चंदर सिंह राही: उत्तराखंड की संगीतमय विरासत के दो नायक (Colonel Chandra Singh Negi and Chander Singh Rahi: Two heroes of Uttarakhand's musical heritage)

कर्नल चन्द्र सिंह नेगी और चंदर सिंह राही: उत्तराखंड की संगीतमय विरासत के दो नायक

उत्तराखंड का इतिहास और संस्कृति अपनी लोक कला, संगीत और वीरता के लिए जाना जाता है। इस भूमि ने न केवल वीर सैनिकों बल्कि अद्भुत कलाकारों और लोक गायकों को भी जन्म दिया है। कर्नल चन्द्र सिंह नेगी और चंदर सिंह राही (चंदर सिंह नेगी) उत्तराखंड के ऐसे दो महान व्यक्तित्व हैं जिन्होंने अपने योगदान से राज्य की संगीतमय और सांस्कृतिक धरोहर को नई ऊँचाइयाँ दीं।

कर्नल चन्द्र सिंह नेगी: वीरता और संघर्ष का प्रतीक

प्रारंभिक जीवन और फौजी करियर: कर्नल चन्द्र सिंह नेगी का जन्म 1895 में पौड़ी गढ़वाल के ग्राम हैड़ाखोली पट्टी असवालस्यूं में हुआ था। उनका परिवार काफी संघर्षशील था, और उनके पिता के असमय निधन के बाद, चन्द्र सिंह ने फौज में भर्ती हो गए। सन् 1919 में उन्होंने मैसोपोटामिया में युद्ध में भाग लिया और 1939 में सूबेदार के पद पर नियुक्त हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना द्वारा जापानियों के समक्ष आत्मसमर्पण के बाद, चन्द्र सिंह नेगी और अन्य गढ़वाली सैनिकों को आजाद हिन्द फौज में सम्मिलित किया गया।

सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में उन्होंने आजाद हिन्द फौज के साथ बर्मा और मलाया में संघर्ष किया। 1946 में युद्धबंदी के रूप में उन्हें दिल्ली के लाल किले में कैद किया गया, लेकिन जल्द ही उन्हें रिहा कर दिया गया। आजादी के बाद, उन्होंने आजाद हिन्द फौज के सैनिकों की मदद की और उन्हें घर वापसी और पेंशन सुविधा दिलाई।

मृत्यु और सम्मान: 24 नवम्बर 1953 को उनका निधन हुआ, और आज भी उनकी वीरता और संघर्ष की कहानी उत्तराखंड के हर गढ़वाली के दिल में जीवित है।

चंदर सिंह राही: उत्तराखंड के लोक संगीत के "भीष्म पितामह"

प्रारंभिक जीवन और संगीत यात्रा: चंदर सिंह राही का जन्म 28 मार्च 1942 को पौड़ी गढ़वाल के गिवाली गाँव में हुआ था। उनके पिता भी लोक संगीत के गायक थे और उन्होंने अपनी संगीत यात्रा का आरंभ बचपन में ही पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों के साथ किया। चंदर सिंह नेगी ने गढ़वाली लोक संगीत को न केवल अपने गायन से सजीव किया, बल्कि इसके विभिन्न रूपों का संरक्षण भी किया।

उन्होंने 2500 से अधिक पारंपरिक गानों को संकलित किया और उन्हें पुनर्जीवित किया। उनकी आवाज ने उत्तराखंड के लोक संगीत को एक नया आयाम दिया, और वे दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले पहले गढ़वाली गायक बने। उनके गीतों में खुदेर गीत, जागर, पंवारा, बरहाई, मेला गीत जैसे विविध प्रकार के लोक संगीत शामिल हैं।

प्रसिद्ध गाने और योगदान: चंदर सिंह ने गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं में 500 से अधिक गीत गाए। उनके प्रसिद्ध गाने जैसे "फवा बाघा रे", "चैता की चैत्वाली", "भाना रंगीला भाना", "सतपुली का सेन्ना" और "सौली घूरा घूर" आज भी उत्तराखंड के लोगों के दिलों में बसे हैं। उनके काव्य संग्रह जैसे "दिल को उमाल", "ढाई", "रामछोल" और "गीत गंगा" भी प्रसिद्ध हैं।

