कुमाऊँ रेजिमेंट: वीरता, परंपरा, और गौरव का प्रतीक (Kumaon Regiment: A symbol of valour, tradition, and glory)
कुमाऊँ रेजिमेंट: वीरता, परंपरा, और गौरव का प्रतीक
कुमाऊँ रेजिमेंट भारतीय सेना की एक ऐतिहासिक और बहुप्रशंसित रेजिमेंट है, जो अपनी अद्वितीय वीरता, परंपरा, और अनुशासन के लिए जानी जाती है। यह रेजिमेंट भारतीय सेना की उन गिनी-चुनी इकाइयों में से है, जिसने देश के विभिन्न युद्धों और अभियानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

इतिहास और विरासत
कुमाऊँ रेजिमेंट का गठन भारत की सैन्य परंपरा में एक अद्वितीय अध्याय है। इसकी जड़ें 18वीं शताब्दी के शुरुआती दौर से जुड़ी हैं। यह रेजिमेंट भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और द्वितीय विश्व युद्ध जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रमों का साक्षी रही है।
डाक टिकट द्वारा सम्मान
- 1988 में जारी डाक टिकट: 4वीं बटालियन की द्विशताब्दी वर्षगांठ के उपलक्ष्य में।
- 2017 में जारी डाक टिकट: कुमाऊँ रेजिमेंट की तीसरी बटालियन (राइफल्स) की शताब्दी के अवसर पर।
वर्तमान इकाइयाँ और उनके उपनाम
कुमाऊँ रेजिमेंट की हर बटालियन का अपना अलग उपनाम और इतिहास है। कुछ प्रमुख इकाइयाँ निम्नलिखित हैं:
बटालियन | उपनाम |
---|---|
2वीं बटालियन | बरार बटालियन |
4वीं बटालियन | लड़ाकू चौथी, प्रथम पीवीसी पल्टन |
5वीं बटालियन | भयंकर पांचवीं |
13वीं बटालियन | रेजांगला बटालियन, द्वितीय पीवीसी पल्टन |
18वीं बटालियन | सियाचिन श्रीलंकाई योद्धा |
20वीं बटालियन | बजिंग बीज़ |
इसके अलावा, कुमाऊँ स्काउट्स और प्रादेशिक सेना इकाइयाँ भी इस रेजिमेंट का हिस्सा हैं।
युद्ध और ऑपरेशन में भूमिका
कुमाऊँ रेजिमेंट ने भारतीय सेना के विभिन्न अभियानों में भाग लिया है और कई युद्ध सम्मानों से नवाजी गई है।
महत्वपूर्ण युद्ध सम्मान
- स्वतंत्रता से पहले: महिदपुर, बर्मा 1885-87, चीन 1900।
- प्रथम विश्व युद्ध: फ्रांस और फ्लैंडर्स, मिस्र, फिलिस्तीन, मेसोपोटामिया।
- द्वितीय विश्व युद्ध: मलाया, बर्मा।
- स्वतंत्रता के बाद: रेजांग ला (1962), संजोई-मीरपुर (1965), गडरा शहर (1971)।
सम्मान और अलंकरण
कुमाऊँ रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे सम्मानित रेजिमेंटों में से एक है। इसे प्राप्त प्रमुख अलंकरण हैं:
सम्मान | संख्या |
---|---|
परमवीर चक्र | 2 |
अशोक चक्र | 4 |
महावीर चक्र | 10 |
वीर चक्र | 79 |
शौर्य चक्र | 23 |
पद्म भूषण | 2 |
परमवीर चक्र प्राप्तकर्ता
- मेजर सोमनाथ शर्मा (मरणोपरांत) - बड़गाम, 1947।
- मेजर शैतान सिंह (मरणोपरांत) - रेजांग ला, 1962।
रेजिमेंट के कर्नल और नेतृत्व
कुमाऊँ रेजिमेंट के नेतृत्व ने इसे भारतीय सेना की अग्रणी इकाइयों में स्थान दिलाने में योगदान दिया है।
महत्वपूर्ण नेता
- जनरल टी.एन. रैना: भारत-चीन युद्ध के नायक।
- लेफ्टिनेंट जनरल ओम प्रकाश: 2013-2015 तक रेजिमेंट के कर्नल रहे।
निष्कर्ष
कुमाऊँ रेजिमेंट न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का प्रतीक है। यह वीरता, अनुशासन और बलिदान का आदर्श उदाहरण है। इसके इतिहास और उपलब्धियों की गाथा हर भारतीय को प्रेरणा देती है।
"जोश और जूनून से भरी कुमाऊँ रेजिमेंट की कहानी, देशभक्ति और साहस की अमर गाथा है।"
कुमाऊँ क्षेत्र के पारंपरिक शुभ अवसरों पर गाए जाने वाले गीत।
उत्तराखंड की लोककथाएँ और उनके सामाजिक प्रभाव।
कुमाऊँनी साहित्य की भाषाई विविधता और इसकी महत्ता।
कुमाऊँ की संस्कृति और लोककथाओं की अनमोल झलक।
कुमाऊँनी लोक साहित्य के विकास का ऐतिहासिक विवरण।
कुमाऊँनी साहित्य में वर्णित समाज की संरचना।
कुमाऊँनी साहित्य के संरक्षण से जुड़े मुद्दे और उनके समाधान।
कुमाऊँनी पद्य साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश।
कुमाऊँनी भाषा के साहित्यिक योगदान की गहराई।
साहित्य के माध्यम से समाज की तस्वीर।
कुमाऊँ क्षेत्र की भाषाई विविधता का वर्णन।
कुमाऊँनी लोककथाओं का इतिहास और उनके रूप।
टिप्पणियाँ