गंगा चालीसा: गंगा माता की महिमा का अद्भुत वर्णन - Ganga Chalisa: A wonderful description of the glory of Ganga Mata

गंगा चालीसा: गंगा माता की महिमा का अद्भुत वर्णन

गंगा, जो भारतीय संस्कृति में शुद्धता, पवित्रता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है, का वर्णन अनेक भक्ति गीतों और स्तोत्रों में किया गया है। इनमें से एक महत्वपूर्ण भक्ति गीत है गंगा चालीसा, जिसमें गंगा माता की महिमा, कृपा और उनके अद्भुत गुणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस ब्लॉग में हम गंगा चालीसा के अंशों का अध्ययन करेंगे और गंगा माता की महिमा को समझेंगे।

गंगा चालीसा का सारांश

स्तुति

"मात शैल्सुतास पत्नी ससुधाश्रंगार धरावली"
यह पंक्ति गंगा माता की सुंदरता और उनकी दिव्यता को व्यक्त करती है। गंगा को मातृस्वरूप में वर्णित किया गया है, जो सभी जीवों के लिए जीवनदायिनी हैं।

दोहा

"जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग।"

इस दोहे में गंगा माता की महिमा का बखान किया गया है, जिन्हें देवताओं का वरदान और शिव की जटाओं का निवास कहा गया है।

चौपाई

जय जय जननी हराना अघखानी।  
आनंद करनी गंगा महारानी।।  
जय भगीरथी सुरसरि माता।  
कलिमल मूल डालिनी विख्याता।।

जय जय जहानु सुता अघ हनानी।  
भीष्म की माता जगा जननी।।  
धवल कमल दल मम तनु सजे।  
लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई।।

वहां मकर विमल शुची सोहें।  
अमिया कलश कर लखी मन मोहें।।  
जदिता रत्ना कंचन आभूषण।  
हिय मणि हर, हरानितम दूषण।।

जग पावनी त्रय ताप नासवनी।  
तरल तरंग तुंग मन भावनी।।  
जो गणपति अति पूज्य प्रधान।  
इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना।।

ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी।  
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि।।  
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो।  
गंगा सागर तीरथ धरयो।।

अगम तरंग उठ्यो मन भवन।  
लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन।।  
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता।  
धरयो मातु पुनि काशी करवत।।

धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी।  
तरनी अमिता पितु पड़ पिरही।।  
भागीरथी ताप कियो उपारा।  
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा।।

जब जग जननी चल्यो हहराई।  
शम्भु जाता महं रह्यो समाई।।  
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी।  
रहीं शम्भू के जाता भुलानी।।

पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो।  
तब इक बूंद जटा से पायो।  
ताते मातु भें त्रय धारा।  
मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा।।

गईं पाताल प्रभावती नामा।  
मन्दाकिनी गई गगन ललामा।।  
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी।  
कलिमल हरनी अगम जग पावनि।।

धनि मइया तब महिमा भारी।  
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी।।  
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।  
धनि सुर सरित सकल भयनासिनी।।

पन करत निर्मल गंगा जल।  
पावत मन इच्छित अनंत फल।।  
पुरव जन्म पुण्य जब जागत।  
तबहीं ध्यान गंगा महं लागत।।

जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।  
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि।  
महा पतित जिन कहू न तारे।  
तिन तारे इक नाम तिहारे।।

शत योजन हूं से जो ध्यावहिं।  
निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं।  
नाम भजत अगणित अघ नाशै।  
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे।।

जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।  
धर्मं मूल गंगाजल पाना।  
तब गुन गुणन करत दुख भाजत।  
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत।।

गंगहि नेम सहित नित ध्यावत।  
दुर्जनहूं सज्जन पद पावत।।  
उद्दिहिन विद्या बल पावै।  
रोगी रोग मुक्त हवे जावै।।

गंगा गंगा जो नर कहहीं।  
भूखा नंगा कभुहुह न रहहि।  
निकसत ही मुख गंगा माई।  
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई।।

महं अघिन अधमन कहं तारे।  
भए नरका के बंद किवारें।  
जो नर जपी गंग शत नामा।  
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा।।

