कुमाउनी क्षेत्र की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ (Dialects and dialects of Kumaoni region)

कुमाउनी क्षेत्र की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ

कुमाऊँनी संस्कृति की झलकः लोकगीत(Glimpses of Kumaoni Culture: Folklore )

कुमाउनी भाषा साहित्य (Kumaoni Language Literature)

कुमाउनी साहित्य में वर्णित समाज (Society described in Kumaoni literature)

कुमाउनी क्षेत्र की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ (Dialects and dialects of Kumaoni region)

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कुमाऊँनी का लिखित पद्य साहित्य(Written Verse Literature of Kumaoni )

कुमाउनी लोकसाहित्यः अन्य(Kumaoni Folklore: Others )

 प्रस्तावना

कुमाउनी हिंदी प्रदेश की एक समृद्ध भाषा है। किसी भी समृद्ध भाषा की एक पहचान यह भी हो सकती है कि उसने अपनीबोलियाँ विकसित की हैं या नहीं। इस दृष्टि से कुमाउनी की उपभाषा व बोली दोनों समृद्ध हैं।
 भाषा का लंबा इतिहास,
समृद्ध साहित्य, राष्ट्रीय गति में उस भाषा का अपना योगदान, ये कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जिसके आधार पर उस भाषा की समृद्धता का हम मूल्यांकन कर सकते हैं। उत्तराखंड का कुमाऊं परिक्षेत्र अपनी समृद्ध भाषाई संस्कृति के लिए ख्यात रहा है। यह परिक्षेत्र हिमालयी परिक्षेत्र रहा है। इस कारण उत्तराखंड को कुमाऊँ हिमालय तथा गढ़‌वाल हिमालय जैसे नामों से विभाजित कर दिया गया है। इस इकाई में हम कुमाउनी भाषा के अंतर्गत आने वाले उपभाषा व बोलियों का अध्ययन करेंगे।

उद्देश्य

कुमाउनी भाषा की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ नांमक इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप-
  • कुमाउनी भाषा के परिक्षेत्र को समझ सकेंगे।
  • कुमाउनी भाषा के उपभाषाओं को जान सकेंगे।
  • कुमाउनी भाषा की प्रमुख बोलियों से परिचित हो सकेंगे।
  • कुमाउनी भाषा के उपभाषा व बोलियों के क्षेत्र से परिचित हो सकेंगे।
  • कुमाउनी भाषा के उपभाषा व बोलियों की प्रकृति को समझ सकेंगे।

कुमाउनी भाषी क्षेत्र

पृष्ठभूमि

उत्तराखंड के पर्वतीय भू-भाग को मध्य हिमालय के नाम से अभिहित किया जाता है। मध्य हिमालय को भी दो भागों में विभक्त किया गया है। एक, कुमाऊँ हिमालय तथा दूसरे, गढ़‌वाल हिमालया कुमाऊँ हिमालय की भौगोलिक स्थिति लगभग 28-51 से 30-49 उत्तरी अक्षांश तथा 77-43 से 81-31 पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। कुमाऊँ हिमालय के उत्तर में तिब्बत, पूर्व में नेपाल, दक्षिण में मुरादाबाद, रामपुर, बरेली एवं पीलीभीत जनपद तथा पश्चिम में गड़वाल जनपद के पौड़ी एवं चमोली जनपद स्थित हैं। कुमाऊँ परिक्षेत्र के अंतर्गत नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़,, ऊधमसिंह नगर, बागेश्वर तथा चंपावत आते हैं। कुमाऊं के इस क्षेत्र को ही कुमाउनी भाषी क्षेत्र कहते हैं।

कुमाउनी भाषी क्षेत्र

कुमाउनी भाषी क्षेत्र को मानस खंड व उत्तर कुरु नाम से हुआ है। यहाँ पर विभिन्न जाति के लोगों ने शासन किया। इसका  प्रभाव कुमाउनी भाषा व इसकी बोलियों पर देखा जा सकता है।
कुमाऊँ मंडल में मुख्यतः पाँच बोलियाँ बोली जाती है
  • कुमाउनी, 
  • राजी, 
  • भोटिया (शौका), 
  • बुक्सा, 
  • धारूप सुविधा की दृष्टि से एवं भाषाई वैविध्य को ध्यान में रखते हुए 

