लिखित साहित्य में वर्णित समाज
लिखित साहित्य का आरम्भ विद्वान कुमाउनी में सर्वप्रथम लोक रत्न पंत गुमानी (1790-1846) से आरम्भ मानते हैं गुमानी के लेखन में अंग्रेज राज के प्रति अनुरागी और विद्रोही दोनों भाव दीखते हैं। गुमानी की कविता में पर्वतीय अभिजन जीवन का स्वाभाविक चित्रांकन हुआ है। विद्वान् मानते है कि गुमानी ने हलवाहा, विधवा एंव सामान्य पहाड़ी जन का सहज और आत्मीय चित्रण किया है। गुमानी की कविता में आये सन्दर्भों को आधार बनाकर कुमाउनी हिंदी साहित्य की दलित धारा गुमानी को जाति विशेष का कवि मानती है।
दूसरे प्रमुख कवि कृष्णानंद पाण्डे माने जाते हैं। इनका जन्म 1800 में अल्मोड़ा के पाटिया गाँव में हुआ। गुमानी द्वारा स्थापित कुर्मोऊनी काव्य परंपरा को एक तरह से इन्होंने ही आगे बढ़ाया था। इनकी कविताएं पुस्तकाकार में नहीं मिलती। गंगादत्त उप्रेती ने इनकी रचनाओं का संग्रह और अनुवाद किया। 1910 ई0 में ग्रिर्वसन ने इनकी कविताओं का प्रकाशन 'इंडियन एन्टिक्वैरी' में किया। इनकी कविता में भक्ति, समाज सुधार, व्यंग्य-विनोद पूर्ण कविताएं मिलती हैं। युगीन सामाजिक एवं राजनीतिक विषमताओं पर भी इन्होंने करारी चोट की। इनकी मृत्यु 50 वर्ष की अवस्था में सन् 1850 वर्ष में हुई। उनकी 'मुलुक कुमाऊँ' तथा 'कलयुग वर्णन' कविताएं उन्नीसवीं सदी के आरंभिक कुर्मोऊनी समाज का व्यापक साँचा खींचती हैं। देखें -
'मुलुकिया यारो कलयुग देखो।
घर - कुडि बेचि बेर इस्तीफा लेखो ।।
बद्री केदार बड़ भया धाम।
धर्म कर्म की के न्हाती फाम ।।"
1850-1900 ई0 तक) इस युग के प्रमुख कवि चिन्तामणि ज्योतिषी तल्ला दन्या अल्मोड़ा (सन् 1874-1934) हैं। इन्होंने सन् 1897 में दुर्गा (चंडी) पाठसार को कुर्मोऊनी भाषा में अनुवाद किया। इनके उपलब्ध कुमाऊनी अनुवाद हैं- सत्यनारायण कथा तथा भगवद्गीता। नैन सुख पाण्डे पिलखवा गांव के निवासी थे। इनकी मृत्यु और जन्म के बारे में विद्वान केवल यह मानते आये हैं कि इनका जन्म 1850 के बाद ही हुआ होगा। इनकी कुछ कुर्माऊनी स्फुट रचनाएं मिलती हैं। इनकी एक रचना है, जिसमें इन्होंने घरेलू काम धंधों में आने वाले औजारों का वर्णन किया है।
शिवदत्त सती शर्मा का कुर्मोऊनी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान है। इनका जन्म 1848 में फलवाकोट अल्मोड़ा में हुआ। ये बचपन से कृषि कार्य से जुड़े रहे। अन्धविश्वासों से दूर समाज सुधार के प्रबल समर्थक थे। इनकी आठ रचनाओं का उल्लेख विद्वान प्रायः करते हैं। मित्र विनोद, घसियारी नाटक, गोपी गीत, बुद्धि प्रवेश भाग 1, बुद्धि प्रवेश भाग-2, बुद्धि प्रवेश भाग- 3. रुक्मणि विवाह, प्रेम और मोह। पसियारी नाटक में पहाड़ी जन जीवन की कठिनाईयों और अंग्रेजों द्वारा किये जाने मनमाने व्यवहार और उत्पीड़न को नाटकीय शैली में प्रस्तुत किया है।
गोपी देवी का गीत में स्त्री जीवन और उसके वैविध्य का कारूणिक चित्रण हुआ है। उत्तर मध्य युग (सन् 1950 से आज तक) गीदों का जन्म अगस्त 1872 अक्टूबर में हुआ। गौर्दा का साहित्य कुमाऊनी साहित्य का स्वर्णिम शिखर है। उनकी चेतना और साहित्यिक समझ को कुर्माऊनी साहित्य में कोई नहीं छू पाया है। गौर्दा एक ऐसे समय की उपज थे, जब एक तरफ भारतीय राष्ट्रवाद का उदय हो रहा था और दूसरी ओर स्थानीय जन आन्दोलन स्फूरित हो रहे थे। गौंर्दा की चेतना इसी युग में निर्मित हुई।
