दशहरा स्तोत्र - पापों का नाशक - Dussehra Stotra - Destroyer of Sins

दशहरा स्तोत्र - पापों का नाशक

दशहरा स्तोत्र का पाठ धार्मिक ग्रंथों में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति अनेक प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है और उसे अनेक रोग, भय, शत्रु और बंधनों से भी मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र श्रद्धा पूर्वक पाठ करने वाले भक्तों को अपार लाभ देता है और उनके सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करता है। विशेषकर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को इसका पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।


स्तोत्र का महत्व:

  1. पापों से मुक्ति: इस स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति दस प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है।

  2. भय और शत्रुओं से सुरक्षा: घर में इसकी पूजा करने से आग और चोर का भय नहीं रहता है।

  3. संपूर्ण मनोकामनाएँ: मनुष्य की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और मृत्यु के बाद वह ब्रह्म में लीन होता है।

  4. विशेष फल: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगाजल में खड़े होकर इस स्तोत्र का दस बार पाठ करने से दरिद्रता और असमर्थता दूर होती है।


संकल्प और पाठ विधि:


संकल्प:
इति वैश्वानरनारदसम्वादे दशपापहरायाः श्रीगङ्गाध्यानार्चनविधिः।

पाठ विधि:
पाठ करने से पहले गंगाजल लेकर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।


दशहरा स्तोत्र पाठ

 ब्रह्मोवाच नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः ।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै शाङ्कर्यै ते नमो नमः ॥ ॥ १॥

नमस्ते विष्णुरूपिण्यै ब्रह्ममूर्त्यै नमो नमः ।
सर्वदेवस्वरूपिण्यै नमो भेषजमूर्तये ॥ ॥ २॥

 सर्वस्य सर्वव्याधीनां भिषक्षेष्ठयै नमोऽस्तु ते।
स्थाणुजङ्गमसम्भूतविषहन्त्र्यै नमो नम: ॥ ॥ ३॥

संसारविषनाहिन्यै जीवनायै नमो नमः ।
शान्तिसन्तानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्तये ॥ ॥ ४॥ 

सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नमः पापारिमूर्तये ।
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमो नमः ॥ ॥ ५॥

भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमो नमः ।
मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु स्वर्गदायै नमो नमः ॥ ॥ ६॥

नमस्तरैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमो नमः ।
नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नमः ॥ ॥ ७॥

त्रिहृताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमो नमः ।
नन्दायै लिङ्गधारिण्यै नारायण्यै नमो नमः॥ ॥ ८॥

नमस्ते विश्वमुख्याये रेवत्यै ते नमो नमः ।
बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु लोकधात्र्यै नमो नमः॥ ॥ ९॥ 

नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नमः । 
पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमो नमः॥ ॥१०॥

परापरशताढ्यायै वरदायै नमो नमः । 
पाशजालनिकर्‌^न्तिन्यै अभिन्नायै नमो नम: ॥ ॥११॥

शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः । 
उस्रायै सुखदोग्ध्ये च सञ्जीविन्यै नमो नमः॥ ॥१२॥

ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै दुरितघ्न्यै नमो नमः ।
प्रणतार्तिप्रभञ्जिन्यै जगन्मात्रे नमोऽस्तु ते ॥ ॥१३॥

सर्वापत्प्रतिपक्षायै मङ्गलायै नमो नमः ।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ॥ ॥१४॥

 सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ।
निलेंपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमो नमः ॥ ॥१५॥

 परात्परतरे तुभ्यं नमस्ते मोक्षदे सदा ।
गङ्गे ममाग्रतो भूया गङ्गे मे देवि पृष्ठतः॥ ॥१६॥

 गङ्गे मे पार्श्चयोरेहि त्वयि गङ्गेऽस्तु मे स्थितिः ।
आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्व त्वं गां गते शिवे॥ ॥१७॥

 त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं हि नारायणः परः ।
गङ्गे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नमः शिवे॥ ॥१८॥ 

य इदं पठति स्तोत्रं भक्त्या नित्यं नरोऽपि यः ।
शुणुयाच्छुद्धया युक्तः कायवाक्चित्तसम्भवैः ॥ ॥१९॥ 

दशधासंस्थितैरदोषैः सर्वैरेव प्रमुच्यते ।
सर्वान्कामानवाप्नोति प्रेत्य ब्रह्मणि लियते॥ ॥२०॥

इमं स्तवं गृहे यस्तु लेखयित्वा विनिक्षिपेत्‌ ।
नाग्निचोरभयं तत्र पापेभ्यूऽपि भयं न हि॥ ॥२१॥ 

ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता ।
संहरेत्त्रिविधं पापं बुधवारेण संयुता ॥ ॥२२॥

तस्यां दशम्यामेतच्च स्तोत्रं गडूगाजले स्थित: ।
यः पठेद्दशकृत्वस्तु दरिद्रो बापि चाक्षम: ॥ ॥२३॥

सोऽपि तत्फलमाप्नोति गङ्गां सम्पूज्य यत्नत: ।
 पूर्वोक्तेन विधानेन यत्फलं संप्रकीर्तितम्‌ ॥ ॥२४॥

यथा गौरी तथा गङ्गा तस्माद्रौर्यास्तु पूजने । 
विधिर्यो विहितः सम्यक्‌ सोऽपि गङ्गाप्रपूजने ॥ ॥२५॥