कुमाउनी को दो वर्गों में बाँटा गया है। 

  1. पूर्वी कुमाउनी 
  2. पश्चिमी कुमाउनी।
पूर्वी कुमाउनी को 4 उपचोलियों में विभक्त किया गया है। ये उपबोलियाँ हैं- 
  1. कुमय्यों, 
  2. सोर्याली, 
  3. सीराली, 
  4. अस्कोटि। 
इसी प्रकार पश्चिमी कुमाउनी की मुख्यतः 6 उपबोलियाँ मानी गयी हैं। ये 6 उपबोलियाँ हैं- 
  1. खसपर्जिया, 
  2. चौगर्खिया,
  3. गंगोली, 
  4. बनपुरिया, 
  5. पछाई, 
  6. रौ चौबेंसी। 
इस प्रकार कुमाउनी भाषी क्षेत्र की ये मुख्य बोलियों मानी गयी हैं।

कुमाउनी की उपभाषाएँ

उपभाषाएँ एवं क्षेत्र
    ऊपर हमने बताया कि दस बोलियों का समूह कुमाउनी के नाम से जाना जाता है। अल्मोड़ा में कुमाउनी भाषा का बड़ा केंद्र है। अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत शौका या भोटिया (रङ्ग) बोली का प्रयोग किया जाता है। इनको गैर-कुमाउनी भाषी लोगों के अंतर्गत परिगणित किया जाता है। अल्मोड़ा जनपद पश्चिमी कुमाउनी भाषी क्षेत्र के अंतर्गत आता है। खसपर्जिया इसकी प्रतिनिधि बोली है, जो अल्मोड़ा व उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है। खसपर्जिया को ही मानक कुमाउनी के रूप में मान्यता देने का आग्रह भाषा चिंतकों द्वारा किया जाता रहा है। अल्मोड़ा के पूर्व में पिथौरागढ़ जिला स्थित है। 

बोली की दृष्टि से पिथौरागढ़ जिले को दो भागों में बांटा गया है- 
  1. कुमाउनी भाषी क्षेत्र 
  2. गैर कुमाउनी भाषी क्षेत्रा

कुमाउनी भाषी क्षेत्र के अंतर्गत कुमाउनी की चार उपबोलियाँ बोली जाती हैं-

  1. कुमय्यों, 
  2. सोंयोलों, 
  3. सीराली तथा 
  4. अस्कोटी।

 ये सभी बोलियाँ पूर्वी कुमाउनी के अंतर्गत आती हैं। गैर कुमाउनी क्षेत्र को तीन भागों में बाँटा जा सकता है
  • जोहारी बोली क्षेत्र, 
  • रङ्ग बोली क्षेत्र 
  • राजी बोली क्षेत्रा 
  • मुनस्यारी क्षेत्र की 

जोहार घाटी में रहने वाली शौका जनजाति की बोली जोहारी कहलाती है। तथा धारचूला तहसील के दारमा, ब्यौन्स एवं चौनदौस क्षेत्र में रहनेवाले शौकाओं (भोटियों) की बोली रङ् कहलाती है। पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला एवं डीडीहाट के अंतर्गत अनेक गांवों में निवास करने वाले राजी (वनरीत) जनजाति की बोली राजी कहलाती है।
 नैनीताल जिले में मुख्यतः तीन बोलियाँ बोली जाती है
  • कुमाउनी, 
  • बुक्सा 
  • थारु।

बुक्सा व धारु बोलियाँ वहां निवास करने वाली बुक्सा एवं थारू जन जातियों द्वारा बोली जाती है। अतः इन बोलियों को जनजाति बोली भी कहा जा सकता है। नैनीताल जिले में बोलियों के दो वर्ग चिन्हित किये गए हैं। कुमाउनी बोली वर्ग तथा जनजातीय बोली वर्ग। कुमाउनी बोली नैनीताल जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में और नीचे के क्षेत्रों में बोली जाती है।

कुमाउनी की बोलियाँ

विद्यार्थियो! अभी तक आपने कुमाउनी की प्रमुख उपभाषाओं का अध्ययन किया। अब हम कुमाउनी की प्रमुख बोलियों का संक्षेप में परिचय प्राप्त करेंगे। 

