरू ने कुमाऊ क्षेत्र के भवाली, हल्द्वानी, ताड़ीखेत, अल्मोड़ा, बागेश्वर, कौसानी आदि अनेक स्थानों पर सभाएं की। कौसानी में अपने प्रवास के दौरान गांधी जी ने अनाशक्ति योग के नाम गीता की भूमिका लिखी थी।
  • अपनी प्रसिद्ध पुस्तक यंग इंडिया में उन्होंने कौसानी को भारत का स्विटजरलैंड कहा था।

Frequently Asked Questions (FAQs) 

1. उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन कब शुरू हुआ था?

उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन 1815 ई. में शुरू हुआ। इस समय गढ़वाल को दो भागों में विभाजित किया गया था - ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल।

2. ब्रिटिश गढ़वाल में प्रशासन कैसे व्यवस्थित किया गया था?

ब्रिटिश गढ़वाल को 11 परगनों और 86 पट्टियों में विभाजित किया गया। पौड़ी जिले को एकमात्र तहसील बनाया गया था और इसके वरिष्ठतम अधिकारी सहायक कमिश्नर थे।

3. गढ़वाल में ब्रिटिश शासन के दौरान भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया क्या थी?

गढ़वाल में विभिन्न बंदोबस्त प्रक्रियाएं लागू की गईं, जैसे कि पंचसाला बंदोबस्त (1823), बीस साला बंदोबस्त (1840), और विकेट बंदोबस्त (1863-73)। इनमें वैज्ञानिक तरीके से भूमि का सर्वेक्षण और वर्गीकरण किया गया था।

4. ब्रिटिश गढ़वाल में वन प्रबंधन कैसे किया गया था?

1823 में ट्रैल ने वन प्रबंधन की शुरुआत की थी। इसके बाद 1869 में कुमाऊं और गढ़वाल के वन विभाग की स्थापना की गई। गढ़वाल के जंगलों को चार मुख्य क्षेत्रों में बांटा गया था: चण्डी के वन, उदयपुर के वन, कोटली दून के जंगल, और पाटलीदून के जंगल।

5. ब्रिटिश गढ़वाल में जेल प्रबंधन का क्या हाल था?

1816 में अल्मोड़ा में पहली जेल स्थापित की गई थी और बाद में 1850 में पौड़ी में भी एक जेल स्थापित की गई थी।

6. क्या 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का असर उत्तराखंड पर पड़ा था?

हां, 1857 का स्वतंत्रता संग्राम उत्तराखंड में भी प्रभावी था। खासकर काली कुमाऊं में वीर नेता कालू मेहरा ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। इसके अलावा हल्द्वानी और नैनीताल में भी संघर्ष हुआ था।

7. ब्रिटिश गढ़वाल में शिक्षा के विकास के लिए कौन से कदम उठाए गए थे?

1840 में श्रीनगर में एलिमेंटरी वर्नाक्यूलर स्कूल की स्थापना की गई थी। 1854 में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई थी और 1901 में श्रीनगर में कोढ़ीखाना खोला गया था, जिसका खर्च टिहरी राज्य ने उठाया था।

8. ब्रिटिश गढ़वाल में किसे 'कुमाऊं का बेताज बादशाह' कहा जाता था?

हेनरी रैम्जे को कुमाऊं का 'बेताज बादशाह' कहा जाता था। वे 44 वर्षों तक कुमाऊं में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे और 28 वर्षों तक कुमाऊं कमिश्नर रहे।

9. ब्रिटिश गढ़वाल में सबसे पहले किसने भूस्खलन के कारणों का अध्ययन किया था?

1867 में नैनीताल में पहले भूस्खलन के कारणों का अध्ययन करने के लिए हिलसाइट सेफ्टी कमेटी गठित की गई थी।

10. ब्रिटिश गढ़वाल में वन अधिकारों का प्रबंधन किस प्रकार हुआ था?

गढ़वाल के जंगलों में विभिन्न प्रकार के वन अधिकार दिए गए थे, जिसमें लकड़ी काटने, चारागाह उपयोग आदि के अधिकार शामिल थे। इन अधिकारों की स्वीकृति डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा दी जाती थी।

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