सब सुख भोग परम पद पावहीं।  
आवागमन रहित ह्वै जावहीं।  
धनि मइया सुरसरि सुख दैनि।  
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी।।

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।  
सुन्दरदास गंगा कर दासा।  
जो यह पढ़े गंगा चालीसा।  
मिली भक्ति अविरल वागीसा।।

नित नए सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान।। 
अंत समाई सुर पुर बसल। सदर बैठी विमान।। 
संवत भुत नभ्दिशी। राम जन्म दिन चैत्र।। 
पूरण चालीसा किया। हरी भक्तन हित नेत्र।। 
।।दोहा। ।।इतिश्री गंगा चालीसा समाप्त।।

गंगा और भागीरथ का संबंध

गंगा चालीसा में भागीरथ की तपस्या का वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से गंगा माता धरती पर आईं। यह दर्शाता है कि कैसे भागीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए कठिन तप किया और उनके जल ने संसार को जीवन प्रदान किया।

गंगा माता की कृपा

गंगा चालीसा में यह स्पष्ट किया गया है कि गंगा माता की कृपा से भक्तों के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।

  1. धार्मिक महत्व:
    "गंगा गंगा जो नर कहहीं। भूखा नंगा कभुहुह न रहहि।"
    गंगा का नाम लेने से भक्तों को सभी सुख प्राप्त होते हैं।

  2. मोक्ष की प्राप्ति:
    "जो नर जपी गंग शत नामा। सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा।"
    गंगा का स्मरण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

निष्कर्ष

गंगा चालीसा गंगा माता की महिमा का अद्भुत वर्णन है। इसमें गंगा माता की कृपा, उनके जल का महत्व, और उनकी स्तुति के माध्यम से भक्तों को प्रेरित किया गया है। गंगा केवल एक नदी नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है।

गंगा माता की महिमा का गान करें, और उनके प्रति अपने श्रद्धा भाव को प्रकट करें। यदि आपके पास कोई प्रश्न या सुझाव हैं, तो कृपया नीचे कमेंट करें।

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प्रश्न और उत्तर (Q&A)

  1. प्रश्न: गंगा चालीसा क्या है?

    • उत्तर: गंगा चालीसा एक भक्ति गीत है, जिसमें गंगा माता की महिमा, कृपा और उनके अद्भुत गुणों का वर्णन किया गया है। यह भक्तों को गंगा की स्तुति और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए प्रेरित करता है।
  2. प्रश्न: गंगा माता की महिमा क्यों महत्वपूर्ण है?

    • उत्तर: गंगा माता को भारतीय संस्कृति में शुद्धता, पवित्रता और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। उनके जल को जीवनदायिनी माना जाता है, और उनका नाम लेने से भक्तों को सभी सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  3. प्रश्न: भागीरथ की तपस्या का क्या महत्व है?

    • उत्तर: भागीरथ ने गंगा माता को धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया था। उनकी तपस्या के माध्यम से गंगा का अवतरण हुआ, जिसने संसार को जीवन और पवित्रता प्रदान की।
  4. प्रश्न: गंगा चालीसा का मुख्य संदेश क्या है?

    • उत्तर: गंगा चालीसा का मुख्य संदेश यह है कि गंगा माता की कृपा से भक्तों के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं, और उनके जल का स्मरण करने से मोक्ष प्राप्त होता है।
  5. प्रश्न: गंगा चालीसा के कुछ प्रमुख अंश कौन से हैं?

    • उत्तर: गंगा चालीसा में "जय जय जननी हराना अघखानी" और "जो नर जपी गंग शत नामा" जैसे प्रमुख अंश शामिल हैं, जो गंगा माता की स्तुति और उनके जल के महत्व को दर्शाते हैं।
  6. प्रश्न: गंगा का नाम लेने से क्या लाभ होता है?

    • उत्तर: गंगा का नाम लेने से भक्तों को सभी सुख प्राप्त होते हैं, और वे भूखा या नंगा नहीं रह सकते। यह पंक्ति भक्तों को गंगा की कृपा का अनुभव करने के लिए प्रेरित करती है।
  7. प्रश्न: गंगा चालीसा का पाठ किसके लिए किया जाता है?

    • उत्तर: गंगा चालीसा का पाठ गंगा माता की आराधना, उनकी कृपा प्राप्त करने और पवित्रता की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

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