पश्चिमी कुमाउनी की बोलियाँ

खसपर्जिया- यह पश्चिमी कुमाउनी की बोली है। इस बोली को खासपर्जिया या खासप्रजा भी कहते हैं। यह बोली मुख्यतः बारामंडल परगने में बोली जाती है। बारह मंडलों के सामूहिक क्षेत्र को ही बारामंडल कहा गया। अल्मोड़ा नगर में बोली जाने वाली इसपर्जिया को ही परिनिष्ठित कहते हैं। तथा इसी क्षेत्र की कुमाउनी को ही परिनिष्ठित कुमाउनी भी कहते हैं। खसपर्जिया खास लोगों द्वारा बोली जाती है। कुछ लोग इसे खस जाति की बोली कहते हैं।

चौगर्खिया- चौगर्खिया बोली भी पश्चिमी कुमाउनी की बोली है। चौगर्खिया बोली का क्षेत्र काली कुमाऊं परगने का उत्तरी पश्चिमी भाग है। चार दिशाओं की ओर फैली हुई चार पर्वत श्रेणियों के कारण इस क्षेत्र को चौगखां कहा जाता है। एक जनश्रुति के अनुसार इस क्षेत्र में कभी गोरखा वीर रहा करते थे। इसलिए यह क्षेत्र चौगखां कहलाया। इसके पूर्व में रंगोड़ तथा पश्चिम में दारूण पट्टियां हैं। दक्षिण में सालम तथा पश्चिम में लखनपुर है। इस क्षेत्र की बोली खसपर्जिया के अधिक निकट है। चौगर्खिया क्षेत्र खसपर्जिया, गंगोली, कुमव्यां तथा री-चौभैसी से घिरा हुआ है। इस कारण इसका पश्चिमी क्षेत्र जहाँ खसपर्जिया से प्रभावित है, वहीं पूर्वी क्षेत्र में पूर्वी कुमाउनी की भी विशेषताएं मिलती हैं। डॉ त्रिलोचन पांडे ने चौगर्खिया को खसपर्जिया का पूर्वी विस्तार कहा है।

गंगोली या गंगोई गंगोली पश्चिमी कुमाउनी की बोली है। सरयू और रामगंगा का दक्षिणवर्ती क्षेत्र गंगोली या गंगावर्ती कहलाता है। यह बोली गंगोली तथा उत्तर में उससे लगे दानपुर परगने के कुछ गांवों में बोली जाती है। इसके अंतर्गत बेलबड़ाऊं, पुंगराऊँ, अठगांऊँ और कुमेश्वर पट्टियां आती हैं।

दनपुरिया- दनपुरिया पश्चिमी कुमाउनी की बोली है। दनपुरिया बोली का क्षेत्र दानपुर है। यह बोली दानपुर के अतिरिक्त तल्ला दानपुर, मल्ला कत्यूर, तल्ला कत्यूर, बिचला कत्यूर, पल्ला कमस्वार, यल्ला कमस्यार, डुंग, नाकुरी तथा मल्ला रीठागांड़ आदि क्षेत्रों मरण बोली जाती है। मल्ला दानपुर इस बोली का मुख्य केंद्र है। इसके पश्चिम में गढ़वाल तथा पूर्व में जोहार क्षेत्र पड़ता है। दानपुरिया बोली क्षेत्र से लगा गंगोली बोली क्षेत्र है। दानपुर परगने के पश्चिमी भाग में गोमती तथा सरयू हैं। ये दोनों नदियां बागेश्वर में मिलती हैं। इन क्षेत्रों की बोलियों का प्रभाव भी दनपुरिया पर दिखता है। पछाई पछाई पश्चिमी कुमाउनी की एक और बोली है। रामगंगा के ऊपर नैथाना पर्वत श्रेणी के निचले भाग में पाली नांमक कस्बे के नाम पर कुमाऊं का पश्चिमी भू-भाग पछाऊँ कहलाया। इस पाली पछाऊँ परगने की बोली ही पछाई कहलाती है। रानीखेत की झूलादेवी चोटी से बैनापट तथा चौमू पर्वत श्रेणी तक फैले हुए क्षेत्र को फलदाकोट तथा उसका पश्चिमवत्र्ती भाग पाली कहलाता है। पाली पछाऊँ परगने के ही कुछ पश्चिमी तथा उत्तर पश्चिमी गांवों में गढ़वाली बोली जाती है। पाली-पछाऊँ में गेवाड़ (गिवाड), चौकोट, दोरा (द्वारा, सल्ट, सिलोर, मासी, चौखुटिया आदि पट्टियां आती

