उत्तराखंड की महान विभूतियां : चन्द्र सिंह नेगी “राही” महान लोकगायक जिन्होंने पहाड़ी संगीत की करी थी साधना (Great personalities of Uttarakhand: Chandra Singh Negi "Rahi" The great folk singer who practiced Pahari music)
उत्तराखंड की महान विभूतियां : चन्द्र सिंह नेगी “राही” महान लोकगायक जिन्होंने पहाड़ी संगीत की करी थी साधना
चन्द्र सिंह नेगी “राही” उत्तराखंड के एक प्रमुख लोक गायक, गीतकार, संगीतकार, कवि, कथाकार और सांस्कृतिक संरक्षक थे। वह समग्र रूप से प्रतिभाशाली कलाकार थे, जिन्हें अपने शिल्प की पेचीदगियों और महत्व की उत्कृष्ट समझ थी। अपनी रचनात्मक गतिविधियों के अतिरिक्त उन्हें उत्तराखंड के दुर्लभ गीत–संगीत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का गहरा शौक था। उन्हें उत्तराखंड की संगीत संस्कृति के ज्ञान का खजाना माना जाता था, जिस पर उन्होंने लगातार शोध किया, प्रतिनिधित्व किया और अपने श्रोताओं को समझाया था। जौनसार से लेकर जौहर घाटी तक पूरे उत्तराखंड की लोककथाओं के ज्ञान के लिए उन्हे जाना जाता था। उत्तराखंड के संगीत और संस्कृति के प्रति उनकी गहरी भक्ति के सन्दर्भ में उन्हें “उत्तराखंड लोक संगीत का भीष्म पितामह” के रूप में वर्णित किया जाता है।
उत्तराखंड की लोक परंपरा के गीत गाने वाले चन्द्रसिंह नेगी “राही” का जन्म पिता दिलबर सिंह नेगी और माता सुंदरा देवी के घर ग्राम गिवाली, मौददस्युन, पौड़ी गढ़वाल में 28 मार्च 1942 को हुआ था। चन्द्र सिंह नेगी को बचपन में पहाड़ी संगीत की परंपरा, जिसमें सदियों पुराने पारंपरिक गीत, संगीत, वाद्ययंत्र और सांस्कृतिक प्रथाएं शामिल थीं, पिता से विरासत में प्राप्त हुई थी। वह अपने पिता के साथ ठाकुली, डमरू और हुरुकी सहित पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों को बजाया करते थे। चन्द्र सिंह उत्तराखण्ड के प्रत्येक दुर्लभ लोकवादी यंत्रों के मर्मज्ञ थे। उन्होंने उत्तराखण्ड के कोस-कोस पर बदलने वाले लोकगीतों में प्रवीण लोग भी खोज लिए थे।
चन्द्र सिंह जीवन यापन के लिए मात्र 15 साल की उम्र में ही नौकरी की खोज में सन 1957 में जब वह गाँव से दिल्ली गए तो शुरूआती दिनों में उन्हें बाँसुरी बेचने का काम मिला था। यहाँ तक कि वह पूरे दिन काम करने के बाद भी शाम तक इतना जमा नहीं कर पाते थे कि वह दो वक्त का खाना खा सकें। सरल स्वभाव के चन्द्र सिंह ने अपना संघर्ष लगातार जारी रखा। अथक परिश्रम और संघर्ष के बाद उन्हें दूरसंचार विभाग में नौकरी प्राप्त हुई। अब उन्होंने निश्चय किया कि वह शास्त्रीय संगीत सीख कर विलुप्त हो रहें पहाड़ी गीत–संगीत को पुनर्जीवित करेंगे।
13 मार्च 1963 को आल इंडिया रेडियो दिल्ली केंद्र द्वारा भारतीय सेना के जवानों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में चन्द्र सिंह को गाने का मौका मिला और उन्होंने “पर वीणा की” नामक लोकगीत गाया। लोगों ने उनकी आवाज़ और गाने दोनों को पसंद किया। इसके बाद उन्होंने आल इंडिया रेडियो के लखनऊ केंद्र के लिए गढ़वाली और कुमाऊनी में गाना शुरू किया। चन्द्र सिंह के प्रशंसकों की संख्या में लगातार वृद्धि होने लगी और उनके गीत–संगीत को पूरे पहाड़ में पसंद किया जाने लगा था। अब वह ऑल इंडिया रेडियो नजीबाबाद केंद्र से भी गाने लगे थे। चन्द्र सिंह पहले पहाड़ी लोक गायक थे जिन्हें सबसे पहले दूरदर्शन में गाने का मौका मिला था।
