फूलों के साथ मनाया जाता है फुलदेई ...
फूलदेई पर्व की उत्तराखंड में विशेष मान्यता है. फूलदेई चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास ही हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है. इस त्योहार को खासतौर से बच्चे मनाते हैं और घर की देहरी पर बैठकर लोकगीत गाने के साथ ही घर-घर जाकर फूल बरसाते हैं.
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उत्तराखंड फूल देई क्यों मनाते हैं?
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हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने से ही नववर्ष होता है। नववर्ष के स्वागत के लिए कई तरह के फूल खिलते हैं। उत्तराखंड में चैत्र मास की संक्रांति अर्थात पहले दिन से ही बसंत आगमन की खुशी में फूलों का त्योहार फूलदेई मनाया जाता है।
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ब्रह्मकमल उत्तराखण्ड का राजकीय पुष्प है !
मुख्य विशेषताएं:
- हर वसंत ऋतु में, वसंत के आगमन और नए मौसम का स्वागत करने के लिए उत्तराखंड में फूल देई त्यौहार मनाया जाता है।
- फुलयारी नामक बच्चे त्योहार के हिस्से के रूप में पड़ोस के घरों में फूल इकट्ठा करते हैं और पहुंचाते हैं।
- घरों के दरवाजे पर फूल लगाना प्रकृति के प्रति सराहना का प्रतीक है और देवताओं से शुभकामनाएं मांगता है।
- वसंत के आखिरी दिन, परिवार फुलयारी को उनकी भागीदारी के लिए धन्यवाद के रूप में पैसे और मिठाइयाँ देते हैं।
- यह त्यौहार लोगों के लिए वसंत के आगमन और इसकी नई शुरुआत के लिए आभार व्यक्त करने का एक तरीका है।
- परंपरा सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने और उसे भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने का एक तरीका भी है।
- यह त्यौहार प्रकृति और उसकी सुंदरता का उत्सव है और फूलयारी बच्चे इसे संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- लोग त्योहार के दौरान वसंत का स्वागत करने के लिए एक गीत गाते हैं और प्रकृति के प्रति अपना प्यार और आभार व्यक्त करते हैं।
- यह गीत इस विश्वास को दर्शाता है कि घरों के दरवाजे पर फूल लगाने से समृद्धि, धन और शांति आएगी।
- फुलारी उत्सव उत्तराखंड में नए विकास, सुंदरता और प्रकृति की प्रचुरता का जश्न मनाने का समय है।
परंपरा को आगे बढ़ाते हुए: उत्तराखंड के फूलयारी बच्चे
फूलदेई पर्व, एक माह तक मनाया जाने वाला प्रकृति का पर्व, जानिए क्यों है खास
उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा अनूठी है। यहां के पर्व और त्यौहार किसी न किसी रुप में एक खास संदेश देते हैं। जो कि परंपरा के साथ प्रकृति से भी जुड़े रहते हैं। एक ऐसा ही पर्व आजकल उत्तराखंड में मनाया जाता है। जो कि एक माह तक मनाया जाता है। जिसे फूलदेई पर्व कहा जाता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी फूलदेई को बाल पर्व के रूप में प्रति वर्ष मनाने की घोषणा की है।
इस त्योहार को फूल सक्रांति भी कहते हैं
फूलदेई पर्व प्रकृति के लगाव का खास पर्व है। इस त्योहार को फूल सक्रांति भी कहते हैं। इन दिनों हर तरफ हरियाली और फूलों की बयार नजर आती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने से ही नव वर्ष होता है और नववर्ष के स्वागत के लिए खेतो में सरसों खिलने लगती है और पेड़ो में फूल भी आने लग जाते है। चैत्र मास की संक्रांति अर्थात पहले दिन से ही बसंत आगमन की खुशी में उत्तराखंड में फूलों का त्यौहार फूलदेई मनाया जाता है, जो कि बसन्त ऋतु के स्वागत का प्रतीक है। इस फूल पर्व में छोटे बच्चे सुबह सुबह सूर्योदय के साथ-साथ घर-घर की देहली पर रंग बिरंगे फूल को चढ़ाते हुए घर की खुशहाली, सुख-शांति की कामना के गीत गाते हैं अर्थात जिसका मतलब यह है कि हमारा समाज फूलों के साथ नए साल की शुरूआत करे। बदले में लोग बच्चो को गुड़, चावल व पैसे देते हैं। फूलदेई पर्व के दिन एक मुख्य प्रकार का व्यंजन बनाया जाता है जिसे सयेई कहा जाता है। कहीं-कहीं ये पर्व एक माह तो कहीं एक सप्ताह तक चलता है। बच्चे फ्योंली, बुरांस और दूसरे स्थानीय रंग बिरंगे फूलों को चुनकर लाते हैं और उनसे सजी फूलकंडी लेकर घोघा माता की डोली के साथ घर-घर जाकर फूल डालते हैं। घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है।