पुरस्कार और सम्मान: चंदर सिंह राही को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला सम्मान, गढ़ भारती, और गढ़वाल सभा सम्मान शामिल हैं। उनकी संगीत यात्रा की 50वीं वर्षगांठ पर "लोक का चितेरा" पुस्तक लिखी गई, और उनके परिवार ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया। उनके छोटे बेटे राकेश भारद्वाज ने उनके गीतों को भारतीय रॉक पॉप बैंड "यूफोरिया" के माध्यम से ऑनलाइन रिलीज किया।

मृत्यु और विरासत: चंदर सिंह राही का निधन 10 जनवरी 2016 को दिल्ली में हुआ, लेकिन उनकी संगीत विरासत आज भी उत्तराखंड के कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके परिवार के सदस्य आज भी उनके संगीत को आगे बढ़ा रहे हैं और उत्तराखंड के लोक संगीत की अनमोल धरोहर को सहेजने का काम कर रहे हैं।

चंदर सिंह राही: उत्तराखंड के लोक संगीत के भीष्म पितामह

चंदर सिंह राही, जिनका असली नाम चंदर सिंह नेगी था, उत्तराखंड के एक असाधारण लोक गायक, संगीतकार, कवि और सांस्कृतिक रक्षक थे। उनका जन्म 28 मार्च 1942 को पौड़ी गढ़वाल जिले के गिवाली गांव में हुआ। उनके परिवार में संगीत की गहरी धारा थी, और उनके पिता भी एक प्रसिद्ध लोक गायक थे।

चंदर सिंह ने अपने जीवन के पहले दिनों से ही पहाड़ी संगीत वाद्ययंत्रों में हाथ आजमाया। उन्होंने डमरू, ठाकुली, हुरुकी, और अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों पर संगीत साधना शुरू की थी। उनका सबसे प्रसिद्ध गीत "दिल को उमाल" था, जिसे उन्होंने अपने गुरु कन्हैयालाल डंडियाल के लिए लिखा था।

उन्होंने उत्तराखंड के पारंपरिक लोक गीतों को 2500 से अधिक गानों में संग्रहित किया और उन्हें पुनर्जीवित किया। उनकी कड़ी मेहनत के कारण वे उत्तराखंड लोक संगीत के "भीष्म पितामह" के रूप में सम्मानित हुए।

चंदर सिंह राही ने 500 से ज्यादा गाने गाए और 140 से अधिक ऑडियो कैसेट जारी किए। उन्होंने अपने जीवन में 1500 से अधिक लाइव शो किए और लोक संगीत की कई विधाओं में योगदान दिया। उनके द्वारा गाए गए गीत जैसे "फवा बाघा रे", "सरग तारा जुन्याली राता", और "चैता की चैत्वाली" आज भी उत्तराखंड के लोगों के दिलों में गूंजते हैं।

चंदर सिंह राही की गहरी निष्ठा और योगदान के कारण उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए, जैसे मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला सम्मान और गढ़ भारती, गढ़वाल सभा सम्मान पत्र। उनका निधन 10 जनवरी 2016 को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में हुआ, लेकिन उनकी संगीत और सांस्कृतिक धरोहर आज भी जीवित है।

कर्नल चन्द्र सिंह नेगी और चंदर सिंह राही की विरासत

कर्नल चन्द्र सिंह नेगी और चंदर सिंह राही दोनों ने अपने-अपने क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। जहां कर्नल नेगी ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी बहादुरी से देश को गौरवान्वित किया, वहीं चंदर सिंह राही ने उत्तराखंड के लोक संगीत को नई पहचान दिलाई। दोनों की जीवंत प्रेरणा आज भी हमें अपने राष्ट्र और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जिम्मेदारी का अहसास कराती है।

उनकी प्रेरणा से आज भी उत्तराखंड के कई कलाकार और संगीतकार आगे बढ़ रहे हैं। चंदर सिंह राही के गीत और कर्नल चन्द्र सिंह नेगी की बहादुरी की कहानियाँ उत्तराखंड की धरोहर बन गई हैं।

इन दो महान व्यक्तित्वों की प्रेरणा से हम यह समझ सकते हैं कि कला, संस्कृति और देशभक्ति का कोई भी कार्य अपने आप में अनमोल है, और यह न केवल हमें गर्वित करता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत आधार भी स्थापित करता है।

निष्कर्ष

कर्नल चन्द्र सिंह नेगी और चंदर सिंह राही, दोनों ही उत्तराखंड की वीरता और सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक हैं। एक ने भारतीय सेना में अपनी वीरता का परिचय दिया, तो दूसरे ने लोक संगीत के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी। इनके योगदान से उत्तराखंड की संस्कृति और संप्रभुता को एक नई दिशा मिली, और आज भी उनकी कहानियां और संगीत हमारे दिलों में जीवित हैं।

FAQs: कर्नल चन्द्र सिंह नेगी और चंदर सिंह राही

1. कर्नल चन्द्र सिंह नेगी कौन थे?

