कुमाऊँ रेजिमेंट: भारतीय सेना की गौरवशाली धरोहर (Kumaon Regiment: Glorious Heritage of the Indian Army)

कुमाऊँ रेजिमेंट: भारतीय सेना की गौरवशाली धरोहर

कुमाऊँ रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित रेजिमेंटों में से एक है। इसका इतिहास वीरता, बलिदान और भारत की रक्षा में उत्कृष्ट योगदान का प्रतीक है। कुमाऊँ रेजिमेंट न केवल उत्तराखंड की बल्कि पूरे भारत की शान है।


कुमाऊँ रेजिमेंट का इतिहास

कुमाऊँ रेजिमेंट का उद्भव 1788 में निज़ाम की टुकड़ी से हुआ। इसकी शुरुआत हैदराबाद के निज़ाम की सेना के रूप में हुई थी। द्वितीय विश्व युद्ध और स्वतंत्रता से पहले, इस रेजिमेंट ने कई अंतरराष्ट्रीय युद्धों में अंग्रेजों के अधीन लड़ाई लड़ी। 27 अक्टूबर 1945 को इसे "कुमाऊँ रेजिमेंट" नाम दिया गया। यह नाम बदलकर इस क्षेत्र के सैनिकों के योगदान को सम्मानित किया गया।

महत्वपूर्ण घटनाएँ:

  • 1947-48: स्वतंत्रता के तुरंत बाद कश्मीर घाटी की रक्षा के लिए लड़ाई।
  • 1962: भारत-चीन युद्ध में चौथी कुमाऊँ के मेजर सोमनाथ शर्मा को उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
  • 1971: बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में निर्णायक भूमिका।

कुमाऊँ रेजिमेंट का मुख्यालय: रानीखेत

उत्तराखंड के रानीखेत में स्थित कुमाऊँ रेजिमेंट सेंटर (KRC) इस रेजिमेंट की प्रशिक्षण और संचालन इकाई है। 1869 में इसे छावनी क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया था।
रानीखेत न केवल सेना का मुख्यालय है, बल्कि इसकी व्यवस्था, साफ-सफाई और स्थानीय जीवन में सेना का योगदान महत्वपूर्ण है। यहाँ से नंदा देवी समेत हिमालय की बर्फीली चोटियों के शानदार दृश्य देखे जा सकते हैं।


कुमाऊँ क्षेत्र और इसके सैनिक

कुमाऊँ क्षेत्र, जिसे "कुर्मांचल" भी कहा जाता है, का इतिहास वीरता और बलिदान से भरा है। यहाँ के निवासी, जिन्हें कुमाऊँनी कहा जाता है, अपनी परंपरा और संस्कृति को बनाए रखते हुए देश की सेवा में अग्रणी रहे हैं।
गढ़वाल राइफल्स और कुमाऊँ रेजिमेंट उत्तराखंड के युवाओं को सेना में शामिल होने और देश की सीमाओं की रक्षा करने के लिए प्रेरित करते हैं।


रेजिमेंटल गीत: "बेडू पका बारा मासा"

कुमाऊँ रेजिमेंट का प्रतिनिधि गीत "बेडू पका बारा मासा" इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान है। यह गीत न केवल कुमाऊँ रेजिमेंट बल्कि उत्तराखंड के लोगों के दिलों में खास स्थान रखता है।


रेजिमेंट का योगदान

कुमाऊँ रेजिमेंट ने स्वतंत्रता संग्राम, द्वितीय विश्व युद्ध, और 1947, 1962, 1965, 1971, और कारगिल युद्ध सहित कई अभियानों में वीरता का प्रदर्शन किया है। आज भी, यह रेजिमेंट भारत की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रमुख वीरता पुरस्कार:

  • मेजर सोमनाथ शर्मा: परमवीर चक्र विजेता।
  • अन्य कई सैनिकों को महावीर चक्र, वीर चक्र और अन्य पुरस्कार मिले हैं।

पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर

रानीखेत, कुमाऊँ रेजिमेंट सेंटर और यहाँ के संग्रहालय पर्यटकों को कुमाऊँ रेजिमेंट की गौरवशाली गाथा से परिचित कराते हैं।


निष्कर्ष

कुमाऊँ रेजिमेंट भारतीय सेना की शान है, जिसने भारत की स्वतंत्रता और अखंडता की रक्षा में महान योगदान दिया है। यह रेजिमेंट उत्तराखंड के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है और भारतीय सेना के प्रति देश के विश्वास का प्रतीक है।

जय हिंद!

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