"गौर्दा उन कवियों में हैं, जिन्होंने अपने वर्ग से सीधी मुठभेड़ की। 'गीं कि रानी या आपु जैसि में करो, या मैं जैसि तुम है जाओ' ऐसी चुनौती अपने तथाकथित बुद्धिजीवी कहलाने वाले पाखंडी अभिजन समाज को जो वैचारिक बांझपन से ग्रस्त था गौर्दा ही दे सकते थे। उनके कुमाउनी लेखन को पढ़ते हुए हिंदी के कवि निराला याद आते हैं। गाँर्दा की यह घोषणा उस समय की है, जब बारातों और उत्सवों में गरीब आदमी को अपनी जमीन गिरवी रखकर पिठावां या दक्षिणा देनी पड़ती थी। वह अपने इस पाखंडी वर्गों से एक सिपाही की तरह लड़ा। इस दोहरे चरित्र की धज्जियां उड़ाई और बखिया उधेड़ दी। गौर्दा अपने समय की जटिलताओं, आन्दोलनों के सच्चा सिपाही था। वह अपनी तरह से अपनी युगीन समस्याओं से टकराये। चाहे वह शारदा एक्ट हो, कुली उतार हो, स्वराज के आन्दोलन हों या जातिगत मुख्ये हो, दलितों व शोषितों के दमन के सवाल हों। हालांकि यहाँ भी उनकी अपनी सीमाएं हैं, वही सीमाएं जो उस समय के एक अभिजातीय व्यक्ति की ईमानदार राष्ट्रवादी में बदलने की थीं। इसके अलावा गोपाल दत्त भटूट 1940 में गरूड़ अल्मोड़ा में जन्म हुआ।
चारु पांडे की कविता पुस्तक अंग्वाल भी सामजिक कुरीतियों और सुधार व गांधी मार्ग के साथ चलने का आग्रह करती कविताएँ हैं। धरतीक पीड़ 1982 गोपाल दत्त भट्ट का प्रथम संकलन है। इनकी कविताओं में राष्ट्रीय चेतना, देश भक्ति तथा सामाजिक चेतना दिखाई देती है। भवानी दत्त पंत दीपाधार 1942 ई० प्रमुख कवि गीतकार हैं तथा प्रसिद्ध गायक हीरा सिंह राणा 1942 ई0 उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक चेतना के प्रमुख कवि ह।, गिरीश तिवारी गिर्दा के रचनाकर्म के हिंदी के ख्यातिलब्ध कवि मंगलेश डबराल ने कहा था 'क्रान्तिकारी चेतना और व्यंग्य की पैनी धार से लैस इन कविताओं में देश- विदेश के कई जनकवियों की आवाजें भी घुली मिली हैं। लोर्का, पाब्लो नेरूदा, नाजिम हिकमत, एर्नस्तो कार्दनाल, फैज अहमद फैज ऐसे कवित हैं, जिनके सरोकारों की ओर गिर्दा बार-बार लौटते हैं और यह कहने की इच्छा होती है कि गिर्दा पहाड़ के नागार्जुन हैं। गिदा का व्यक्तित्व भी नागार्जुन से बहुत मिलता है। उसी तरह की फकीरी, फक्कड़पन यायावरी और समाज से गहरा लगावा अपने जन की नियति बदलने की निरंतर कोशिश हैं, यथास्थिति के पोषकों के प्रति लगातार कटाक्ष है और मनुष्यता के लिए एक ऐसी आशा है, जो तमाम दुखों- अभावों से पार पा लेती है। गिर्दा और नागार्जुन की अनेक कविताओं में एक जैसे सरोकार ही नहीं हैं, कहीं कहीं उनकी संरचना भी एक जैसी दिखती है' कुमाउनी लिखित साहित्य में शेरदा अनपढ़ के रचनाकर्म अपना स्थान है
वे कुमाउनी आमजन मानस के कवि थे जो हास्य मव्यंग में बड़ी बड़ी बातें लिखने में माहिर थे विद्वानों ने उन्हें कुमाउनी साहित्य कबीर भी कहा इसके साथ ही बालम सिंह जनौती व जगदीश जोशी तक का मौखिक लेखन अपने समाज के बदलाव और राज्य आन्दोलन के साथ साथ अब तक हुए महत्वपूर्ण सामाजिक अंतसबंधों को देखा जा सकता है। गद्य साहित्य में श्री बन्धु बोरा की कहानियां और जगदीश जोशी की कहानियाँ अपने समाज का ज्वलंत दस्तावेज प्रस्तुत करती है।
1. कुमाऊनी साहित्य का आरंभ कब और किससे हुआ?
