वासुदेव ने भगवान कृष्ण के जीवन को कैसे बचाया?
प्रस्तावना
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण और पवित्र घटना है, जिसे जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण का जन्म एक ऐसे समय में हुआ था जब उनका मामा, कंस, उनके जीवन के लिए खतरा था। लेकिन, वासुदेव और देवकी की भक्ति और ईश्वर की कृपा से, कृष्ण सुरक्षित रूप से वृंदावन पहुँच गए। इस कहानी में ईश्वर की रहस्यमयी शक्तियों और मानव के अदम्य साहस का अद्भुत मेल देखने को मिलता है।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म
भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में कृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म के समय देवकी और वासुदेव ने प्रार्थना की कि कृष्ण एक साधारण बच्चे के रूप में बदल जाएँ ताकि वे उन्हें कंस से बचा सकें। प्रभु ने उनकी प्रार्थना सुनी और वासुदेव को सलाह दी कि वे नवजात कृष्ण को वृंदावन ले जाएँ और यशोदा की नवजात बच्ची के साथ अदला–बदली कर दें।
वासुदेव की यात्रा
प्रभु की कृपा से, वासुदेव के लिए जेल के दरवाजे, ताले और जंजीरें खुद-ब-खुद खुल गए, और जेल के पहरेदार गहरी नींद में सो गए। वासुदेव छोटे कृष्ण को एक टोकरी में रखकर रात के अंधेरे में वृंदावन की ओर निकल पड़े। इस यात्रा में सबसे बड़ी चुनौती यमुना नदी की बाढ़ थी। जैसे ही वासुदेव ने कृष्ण को सिर पर उठाकर नदी पार करने का प्रयास किया, नदी ने रहस्यमयी तरीके से कृष्ण के पैर के अंगूठे को छूते ही पीछे हटकर मार्ग दे दिया, जिससे वासुदेव सुरक्षित रूप से पार कर सके।
कृष्ण की अदला–बदली
वासुदेव वृंदावन पहुँचे और यशोदा के घर में प्रवेश कर कृष्ण की अदला–बदली कर दी। उन्होंने कृष्ण को यशोदा के पास छोड़कर उनकी नवजात बच्ची को लेकर वापस मथुरा की ओर लौट आए। जेल में पहुंचते ही, ताले और जंजीरें वापस लग गईं और पहरेदार भी जाग गए। देवकी और वासुदेव को उम्मीद थी कि कंस लड़की को छोड़ देगा, लेकिन क्रूर कंस ने बिना सोचे-समझे बच्ची को पत्थर पर फेंककर मारने का प्रयास किया। तभी वह बच्ची देवी दुर्गा में परिवर्तित हो गईं और कंस को चेतावनी दी कि कृष्ण जीवित हैं और उसके बुरे कर्मों का अंत करेंगे।
कृष्ण जन्माष्टमी की सीख
इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि कभी-कभी हमारे जीवन में शक्तियाँ होती हैं जो हमारे नियंत्रण से परे होती हैं। यदि हमारे इरादे बुरे हैं, तो हमें सफलता नहीं मिलेगी। यह भी एक प्रेरणा है कि ईश्वर की कृपा और हमारे कर्म ही हमें संकटों से निकाल सकते हैं। कंस का अंत इस बात का प्रमाण है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, अच्छाई के आगे उसे झुकना ही पड़ता है।
उपसंहार
वासुदेव द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को बचाने की यह कथा जन्माष्टमी के पर्व को और भी पवित्र और महत्वपूर्ण बनाती है। यह दिन हमें सिखाता है कि ईश्वर की कृपा से और सही मार्ग पर चलकर हम किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हैं। श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएँ हमारे लिए सदैव मार्गदर्शक बनी रहेंगी।
जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष संदेश
इस जन्माष्टमी पर, हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम भगवान श्रीकृष्ण के दिखाए मार्ग पर चलेंगे और अपने जीवन में सत्य, धर्म और न्याय की स्थापना करेंगे।
जय श्रीकृष्ण!
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