॥ गंगा अवतरण की पौराणिक कथा ॥

युधिष्ठिर ने लोमश ऋषि से पूछा, "हे मुनिवर! राजा भगीरथ गंगा को किस प्रकार पृथ्वी पर ले आये? कृपया इस प्रसंग को भी सुनायें ।" लोमश ऋषि ने कहा, "धर्मराज ! इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक एक बहुत ही प्रतापी राजा हुये । उनके वैदर्भी और शैव्या नामक दो रानियाँ थीं । राजा सगर ने कैलाश पर्वत पर दोनों रानियों के साथ जाकर शंकर भगवान की घोर आराधना की । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उनसे कहा कि हे राजन् ! तुमने पुत्र प्राप्ति की कामना से मेरी आराधना की है। अतएव मैं वरदान देता हूँ कि तुम्हारी एक रानी के साठ हजार पुत्र होंगे किन्तु दूसरी रानी से तुम्हारा वंश चलाने वाला एक ही सन्तान होगा । इतना कहकर शंकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गये ।
समय बीतने पर शैव्या ने असमंज नामक एक अत्यन्त रूपवान पुत्र को जन्म दिया और वैदर्भी के गर्भ से एक तुम्बी उत्पन्न हुई जिसे फोड़ने पर साठ हजार पुत्र निकले । कालचक्र बीतता गया और असमंज का अंशुमान नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । असमंज अत्यन्त दुष्ट प्रकृति का था इसलिये राजा सगर ने उसे अपने देश से निष्कासित कर दिया । फिर एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करने की दीक्षा ली। अश्वमेघ यज्ञ का श्यामकर्ण घोड़ा छोड़ दिया गया और उसके पीछे-पीछे राजा सगर के साठ हजार पुत्र अपनी विशाल सेना के साथ चलने लगे । सगर के इस अश्वमेघ यज्ञ से भयभीत होकर देवराज इन्द्र ने अवसर पाकर उस घोड़े को चुरा लिया और उसे ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया । उस समय कपिल मुनि ध्यान में लीन थे अतः उन्हें इस बात का पता ही न चला । इधर सगर के साठ हजार पुत्रों ने घोड़े को पृथ्वी के हरेक स्थान पर ढूँढा किन्तु उसका पता न लग सका । वे घोड़े को खोजते हुये पृथ्वी को खोद कर पाताल लोक तक पहुँच गये जहाँ अपने आश्रम में कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे और वहीं पर वह घोड़ा बँधा हुआ था । सगर के पुत्रों ने यह समझ कर कि घोड़े को कपिल मुनि ही चुरा लाये हैं, कपिल मुनि को कटु-वचन सुनाना आरम्भ कर दिया । अपने निरादर से कुपित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अपने क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया ।
जब सगर को नारद मुनि के द्वारा अपने साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने का समाचार मिला तो वे अपने पौत्र अंशुमान को बुलाकर बोले कि बेटा ! तुम्हारे साठ हजार दादाओं को मेरे कारण कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में भस्म हो जाना पड़ा । अब तुम कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनसे क्षमा प्रार्थना करके उस घोड़े को ले आओ । अंशुमान अपने दादाओं के बनाये हुये रास्ते से चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुँचे । वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपनी प्रार्थना एवं मूदु व्यवहार से कपिल मुनि को प्रसन्न कर लिया । कपिल मुनि ने प्रसन्न होकर उन्हें वर माँगने के लिये कहा । अंशुमान बोले कि मुने ! कृपा करके हमारा अश्व लौटा दें और हमारे दादाओं के उद्धार का कोई उपाय बताये । कपिल मुनि ने घोड़ा लौटाते हुये कहा कि वत्स ! तुम्हारे दादाओं का उद्धार केवल गंगा के जल से तर्पण करने पर ही हो सकता है।
अंशुमान ने यज्ञ का अश्व लाकर सगर का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण करा दिया । यज्ञ पूर्ण होने पर राजा सगर अंशुमान को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये इस प्रकार तपस्या करते-करते उनका स्वर्गवास हो गया । अंशुमान के पुत्र का नाम दिलीप था । दिलीप के बड़े होने पर अंशुमान भी दिलीप को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये किन्तु वे भी गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल न हो सके । दिलीप के पुत्र का नाम भगीरथ था । भगीरथ के बड़े होने पर दिलीप ने भी अपने पूर्वजों का अनुगमन किया किन्तु गंगा को लाने में उन्हे भी असफलता ही हाथ आई |