चन्द्र सिंह ने सन 1966 में अपने गुरु गढ़वाली कवि कन्हैयालाल डांडरियाल के लिए अपने प्रसिद्ध गीत “दिल को उमाल” की रचना की, उन्होंने ही चन्द्र सिंह नेगी को “राही” उपनाम दिया था। चन्द्र सिंह नेगी “राही” ने गढ़वाली और कुमाऊँनी भाषाओं में 550 से अधिक गीत गाए थे। उनका काम उस समय 140 से अधिक ऑडियो कैसेट पर उपलब्ध था। उन्होंने सम्पूर्ण भारत में 1,500 से अधिक शो में लाइव प्रदर्शन किया था। उनका रिकॉर्ड किया गया प्रथम एल्बम “सौली घुरा घुर” एक व्यावसायिक हिट संगीत था।
चन्द्र सिंह नेगी “राही” एक गीतकार और कवि भी थे। उनके कविता संग्रहों में दिल को उमाल (1966), ढाई (1980), रामछोल (1981), और गीत गंगा (2010) शामिल हैं। उन्होंने मोनोग्राफ भी लिखे और बैले के लिए संगीत तैयार किया था। चन्द्र सिंह नेगी “राही” को एकमात्र ऐसा व्यक्ति माना जाता था जो उत्तराखंड के सभी पारंपरिक लोक वाद्ययंत्रों को बजा सकते थे, जिसमें ढोल दमौ, शहनाई, दौर, थाली और हुरुकी आदि शामिल थे। उन्हें पहाड़ी संगीत के लिए अद्वितीय ताल अनुक्रमों (बीट पैटर्न) का भी ज्ञान था और वह इन सभी तत्वों को अपनी संगीत प्रस्तुतियों में शामिल किया करते थे।
उन्होंने उत्तराखंड के विभिन्न लोक रूपों को शामिल करते हुए 2,500 से अधिक पुराने पारंपरिक गीतों को एकत्र और क्यूरेट किया था। उनकी महत्त्वाकांक्षी पुस्तक “ए कॉम्प्रिहेंसिव स्टडी ऑफ द सांग्स, म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स एंड डांस ऑफ द सेंट्रल हिमालय” को उत्तरांचल साहित्य, संस्कृति और कला परिषद द्वारा प्रकाशित किया गया था। पुरस्कार और सम्मान के रूप में उन्हें मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला सम्मान, डॉ. शिवानंद नौटियाल स्मृति पुरस्कार, गढ़ भारती, गढ़वाल सभा सम्मान पत्र (1995), और मोनाल संस्था, लखनऊ सम्मान पत्र आदि प्राप्त हुए थे।
जनवरी 2016 में चन्द्र सिंह नेगी “राही” अचानक अस्वस्थ हो गए और 10 जनवरी 2016 को 73 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हो गया। चन्द्र सिंह नेगी के जाने का मतलब लोक विधाओं के एक युग का अवसान हो गया था।
FAQs: चन्द्र सिंह नेगी “राही” – उत्तराखंड के महान लोकगायक
1. चन्द्र सिंह नेगी “राही” कौन थे?
- उत्तर: चन्द्र सिंह नेगी “राही” उत्तराखंड के एक प्रमुख लोक गायक, गीतकार, संगीतकार, कवि, और सांस्कृतिक संरक्षक थे। वह पहाड़ी संगीत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए प्रसिद्ध थे और उन्हें “उत्तराखंड लोक संगीत का भीष्म पितामह” के रूप में सम्मानित किया जाता है।
2. चन्द्र सिंह नेगी “राही” का जन्म कहां और कब हुआ था?
- उत्तर: उनका जन्म 28 मार्च 1942 को गिवाली, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ था।
3. चन्द्र सिंह नेगी “राही” की संगीत यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?
- उत्तर: चन्द्र सिंह नेगी ने अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत अपने पिता से पहाड़ी संगीत और पारंपरिक वाद्ययंत्रों के बजाने की कला सीखकर की। 15 साल की उम्र में दिल्ली आकर उन्होंने संगीत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत किया और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने का निर्णय लिया।
4. चन्द्र सिंह नेगी “राही” को कौन से संगीत सम्मान प्राप्त हुए थे?