यथा शिवस्तथा विष्णुर्यथा विष्णुरुमा तथा ।
उमा यथा तथा गङ्गा चतूरूपन्न भिद्यते ॥ ॥२६॥
 विष्णुरुद्रान्तरं यच्च श्रीगौर्योरन्तरं यथा ।
गङ्गागौर्यन्तरं चापि यो ब्रूते मूढधीस्तु स: ॥ ॥२७॥

 रौरवादिषु घोरेषु नरकेषु पतत्यधः ।
अदत्तानामुपादानं हिंसा चैवाविधानतः ॥ ॥२८॥

 परदारोपसेवा च कायिकं त्रिविधं स्मृतम्‌।
पारुष्यमनृतं चैव पैशुन्यं चापि सर्वशः ॥ ॥२९॥

असम्बद्धप्रलापश्च वाङ्गयं स्याच्चतुर्विधम्‌ ।
परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम्‌ ॥ ॥३०॥ 

वितथाभिनिवेशश्च मानसं त्रिविधं स्मृतम्‌।
एतानि दश पापानि हर त्वं मम जाह्नवि ॥ ॥३१॥ 

दशपापहरा यस्मात्तस्मादशहरा स्मृता ।
एतैदर्शविधैः पापैः कोटिजन्मसमुद्भवैः ॥ ॥३२॥ 

 मुंच्यते नात्र सन्देहो ब्रह्मणो वचनं यथा ।
दशत्रिंशच्छूतान्सर्वान्‌ पितृनथ पितामहान्‌ ॥ ॥३३॥

उद्धरत्येव संसारान्मन्त्रेणानेन पूजिता । 
Om नमो भगवत्यै दशपापहरायै गङ्गायै नारायण्यै रेवत्यै । 
शिवायै दक्षायै अमृतायै विश्वरूपिण्यै (विश्वमुख्यायै) नन्दिन्यै ते नमो नमः ॥३४॥

ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशम्यां बुधहस्तयोः । 
गरानन्दे व्यतीपाते कन्याचन्द्रे वुषे रवौ । 
दशयोगे च यः स्नात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते॥ ॥३५॥

सितमकरनिषण्णां शुभ्रवर्णा त्रिनेत्रां
करधृतकलशोद्यत्सोत्पलामत्यभीष्टाम्‌ ।
विधिहरिहररूपां सेन्दुकोटीरजुष्टां 
कलितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि ॥ ॥३६॥

आदावादिपितामहस्य निगमव्यापारपात्रे जलं 
पश्चात्पन्नगशायिनो भगवतः पादोदकं पावनम्‌ । 
भूयः शम्भुजटाविभूषणमणिजंह्रोर्महर्षरियं कन्या
 कल्मषनाशिनी भगवती भागीरथी दुश्यते ॥३७॥

विष्णुपादाव्जसम्भूते गङ्गे त्रिपथगामिनि। 
ब्रह्मद्रवेति विख्याते पापं मे हर जाह्नवि ॥ ॥३८॥

जाह्नवी सर्वतः पुण्या ब्रह्महत्यापहारिणी। 
वाराणस्यां विशेषेण गङ्गा चोत्तरवाहिनी ॥ ॥३९॥

गङ्गा गङ्गेति यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि । 
 मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति ॥ ॥४०॥

॥ इति स्कन्दे महापुराणे एकाशीति साहस्यां संहितायां तृतीये काशीखण्डे धर्मान्धिस्था गङ्गास्तुतिः अथवा श्रीगज्गादशहरास्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥

निष्कर्ष:

दशहरा स्तोत्र का नियमित पाठ न केवल आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है, बल्कि यह पापों के नाश के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के भय और बंधन दूर होते हैं, और व्यक्ति को सुख और शांति की प्राप्ति होती है।

भक्तों को यह ध्यान रखना चाहिए कि पाठ करते समय पूर्ण श्रद्धा और मनन से किया गया पाठ सबसे फलदायी होता है।

ॐ नमो भगवत्यै दशपापहरायै गङ्गायै नारायण्यै रेवत्यै।

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प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: दशहरा स्तोत्र क्या है?

उत्तर: दशहरा स्तोत्र एक धार्मिक पाठ है जो विशेष रूप से दशमी तिथि को पढ़ा जाता है। इसका पाठ करने से व्यक्ति अनेक प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है और उसे रोग, भय, शत्रु और बंधनों से मुक्ति मिलती है।

प्रश्न 2: इस स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?

उत्तर: विशेष रूप से ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगाजल में खड़े होकर इसका पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

प्रश्न 3: दशहरा स्तोत्र के पाठ का महत्व क्या है?

उत्तर: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति पापों से मुक्ति, भय और शत्रुओं से सुरक्षा, और सभी मनोकामनाएँ पूरी होने का लाभ प्राप्त करता है।

प्रश्न 4: इस स्तोत्र का पाठ कैसे करना चाहिए?

उत्तर: पाठ करने से पहले गंगाजल लेकर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। श्रद्धा पूर्वक पाठ करना सबसे फलदायी होता है।

प्रश्न 5: इस स्तोत्र का संकल्प क्या है?

उत्तर: संकल्प: "इति वैश्वानरनारदसम्वादे दशपापहरायाः श्रीगङ्गाध्यानार्चनविधिः।"

प्रश्न 6: क्या दशहरा स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए?

उत्तर: हां, नियमित पाठ करने से व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है।

प्रश्न 7: क्या दशहरा स्तोत्र पाठ से डर और बंधन समाप्त होते हैं?

उत्तर: हां, इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के भय और बंधन दूर होते हैं, जिससे व्यक्ति को सुख और शांति की प्राप्ति होती है।

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