री-चीभैंसी- इस बोली को रौ-चौबेंसी भी कहा जाता है। यह पश्चिमी कुमाउनी की ही बोली है। यह बोली नैनीताल जिले के रौ व चौभैंसी नांमक पट्टियों में बोली जाती है। इसके अतिरिक्त रामगढ़ तथा छखाता के पर्वतीय क्षेत्रों में भी इस बोली को बोला जाता है। नैनीताल जिले के कोसी नदी के खैरना से लेकर रामनगर तक फैले भाग को कोस्यां कहा जाता है। इस बोली पर खसपर्जिया का प्रभाव है। रौ-चौबेंसी बोली से खसपर्जिया तथा चौगर्खिया से साम्य है।

पूर्वी कुमाउनी की बोलियाँ

कुमच्यों (कुमाई) - यह काली कुमाऊं क्षेत्र की बोली है। काली (शारदा) नदी के किनारे बसे होने के कारण इस क्षेत्र को काली कुमाऊं के नाम से जाना जाता है। काली कुमाऊं की बोली कुमव्यां या कुमाई नाम से जानी जाती है। इसके उत्तर में पनार तथा सरयूं नदियां, पूर्व में काली नदी, दक्षिण में भाबर तथा पश्चिम में लधिया नदी से युक्त देवीधूरा पर्वतमाला है। लोहाघाट और चंपावत की बोली को ही कुमाई बोली कहते हैं। यह बोली पूर्वी कुमाउनी की प्रतिनिधि बोली है। सोर्याली- पिथौरागढ़ जिले के सोर परगने की बोली सोर्याली कहलाती है। सोर का मुख्य भू-भाग सैण या मैदानी है। शायद इसीलिए इस क्षेत्र को सैणी सोर कहते हैं। पूर्व में यह क्षेत्र काफी समय तक नेपाली शासन के अधीन रहा था। सोर शब्द नेपाली में सोहोर ( तीव्रगामी बहाव) के अर्थ में मिलता है। संभवतः इसके पूर्व इस स्थान पर झीलें रही हों। भौगोलिक दृष्टि से पिथौरागढ़ जिले का सोर परगना नेपाल का सीमावर्ती भाग है। नेपाल के निकट होने के कारण सोर्याली पर खसकुरा या नेपाली का प्रभाव दिखता है। कुछ विद्वान सोर्याली को ही पूर्वी कुमाउनी की प्रतिनिधि बोली मानने के पक्षधर हैं।

सीराली- यह पूर्वी कुमाउनी की बोली है। पिथौरागढ़ जिले में अस्कोट के पश्चिम तथा गंगोली के पूर्व का भूभाग सीरा कहलाता है। सीरा क्षेत्र की बोली सीराली या सीर्याली कहलाती है। सीराली बोली पर अस्कोटी, सोर्याली, गंगोली तथा जोहारी बोलियों का प्रभाव दिखाई देता है।

अस्कोटी- अस्कोटी पूर्वी कुमाउनी की बोली है। पिथौरागढ़ जिले के सीरा भूभाग के उत्तर-पूर्व में स्थित अस्कोट क्षेत्र की बोली को अस्कोटी कहा जाता है। अस्कोटी बोली, सोर्याली जैसी मानी जाती है। जोहार तथा नेपाल के निकटवर्ती क्षेत्र होने के कारण इसमें जोहारी व नेपाली का प्रभाव भी दिखता है। यह क्षेत्र राजी जनजाति का निवास स्थल भी है। इस कारण अस्कोटी पर राजी बोली का प्रभाव भी है।

सारांश

प्रिय छात्रों! इस इकाई में आपने कुमाउनी भाषी क्षेत्र की प्रमुख उपभाषाओं एवं बोलियों के संदर्भ में अध्ययन किया। इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आपने जाना कि कुमाऊं का भाषा क्षेत्र पूर्वी कुमाऊं और पूर्वी कुमाऊं के नाम से जाना जाता है। पूर्वी कुमाऊँ के अंतर्गत चार उपभाषाएँ तथा पश्चिमी कुमाऊं के अंतर्गत छह उपभाषाएँ बोली जाती हैं। इन उपभाषाओं के अंतर्गत भी अनेक समृद्ध बोलियाँ बोली जाती हैं। इस प्रकार कुमाऊं भाषा का अपना समृद्ध संसार है।

शब्दावली

मध्य हिमालय- हिमालय के बीच का हिस्सा
बोली- भाषाओं का क्षेत्रीय रूप
भाषाई वैविध्य भाषाओं की विविधता
समृद्ध - भरा-पूरा

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