उत्तर: कुमाऊनी साहित्य का आरंभ विद्वान पंत गुमानी से हुआ, जिन्हें 1790-1846 के बीच कार्य करने वाले पहले प्रमुख कवि माना जाता है। उनके लेखन में अंग्रेजी शासन के प्रति दोनों, अनुराग और विद्रोह के भाव प्रकट होते हैं।
2. कुमाऊनी साहित्य में पंत गुमानी का क्या योगदान है?
उत्तर: पंत गुमानी ने कुमाऊनी साहित्य में पर्वतीय जनजीवन और सामाजिक यथार्थ को चित्रित किया। उनकी कविता में हलवाहा, विधवा और सामान्य पहाड़ी जनों का सहज और आत्मीय चित्रण मिलता है।
3. कृष्णानंद पाण्डे की कविताओं का क्या महत्व है?
उत्तर: कृष्णानंद पाण्डे ने कुमाऊनी काव्य परंपरा को आगे बढ़ाया और भक्ति, समाज सुधार, और व्यंग्य के तत्वों से परिपूर्ण कविताएं लिखी। उनकी 'मुलुक कुमाऊं' और 'कलयुग वर्णन' कविताओं में युगीन समाज की विषमताओं पर करारी चोट की गई है।
4. चिन्तामणि ज्योतिषी की प्रमुख रचनाएं क्या हैं?
उत्तर: चिन्तामणि ज्योतिषी ने 'सत्यनारायण कथा' और 'भगवद्गीता' का कुमाऊनी भाषा में अनुवाद किया। इसके अलावा, उनकी कविताओं में घरेलू जीवन की समस्याओं का चित्रण भी मिलता है।
5. गौर्दा का कुमाऊनी साहित्य में क्या योगदान है?
उत्तर: गौर्दा कुमाऊनी साहित्य के स्वर्णिम शिखर हैं। उनका लेखन भारतीय राष्ट्रवाद, स्थानीय जन आंदोलन और सामाजिक सुधार के मुद्दों से गहरा जुड़ा हुआ था। वे अपनी कविताओं के माध्यम से पाखंडी अभिजन वर्ग के खिलाफ आवाज उठाते थे और शोषित वर्ग के अधिकारों की बात करते थे।
6. गोपाल दत्त भट्ट और उनकी कविताओं का क्या महत्व है?
उत्तर: गोपाल दत्त भट्ट की कविताओं में राष्ट्रीय चेतना, देशभक्ति और सामाजिक चेतना की झलक मिलती है। उनकी रचनाओं में गांधीवादी विचार और समाज सुधार के प्रति जागरूकता भी दिखाई देती है।
7. गिरीश तिवारी 'गिर्दा' के काव्य योगदान को कैसे देखा जाता है?
उत्तर: गिर्दा का काव्य कार्य क्रांतिकारी चेतना और व्यंग्य के तत्वों से लैस है। उनकी कविताओं में सामाजिक मुद्दों और शोषण के खिलाफ निरंतर कटाक्ष किया गया है। उन्हें पहाड़ के नागार्जुन के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने समाज के बदलाव के लिए संघर्ष किया।
8. कुमाऊनी साहित्य में शेरदा अनपढ़ का क्या स्थान है?
उत्तर: शेरदा अनपढ़ को कुमाऊनी साहित्य में एक प्रमुख हास्य और व्यंग्य कवि माना जाता है। उन्हें कुमाऊनी साहित्य के कबीर के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने अपने सरल और प्रभावी लेखन से समाज के गहरे मुद्दों पर प्रकाश डाला।
9. कुमाऊनी साहित्य में गद्य लेखन का योगदान किसका है?
उत्तर: कुमाऊनी गद्य लेखन में श्री बन्धु बोरा और जगदीश जोशी की कहानियां महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इनकी कहानियां समाज के ज्वलंत मुद्दों और बदलाव को दर्शाती हैं।
10. कुमाऊनी साहित्य में समाज सुधार की दिशा में कौन से लेखक सक्रिय थे?
उत्तर: कुमाऊनी साहित्य में समाज सुधार के लिए गौर्दा, गोपाल दत्त भट्ट, और गिर्दा जैसे कवि सक्रिय थे। इनकी रचनाओं में सामाजिक विषमताओं, शोषण, और पाखंड के खिलाफ आवाज उठाई गई थी।
प्रेरणादायक स्वतंत्रता सेनानी और उनकी कहानियाँ
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