- उत्तर: उन्हें मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला सम्मान, डॉ. शिवानंद नौटियाल स्मृति पुरस्कार, गढ़ भारती, गढ़वाल सभा सम्मान पत्र (1995), और मोनाल संस्था, लखनऊ सम्मान पत्र जैसे कई पुरस्कार प्राप्त हुए थे।
5. चन्द्र सिंह नेगी “राही” के प्रमुख संगीत योगदान क्या थे?
- उत्तर: चन्द्र सिंह नेगी ने गढ़वाली और कुमाऊनी भाषाओं में 550 से अधिक गीत गाए। उनका पहला एल्बम “सौली घुरा घुर” एक व्यावसायिक हिट था। उन्होंने 2,500 से अधिक पुराने पारंपरिक गीतों को एकत्रित और संरक्षित किया और उनके संगीत में उत्तराखंड के सभी पारंपरिक लोक वाद्ययंत्रों का उपयोग किया।
6. चन्द्र सिंह नेगी “राही” का संगीत उत्तराखंड की संस्कृति में कैसे योगदान था?
- उत्तर: चन्द्र सिंह नेगी ने उत्तराखंड की पारंपरिक लोक संगीत को पुनर्जीवित किया और उसे पूरे देश में प्रसिद्ध किया। उनका मानना था कि लोक संगीत के संरक्षण से उत्तराखंड की भाषाओं और संस्कृति को बचाया जा सकता है। उन्होंने इस संगीत को शास्त्रीय संगीत के साथ मिश्रित किया और उसे एक नया स्वरूप दिया।
7. चन्द्र सिंह नेगी “राही” का प्रसिद्ध गीत कौन सा था?
- उत्तर: उनका प्रसिद्ध गीत “दिल को उमाल” था, जिसे उन्होंने 1966 में लिखा था। यह गीत आज भी बहुत लोकप्रिय है और उत्तराखंड के लोक संगीत का एक अमूल्य हिस्सा बन गया है।
8. चन्द्र सिंह नेगी “राही” की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक कौन सी थी?
- उत्तर: उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक “ए कॉम्प्रिहेंसिव स्टडी ऑफ द सांग्स, म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स एंड डांस ऑफ द सेंट्रल हिमालय” थी, जो उत्तरांचल साहित्य, संस्कृति और कला परिषद द्वारा प्रकाशित की गई थी। इस पुस्तक में उन्होंने उत्तराखंड के संगीत, नृत्य और वाद्ययंत्रों का गहन अध्ययन किया।
9. चन्द्र सिंह नेगी “राही” की मृत्यु कब हुई थी?
- उत्तर: चन्द्र सिंह नेगी का निधन 10 जनवरी 2016 को 73 वर्ष की आयु में हुआ था। उनकी मृत्यु के साथ उत्तराखंड की लोक विधाओं का एक युग समाप्त हो गया।
10. चन्द्र सिंह नेगी “राही” की विरासत आज भी कैसे जीवित है?
- उत्तर: चन्द्र सिंह नेगी की विरासत उनके गीतों, उनके संगीत और उनके योगदान से जीवित है। उनके द्वारा संकलित किए गए लोक गीत आज भी उत्तराखंड के लोगों के दिलों में जीवित हैं। उनका संगीत उत्तराखंड की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है और वह हमेशा लोक संगीत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए याद किए जाएंगे।
11. चन्द्र सिंह नेगी “राही” को “राही” उपनाम क्यों दिया गया था?
- उत्तर: चन्द्र सिंह नेगी को “राही” उपनाम उनके गुरु, गढ़वाली कवि कन्हैयालाल डांडरियाल द्वारा दिया गया था। यह उपनाम उनके संगीत में छिपे भावनाओं और यात्रा के प्रतीक के रूप में प्रकट हुआ।
12. चन्द्र सिंह नेगी “राही” का संगीत उत्तराखंड की किस सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाता था?
- उत्तर: चन्द्र सिंह नेगी “राही” का संगीत उत्तराखंड की जौनसारी, गढ़वाली, कुमाऊनी और भोटिया जैसी विभिन्न सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाता था। उनके गीतों में इन क्षेत्रों की लोक धारा और संस्कृति की गहरी छाप थी।
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