गंगा दशहरा: पुण्य और पवित्रता का पर्व

नमामि गंगे तव पादपुंज सुरासुरैर्वन्दितदिव्यरूपम्।
भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यं भावानुसारेण सदा नराणाम् ॥
हे मातु गंगे! देवताओं और राक्षसों से वन्दित आपके दिव्य चरणकमलों में नमस्कार करता हूँ, जो मनुष्यों को नित्य ही उनके भावानुसार भुक्ति और मुक्ति प्रदान करते हैं। गंगाजी देवनदी हैं, वे मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आईं। धरती पर उनका अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ। अत: यह तिथि गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई।
गंगा का अवतरण
ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष दशमी तिथि मंगलवार के दिन हस्त नक्षत्र में श्रीगंगाजी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई (पृथ्वी पर आई)। इस दिन विशेष रूप से गंगास्नान, गंगा-पूजन, दान तथा गंगाजी के स्तोत्रपाठ करने का विशेष महत्त्व है। इससे दस प्रकार के पापों (तीन प्रकार के कायिक, चार प्रकार के वाचिक तथा तीन प्रकार के मानसिक पापों) का नाश होता है, इसलिए इसे "दशहरा" कहते हैं।
वाराह-पुराण में लिखा है:
ज्येष्ठमास शुक्ल पक्ष दशमी तिथि मंगलवार के दिन हस्त नक्षत्र में गंगाजी का आगमन हुआ। इसी कारण इसे दशहरा कहा जाता है।
गंगा दशहरा के दस शुभ योग
गंगा दशहरा पर विशेष योग होते हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- ज्येष्ठ मास
- शुक्ल पक्ष
- दशमी तिथि
- बुधवार
- हस्त नक्षत्र
- व्यतिपात योग
- गर करण
- आनंद योग
- वृषभ के सूर्य
- कन्या का चन्द्र
इनमें से किसी एक दिन स्नान करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
दस प्रकार के पाप
गंगा स्नान का विशेष महत्त्व है, क्योंकि यह दस प्रकार के पापों का नाश करता है:
कायिक पाप:
- बिना दिए हुए वस्तु लेना (चोरी)
- हिंसा करना
- परस्त्रीगमन करना
वाचिक पाप:
- कठोर बोलना
- असत्य बोलना
- किसी का दोष बताना (चुगली करना)
- बेकार की बातें करना
मानसिक पाप:
- दूसरे के धन को छल-कपट से हड़पने का सोचना
- मन से दूसरे का बुरा सोचना
- नास्तिकता
पद्मपुराण में उल्लेखित है:
"पापबुद्धिं परित्यज्य गंगायां लोकमातरि। स्नानं कुरुत हे लोका यदि सद्रतिमिच्छथ॥"
इससे यह स्पष्ट होता है कि गंगाजी में स्नान करने से पूर्व जो दुष्कर्मों को त्यागने का संकल्प लेता है, वह गंगा माता की अनुकंपा से निश्चित रूप से तर जाता है।
गंगा में स्नान का तरीका
गंगाजी में स्नान करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:
- शरीर को बिना मले (बिना साबुन या मुल्तानी मिट्टी लगाए) सीधे गंगाजल में डुबकी लगाएं।
- मन में यह धारणा करें कि भगवान विष्णु के चरणों से निकले ब्रह्मद्रव रूपी अमृत से मिलन हो रहा है।
- स्नान के बाद शरीर को पोंछना नहीं चाहिए। यदि बीमारी के कारण पोंछना आवश्यक हो तो गीले गमछे से पोंछकर उसे निचोड़ दें। यह जल भी पितरों को तृप्त करता है।
निष्कर्ष
गंगा दशहरा एक ऐसा पर्व है जो न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ाता है, बल्कि मानवता के पापों का नाश भी करता है। इस दिन गंगा स्नान, पूजा और दान करने से आत्मिक शुद्धि और कल्याण की प्राप्ति होती है।
इस गंगा दशहरा पर गंगाजी की कृपा सभी पर बनी रहे, और सभी के पाप दूर हों!
हर हर गंगे!
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FAQ:
गंगा दशहरा कब मनाया जाता है?
- गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है।
गंगा में स्नान करने का क्या महत्व है?
- गंगा में स्नान करने से दस प्रकार के पापों का नाश होता है और आत्मिक शुद्धि की प्राप्ति होती है।
गंगा दशहरा पर क्या विशेष पूजा की जाती है?
- इस दिन गंगास्नान, गंगा-पूजन, दान और गंगाजी के स्तोत्र पाठ करने का विशेष महत्व है।
गंगा दशहरा का क्या धार्मिक महत्व है?
- गंगा दशहरा का महत्व गंगाजी के अवतरण से जुड़ा है, जो मानवता के कल्याण के लिए धरती पर आईं।
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