बिना काली मां के दर्शन के युद्ध में नहीं जाते कुमाऊं रेजीमेंट के जवान (Soldiers of Kumaon Regiment do not go to war without seeing Kali Maa)
बिना काली मां के दर्शन के युद्ध में नहीं जाते कुमाऊं रेजीमेंट के जवान
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित गंगोलीहाट का हाट कालिका मंदिर, कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों के लिए एक विशेष महत्व रखता है। यह केवल एक देवी क्षेत्र नहीं, बल्कि कुमाऊं रेजिमेंट के लिए आराध्य देवी का स्थल है। 1971 में जब पाकिस्तान के साथ युद्ध शुरू हुआ, तब कुमाऊं रेजिमेंट ने सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में इस मंदिर में महाकाली की मूर्ति की स्थापना की थी। सेना द्वारा स्थापित की गई यह मूर्ति कुमाऊं रेजिमेंट के सैनिकों के लिए एक आस्था का प्रतीक बनी।
पुराने समय में माना जाता था कि यही वह स्थान है, जहां काली के रौद्र रूप को शांत किया गया था। आज भी यह स्थान श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है।
16 दिसंबर 1971 को विजय दिवस से पहले कुमाऊं रेजिमेंट ने करीब एक लाख पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया। इस विजय के बाद, यहां महाकाली की एक बड़ी मूर्ति स्थापित की गई। कुमाऊं रेजिमेंट का हर छोटा और बड़ा अधिकारी यहां आकर मां के चरणों में शीश झुकाता है। सेना के अन्य बटालियनों के जवान और अधिकारी भी यहां मां काली की पूजा करने आते हैं।
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हाट कालिका मंदिर कहां स्थित है?
हाट कालिका मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में स्थित है।कुमाऊं रेजीमेंट का इस मंदिर से क्या संबंध है?
कुमाऊं रेजीमेंट के सैनिक महाकाली की इस मूर्ति की पूजा करते हैं और युद्ध में विजय की प्राप्ति के लिए इस स्थान पर आस्था रखते हैं। 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान इस मंदिर में महाकाली की मूर्ति स्थापित की गई थी।हर साल इस मंदिर में किस प्रकार के अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं?
यहां हर साल सहस्त्र चण्डी यज्ञ, सहस्रघट पूजा, शतचंडी महायज्ञ और अष्टबलि अठवार जैसे पूजन अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।महाकाली के चरणों में श्रद्धापुष्प अर्पित करने से क्या लाभ होते हैं?
कहा जाता है कि श्रद्धापुष्प अर्पित करने से रोग, शोक और दरिद्रता दूर होती है।मंदिर से जुड़ी प्रमुख कथाएं क्या हैं?
मंदिर से जुड़ी प्रमुख कथाओं में आदि गुरु शंकराचार्य के अचेत हो जाने और फिर महाकाली के दर्शन प्राप्त करने की घटना शामिल है। इसी स्थान पर पुरातन यज्ञों द्वारा काली के रौद्र रूप को शांत किया गया।कुमाऊं रेजिमेंट के जवान क्यों महाकाली की पूजा करते हैं?
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान समुद्र की लहरों में फंसे एक जहाज पर कुमाऊं रेजीमेंट के जवानों ने महाकाली का जय घोष किया और लहरें शांत हो गईं। तब से यह युद्ध में विजय की देवी मानी जाती हैं।कुमाऊं रेजिमेंट के जवान हर बार युद्ध में क्यों महाकाली का जय घोष करते हैं?
यह परंपरा इसी स्थान पर स्थापित महाकाली की मूर्ति से जुड़ी है, जिसे सेना द्वारा युद्ध में विजय की प्राप्ति के लिए आस्था और श्रद्धा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।कुमाऊं रेजीमेंट के अन्य बटालियनों के जवान भी यहां क्यों आते हैं?
यह मंदिर और महाकाली की शक्ति कुमाऊं रेजीमेंट के जवानों के बीच आद्य और श्रद्धा की एक अद्वितीय पहचान बना चुकी है, जिसके कारण अन्य बटालियनों के जवान भी यहां महाकाली की पूजा करने आते हैं।महाकाली की मूर्ति कब स्थापित की गई थी?
महाकाली की मूर्ति 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद सुबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में इस स्थान पर स्थापित की गई थी।क्या मंदिर से जुड़े पुराणिक और ऐतिहासिक संदर्भ हैं?
हां, आदि शंकराचार्य की कथा से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना भी मंदिर के पास घटित हुई थी, जहां काली के रौद्र रूप को शांत करने हेतु पुरातन यज्ञ करवाए गए थे।
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