अन्ततः भगीरथ की तपस्या से गंगा प्रसन्न हुई और उनसे वरदान माँगने के लिया कहा । भगीरथ ने हाथ जोड़कर कहा कि माता ! मेरे साठ हजार पुरखों के उद्धार हेतु आप पृथ्वी पर अवतरित होने की कृपा करें । इस पर गंगा ने कहा वत्स ! मैं तुम्हारी बात मानकर पृथ्वी पर अवश्य आउँगी, किन्तु मेरे वेग को भगवान शिव के अतिरिक्त और कोई सहन नहीं कर सकता । इसलिये तुम पहले भगवान शिव को प्रसन्न करो | यह सुन कर भगीरथ ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी हिमालय के शिखर पर गंगा के वेग को रोकने के लिये खड़े हो गये । गंगा जी स्वर्ग से सीधे शिव जी की जटाओं पर जा गिरीं। इसके बाद भगीरथ गंगा जी को अपने पीछे-पीछे अपने पूर्वजों के अस्थियों तक ले आये जिससे उनका उद्धार हो गया । भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार करके गंगा जी सागर में जा गिरीं और अगस्त्य मुनि द्वारा सोखे हुये समुद्र में फिर से जल भर गया ।
इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए । उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया । युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है । गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है. इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है।
गंगाजी के बारह (द्वादश) नाम
वैसे तो गंगा दशहरा को गंगाजी में स्नान का माहात्म्य है किन्तु आजकल की व्यस्त जिंदगी में यदि गंगातट या किसी नदी पर नहीं जा पाएं तो घर पर ही स्नान करते समय इन बारह नामों का स्मरण कर लिया जाए तो उस जल में गंगाजी का वास हो जाता है। ये बारह नाम हैं-
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा ।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी ॥
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी ।
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशये ।
स्नानोद्यतः स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम् ॥
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प्रश्न और उत्तर
प्रश्न: राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को किस प्रकार से समाप्त किया गया?
- उत्तर: राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को कपिल मुनि के क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया गया, जब उन्होंने कपिल मुनि को अपमानित किया।
प्रश्न: भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए किसकी आराधना की?
- उत्तर: भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की।
प्रश्न: गंगा के अवतरण के लिए राजा सगर ने क्या किया?
- उत्तर: राजा सगर ने अपने पुत्रों के उद्धार के लिए गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या की, लेकिन वे सफल नहीं हुए।
प्रश्न: गंगा जी ने पृथ्वी पर आने के लिए किस शर्त पर सहमति दी?
- उत्तर: गंगा जी ने कहा कि उनका वेग भगवान शिव के अतिरिक्त और कोई सहन नहीं कर सकता, इसलिए भगीरथ को पहले भगवान शिव को प्रसन्न करना होगा।
प्रश्न: गंगा का जल किसके अस्थियों पर बहाया गया था?
- उत्तर: गंगा का जल भगीरथ ने अपने पूर्वजों के अस्थियों पर बहाया था ताकि उनका उद्धार हो सके।
प्रश्न: गंगा के बारह नाम कौन से हैं?
- उत्तर: गंगा के बारह नाम हैं: नन्दिनी, नलिनी, सीता, मालती, महापगा, विष्णुपादाब्जसम्भूता, गंगा, त्रिपथगामिनी, भागीरथी, भोगवती, जाह्नवी, त्रिदशेश्वरी।
प्रश्न: गंगा के जल में स्नान करने का क्या महत्व है?
- उत्तर: गंगा के जल में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और यह मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
प्रश्न: गंगा अवतरण की कथा का मुख्य संदेश क्या है?
- उत्तर: गंगा अवतरण की कथा का मुख्य संदेश है कि सच्ची तपस्या और भक्ति से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है और जीवन का उद्धार संभव है।
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