फूलदेई के त्योहार को लेकर आज देवभूमि में उत्सव मनाया जा रहा है। गांव से लेकर शहर तक फूलदेई को लेकर कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। उत्तराखंड में गांव से शहर तक के बच्चों में आज खासा उत्साह है। ढोल-दमाऊं व अन्य वाद्ययंत्रों के साथ भव्य शोभा यात्रा निकाली गई।
वसंत ऋतु के आगमन को लेकर उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व फूलदेई मनाया जाने लगा है। यह उत्तराखंड का लोकपर्व है। इसमें छोटे बच्चे सुबह-सवेरे फूल लेकर लोगों की देहरियों पर रखते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। चैत्र मास की प्रथम तिथि को फूलदेई पर्व मनाया जाता है। फूलदेई त्योहार को फुलारी, फूल सक्रांति भी कहते हैं। यह पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है। इन दिनों पहाड़ों में जंगली फूलों की बहार रहती है।
फूलदेई पर भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा भवन में भी लोक संस्कृति जीवंत हुई। फूलदेई के अवसर पर क्षेत्र के बच्चों ने पारंपरिक मांगल गीतों के साथ रंग-बिरंगे फूल बरसाए। विधान सभा अध्यक्ष के साथ कैबिनेट मंत्रियों एवं विधायकों ने बच्चों से भेंट कर अपनी परंपरा से जुड़ने के लिए उत्साहवर्धन किया।
फूलदेई महोत्सव पर FQCs
1. फूलदेई महोत्सव कहाँ मनाया जाता है? फूलदेई महोत्सव उत्तराखंड में मनाया जाता है, खासकर इस पर्व का आयोजन चैत्र संक्रांति के दिन होता है। यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन और नए मौसम का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है।
2. फूलदेई महोत्सव किस दिन मनाया जाता है? फूलदेई महोत्सव हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है, जो कि हिंदू नववर्ष का पहला दिन होता है।
3. फूलदेई महोत्सव के दौरान कौन सी परंपरा निभाई जाती है? फूलदेई महोत्सव के दौरान बच्चे "फूलयारी" नामक परंपरा के तहत घरों के दरवाजों पर रंग-बिरंगे फूल लगाते हैं और लोकगीत गाते हैं। इसके बदले में उन्हें पैसे और मिठाइयाँ दी जाती हैं।
4. फूलदेई महोत्सव का धार्मिक महत्व क्या है? फूलदेई महोत्सव का धार्मिक महत्व यह है कि इसे वसंत ऋतु के आगमन और नए कृषि मौसम की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार और देवताओं से आशीर्वाद की कामना करने का तरीका है।
5. फूलदेई महोत्सव में बच्चे क्या करते हैं? इस दौरान बच्चे फ्योंली, बुरांस और अन्य स्थानीय फूलों को इकट्ठा करते हैं और घर-घर जाकर इन फूलों को लोगों के दरवाजों पर चढ़ाते हैं। वे घर में सुख-समृद्धि और शांति की कामना करते हुए लोकगीत गाते हैं।
6. फूलदेई महोत्सव को किस नाम से भी जाना जाता है? फूलदेई महोत्सव को "फूल सक्रांति" और "फुलारी" भी कहा जाता है।
7. फूलदेई महोत्सव की खासियत क्या है? फूलदेई महोत्सव खासतौर से वसंत ऋतु के स्वागत का प्रतीक है और यह प्रकृति से जुड़ा हुआ उत्सव है। इस दौरान बच्चे रंग-बिरंगे फूलों के साथ अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हैं और गांवभर में उत्सव का माहौल होता है।
8. फूलदेई महोत्सव के दौरान क्या पकवान बनते हैं? फूलदेई महोत्सव के दिन एक विशेष पकवान "सयेई" बनाया जाता है, जिसे खासतौर पर इस त्योहार के लिए तैयार किया जाता है।
9. क्या फूलदेई महोत्सव एक महीने तक मनाया जाता है? हां, कुछ स्थानों पर फूलदेई महोत्सव एक महीने तक मनाया जाता है, जबकि अन्य स्थानों पर यह एक सप्ताह तक चलता है।
10. फूलदेई महोत्सव के दौरान क्या होता है? फूलदेई महोत्सव के दौरान ढोल-दमाऊं और अन्य वाद्ययंत्रों के साथ भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। इसके साथ ही क्षेत्र के बच्चों द्वारा पारंपरिक मांगल गीतों के साथ फूल बरसाए जाते हैं।
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