  • उत्तर: कर्नल चन्द्र सिंह नेगी एक स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय सेना के अधिकारी थे। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया और बाद में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज में शामिल हुए।

2. कर्नल चन्द्र सिंह नेगी की स्वतंत्रता संग्राम में क्या भूमिका थी?

  • उत्तर: कर्नल नेगी ने भारतीय सेना में सेवाएं दीं और आजाद हिन्द फौज में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया। उन्होंने ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ संघर्ष किया और भारत की स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिया।

3. चंदर सिंह राही कौन थे?

  • उत्तर: चंदर सिंह राही उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक, कवि, और संगीतकार थे। उन्होंने उत्तराखंड की लोक संगीत और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित किया और उसे देशभर में पहचाना।

4. चंदर सिंह राही का संगीत क्या खास था?

  • उत्तर: चंदर सिंह राही का संगीत उत्तराखंड की पारंपरिक लोक धुनों और गीतों से प्रेरित था। उन्होंने 500 से अधिक गाने गाए और उत्तराखंड के पारंपरिक लोक संगीत को एक नई पहचान दी। उनके प्रसिद्ध गीतों में "फवा बाघा रे", "चैता की चैत्वाली" और "दिल को उमाल" शामिल हैं।

5. कर्नल चन्द्र सिंह नेगी का निधन कब हुआ था?

  • उत्तर: कर्नल चन्द्र सिंह नेगी का निधन 24 नवम्बर 1953 को हुआ था।

6. चंदर सिंह राही का योगदान किस क्षेत्र में था?

  • उत्तर: चंदर सिंह राही का योगदान उत्तराखंड के लोक संगीत और संस्कृति को संरक्षित और लोकप्रिय बनाने में था। उन्होंने 2500 से अधिक लोक गीतों को संकलित किया और उन्हें प्रस्तुत किया।

7. चंदर सिंह राही को कौन से सम्मान मिले थे?

  • उत्तर: चंदर सिंह राही को उनके संगीत और संस्कृति के योगदान के लिए कई सम्मान मिले, जिनमें मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला सम्मान और गढ़ भारती, गढ़वाल सभा सम्मान पत्र शामिल हैं।

8. क्या कर्नल चन्द्र सिंह नेगी की कोई विशेष पहचान थी?

  • उत्तर: कर्नल चन्द्र सिंह नेगी की विशेष पहचान उनके साहस और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए थी। उन्होंने आजाद हिन्द फौज में अपनी भूमिका निभाई और भारतीय सैनिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

9. चंदर सिंह राही के गीतों का उत्तराखंड की संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा?

  • उत्तर: चंदर सिंह राही के गीतों ने उत्तराखंड की संस्कृति और लोक संगीत को पुनर्जीवित किया। उनके गीत आज भी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं और युवा पीढ़ी के बीच सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पहचाने जाते हैं।

10. कर्नल चन्द्र सिंह नेगी का क्या योगदान स्वतंत्रता संग्राम के बाद था?

  • उत्तर: कर्नल चन्द्र सिंह नेगी ने स्वतंत्रता संग्राम के बाद आजाद हिन्द फौज के सैनिकों के लिए पेंशन की व्यवस्था और उनके सम्मान के लिए कार्य किए। उन्होंने सैनिकों के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष किया।

11. क्या चंदर सिंह राही की विरासत आज भी जीवित है?

  • उत्तर: हां, चंदर सिंह राही की विरासत आज भी जीवित है। उनके गाने और संगीत उत्तराखंड की लोक संस्कृति का अहम हिस्सा बन गए हैं, और वे उत्तराखंड के लोक संगीत के सबसे बड़े नायक माने जाते हैं।

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