नवरात्रि विशेष: नवदुर्गा के रूप में नौ औषधीय पौधों का महत्व - Navratri Special: Significance of Nine Medicinal Plants as Navdurga
नवरात्रि विशेष: नवदुर्गा के रूप में नौ औषधीय पौधों का महत्व
नवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। हर दिन माता के एक अलग स्वरूप की उपासना की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देवी दुर्गा के ये नौ स्वरूप आयुर्वेद में भी महत्वपूर्ण हैं और प्रत्येक रूप किसी न किसी औषधीय पौधे से जुड़ा हुआ है? आइए जानते हैं नवदुर्गा के नौ रूपों के साथ-साथ उनसे जुड़े औषधीय पौधों के बारे में।
1. प्रथम शैलपुत्री (हरड़)
हरड़ एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है जो कई प्रकार के रोगों को दूर करने में सहायक है। इसे आयुर्वेद में हरीतिका के नाम से भी जाना जाता है। यह पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है और शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। हरड़ के सेवन से शरीर को निरंतर ऊर्जा प्राप्त होती है और यह सात प्रकार की होती है – पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी।
2. द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी)
ब्रह्मचारिणी का रूप ब्राह्मी के रूप में जाना जाता है। यह मस्तिष्क को शांति और ताजगी प्रदान करती है। ब्राह्मी का सेवन याददाश्त बढ़ाने और रक्त विकारों को दूर करने में सहायक होता है। इसके सेवन से स्वर को मधुर बनाने और मानसिक रोगों से मुक्ति पाने में भी मदद मिलती है, इसलिए इसे सरस्वती का प्रतीक भी कहा गया है।
3. तृतीय चंद्रघंटा (चंदुसूर)
चंद्रघंटा का पौधा चंदुसूर धनिया के समान दिखने वाला एक विशेष औषधीय पौधा है। यह औषधि मोटापा कम करने में अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। इसे चर्महंती भी कहा जाता है, जो शरीर के त्वचा रोगों को दूर करने में सहायक है।
4. चतुर्थ कूष्मांडा (पेठा)
पेठा मिठाई बनाने के लिए प्रसिद्ध कूष्मांडा देवी का रूप एक औषधीय पौधा है। इसे कुम्हड़ा या पेठा भी कहते हैं। यह पेट की सफाई और रक्त विकारों को दूर करने में सहायक है। साथ ही मानसिक रोगों में भी इसका सेवन अमृत के समान है। प्राकृतिक पेठे का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।
5. पंचम स्कंदमाता (अलसी)
स्कंदमाता देवी का औषधीय रूप अलसी है, जो वात, पित्त और कफ के रोगों का नाश करती है। इसमें फाइबर की प्रचुर मात्रा होती है, जिससे यह पाचन तंत्र के लिए अत्यधिक लाभकारी है। अलसी का नियमित सेवन शरीर को निरोगी बनाता है और रक्त को शुद्ध करता है।
6. षष्ठ कात्यायनी (मोइया)
देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में अम्बालिका या अम्बिका के नाम से भी जाना जाता है। मोइया औषधि गले के रोगों को ठीक करने और कफ एवं पित्त के रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक है।
7. सप्तम कालरात्रि (नागदौन)
कालरात्रि देवी नागदौन औषधि के रूप में पूजी जाती हैं। यह औषधि मानसिक एवं शारीरिक विकारों को दूर करती है। यह पाइल्स (बवासीर) जैसी गंभीर समस्याओं के लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।
8. अष्टम महागौरी (तुलसी)
तुलसी का पौधा सात प्रकार का होता है – सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। यह हृदय रोगों और रक्त विकारों को दूर करने में सहायक है। प्रतिदिन सुबह तुलसी का सेवन करने से शरीर के लिए यह अत्यंत लाभकारी होता है।
9. नवम सिद्धिदात्री (शतावरी)
सिद्धिदात्री देवी का औषधीय रूप शतावरी है, जिसे नारायणी भी कहा जाता है। शतावरी बल, बुद्धि और विवेक को बढ़ाने वाली औषधि मानी जाती है। यह खासकर उन माताओं के लिए रामबाण सिद्ध होती है, जिन्हें प्रसव के बाद दूध की कमी की समस्या होती है।
उपसंहार: इन नौ औषधीय पौधों का महत्व नवरात्रि के पावन पर्व पर देवी के रूप में पूजित होने के साथ-साथ आयुर्वेद में भी अत्यधिक है। आइए, हम सभी इस नवरात्रि के शुभ अवसर पर इन प्राकृतिक औषधियों का सेवन कर अपने शरीर को स्वस्थ और निरोगी बनाएं।
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